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Monday, 27 July 2020

Foreign visits with President Dr. APJ Abdul Kalam (राष्ट्रपति डा. कलाम के साथ विदेश भ्रमण)

डा. कलाम के साथ विदेश भ्रमण (1)

जयशंकर गुप्त

दुनिया भर में 'मिसाइल मैन' के नाम से मशहूर, भारत रत्न, पूर्व
राष्ट्रपति डा. ए पी जे अब्दुल कलाम ने भारत के राष्ट्रपति के रूप में पहली विदेश यात्रा अबू धाबी, दुबई, सूडान और बुल्गारिया की थी. मेरा सौभाग्य था कि इन देशों की यात्रा में मैं उनके साथ था. डा. कलाम के साथ अपनी विदेश यात्रओं के संस्मरणों की पहली किश्त के रूप में हम अबू धाबी और दुबई की उनकी यात्रा और उनसे जुड़े कुछ संस्मरण साझा कर रहे हैं.


पहला पड़ाव अबू धाबी             और दुबई


जयशंकर गुप्त


    जिंदगी में जिन कुछ लोगों ने मुझे अपने विचारों और उससे भी अधिक अपने व्यक्तित्व से बेतरह प्रभावित किया, उनमें देश के पूर्व राष्ट्रपति डा. कलाम भी एक थे. वह कोई राजनीतिज्ञ नहीं थे और न ही राजनीतिक विचारक अथवा समाज विज्ञानी. विज्ञान और तकनीक में मेरी अपनी कुछ समझ और दखल नहीं के बराबर होने के कारण उनके इस गुण से बहुत ज्यादा प्रभावित होने का प्रश्न भी नहीं था. लेकिन राष्ट्रपति के रूप में उनके व्यक्तित्व, उनकी सादगी और साफगोई, देश और समाज के साथ ही गांव और गरीब के लिए हर पल कुछ करने की उनके अंदर की बेचैनी जैसी कुछ बातें ऐसी थीं जिनके कारण मैं उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था. जिस राष्ट्रपति भवन को खाली करते समय देश के एक पूर्व राष्ट्रपति दो बोइंग विमानों में सामान भरकर अपने साथ घर ले गए थे, उसी राष्ट्रपति भवन में डॉक्टर कलाम एक बैग के साथ पहुंचे और लौटते समय भी एक ही बैग उनके साथ गया. राष्ट्रपति भवन से विदा लेने के अगले ही दिन से वह अध्यापन में जुट गये. यह महज संयोग भर नहीं था कि 27 जुलाई 2015 की शाम उनका इंतकाल भी मेघालय की राजधानी शिलांग में भारतीय प्रबंधन संस्थान में 'रहने योग्य ग्रह' जैसे गूढ़ विषय पर व्याख्यान देते समय दिल का दौरा पड़ने के बाद ही हुआ था.

    डा. कलाम के इंतकाल के बाद नई दिल्ली के 10 राजाजी मार्ग पर स्थित उनके सरकारी निवास पर मिली उनकी जमा पूंजी दशकों नहीं बल्कि सदियों तक किसी पूर्व राष्ट्रपति की सादगी और उनके मितव्ययी जीवन के रूप में हमारी आनेवाली पीढियों को प्रेरित करती रहेगी. एक रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर कलाम के पास निजी तौर पर कोई भी चल अचल संपत्ति नहीं थी. उनके पास जो चीजें थी उसमें 2500 किताबें, एक रिस्टवॉच, छह शर्ट, चार पायजामा, तीन सूट और मोजे की कुछ जोड़ियां थी. हैरानी की बात तो यह कि उनके पास टीवी, फ्रिज, कार और एयर कंडीशनर तक भी अपना नहीं था. डॉक्टर कलाम को करीब से जानने का अवसर मुझे उनके साथ हुई दो विदेश यात्राओं के क्रम में मिला. तब मैं दैनिक हिन्दुस्तान में विशेष संवाददाता के पद पर कार्यरत था. उनके या कहें किसी भी राष्ट्रपति के साथ विदेश जाने और उन्हें करीब से देखने-जानने का मेरे लिए पहला सुअवसर 18 से 25 अक्टूबर 2003 तक उनकी संयुक्त अरब अमीरात (अबूधाबी और दुबई), सूडान और बुल्गारिया की विदेश यात्रा पर जाने के रूप में मिला.

