चीन रेडियो इंटरनेशनल में
जयशंकर गुप्त
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चीन रेडियो इंटरनेशनल के हिंदी सेवा विभाग में साक्षात्कार |
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चीन रेडियो इंटरनेशनल मुख्यालय |
हिंदी सर्विस के निदेशक यांग यिफेंग ने बताया कि चीन रेडियो इंटरनेशनल का उद्देश्य चीन को शेष विश्व से और शेष विश्व को चीन से परिचित कराना, वैश्विक मामलों की रिपोर्ट करना और चीन के लोगों और दुनिया के अन्य हिस्सों के लोगों के बीच आपसी समझ और मित्रता को बढ़ावा देना है. इसकी स्थापना 3 दिसंबर, 1941 को रेडियो पेकिंग के रूप में हुई थी. बाद में, 1983 में, इसे रेडियो बीजिंग और 1993 के बाद से इसे चीन रेडियो इंटरनेशनल कहा जाने लगा. इसमें 32 विदेशी संवाददाता ब्यूरो और 6 मुख्य क्षेत्रीय ब्यूरो हैं. यहां प्रत्येक दिन 2,700 घंटे से अधिक प्रोग्रामिंग (अंग्रेजी में 24 घंटे), समाचार, राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाज, संस्कृति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर कार्यक्रमों के प्रसारण करते हैं. इसकी विदेशी रिपोर्टिंग में 65 भाषाएं शामिल हैं. हम हिंदी प्रसारण सेवा प्रभाग में भी गये. यहां हिंदी प्रसारण सेवा की शुरुआत 15 मार्च 1959 को हुई थी. बांग्ला, तमिल सहित अन्य भारतीय भाषाओं के समाचार, कार्यक्रम भी यहां से बनते और प्रसारित होते हैं. चीन रेडियो इंटरनेशनल की शानदार बहुमंजिला इमारत में बारहवीं मंजिल पर दक्षिण एशिया केंद्र के कार्यालय के साथ ही हिंदी सेवा का कार्यालय भी है. वहां कार्यरत, मूल रूप से उत्तराखंड के नैनीताल के निवासी, दिल्ली में अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका एवं अन्य कई मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार अनिल पांडेय मिल गये. वह हमें पहले से नाम से जानते थे. फेसबुक पर मित्रता भी थी. चीन प्रवास के दौरान पहली बार वहां रह रहे किसी भारतीय के साथ अपनी भाषा में आत्मीय बातचीत बहुत ही सुखद लगी. अनिल बहुत अच्छे पत्रकार होने के साथ ही बहुत सहृदय इन्सान भी हैं. उन्होंने चीन रेडियो इंटरनेशनल की हिंदी सेवा के लिए हमारा साक्षात्कार भी किया जिसमें हमारी चीन यात्रा से जुड़े अनुभवों के साथ ही भारत और चीन के बीच जनता के स्तर पर संबंधों आदि के बारे में हमने चर्चा की. हिंदी सेवा में एक रिपोर्टर झु जिंगलिंग भी मिले. हमें हिंदी सेवा के बारे में एक लीफलेट भी दिया जिस पर चीनी और हिंदी भाषा में भी चीन रेडियो इंटरनेशनल का स्लोगन लिखा है, ‘चीन दूर नहीं, कानों के पास है.’ वहां कार्यरत चीनी पुरुष और महिला अधिकारियों से हिंदी में बातें करना बहुत अच्छा लग रहा था. चीन रेडियो इंटरनेशनल के अधिकारी हमें इसके विभिन्न विभागों में ले गये. वहां कार्यरत अन्य देशों के पत्रकारों, रेडियो प्रसारण से संबंधित अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से भी परिचय कराया. उनकी कैफेटेरिया में हम लोगों ने हल्का नाश्ता लिया और कॉफी भी पी. हम लोग वहां तकरीबन दो घंटे तक रहे.
