Tuesday, 14 May 2019

प्रधानमंत्री जी, ये मीटू - मीटू क्या है !

संदर्भ अलग है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 3 मई को राजस्थान के सीकर में एक चुनावी रैली में कांग्रेस पर जिस ‘मी टू मी टू’ का जिक्र किया, उसका संदर्भ पूर्व विदेश राज्य मंत्री एम जे अकबर के ‘मी टू’ से सर्वथा अलग है. अकबर पर संपादक रहते उनकी कुछ सहकर्मियों ने यौन शोषण का आरोप लगाया था. लेकिन बात बेबात  तुकबंदी भिड़ाने के अभ्यस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीकर में ‘मी टू मी टू’ के जरिए कांग्रेस के यूपीए शासन में छह सर्जिकल स्ट्राइक करने लेकिन उसका कभी ढिंढोरा नहीं पीटने के दावे की खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि कांग्रेस अब सर्जिकल स्ट्राइक पर ‘मी टू मी टू’ कर रही है जबकि उसके शासन में हुए सर्जिकल स्ट्राइक कागजी थे. क्योंकि कांग्रेस की स्ट्राइक के बारे में न सेना, ना देश और ना ही पाकिस्तान को ही पता चला. 

दरअसल, एक दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने पुलवामा, उरी, पठानकोट आतंकी हमले के मास्टर माइंड आतंकी सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र के द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने का श्रेय लेते हुए इसे अपनी सरकार का सर्जिकल स्ट्राइक नंबर 3 घोषित किया था. इसी के जवाब में कांग्रेस ने कहा था कि यूपीए शासन में भी सेना ने छह बार सर्जिकल स्ट्राइक की थी. लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए इसका कभी ढिंढोरा नहीं पीटा था. कांग्रेस के छह सर्जिकल स्ट्राइक्स की ताईद मोदी सरकार के पहले सर्जिकल स्ट्राइक के हीरो रहे लेफ्टिनेंट जनरल डी एस हुड्डा ने भी की है. 

मसूद अजहर, वैश्विक आतंकवादी
आतंकी सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र के द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने के लिए भारत सरकार और खासतौर से भारतीय राजनय, संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत सैयद अकबरुद्दीन बधाई और सराहना के हकदार हैं. लेकिन क्या वाकई मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करना प्रधानमंत्री जी के शब्दों में ‘सर्जिकल स्ट्राइक 3’ है! संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सैंक्शन (प्रतिबंध लगानेवाली) समिति के प्रस्ताव को देखें तो माजरा कुछ और ही नजर आता है. मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के पुराने प्रस्तावों पर चीन वीटो लगाते रहा लेकिन इस बार जब प्रस्ताव को संशोधित करके पेश किया गया तब जाकर चीन उस पर से अपना वीटो हटाने को राजी हुआ. इसके अलावे भारत के साथ चीन का जो कूटनीतिक आदान प्रदान हुआ, सो अलग है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संशोधित प्रस्ताव में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों और खासतौर से 14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकी हमले में मसूद अजहर और उसके आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद की सहभागिता का जिक्र ही नहीं है. गौरतलब है कि इस हमले में हमारे सीमा सुरक्षा बल के 40 जवान शहीद हो गए थे. इसकी जिम्मेदारी जैश ए मोहम्मद के खूंखार आतंकी सरगना मसूद अजहर और उसके संगठन ने ली थी. लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का संशोधित प्रस्ताव कहता है, ‘‘मसूद अजहर के अलकायदा और तालिबान के साथ जुड़ा होने के साथ ही अफगानिस्तान में पश्चिमी ताकतों से लड़ने के लिए लड़ाकों की भर्ती का आह्वान करने के लिए उसे ‘वैश्विक आतंकवादी’ घोषित किया जाता है.’’ इस प्रस्ताव के बारे में अमेरिकी सीएनएन (केबल न्यूज नेटवर्क) की रिपोर्ट का अंश देखें, 

"Azhar was sanctioned for his association with terror organizations such as Al-Qaeda and for "participating in the financing, planning, facilitating, preparing, or perpetrating of acts or activities" associated with JeM, the ISIL (Da'esh) and Al-Qaida Sanctions Committee said in a statement. Azhar's alleged association with the bombing in February, an attack on the Indian parliament in 2001 and other incidents in the Kashmir valley have not been listed in the statement."