    राष्ट्रपति भवन से डा. कलाम के साथ विदेश यात्रा का निमंत्रण हमारे लिए किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं था, शायद इसलिए भी कि राष्ट्रपति के रूप में डा. कलाम की वह पहली विदेश यात्रा थी जिसमें मुझे बतौर पत्रकार शामिल होने का सुअवसर मिल रहा था. राष्ट्रपति बनने के बाद एक बार उन्होंने कहा भी था कि विदेश की तरफ रुख करने से पहले वह हिन्दुस्तान को देख लेना चाहेंगे. और यह सच भी है कि भारत भ्रमण के बाद ही वह अपनी पहली विदेश यात्रा पर निकले. साथ में सूचना तकनीक एवं विनिवेश मंत्री अरुण शौरी, शिवसेना के सांसद सुरेश प्रभु, माकपा की सांसद सरला महेश्वरी, डा. कलाम के सचिव पी एम नायर और मीडिया सलाहकार एस एम खान,पत्रकारों में पीटीआई के श्रीकृष्णा और विजय जोशी, यूएन आई के प्रदीप कश्यप, ए एनआई के वैभव वर्मा, हिंदू की नीना व्यास, हिन्दुस्तान टाइम्स के सौरभ शुक्नला, सकाल के विजय नाईक, एशियन एज की सीमा मुस्तफा, इंडियन एक्सप्रेस के समरहरलंकर, दि टेलीग्राफ के के सुब्रमण्णा, मलयालम मनोरमा के सच्चिदानंद मूर्ति, आकाशवाणी के ए के हांडू, डीडी न्यूज के सेंथिल राजन, दिनमणि के आरएमटी संबंदन, इन्किलाब के फुजैल जाफरी एवं राष्ट्रपति भवन के छायाकार, पत्रकार साथी, राष्ट्रपति कार्यालय, विदेश मंत्रालय के संबद्ध वरिष्ठ अधिकारी एवं आवश्यक सरकारी लवाजमा भी था.

राजधानी अबू धाबी में


    हमारी यात्रा का पहला पड़ाव संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) था. हालांकि सरकारी सूत्र बता रहे थे कि यूएई के राष्ट्रपति शेख जाएद बिन सुल्तान अल नहयान अपने आपरेशन के लिए दो दिन पहले ही लंदन गये थे. प्रधानमंत्री भी देश के बाहर थे. इन्हीं कारणों से इस यात्रा की तिथियों को स्थगित करने के बारे में भी विचार चल रहा था. यह भी एक कारण था कि विदेश मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा यात्रा की तिथियों के बारे में हमें अंतिम समय तक असमंजस में रखा गया था. लेकिन अंत में कलाम साहब ने किसी तरह के प्रोटोकोल की चिंता न करते हुए यही निर्देश दिया कि यात्रा की तिथियां बदली न जाएं.

    अबू धाबी के रास्ते में साथ चल रहे पत्रकारों के साथ विमान में बातचीत में उन्होंने अपनी इस यात्रा को अपनी इस यात्रा को voyage of learning (ज्ञान का संधान) कहा था. उन्होंने बता दिया था कि वह तीन देशों की नहीं बल्कि तीन महाद्वीपों-एशिया, अफ्रीका और यूरोप (पूर्वी) की अध्ययन यात्रा पर जा रहे हैं. वह इन देशों और महाद्वीपों में हुए अथवा हो रहे बदलावों को करीब से देखना-समझना चाहते हैं. इन देशों के वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, राजनीतिकों, अर्थशास्त्रियों, अध्यापकों और छात्रों से मिलकर वह उनके देश के आर्थिक आधार के बारे में जानना चाहेंगे और यह पता करेंगे कि कैसे हम एक दूसरे की प्रगति और विकास में सहयोगी भूमिका निभा सकते हैं. उन्होंने कहा, “इन तीनों देशों को मैंने विशेष कारणों से चुना है क्योंकि इन तीनों के साथ हमारे परस्पर सहयोग की अपार संभावनाएं हैं, एक-दूसरे की क्षमताओं और संसाधनों का सही इस्तेमाल करके हम एक-दूसरे के विकास में बहुत मददगार हो सकते हैं.” विकसित भारत, शक्तिशाली भारत, दुनिया में सबके सामने सर ऊंचा करके खड़ा हो सके, ऐसे भारतवर्ष का सपना देखने वाले कलाम साहब की पूरी यात्रा उनके इसी सपने के इर्द-गिर्द बुनी हुई थी.