एसीजेए के मुख्यालय में
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एसीजेए का मुख्यालय भवन (तस्वीर विकी पीडिया) |
एसीजेए का ध्येय वाक्य है, ‘सरकार और देशी-विदेशी पत्रकारों के बीच सेतु की भूमिका.’ यह पत्रकारों के वैध अधिकारों और हितों की सुरक्षा के लिए भी काम करता है और पत्रकारों को आत्म-अनुशासन और पेशेवर नैतिकता की शिक्षा भी प्रदान करता है. मीडिया टु मीडिया संवाद कार्यक्रम के तहत एसीजेए ने अब तक, दुनिया भर में 100 से अधिक देशों के मीडिया संगठनों- संस्थानों के पत्रकारों के साथ संवाद का आदान-प्रदान और सहकारी संबंध स्थापित किए हैं. यह विदेशी प्रेस-,मीडिया संस्थानों के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय आदान-प्रदान को प्रायोजित करता है, विदेश में चीनी प्रेस प्रतिनिधिमंडल भेजता है और विदेशी पत्रकारों की चीन यात्रा करवाता है.
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नई दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एसीजेए की कार्यकारी सचिव वांग दोंग मेइ का पुष्पगुच्छ से स्वागत |
एसीजेए की बहुमंजिला इमारत में हमारा स्वागत इसके अंतरराष्ट्रीय संपर्क विभाग के निदेशक रोंग चांगहाई, और कार्यकारी सचिव एवं वरिष्ठ संपादक वांग दोंग मेइ ने किया. मेइ इससे पहले चीन रेडियो इंटरनेशनल में उप महानिदेशक थीं. औपचारिक परिचय के क्रम में हमने अपने प्रेस एसोसिएशन और इसकी भूमिका के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी. दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंधों और संदर्भों का वास्ता देकर हम लोगों ने कहा कि इन संबंधों में किन्हीं कारणों से पैदा हो रही कड़वाहट को दूर करने की जिम्मेदारी दोनों देशों की मीडिया पर भी है. हमने उनसे एसीजेए के संगठन और इसकी गतिविधियों, आमदनी के श्रोतोंआदि के बारे में भी जानकारी ली. पता चला कि एसीजेए में तकरीबन एक सौ वैतनिक कर्मचारी काम करते हैं.
अनौपचारिक चर्चाओं के बाद हमारे लिए एसीजेए ने अपने मुख्यालय में ही ‘बैंक्वेट डिनर’ भी आयोजित किया था. बैंक्वेट डिनर या लंच के तहत चीन में एक गोलाकार टेबुल पर भोजन सामग्री (आर्डर के हिसाब से) सजी होती है. टेबुल घूमते रहती है. आपके पास आने पर आप अपने पसंद की सामग्री कांटे अथवा 'चाप स्टिक्स' से उठाकर अपनी प्लेट में रख लेते हैं. चाइनीज लोग और हमारे कुछ मित्र भी चाप स्टिक्स से ही अपना भोजन प्लेट में रखते और दो उंगलियों में फंसी चाप स्टिक्स के सहयोग से ही भोजन करते थे लेकिन हमारे लिए यह असुविधाजनक था. खाने की बात तो दूर, हम घूमती टेबुल पर से कुछ उठाते इससे पहले ही वह डिश आगे बढ़ जाती. इसे भांप कर बगल में बैठे चीनी अथवा हमारे भारतीय मित्र भी सहयोग कर देते और हमारी प्लेट में भी पसंद की भोजन सामग्री रख दी जाती. खाते तो हम अपने हिसाब से ही थे.
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'थिंक टैंक', चीन अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान (सीआईआईएस) |
सीआईआईएस के मीटिंग रूम में हमारी मुलाकात इसके वाइस प्रेसीडेंट, सीनियर रिसर्च फेलो रोंग यिंग, एसोसिएट रिसर्च फेलो लैन जियांक्स और असिस्टेंट रिसर्च फेलो निंग शेंगनेन के साथ ही कुछ अन्य अधिकारियों से करवाई गई. सीआईआईएस और उस कमरे का महत्व समझाते हुए बताया गया कि इसी कमरे में दिसंबर 1988 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और मई 1989 में सोवियत रूस की कम्युनिस्ट पार्टी के बहुचर्चित महासचिव मिखाइल गोर्बाच्योव के साथ चीन में माओत्से तुंग के निधन के बाद सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वोच्च नेता देंग शियाओ पिंग के साथ बातचीत हुई था. रांग यिंग ने कहा कि चीन और भारत मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में एक साथ समानांतर ढंग से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाएं हैं. हमें अपनी समस्याओं और विवादों को आपस में ही सुलझाना होगा. इसमें किसी तीसरे देश की भूमिका नहीं होनी चाहिए. उनका इशारा संभवतः अमेरिका की ओर था जिसके साथ भारत की बढ़ती करीबी चीन को बेचैन कर रही थी. उन्होंने भी डोकलाम विवाद का जिक्र करते हुए कहा कि भारत और भूटान को छोड़कर बाकी देशों के साथ चीन के समझौते हो जाने के कारण सीमा विवाद हल हो चुके हैं. भारत और भूटान के साथ सीमा विवाद के समाधान के लिए किसी तरह के मेकेनिज्म की आवश्यकता बताने पर उनका कहना था कि मैकेनिज्म की नहीं ‘पोलिटिकल विज्डम’ की कमी है.
