जयशंकर गुप्त
क्रिकेट हमारे लेखन का प्रिय विषय नहीं रहा है. ऐसा भी नहीं कि क्रिकेट के प्रति हमारी रुचि ही नहीं रही. हम भी उन लोगों में से रहे हैं जिन्हें आम भारतीयों की तरह क्रिकेट के मास्टर ब्लास्टर या कहें ‘भगवान’ कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के सौवें शतक का अंतहीन इंतजार है. यही नहीं, हमने लिटिल मास्टर कहे जाने वाले सुनील गावस्कर के शतकों का रिकार्ड बनने के क्रम में उनकी अनेक बोझिल पारियों के बारे में भी पढ़ी-सुनी हैं. ठीक उसी तरह जैसे 2003 में एक दिनी क्रिकेट के विश्वकप विजेता कप्तान कपिल देव के गेंदबाजी का रिकार्ड बनने के क्रम में उनकी भोथरी होती गई गेंदबाजी के बारे में भी हम पढ़ते-सुनते रहे हैं. उस समय क्रिकेट के मैदानों तक अपनी पहुँच नहीं होती थी और टेलीविज़न अपने सामर्थ्य के बाहर होता था. अखबार और आकाशवाणी ही अपने क्रिकेट ज्ञान या कहें जिज्ञासा को पूरा करने के माध्यम होते थे. बाद के वर्षों में जब भी किसी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच में किसी दूसरे देश की टीम के सामने एक गेंद अथवा रन पर हमारी टीम की जीत अथवा हार तय होने की बात होती, टी वी सेट के सामने हमारा दिल भी तेजी से धड़कने लगता. हारने से दिल बैठ जाता और जीत जाने पर खुशी के मारे उछलने लगता. इसे हमारे क्रिकेटी राष्ट्रवाद से जोड़कर भी देखा जा सकता है. वैसे, दुनिया भर के अन्य क्रिकेटरों के बेहतरीन खेल के भी हम कायल रहे हैं.
लेकिन जब से क्रिकेट में बेशुमार दौलत का प्रवाह होने लगा, इसके नित नए संस्करण जुड़ते गए, खासतौर से बड़े ताम झाम और चमक दमक के साथ आईपीएल के नाम से 2008 में शुरू हुए टी 20 क्रिकेट मैचों के प्रति मेरा कभी आकर्षण नहीं बन पाया. किसी भी टीम अथवा खिलाड़ी को अपना कह सकने लायक कारण समझ में नहीं आते. बस यही लगता कि सब पैसों के लिए खेल रहे हैं. हालांकि इसमें एक अच्छी बात यह जरूर उभर कर आई कि भारतीय और शायद अन्य देशों में भी क्रिकेट की जिन युवा प्रतिभाओं को या फिर टीम में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाने के कारण बाहर हो गए खिलाडियों को अपनी राष्ट्रीय टीमों में खेलने का अवसर नहीं मिल पाता, उन्हें आईपीएल मैचों में विभिन्न टीमों का हिस्सा बनकर अपना हुनर दिखाने और अच्छे प्रदर्शन से अपनी राष्ट्रीय टीमों में जगह बनाने के लिए अपनी दावेदारी भी मजबूत करने का मौका मिल जाता है. इसमें उन्हें खूब सारा पैसा भी मिल जाता है जिसकी उम्मीद वे राष्ट्रीय टीम में खेलने के बावजूद नहीं कर सकते. अब केरल के प्रतिभाशाली गेंदबाज श्रीसंत को ही देखिए. पिछले कुछ समय से बाहर श्रीशंत के आईपीएल मैचों में अच्छे प्रदर्शन के कारण भारतीय टीम के अगले विदेश दौरे में शामिल किए जाने की अटकलें लगने लगी थीं. पिछले साल राजस्थान रायल्स ने उन्हें तकरीबन सवा दो करोड़ रु. में खरीदा था. लेकिन शायद इतने भर से उन्हें संतोष नहीं था. और जब आईपील मैचों को मैच फिक्सिंग और स्पाट फिक्सिंग के जरिए हजारों करोड़ रु. के गोरखधंधे में बदल देने वाले सटोरियों और उनके बुकी या कहें फिक्सर्स ने संपर्क किया तो वह अपने कुछ अन्य साथी क्रिकेटरों के साथ डोल गए. एक ओवर में 13 या उससे अधिक रन पिटवाने के एवज में उन्हें 40 लाख रु. और उनके एक अन्य सहयोगी अंकित चह्वाण को इसी काम के लिए 60 लाख रु. का प्रलोभन मामूली नहीं था. लेकिन इसके चलते न सिर्फ उनका क्रिकेट भविष्य अंधकारमय हो गया, ‘स्पाट फिक्सिंग’ के लिए जेल जाने वाले किसी पहले टेस्ट क्रिकेटर का ‘खिताब’ भी उनके नाम जुड़ गया. क्या मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग के खेल में शामिल होनेवाले श्रीसंत अकेले क्रिकेटर हैं?