    मन बहुत प्रफुल्लित था. सुन रखा था कि राष्ट्रपति के साथ विदेश यात्रा काफी आनंददायी यानी ‘प्लेजर ट्रिप’ जैसी ही होती है. लेकिन कलाम साहब के साथ यात्रा में ऐसा कतई नहीं लगा. उनके कार्यक्रम तो सुबह आठ-नौ बजे ही शुरू हो जाते और रात आठ-नौ बजे तक चलते रहते. पूरी यात्रा के दौरान शायद ही कोई कार्यक्रम उन्होंने रद्द किया हो या कहीं देर से पहुंचे हों. पता चला कि वह देर रात बल्कि सुबह के दो-तीन बजे तक जागते और अध्ययन-मनन के अलावा ई मेल पर आए संदेशों, मीडिया-अखबारी खबरों का जायजा लेते, ई मेल संदेशों का जवाब देते. साथ चल रहे विशेषज्ञ सलाहकारों से विभिन्न विषयों, अगले दिन के कार्यक्रमों आदि के बारे में मंत्रणा करते और महज चार-पांच घंटे ही सोते. यात्रा दल में उनके परिवार का कोई सदस्य-रिश्तेदार कभी नहीं रहा. विमान में हों अथवा होटल और अतिथिगृह में, वह बहुत हल्का फुल्का, दक्षिण भारतीय शाकाहारी भोजन ही करते. उनके प्रिय भोजन में शामिल था-दही-भात, इडली, बड़ा और सांभर. वे रोजाना तकरीबन एक घंटे शारीरिक व्यायाम, योग आदि करते. सुबह की सैर उनके दैनंदिन कार्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा होती. शायद इसलिए भी उनके निजी चिकित्सक 73 साल की उम्र में भी उन्हें पूरी तरह से स्वस्थ-निरोगी और फिट बताते. वे छोटी सी छोटी इबारत भी बिना चश्मा लगाए पढ़ लेते थे. इतना फिट और सक्रिय कैसे रह पाते हैं, थकते नहीं? डा. कलाम का जवाब था, “मेरा एक मिशन है. मैं अपने विजन इंडिया 2020 के तहत 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्र के रूप में देखना चाहता हूं. इसके साथ ही मैं अपने देश में गरीबी रेखा के नीचे रह रहे 26 करोड़ भारतीयों के चेहरों पर चमक देखना चाहता हूं. जब तक मेरा यह मिशन पूरा नहीं हो जाता, मैं थकनेवाला नहीं हूं. और इस मिशन को पूरा करने के लिए फिट तो रहना ही है.”

18 अक्टूबर 2003 की शाम को हम लोग उनके साथ फारस की खाड़ी यानी पश्चिम एशिया में स्थित सात अमीरातों-राज्यों-दुबई, अबू धाबी, शारजाह, फुजैरा, रस अल खैम, अल आईन, अजमान और उम अल क्वैन-को मिलाकर बने संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबू धाबी पहुंचे. समुद्र, रेगिस्तान और पहाड़ों से घिरा अबू धाबी शाम के समय ऊपर विमान से देखने पर जगमगाते विद्युत प्रकाश में टी शक्ल का सुनहरा टापू नजर आ रहा था. शहर में जल रहे बिजली के बल्ब ऊपर से देखने पर सुनहरी छवि पेश कर रहे थे. डा. कलाम यहां के राष्ट्रपति शेख जाएद बिन सुल्तान अल नहयान के निमंत्रण पर आए थे. इलाज के सिलसिले में उनके लंदन में होने के कारण हवाई अड्डे पर उनके साहबजादे यानी अबू धाबी के शाही राजकुमार और संयुक्त अरब अमीरात के उप प्रधान मंत्री, सेनाओं के सुप्रीम कमांडर शेख खलीफा बिन जाएद अल नहयान पूरे लाव लश्कर के साथ रेड कारपेट बिछाए खड़े थे. औपचारिक स्वागत-सत्कार के बाद हम लोग ठहरने के निर्धारित होटल पहुंच गए. लेकिन डा. कलाम, अरुण शौरी, सुरेश प्रभु और सरला महेश्वरी देर रात लौटे.