डोकलाम को लेकर बने गतिरोध के बारे में उन्होंने भी 1890 के ब्रिटिश साम्राज्य और चीन के बीच ‘ऐंग्लो-चाइना कन्वेंशन’ का जिक्र करते हुए कहा कि विवादित क्षेत्र चीन की सीमा के भीतर है. भारत के सैनिकों ने वहां घुसपैठ और सड़क निर्माण रोककर गलत किया है. हमारे साथी वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी ने कहा कि यह तय होना बाकी है कि पहले तिराहा का निर्धारण हो या सीमा का. चीन के विदेश मंत्रालय का मानना है कि तिराहा पहले तय हो. जोशी ने कहा कि 1890 के कथित कन्वेंशन पर आधारित कोई नक्शा नहीं है. तीनों देशों के सर्वेयर्स मौके पर जाकर सर्वे कर कोई सर्वमान्य समझौता कर सकते हैं. इस पर सीआईआईएस के एक अधिकारी ने कहा कि “भारत पहली बार तिराहा का सवाल उठा रहा है. हम तो अचंभित हैं कि 100-150 साल बाद पूछा जा रहा है कि 1890 के कन्वेंशन के बाद नक्शे में इसका उल्लेख क्यों नहीं है ! संदीप दीक्षित ने कहा कि भारत और चीन के साथ तीनों जगहों-डेमचोक, चुमार और अब डोकलाम-पर विवाद की जड़ में सड़क निर्माण ही है. नरम-गरम बातचीत के बीच गरमागरम ग्रीन टी की चुस्कियां भी चलती थीं. एक खूबसूरत युवती हमारी टेबल्स पर चाय की पत्ती के साथ गरम पानी भरे चीनी मिट्टी के बरतन के खाली होने पर उसे बीच-बीच में गरम पानी से भरती जाती थी.
बातचीत के क्रम में हमने कहा कि यकीनन चीन और भारत के कट्टरपंथियों के अलावा कुछ और लोग भी पर्दे के पीछे से विश्व में सबसे अधिक आबादीवाले दोनों देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं को आपसी विवाद में उलझाकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हो सकते हैं. लेकिन इससे बचने की जिम्मेदारी दोनों ही देशों की है. भारत और चीन को भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए कि किसी और को अपना उल्लू सीधा करने का मौका मिल सके. चीनी मीडिया खासतौर से इसके अंग्रेजी अखबारों ‘ग्लोबल टाइम्स’ आदि में चीन के थिंक टैंक के लोगों के भारत और भारतीय सैनिकों के विरोध में उत्तेजक लेख का उल्लेख करते हुए मनोज जोशी ने कहा कि मीडिया के जरिए धमकियां देने के बजाय चीन और भारत सरकार को आपस में बातचीत कर मुद्दे का ठोस समाधान निकालना चाहिए.
डोकलाम विवाद पर चीन के मीडिया और खासतौर से सरकारी ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित लेख की बानगी भी देखिए. डोकलाम विवाद का हल शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए निकालने की तिब्बती धर्मगुरु, शांति के लिए नोबल पुरस्कार विजेता दलाई लामा की सलाह के मद्देनजर ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में कहा गया, “जब तक चीन की सेना भारतीय सैनिकों को धक्के देकर डोकलाम से बाहर नहीं निकाल देती, दलाई लामा अपना यह शांति का संदेश संभालकर रखें.--दलाई लामा भारत में निर्वासित जीवन जी रहे हैं और भारत की दया पर वहां रह रहे हैं.” लेख में दलाई लामा को कायर बताते हुए यह भी दावा किया गया कि चीन की सेना किसी भी समय डोकलाम में तैनात भारतीय सैनिकों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है. इसी जोखिम को देखते हुए अब भारत बातचीत की अहमियत पर जोर दे रहा है. लेख में कहा गया है कि डोकलाम चीन का भूभाग है और भारतीय सैनिकों को यहां से बिना शर्त पीछे हटना ही एकमात्र उपाय है.