कंधार में मसूद अजहर को आतंकवादियों के सुपुर्द करते तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह
इसके बावजूद अगर प्रधानमंत्री मोदी अपनी पीठ थप थपाना चाहें तो उन्हें कौन रोक सकता है. लेकिन अगर यह प्रस्ताव सर्जिकल स्ट्राइक नंबर 3 है तो फिर जनवरी 2001 के पहले सप्ताह में मसूद अजहर और उसके साथ दो अन्य खूंखार आतंकवादियों को भारत की जेल से निकालकर तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह की देख रेख में भारी माल असबाब के साथ ससम्मान विमान में ले जाकर अफगानिस्तान के कंधार में उसके आतंकवादी साथियों को सौंपना क्या था! और फिर यूपीए सरकार के जमाने में हुए सैन्य आपरेशनों को कागजी बताकर कांग्रेस का उपहास करने वाले प्रधानमंत्री मोदी जी को यह बात याद है कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर आतंकी हमले के मास्टर माइंड, लश्करे तैयबा के मुखिया हाफिज सईद को 14 दिन के भीतर, 10 दिसंबर 2008 को मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा इसी संयुक्त राष्ट्र की 
सुरक्षा परिषद से अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करवाया था. मोदी जी उसे कौन सा सर्जिकल स्ट्राइक नंबर कहेंगे! 

हाफिज सईद, वैश्विक आतंकवादी
हालांकि हाफिज सईद का वैश्विक आतंकी घोषित होने के बावजूद बाल भी बांका नहीं हुआ. वह अब भी बड़े ठाठ के साथ पाकिस्तान में अपने प्रतिबंधत संगठन ‘लश्करे तैयबा’ का नाम बदल कर ‘जमात उद् दावा’ और उसके चैरिटी विंग फलह ए इंसानियत फाउंडेशन के नाम से सक्रिय रहते हुए आतंकी गतिविधियां संचाालित करते रहा है. पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान ने ‘जमात उद् दावा’ और ‘फलह ए इंसानियत फाउंडेशन’ पर भी प्रतिबंध लागू कर दिया है. सुरक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि इन खूंखार आतंकी सरगनाओं के विरुद्ध पश्चिमी देशों और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को खुश करने के लिए दिखावे के तौर पर पाकिस्तान चाहे कुछ भी कहे, करे, असल में वह इन्हें पालता पोसता और इनका भारत में आतंकी गतिविधियों को संचालित करने के मामले में इस्तेमाल करता है.

सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी को बात बेबात अपनी ‘उपलब्धियों’, वैश्विक नेताओं के साथ अपने बेहद करीबी, तू के संबोधनवाले रिश्तों का इस्तेमाल कर इन दोनों आतंकवादी सरगनाओं को भारत लाकर उन पर मुकदमा चलवाना और उन्हें उनके किए की सजा  दिलवानी चाहिए थी. और हां, उस दाऊद इब्राहिम कास्कर का क्या हुआ! 12 मार्च 1993 को मुंबई में हुए सीरियल बम धमाकों का वह मास्टर माइंड, तस्कर सम्राट, आतंकी सरगना भी तो  पाकिस्तान में ही जड़ जमाए बैठा है. मोदी जी को अपनी घर में घुसकर मारने की नीति उसके मामले में शिथिल क्यों पड़ गई. वह तो न जाने कब से उसे वापस लाकर उसके किए की सजा दिलाने की बात करते आ रहे (इधर आप उसकी चर्चा कुछ कम करने लगे हैं) थे. क्या हुआ, कोई समस्या, दबाव!

मेदी जी लोकसभा चुनाव के लिए अपने प्रचार अभियान के दौरान लगातार कह रहे हैं कि उनके पांच वर्षों के शासन में देश में कोई आतंकवादी हमला नहीं हुआ और महाराष्ट्र को नक्सल मुक्त कर दिया गया है. तो फिर उरी, पठानकोट एयरबेस और अभी पुलवामा में हुए आतंकवादी हमलांे और अभी चंद रोज पहले महाराष्ट्र के गढचिरोली जिले में नक्सलियों द्वारा हमारे  हमारे 16 जवानों को सड़क पर आइईडी ब्लास्ट के जरिए मौत के घाट उतार दिए जाने को क्या कहेंगे! उरी, पठानकोट, पुलवामा में आतंकी हमलों, सीमा पर लगातार युद्ध विराम के उल्लंघन, गढ़चिरोली तथा, दंडकारण्य एवं देश के अन्य इलाकों में आए दिन नक्सली हमलों में शहीद होनेवाले हमारे जवानों के शव लगातार उनके घर पहुंचते रहने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी अगर यह कहते हैं कि उनके ही हाथों में देश सुरक्षित है! तो इस पर हंसी नहीं रोना ही आ सकता है. 