    श्रीमती महेश्वरी के अनुसार हवाई अड्डे पर कुछ सामान्य औपचारिकताओं के बाद ही बिना किसी विश्राम के डा. कलाम के साथ हम लोग अबूधाबी में दुनिया के सबसे बड़े 'डिसैलिनेशन प्लांट' को देखने चले गये. समुद्र के खारे पानी को पीने योग्य बनाने का यह एक विशाल संयत्र था. वहां हम लोग तकरीबन एक घंटे तक रहे. जल शोधन संयंत्र की कार्य प्रणाली, लागत, बिजली उत्पादन आदि के बारे में जानकारी हासिल की. कलाम साहब और हम सबने देखा कि किस तरह अपने संसाधनों का सूझ-बूझ से इस्तेमाल करके इस मरूभूमि की प्यास बुझाई जा रही थी. अबू धाबी जैसी जगह, जो अभी 40 वर्ष पहले तक एक छोटा-सा दीन-दुनिया से कटा हुआ द्वीप जैसा था, जिसे खाड़ी के बाहर कोई जानता भी नहीं था, आज यूएई की राजधानी है तथा गल्फ की गार्डन सिटी और पश्चिम एशिया का मेनहट्टन भी कहा जाता है. कुछ सौ लोगों का यह द्वीप आज 10 लाख से भी अधिक लोगों का आधुनिक जगमगाता शहर बन गया है. सभी जानते हैं कि इस छोटे से देश के पास तेल के रूप में ऊर्जा का अकूत खजाना होने पर भी पीने के पानी का भारी अभाव है. तेल सस्ता लेकिन पीने का पानी महंगा. यहां एक से बढ़कर एक अत्याधुनिक, सुंदर कलात्मक इमारतें, बड़ी-बड़ी चौड़ी सड़कें, पार्क, फव्वारे-वास्तव में यह तो रेगिस्तान में एक नखलिस्तान ही है.”

समुद्र के खारे पानी को पेयजल बनाने का संयंत्र


    अगली सुबह डा. कलाम ने भी मीडिया को बताया कि वह ‘उम्म अल नार डिसैलिनेशन प्लांट’ देखने गए थे जहां समुद्र के खारे पानी को पीने योग्य बनाया जाता था. डा. कलाम ने बताया कि भारत के कई इलाकों में पेय जल का गंभीर संकट है. देश में समुद्री क्षेत्रफल को देखते हुए इस तरह के प्लांट लग जाएं तो हमारे यहां पेय जल की समस्या सुलझ सकती है. लेकिन, उन्होंने यह भी बताया कि अबू धाबी के प्लांट में 'डिसैलिनेशन' से बननेवाले पेय जल की लागत ज्यादा आ रही है. इसे और सस्ता कैसे बनाया जा सकता है. इस पर वह सोच रहे हैं. उन्होंने बताया कि इस तरह के संयंत्रों को सौर ऊर्जा से संचालित कर इसकी लागत में कमी की जा सकती है. उस रात उन्होंने अबू धाबी में एक भारतीय बी आर शेट्टी द्वारा ढाई करोड़ अमेरिकी डालर की लागत से संयुक्त उपक्रम के रूप में स्थापित अत्याधुनिक औषधि कारखाना ‘नियो फार्मा’ का उद्घाटन भी किया था. दवाइयों पर शोध की इस एक आधुनिक प्रयोगशाला में उनका स्वागत बी आर शेट्टी के अलावा यूएई के उच्च शिक्षा एवं वैज्ञानिक शोध मंत्री एवं नियो फार्मा के चेयरमैन शेख नहयान बिन मुबारक अल नहयान ने किया.