ग्लोबल टाइम्स के अनुसार चूंकि भारत के हाथ में और कुछ नहीं है इसलिए वह दलाई लामा का कार्ड खेल रहा है. चीन के भूभाग में घुसने और वहां बने रहने की सजा का खतरा भारत पर मंडरा रहा है, इसलिए नई दिल्ली ने अपना मनोबल बढ़ाने के लिए दलाई लामा को इस्तेमाल किया है. एक अन्य लेख में ग्लोबल टाइम्स ने भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली के बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इस तरह के बयानों से दोनों देशों के बीच संघर्ष की आशंका बढ़ जाती है. जेटली ने कहा था कि भारत ने 1962 की जंग से सबक लेते हुए खुद को किसी भी तरह की चुनौती से निपटने के लिए तैयार रखा है. ग्लोबल टाइम्स के अनुसार जेटली के इस बयान के द्वारा भारत ने यह दिखाने की कोशिश की है कि उसे खुद पर और अपनी ताकत पर पूरा भरोसा है. और वह चीन की सीमा के अंदर ठहरकर यह देखने का इंतजार कर सकता है कि पीएलए का अगला कदम क्या होगा! अगर सच में भारत के अंदर इतनी हिम्मत होती तो वह यह नहीं कहता कि चीन और भारत, दोनों पक्षों की सेनाएं एक साथ पीछे हट जाएं.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि चीन भारतीय सेना के पीछे हटने की शर्त नहीं मानेगा. लेख की मानें तो यह गतिरोध केवल दो ही तरीके से खत्म हो सकता है. या तो भारतीय सेना डोकलाम से निकल जाए या फिर चीन सैन्य शक्ति का इस्तेमाल कर उन्हें वहां से निकाल दे. लेख में कहा गया है कि ऐसा होने से पहले चीन भारत को यह मौका दे रहा है कि वह बीजिंग की शक्ति का ठीक ठाक अंदाजा लगा ले. लेख में बार-बार चीन की सैन्य शक्ति का जिक्र कर भारत को धमकाने की कोशिश की गई.
इस तरह के उत्तेजक लेखों का उल्लेख करने पर सीआईआईएस के लोगों ने कहा कि डोकलाम में भारतीय सैनिकों के बने रहने को लेकर चीन के लोगों में हताशा और आक्रोश बढ़ रहा है. उसी की अभिव्यक्ति यहां के मीडिया में प्रकाशित हो रहे लेखों में देखने को मिल रही है. भूटान एक स्वतंत्र और सार्वभौम देश है. भारत ने स्वयं संयुक्त राष्ट्र में इसकी सदस्यता का प्रस्ताव किया था. तो फिर भारत उसके नाम पर डोकलाम में दखल क्यों दे रहा है. भारत का डोकलाम में चीन के द्वारा सड़क निर्माण को अपनी सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा बताना सबसे खराब बहाना कहा जा सकता है. उसे अपनी गलती सुधारने के लिए अपने सैनिकों को तत्काल डोकलाम से वापस बुला लेना चाहिए. डोकलाम विवाद के सामने आने के बाद से ही चीन न सिर्फ चाइनीज मीडिया बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया के जरिए अपना पक्ष लाने के प्रयासों में जुटा था. लेकिन बीजिंग में हम लोगों की मौजूदगी के बावजूद भारतीय दूतावास के लोगों ने हमसे किसी तरह के संपर्क-संवाद की जरूरत नहीं समझी. स्थानीय पत्रकारों के अनुसार आमतौर पर भारतीय दूतावास के लोग इन मामलों पर कम ही बोलते हैं. डरते हैं कि कहीं कुछ मुंह से निकल गया और 'दिल्ली' को रास नहीं आया तो उनका राजनयिक भविष्य बाधित हो सकता है.