इतिहास-भूगोल का प्रधानमंत्री मोदी का ‘विलक्षण ज्ञान’ (Factual blunders in Prime Minister Modi Speeches)

इतिहास-भूगोल का प्रधानमंत्री मोदी का ‘विलक्षण ज्ञान’ 

जयशंकर गुप्त               

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त
ताजा प्रकरण मध्य प्रदेश का है. मई 2019 के पहले सप्ताह में इटारसी की चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म होशंगाबाद जिले में बता दिया. उन्होंने कहा, ‘इसी धरती पर पैदा हुए मैथिलीशरण गुप्त ने कहा था- नर हो न निराश करो मन को, जग में रह कर कुछ नाम करो.’ प्रधानमंत्री का भाषण सुनकर आश्चर्यचकित होशंगाबाद के लोग एक दूसरे से राष्ट्र कवि गुप्त के बारे में पूछ रहे हैं तो जानकार लोगों की हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही. दूसरी तरफ, मैथिलीशरण गुप्त जहां से थे, चिरगांव, झांसी (उत्तर प्रदेश) वाले माथा पकड़ कर बैठे हैं.

कमलनाथ, मुख्यमंत्री म.प्र.
इस पर तंज कसते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ट्वीट किया, ‘आज आपने एमपी के होशंगाबाद के इटारसी में अपनी सभा में राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त का जिक्र करते हुए, उन्हें होशंगाबाद का बता दिया. जबकि उनका जन्म 3 अगस्त 1886 को यूपी के चिरगांव में हुआ था, होशंगाबाद के तो पंडित माखन लाल चतुर्वेदी थे. सोचा आपकी जानकारी दुरुस्त कर दूं।’

इसी दिन राजस्थान में एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री मोदी जी ने चुरु को पाकिस्तान की सीमा पर स्थित बता दिया. राजस्थान के लोग भी प्रधानमंत्री के ‘इतिहास-भूगोल ज्ञान’ पर हंस रहे हैं. एक सप्ताह पहले महाराष्ट्र के लातूर की एक चुनावी सभा में मोदी जी ने कहा, ‘‘कांग्रेस वालों ने बाला साहेब ठाकरे की नागरिकता को छीन लिया था. उनके मतदान करने का अधिकार छीन लिया था..’’
शिवसेना संस्थापक स्व. बाल ठाकरे
सच यह है कि शिव सेना के संस्थापक स्व. बाल ठाकरे के चुनाव लड़ने और वोट देने पर प्रतिबंध कांग्रेस की सरकार ने नहीं लगाया था बल्कि देश के राष्ट्रपति के रेफर करने पर चुनाव आयोग ने बाल ठाकरे के लिए यह सजा तय की थी और उस दौरान देश में कांग्रेस की नहीं बल्कि भाजपा की सरकार थी और भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे.
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
उपरोक्त कुछ उद्धरण हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विलक्षण ऐतिहासिक, भौगोलिक ‘ज्ञान’ के कुछ नमूना भर हैं. अपने पांच वर्षों के कार्यकाल में और उससे पहले भी वह गाहे बगाहे ऐसा कुछ बोलते, अपने इतिहास-भूगोल का ‘ज्ञान’ बघारते और हंसी के पात्र बनते रहे हैं. मजेदार बात यह है कि अब तो उनके पास भारी भरकम प्रधानमंत्री कार्यालय में विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ भाषण लेखकों और तथ्य चेक करनेवालों का भारी लवाजमा है. इसके बावजूद वह गाहे बगाहे गलत तथ्य क्यों बोल जाते हैं. क्या जानबूझकर!