भारतीय मूल के बी आर शेट्टी के संयुक्त उपक्रम 'नियो फार्मा' का उद्घाटन
करते डा. कलाम, सबसे बाएं बीआर शेट्टी
    हमारे लिए यह एक अलग तरह का अनुभव था कि राष्ट्रपति किसी देश में पहुंचने के साथ ही अपने देश की पेयजल समस्या के समाधान के लिए देर रात तक ‘डिसैलिनेशन प्लांट’ देखते रहें. रात में ही डा. कलाम ने खाड़ी के देशों में स्थित भारतीय राजनयिकों के साथ मंत्रणा कर इन देशों के सामाजिक, राजनीतिक माहौल का जायजा लेने के साथ ही इन देशों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाओं की जानकारी ले ली थी. अगले दिन अबू धाबी में डा. कलाम ‘इंडियन लेडीज एसोसिएशन’ द्वारा संचालित ‘स्पेशल केयर होम’ गये. यहां विकलांग बच्चों का प्रशिक्षण केंद्र था. कलाम साहब यहां खुद बच्चों के प्रशिक्षक बन गये थे. बच्चों के साथ बैठकर उनको सिखाने की चीजें लेकर खुद ही उनसे प्रश्न-उत्तर कर रहे थे. सरला महेश्वरी बताती हैं, “लगता था कि कलाम साहब राष्ट्रपति के अपने पद का भार कहीं बहुत दूर छोड़ आये थे. इतनी आत्मीयता, इतनी निश्छलता वास्तव में उसी में देखी जा सकती है जहां दिलो-दिमाग में एक बच्चे सी पाक आत्मा बसती हो. उसी दिन हम लोग हायर कालेज ऑफ टेक्नालॉजी एवं नॉलेज पार्क में भी गए. डा. कलाम वहां भी विद्यार्थियों से मिले. उनके बीच उन्होंने न सिर्फ प्रेरणादायक भाषण दिया बल्कि विद्यार्थियों को अपने विचारों का सहभागी भी बनाया." उन्होंने राष्ट्राध्यक्षों के औपचारिक भाषण की परंपरा को तोड़ते हुए कहा, "मेरे पास लिखा हुआ भाषण है लेकिन इसे तो आप लोग मेरे वेबसाइट पर भी देख सकते हैं. मैं यहां आपसे सीधी और खुली बातचीत करना चाहता हूं."
    
डा. कलाम के साथ भारतीय मूल के उद्यमी यूसुफ अली
    रात को होटल में भारत के राजदूत सुधीर व्यास की ओर से रात्रि भोज था जिसमें बहुत बड़ी संख्या में वहां रहने वाले भारतीयों को आमंत्रित किया गया था. यहां भी कलाम साहब ने सबको संबोधित किया और श्रोताओं के प्रश्नों का जवाब दिया. अबू धाबी में हमें एम के ग्रुप के भारतीय मूल के प्रबंध निदेशक, बड़े उद्योगपति-व्यवसाई यूसुफ अली एम.ए. से मिलने का अवसर भी मिला. उन्होंने डा.कलाम के साथ चल रहे लोगों, मीडिया कर्मियों को काफी उपहार दिए. हमें इस बात का अनुभव नहीं था, शायद इसलिए भी हमने कोई बड़ा सूटकेस साथ नहीं रखा था लेकिन हमारे कुछ साथियों को इसका खासा अनुभव था. दिल्ली में हवाई अड्डे पर एक साथी पत्रकार ने हमारे छोटे सूटकेस को देख कर कटाक्ष भी किया. विमान में खाने और पीने के हर तरह के इंतजाम के साथ हम जहां जहां
गए, दूतावास के लोगों ने ‘जॉनी वाकर’ की ‘ब्लैक लेबल’ या ‘रेड लेबल’ का इंतजाम अलग से किया था. हमारे लिए वह भी एक अतिरिक्त बोझ ही साबित हो रहा था जिसे हम अपने सामान के साथ ठूंस कर भर रहे थे. अबू धाबी के प्रिंस ने यात्री दल को काफी बेसकीमती उपहार दिए थे. मीडिया के लोगों के हिस्से में एक-एक घड़ी आई थी. उस घड़ी की दिल्ली में कीमत सुनकर हमारे तो होश ही उड़ गए. उस समय उसकी कीमत एक लाख रु. से अधिक थी हालांकि हमारे लिए उसका खास महत्व नहीं रहा. घर में रखे रखे कब वह बंद हो गई, पता ही नहीं चला. बैटरी बदलने में ही 500 रु. की चपत लग गई.