ग्लोबल टाइम्स के अनुसार चूंकि भारत के हाथ में और कुछ नहीं है इसलिए वह दलाई लामा का कार्ड खेल रहा है. चीन के भूभाग में घुसने और वहां बने रहने की सजा का खतरा भारत पर मंडरा रहा है, इसलिए नई दिल्ली ने अपना मनोबल बढ़ाने के लिए दलाई लामा को इस्तेमाल किया है. एक अन्य लेख में ग्लोबल टाइम्स ने भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली के बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इस तरह के बयानों से दोनों देशों के बीच संघर्ष की आशंका बढ़ जाती है. जेटली ने कहा था कि भारत ने 1962 की जंग से सबक लेते हुए खुद को किसी भी तरह की चुनौती से निपटने के लिए तैयार रखा है. ग्लोबल टाइम्स के अनुसार जेटली के इस बयान के द्वारा भारत ने यह दिखाने की कोशिश की है कि उसे खुद पर और अपनी ताकत पर पूरा भरोसा है. और वह चीन की सीमा के अंदर ठहरकर यह देखने का इंतजार कर सकता है कि पीएलए का अगला कदम क्या होगा! अगर सच में भारत के अंदर इतनी हिम्मत होती तो वह यह नहीं कहता कि चीन और भारत, दोनों पक्षों की सेनाएं एक साथ पीछे हट जाएं.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि चीन भारतीय सेना के पीछे हटने की शर्त नहीं मानेगा. लेख की मानें तो यह गतिरोध केवल दो ही तरीके से खत्म हो सकता है. या तो भारतीय सेना डोकलाम से निकल जाए या फिर चीन सैन्य शक्ति का इस्तेमाल कर उन्हें वहां से निकाल दे. लेख में कहा गया है कि ऐसा होने से पहले चीन भारत को यह मौका दे रहा है कि वह बीजिंग की शक्ति का ठीक ठाक अंदाजा लगा ले. लेख में बार-बार चीन की सैन्य शक्ति का जिक्र कर भारत को धमकाने की कोशिश की गई.
इस तरह के उत्तेजक लेखों का उल्लेख करने पर सीआईआईएस के लोगों ने कहा कि डोकलाम में भारतीय सैनिकों के बने रहने को लेकर चीन के लोगों में हताशा और आक्रोश बढ़ रहा है. उसी की अभिव्यक्ति यहां के मीडिया में प्रकाशित हो रहे लेखों में देखने को मिल रही है. भूटान एक स्वतंत्र और सार्वभौम देश है. भारत ने स्वयं संयुक्त राष्ट्र में इसकी सदस्यता का प्रस्ताव किया था. तो फिर भारत उसके नाम पर डोकलाम में दखल क्यों दे रहा है. भारत का डोकलाम में चीन के द्वारा सड़क निर्माण को अपनी सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा बताना सबसे खराब बहाना कहा जा सकता है. उसे अपनी गलती सुधारने के लिए अपने सैनिकों को तत्काल डोकलाम से वापस बुला लेना चाहिए. डोकलाम विवाद के सामने आने के बाद से ही चीन न सिर्फ चाइनीज मीडिया बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया के जरिए अपना पक्ष लाने के प्रयासों में जुटा था. लेकिन बीजिंग में हम लोगों की मौजूदगी के बावजूद भारतीय दूतावास के लोगों ने हमसे किसी तरह के संपर्क-संवाद की जरूरत नहीं समझी. स्थानीय पत्रकारों के अनुसार आमतौर पर भारतीय दूतावास के लोग इन मामलों पर कम ही बोलते हैं. डरते हैं कि कहीं कुछ मुंह से निकल गया और 'दिल्ली' को रास नहीं आया तो उनका राजनयिक भविष्य बाधित हो सकता है.
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चाइना डेली के प्रवेश द्वार के पास |
बहरहाल, चीन अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान में तकरीबन डेढ़ घंटे की बातचीत के बाद हम लोगों का अगला पड़ाव चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रचार विभाग के स्वामित्ववाले अंग्रेजी दैनिक ‘चाइना डेली’ के चाओयांग जिले में ह्इक्सिन स्ट्रीट (ईस्ट) के मुख्यालय में था. इस अखबार का प्रकाशन एक जून 1981 से शुरू हुआ था. आज यह चीन के सबसे अधिक प्रसार संख्या वाले अंग्रेजी का अखबार है. इसके दर्जन भर देशी विदेशी दैनिक और साप्ताहिक संस्करण भी प्रकाशित होते हैं. इसके उपग्रह संस्करण अमेरिका, हांग कांग और यूरोप से भी प्रकाशित होते हैं. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के स्वामित्व में प्रकाशित होने के बावजूद इस अखबार को अन्य अखबारों की तुलना में अपेक्षाकृत ‘लिबरल’ कहा जाता है. इस पर संपादकीय नियंत्रण चीन के स्टेट काउंसिल इन्फार्मेशन आफिस (एससीआइओ) का बताया जाता है जिसका गठन 1991 में प्रोपोगेंडा विभाग के तहत किया गया था.