चाणक्य और चंद्रगुप्त
उनके कुछ गलत तथ्यवाले भाषणों के और नमूने देखें- बिहार में पिछले लोकसभा और विधानसभा के चुनावी भाषणों में उन्होंने बताया कि तक्षशिला बिहार में है, गुप्त वंश के थे चंद्रगुप्त, चाणक्य बिहार में पैदा हुए थे और सिकंदर का ‘दीने इलाही’ बेड़ा पटना के पास गंगा में डूबा था. सच यह है कि तक्षशिला पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है, चंद्रगुप्त गुप्त मौर्य वंश के संस्थापक थे. चाणक्य तक्षशिला में शिक्षक थे और वहीं से बिहार, पाटलिपुत्र आए थे. सिकंदर व्यास नदी के इस पार आया ही नहीं था. पंजाब से ही लौट गया था और फिर ‘दीन ए इलाही’ सिकंदर का सैन्य बेड़ा नहीं बल्कि अकबर के द्वारा शुरू किया गया समरूप धर्म था जिसमें सभी धर्मों के मूल तत्वों का समावेश था. 

मोदी जी ने एक बार कहा कि प्रसिद्ध क्रांतिकारी श्यामा प्रसाद मुखर्जी गुजरात की मिट्टी में पैदा सपूत थे जो लंदन में रहकर क्रांतिकारियों का सहयोग करते थे. वहां वह स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद सरस्वती के संपर्क में रहते, उनसे परामर्श करते थे. उन्होंने इच्छा जताई थी कि मरने के बाद उनकी अस्थियां आजाद भारत के गुजरात में प्रवाहित की जाएं.
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और स्वामी विवेकानंद
सच यह है कि जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी पश्चिम बंगाल में कोलकाता के थे और उनका निधन आजाद भारत में जम्मू-कश्मीर की एक जेल में हुआ था और फिर जब डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक साल के थे तो स्वामी विवेकानंद का निधन हो गया था. दयानंद सरस्वती का निधन तो मुखर्जी के जन्म से काफी पहले हो चुका था. दरअसल, मोदी जी प्रसिद्ध क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा के बारे में बोलना चाह रहे थे, जो गुजरात के थे लेकिन मोदी जी उनकी जगह बार बार श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम ले रहे थे.

 प्रधानमंत्री मोदी ने एक प्रमुख हिंदी दैनिक को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कहा कि ‘‘सरदार पटेल की अंत्येष्टि में नेहरू शामिल नहीं हुए थे.’’ लेकिन पटेल की अंत्येष्टि के मौके की तस्वीरें बताती हैं कि उनकी शव यात्रा में नेहरू सरदार पटेल के बेटी-बेटे के साथ चल रहे थे.
आदित्यनाथ, संत कबीर, गुरु नानकदेव
मोदी जी ने उत्तर प्रदेश के मगहर में राज्य के मुख्यमंत्री और गुरु गोरक्षनाथ पीठ के पीठाधीश्वर आदित्यनाथ के साथ मंच साझा करते हुए कहा, ‘‘संत कबीर, गुरु गोरखनाथ और गुरु नानकदेव एक साथ यहीं मगहर में बैठकर आध्यात्मिक विमर्श करते थे.’’ सच यह है कि तीनों संत महात्माओं के कालखंड में भारी अंतर है. गुरु गोरक्षनाथ 11हवीं शताब्दी के प्रारंभ में, संत कबीर 15हवीं शताब्दी तथा गुरुनानक देव 15 अप्रैल 1469 से लेकर 22 सितंबर 1539 तक थे.
अटल बिहारी वाजपेयी और सीताराम केसरी
25 सितंबर 2018 को भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं के महाकुम्भ में उन्होंने कहा, ‘‘1984 में भाजपा बुरी तरह से चुनाव हारी थी. अटल जी भी तो चुनाव हारे थे, तब हमने तो ईवीएम का रोना नहीं रोया था! सच यह है कि उस समय देश में चुनाव ईवीएम से होते ही नहीं थे. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने अपने अध्यक्ष सीताराम केसरी का अपमान किया क्योंकि वह दलित समाज से थे जबकि केसरी वैश्य थे.
इंदिरा गांधी और बेनजीर भुट्टो
यही नहीं, दावोस में विश्व आर्थिक मंच पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उन्हें 600 करोड़ भारतीय मतदाताओं ने प्रधानमंत्री चुना है. जबकि पूरी दुनिया की आबादी भी शायद 600 करोड़ से कम ही होगी. फरवरी 2018 के पहले सप्ताह में संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ‘शिमला समझौता इंदिरा गांधी और बेनजीर भुट्टो के बीच हुआ था.’ सच यह है कि 1971 में शिमला समझौता भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के उस समय के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुआ था. उस समय बेनजीर 16 बरस की थी.