यह पहली बार नहीं हुआ है जब क्रिकेटरों के कारण क्रिकेट कलंकित हुआ है. जब से क्रिकेट में काले अथवा सफेद धन का प्रवाह बढ़ा है, भ्रष्टाचार, विवाद और मैच फिक्सिंग के प्रकरण भी बढ़े हैं. जिन लोगों का क्रिकेट से कभी कुछ भी लेना देना नहीं रहा, वे बड़े नेता, नौकरशाह और वकील भी क्रिकेट की राजनीति और प्रबंधन से जुड़ने लगे. लाखों-करोड़ों रु. के वारे न्यारे होने लगे. इस सबके बीच ही सटोरिये और जुआड़ी भी क्रिकेट की तरफ मुखातिब होने लगे. आगे चलकर क्रिकेट मैचों के फैसलों को मनचाहे ढंग से करवाने के नाम पर मैच फिक्सिंग का धंधा जोर पकड़ने लगा. क्रिकेट में सटोरियों और मैच फिक्सिंग में लगे लोगों का मामला पहली बार उस समय प्रकाश में आया था जब तत्कालीन हरफन मौला खिलाड़ी मनोज प्रभाकर ने इस मामल में कपिलदेव का नाम भी उछाला था. तब कपिल के क्रिकेटी कद को देखते हुए इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया था. उसके बाद अप्रैल 2000 में दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट टीम के कप्तान हैंसी क्रोंजे ने स्वीकार किया था कि भारत दौरे के समय मैच फिक्सिंग में उनकी भूमिका थी. उनके क्रिकेट खेलने पर आजीवन प्रतिबंध लगा था. बाद में उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत भी हो गई थी. कुछ ही महीनों बाद हुए खुलासे के बाद भारतीय टीम के बेहतरीन क्रिकेटर-कप्तान अजहरुद्दीन और अजय जडेजा सहित कुछ और लोग भी मैच फिक्सिंग के जाल में फंसे थे. उनके क्रिकेट खेलने पर भी क्रमशः आजीवन एवं पांच साल तक के प्रतिबंध लगे थे. अभी केंद्रीय मंत्री एवं आईपीएल के चेयरमैन राजीव शुक्ल कह रहे हैं कि स्पाट फिक्सिंग के लिए गिरफ्तार अथवा दोषी पाए गए अन्य क्रिकेटरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. कड़ी कार्रवाई क्या वैसी ही होगी जैसी अजहर के खिलाफ हुई? वह आज हमारी संसद के सम्मानित सदस्य हैं.