चाइना डेली के उप प्रधान संपादक (डिप्टी एडिटर इन चीफ) सुन शांगवु ने हमें अत्याधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी से सज्जित अखबार के विभिन्न विभागों में ले जाकर घुमाया. संपादकीय सहकर्मियों का परिचय करवाते हुए उनसे हमारा परिचय करवाया. यह पूछने पर कि वह क्या कभी डोकलाम गए हैं. उन्होंने कह कि डोकलाम जाने का अवसर उन्हें नहीं मिला है. वहां के वीडियो फुटेज का ऐक्सेस भी नहीं है. उन्होंने बताया कि चीन भी फेक न्यूज की बीमारी से पूरी तरह से मुक्त नहीं है. एक दिन पहले चीन कुछ इलाकों में आए भूकंप को लेकर देर रात तक जान माल को लेकर तमाम तरह की अफवाहनुमा सूचनाएं-खबरें खासतौर पर सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर तैरती रहीं, जिनका खंडन वे लोग आधिकारिक सूचनाओं के आधार पर अपने फेसबुक और स्ट्रॉबेरि नेटवर्क के जरिए करते रहे. चाइना डेली के फेसबुक और स्ट्रॉबेरी नेटवर्क के साथ उस समय क्रमशः 21 लाख और 7 लाख लोग जुड़े थे. गौरतलब है कि 8 अगस्त की रात में चीन के दक्षिण पश्चिमी सिचुआन प्रांत में रिक्टर स्केल पर 7 तीव्रता का भूकंप आया था जिसमें कई लोग मारे गए और तकरीबन 300 लोग घायल हो गए थे.
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चाइना डेली के संपादकीय विभाग में स्केच-कार्टून पर काम |
बातचीत में 'सेंटर आन चाइना-अमेरिका डिफेंस रिलेशंस एकेडमी' ऑफ मिलिटरी साइंस के निदेशक झाओ शियाओझुओ ने कहा, “अगर चीन भी अपने मित्र पाकिस्तान की सीमा का इस्तेमाल करते हुए भारतीय सीमा के भीतर घुस जाए तो ! आप अपने सुरक्षा कारणों के बहाने से हमारे देश की सीमा के भीतर हमें सड़क बनाने से नहीं रोक सकते. हम पाकिस्तान में या कश्मीर में आतंकवाद का समर्थन तो नहीं कर रहे. हमें अफसोस है कि भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री (जार्ज फर्नांडिस) ने 1998 में अपने परमाणु विस्फोट का औचित्य साबित करने के लिए कहा था कि भारत ऐसा चीन के कारण कर रहा है.” उन्होंने कहा कि आपके संबंध श्रीलंका से खराब होंगे, आपकी समस्या नेपाल से होगी, भूटान से होगी तो क्या करेंगे !
हमने वहां मीडिया की भूमिका के बारे में हिंदी में अपनी बात एक शेर के साथ कही कि “इस वक्त वहां कौन धुआं देखने जाए, अखबार में पढ़ लेंगे कहां आग लगी थी.” हमने कहा कि अखबारों और मीडिया के लोगों पर लोगों का इस हद तक भरोसा रहता है लेकिन मीडिया अपनी भूमिका इसके अनुरूप निभा रहा है या निभाने में सक्षम है भी कि नहीं, इसके बारे में आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है. हमने अपनी चीन यात्रा के दौरान विदेश मंत्रालय के अधिकारियों, रक्षा विशेषज्ञों, रणनीतिकारों की तरफ से डोकलाम गतिरोध पर घुमा-फिराकर उठाए जा रहे सवालों का जिक्र करते हुए कहा कि हम इन सवालों के जवाब दे पाने में सक्षम नहीं हैं. इनके बेहतर जवाब भारत सरकार और उसके प्रवक्ता ही दे सकते हैं. हम लोग भारत सरकार के प्रवक्ता नहीं बल्कि स्वतंत्र पत्रकार हैं. हम आपकी बातें सुनते समझते हैं और बिना किसी तरह के किंतु परंतु के उन्हें प्रकाशित-प्रसारित भी करते हैं. यहां भी हम अपनी समझ के मुताबिक