9 मई, 2018 को कर्नाटक के बीदर में  विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार कर रहे मोदी जी ने कहा, ‘‘कांग्रेस का कोई नेता फांसी से पहले देश की आजादी के लिए लड़ रहे शहीद भगत सिंह और उनके साथियों से जेल की काल कोठरी में मिलने नहीं गया था. अब लोग भ्रष्टाचारियों से मिलने जेल में जा रहे हैं.’’
जवाहरलाल नेहरू
इस झूठ का खुलासा 10 अगस्त 1929 के ट्रिब्यून अखबार की एक कतरन से हुआ जिसमें जवाहरलाल नेहरू के बयान के अनुसार वह 9 अगस्त 1929 को लाहौर सेंट्रल जेल में गए थे और भगत सिंह और उनके साथियों से मिले थे जो उस समय भूख हड़ताल पर थे. 
नरेंद्र मोदी
मोदी जी का एक और मजेदार उद्धरणः ‘‘मैंने जब लालकिले से आग्रह किया था कि जो लोग सक्षम हैं, उन्हें गैस पर मिलनेवाली सबसिडी छोड़ देनी चाहिए. मेरी इतनी सी बात पर सवा सौ करोड़ परिवारों ने गैस पर मिलनेवाली सबसिडी छोड़ दी थी.’’ उस समय संपूर्ण भारत में कुल परिवारों की संख्या 25 करोड थी.

पिछले साल 3 मई को कर्नाटक विधानसभा के चुनाव के समय चुनावी रैली में मोदी जी ने कहा कि ‘‘कर्नाटक बहादुरी का पर्याय माना जाता है, लेकिन कांग्रेस सरकार ने फील्ड मार्शल के एम करियप्पा और जनरल थिमय्या के साथ कैसा बर्ताव किया?’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘1948 में जनरल थिमैया के नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान से युद्ध जीता लेकिन उस पराक्रम के बाद कश्मीर को बचाने वाले जनरल थिमैया का तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू और रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन ने बार-बार अपमान किया जिसके बाद उन्हें अपने सम्मान की खातिर अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.’’ सच यह है कि वी कृष्ण मेनन अप्रैल 1957 से लेकर अक्टूबर, 1962 तक देश के रक्षा मंत्री थे. वहीं जनरल थिमय्या मई, 1957 से मई 1961 तक ही सेनाध्यक्ष थे.

जनरल करियप्पा के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘1962 के भारत-चीन युद्ध में फील्ड मार्शल करियप्पा का रोल इतिहास की तारीखों में दर्ज है. उनके साथ कांग्रेस की सरकारों ने कैसा व्यवहार किया था.’’

सच यह है कि जनरल करियप्पा 1953 में ही रिटायर हो गये थे. 1949 में नेहरू सरकार ने उन्हें सेना का कमांडर इन चीफ बनाया था. 1986 में राजीव गांधी की सरकार ने उन्हें फील्ड मार्शल का रैंक प्रदान किया था.

मई, 2019 के दूसरे सप्ताह में प्रधान मंत्री मोदी ने एक खबरिया चैनल (न्यूज नेशन) के अपने प्रिय पात्र पत्रकार दीपक चौरसिया को दिए गए ट्रांस्क्रिप्टड इंटरव्यू में चौंकानेवाला दावा किया कि उन्होंने 1987-88 में डिज़िटल कैमरे से  आडवाणी जी के किसी कार्यक्रम की रंगीन फोटो खींच email से भेजा था। हमारे महा ज्ञानी प्रधानमंत्री को कौन समझाए कि email का  प्रचलन  ही भारत में  90 के दशक में में शुरु हुआ. फिर  आपने 1987-88 में ही ईमेल भेज दिया और फिर, उस समय डिजिटल कैमरा भी कहां था!

यह सब और इससे भी ज्यादा ऐतिहासिक, भौगोलिक ज्ञान के ‘सच’ हमारे प्रधानमंत्री जी के मुखारविंद से आए दिन निकलते रहे हैं. लेकिन कभी भी उन्हें अपने इस ‘विलक्षण ज्ञान’ पर मलाल नहीं रहा और न ही उन्होंने अपने इस तरह के ’ज्ञान’ के सार्वजनिक प्रदर्शन पर कभी अफसोस ही जाहिर किया. आनेवाली पीढ़ियां देश के इसी तरह के ‘इतिहास, भूगोल के ज्ञान’ को अर्जित करेंगी!