आईपीएल क्रिकेट मैचों और उनके प्रबंधन से जुड़े लोगों का कहना है कि हजारों करोड़ रु. के इस आयोजन में किसी को भी घाटा नहीं है. यहां तक कि जो टीम सबसे निचले पायदान पर रहती है उसे भी खासा मुनाफा हो जाता है. लेकिन स्पाट फिक्सिंग के खुलासे के बाद लगता है कि इस पूरे प्रकरण में किसी की हार होती है तो वह मैदान में बैठे अथवा टीवी चैनलों पर अपने प्रिय क्रिकेटरों के बेहतर अथवा बदतर प्रदर्शन पर उछलने अथवा उदास हो जाने वाले दर्शकों की, जिन्हें पता ही नहीं होता कि उनका प्रिय क्रिकेटर किस बाल, रन और चैक्के, छक्के के लिए कितने रु. का सौदा कर चुका है. कहा तो यह भी जा रहा है कि जितने हजार करोड़ रु. का कुल कारोबार आईपीएल6 में अनुमानित है, उससे कहीं अधिक रकम आईपील के एक-एक मैच, एक-एक गेंद और रन को लेकर फिक्सिंग के जरिए होने वाली सट्टेबाजी और जुए में लग रही है. सट्टेबाजों और उनके फिक्सर्स के लिए मैच फिक्सिंग के मुकाबले स्पॉट फिक्सिंग ज्यादा सुरक्षित और मुफीद नज़र आने लगी. इसमें पुरे मैच के बजाय उसका कुछ या खास हिस्सा ही फिक्स करना था. मसलन, अगली गेंद नो बाल डालनी है, कौन सी बाल वाइड फेंकनी है, किस ओवर में आउट होना है. या अगले ओवर में कितने रन बनने हैं आदि आदि. इस फिक्सिंग में कोई एक खिलाडी अकेले भी शामिल हो सकता है. इसमें एक्यूरेसी भी ज्यादा दिखती है लिहाजा इसमें पैसों का फ्लो भी ज्यादा ही होता है. पहले जहाँ मैच पर सट्टे लगते थे वहां अब हर गेंद पर सट्टा लगने लगा है.
यह गोरखधंघा न सिर्फ मुंबई, दिल्ली बल्कि देश के अन्य बड़े शहरों, इलाकों में भी वर्षों से धड़ल्ले से चल रहा है. कहा तो यह भी जाता है कि इसके लिए सट्टेबाज, बड़े आपरेटर पुलिस अफसरों को नियमित ‘हफ्ता’ पहुंचाते हैं. अभी पिछले आईपीएल 5 के दौरान भी एक खबरिया चैनल ने स्टिंग आपरेशन के जरिए मैच-स्पॉट फिक्सिंग का खुलासा किया था लेकिन उसके बाद क्या हुआ? अगर हमारी पुलिस, भारतीय एवं अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट की प्रबंधक समितियां एवं आईपीएल मैचों का प्रबंधन इस मामले में गंभीर होते तो शायद क्रिकेट और क्रिकेटरों और उनके शुभचिंतकों-प्रशंसकों को भी यह दिन नहीं देखने पड़ते. लेकिन सबसे अधिक चिंता की बात इन मैचों में बढ़ रही सट्टेबाजी और फिक्सिंग और इस गोरखधंधे में मुंबई, कराची, दुबई और अन्य ठिकानों पर बैठे माफिया-आतंकी सरगनाओं के सक्रिय होने को लेकर होनी चाहिए. स्पॉट फिक्सिंग का खुलासा करने वाली दिल्ली पुलिस के अनुसार इस गोरखधंधे के तार कुख्यात आतंकी माफिया सरगना दाउद इब्राहिम और उसकी बदनाम डी कंपनी के साथ भी जुड़े हो सकते हैं. आश्चर्य की बात नहीं कि मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग पर आधारित जुए और सट्टेबाजी से जमा रकम का एक बड़ा हिस्सा भारत और पाकिस्तान के भी कुछ शहरों-इलाकों को निशाना बनाने वाली आतंकवादी गतिविधियों पर भी खर्च होता है. इसकी चिंता किसे है?
(इस लेख के सम्पादित अंश 1 9 मई 2 0 1 3 के लोकमत समाचार में प्रकाशित )
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