ही अपनी बातें रखते है. लेकिन यही बात हमने यहां चाइनीज मीडिया के साथ नहीं देखी. आप डोकलाम पर बड़े-बड़े समाचार, लेख और संपादकीय प्रकाशित करते हैं लेकिन उसमें भारत सरकार का पक्ष नहीं के बराबर रहता है. हमने उन्हें बताया कि भारत की चिंता भारतीय सीमाओं के चारों तरफ चीन की बढ़ रही घेराबंदी को लेकर भी है. चीन एक तरफ तो भारत से दोस्ती की बात करता है, सरकारी स्तर पर तमाम बड़े-बड़े आयात-निर्यात, ठेके भी हो रहे हैं, आप कह रहे हैं कि चीन पाकिस्तान और कश्मीर में आतंकवाद का समर्थन नहीं करता लेकिन दूसरी तरफ जैश ए मोहम्मद के दुर्दांत आतंकवादी मसूद अजहर पर जब संयुक्त राष्ट्र में प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव आता है तो चीन उसके विरोध में अपना वीटो लगा देता है. चीन ने भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बनाना शुरू किया है. सवाल तो हम भी कर सकते हैं. इस पर चीन के रक्षा विशेषज्ञ ने कहा कि मुतमईन रहिए, चीन भारत की घेराबंदी नहीं करेगा. इसके पास करने के लिए और भी बहुत कुछ है. एक बात देखने में आई की औपचारिक बातचीत में चीन के सैन्य विशेषज्ञ-अधिकारी जितना कठोर और आक्रामक नजर आते थे. अनौपचारिक बातचीत में बहुत ही सहज और मिलनसार थे. बाद में एक अधिकारी ने हमारे मित्र से बातचीत में माना कि भौगोलिक स्थिति को देखते हुए डोकलाम में भारत मजबूत स्थिति में है.
रेड थिएटर में ‘लीजेंड ऑफ कुंग फू’
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रेड थिएटर के प्रवेश द्वार पर |
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रेड थिएटर में रिसेप्शन के पास |
बंदरगाह शहर झानझियांग में
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लीजेंड आफ कुंग फू का एक दृश्य |
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झानझियांग हवाई अड्डे पर विमान से बाहर निकलने के बाद |
पी एल ए के दक्षिण सागर बेड़े पर
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पीएलएएन के दक्षिण सागर बेड़े पर इसके युद्धपोत यूलिन के पास तस्वीर लेने के लिए निर्धारित जगह पर संदीप दीक्षित और हम |
दक्षिण सागर बेड़े यानी ‘साउथ सी फ्लीट’ (एसएसएफ) के डिप्टी चीफ ऑफ जनरल ऑफिस में कैप्टन लियांग तियानजुन चीन ने अपने युद्धपोत (इसका रंग रोगन भी ताजा ताजा ही हुआ था. पेंट की गंध आ रही थी) ‘युलिन’ पर हमारा स्वागत करते हुए हमें उसके बाहर-भीतर घुमाया. उसमें तैनात तमाम हथियारों, फाइटर जेट्स, सबमरीन्स और मीडियम रेंज मिसाइलों की जानकारी भी दी. उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि पहली बार यहां आए भारतीय मीडिया के लोग दोनों देशों के बीच दोस्ती और भाईचारा बढ़ाने में सहायक साबित होंगे. उन्होंने कहा कि चीन हिंद महासागर में भारतीय नेवी इंडियन नेवी से दोस्ती करना चाहता है. हिंद महासागर में चीन की नौसेना की बढ़ती मौजूदगी पर भारत के द्वारा उठाए जा रहे सवालों पर उन्होंने कहा, “हिंद महासागर बहुत बड़ा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए साझा स्थान है. मुझे लगता है कि भारत और चीन को इसकी सुरक्षा के लिए साथ आना चाहिए.”
गौरतलब है कि चीन ने हिंद महासागर में ‘होर्न ऑफ अफ्रीका’ के जिबूती में पहली बार नौसैन्य अड्डा स्थापित किया है. विदेशी समुद्र क्षेत्र में चीन के पहले नौसैनिक अड्डे का बचाव करते हुए कैप्टेन तियानजुन ने कहा कि इससे उस क्षेत्र में समुद्री डकैती रोकने, संयुक्त राष्ट्र के शांति रक्षा अभियान चलाने और मानवीय राहत पहुंचाने वाले अभियानों को सहयोग मिलेगा. जिबूती नौसैनिक अड्डा चीन के नौसैनिकों के लिए आराम करने का स्थान भी बनेगा. हालांकि विशेषज्ञों की राय में चीन के बढ़ते आर्थिक और राजनीतिक दबदबे के बीच सैन्य अड्डा बनाना वैश्विक पहुंच बढ़ाने की पीएलए (एन) की महात्वाकांक्षा का हिस्सा हो सकता है. उन्होंने कहा कि चीन की सेना हमेशा डिफेंसिव नेचर की रही है. हमारा रुख रक्षात्मक है ना कि आक्रामक. हम किसी देश की सीमाओं में घुसपैठ नहीं करते लेकिन किसी दूसरे देश को अपने इलाके में घुसपैठ की इजाजत भी नहीं दे सकते. वह यह बताने या कहें परोक्ष रूप से धमकाने से भी नहीं चूके कि 'हमारे युद्धपोत और उस पर तैनात बड़े हथियार सिर्फ खिलौना भर नहीं हैं.'
चीन और भारत के बीच डोकलाम विवाद के चरम पर होने के समय भारतीय मीडिया को यहां आमंत्रित करने के लिए किसी खास मकसद और संदर्भ से इनकार करते हुए उन्होंने कहा कि यह विभिन्न देशों की मीडिया के साथ नियमित संवाद का हिस्सा भर है. पीएलए एन के दक्षिण सागर बेड़े में उनके युद्धपोत युलिन पर हम लोग करीब पांच बजे तक रहे फिर लौटकर होटल नानजियांग में आ गए.
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झान झियांग की उमस भरी गर्मी में पसीने से लथपथ संदीप दीक्षित के साथ |
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लेइकियांग यूनेस्को ग्लोबल जियो पार्क के पूर्वी गेट पर संदीप दीक्षित के साथ |
हमें बता दिया गया था कि वहां दिल्ली के पालिका बाजार की तरह ही कीमतों पर भारी मोल-तोल (बार्गेनिंग) होती है. चीनी सामानों की विश्वसनीयता को लेकर मन में वैसे ही सवाल रहते हैं. हम लोगों ने विंडो शापिंग ही ज्यादा की. कीमत और जेब के अनुरूप थोड़ी बहुत खरीद भी हुई. थोड़ी देर बाद हम लोग हवाई अड्डे पर पहुंच गए जहां से रात के 8.50 बजे हम लोग एयर चाइना की उड़ान संख्या सीए947 पर दिल्ली के लिए रवाना हुए. तकरीबन 6 घंटे की यात्रा वैसे ही रही जैसी दिल्ली से बीजिंग की एयर चाइना की उड़ान थी.
नोटः इस तरह से डोकलाम विवाद के साए में हमारी तकरीबन एक सप्ताह की चीन की राजधानी बीजिंग और दक्षिण चीन सागर के तट पर स्थित बंदरगाह शहर झानजियांग की तनाव भरी रोचक और रोमांचक यात्रा समाप्त हुई. हमारी यात्रा के समापन के 15-16 दिन बाद डोकलाम से भारत चीन के बीच बनी परस्पर सहमति के बाद दोनों देशों की सेनाओं की वापसी के साथ ही तकीबन ढाई महीनों तक चले गतिरोध की समाप्ति की घोषणा की गई. हालांकि चीन का विदेश मंत्रालय इस सवाल को टाल गया कि चीन वहां सड़क निर्माण जारी रखेगा या नहीं ! बाद में पता चला कि चीनी सेना कथित तौर पर सितंबर 2018 में डोकलाम के इलाके में लौट आई और जनवरी 2019 तक अन्य बुनियादी ढांचे के साथ ही वहां सड़क निर्माण भी पूरा कर लिया था. 19 नवंबर 2020 को, एक चीनी सीजीटीएन न्यूज़ प्रोड्यूसर ने ट्वीट कर दावा किया कि चीन ने डोकलाम से लगभग 9 किमी और भूटान के क्षेत्र में लगभग 2 किमी दूर पंगडा नामक एक गांव का निर्माण किया है.
हमारे यात्रा संस्मरणों की अगली कड़ी में आप फरवरी 2019 में हुई बांग्लादेश की राजधानी ढाका की यात्रा से जुड़े हमारे संस्मरण पढ़ सकेंगे.