व्यावसायिक राजधानी दुबई में


    हमारा अगला पड़ाव संयुक्त अरब अमीरात की व्यावसायिक राजधानी दुबई में था. संयुक्त अरब अमीरात की शासन व्यवस्था में राष्ट्रपति और उप प्रधानमंत्री अबू धाबी के शाही परिवार का और प्रधानमंत्री तथा उप राष्ट्रपति दुबई के शाही परिवार से होता है. दुबई और शारजाह हम पहले भी जा चुके थे. लेकिन इस बार की बात कुछ और थी. अबू धाबी से दुबई की तकरीबन 150 किलोमीटर की यात्रा सड़क मार्ग से तय की गई. क्या सड़कें थीं. उन पर हवा से बातें करती कारों का काफिला कब दुबई पहुंच गया, कुछ पता ही नहीं चला. वहां डा. कलाम का स्वागत प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम ने किया.

दुबई में डा. कलाम अपने काफिले के साथ सीधे इंडियन हाई स्कूल पहुंचे. वहां उन्होंने छात्रों और अध्यापकों के साथ सीधा संवाद किया. उन्होंने किशोर वय के छात्रों को सपने देखने की आवश्यकता समझाते हुए बताया कि वैज्ञानिकों और इंजीनियरों जैसे हजारों स्वप्नदर्शियों के अथक प्रयासों की मदद से ही भारत विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ सका और अंतरिक्ष में अपना यान भेजने में सफल रहा है. उन्होंने कहा कि ज्ञान इतना शक्तिशाली है कि यह न केवल आपके दिमाग को तीक्ष्ण बनाता है बल्कि सही गलत का भेद समझने का विवेक और चारित्रिक दृढ़ता भी प्रदान करता है जो कि जीवन में बहुत महत्व रखती है. उन्होंने विद्यालय में अध्ययनरत छात्रों से अध्ययन के बल पर श्रेष्ठता हासिल करने और भारत लौटने पर अपने अनुभवों को साझा करने को कहा.

  
होटल, बुर्ज अल अरब (तस्वीर इंटरनेट से)
 
डा. कलाम ने दुबई में अन्य कार्यक्रमों के अलावा विश्व प्रसिद्ध बुर्ज अल अरब होटल में, जिसकी कुछ मंजिलें गहरे समुद्र में भी हैं, ‘दुबई चैंबर्स ऑफ कामर्स’ के प्रतिनिधियों को भी संबोधित किया. इस होटल के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था. करीब से देखने समझने के बाद यह होटल किसी बड़े आश्चर्य से कम नहीं लगा. किसी समय दुनिया का इकलौता सात सितारा होटल कहे जाने वाले बुर्ज अल अरब का निर्माण जुमैरा बीच के पास समुद्र के बीच में बने कृत्रिम आईलैंड पर किया गया है. समुद्री नौका या कहें जहाज की शक्ल में बने इस होटल में 270 मीटर की ऊंचाई पर हेलीपैड भी बना है, जहां कोई सीधे हेलीकॉप्टर से उतर सकता है. 56 मंजिला इस होटल को इस समय दुनिया में तीसरा सबसे ऊंचा होटल कहा जाता है.

अरब शेखों को बताई ज्ञान की ताकत

    होटल अल बुर्ज के भव्य सभागार में डा. कलाम ने ‘दुबई चैंबर्स ऑफ कामर्स’ के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच के प्रगाढ़ संबंधों का हवाला दिया और कहा कि एक समय (30-40 साल पहले) ऐसा भी था, जब यहां तपते रेगिस्तान और समुद्र के खारे पानी के अलावा कुछ भी नहीं था. अबू धाबी को पहले समुद्र से निकलनेवाले मोतियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केंद्र के रूप में जाना जाता था. लेकिन अबू धाबी और दुबई के दो शेखों-शेख जाएद अल नहयान एवं शेख राशिद अल मकतूम के विजन ने इन इलाकों में तेल और प्राकृतिक गैस के अकूत भंडारों की खोज और उसके उत्पादन, विपणन और निर्यात के जरिए इन बंजर और रेगिस्तानी इलाकों का काया पलट ही कर दिया. खाड़ी के देश पेट्रो डालर कमानेवाले देश बन गए. डा. कलाम ने अरब शेखों और उनकी नयी पीढ़ी से मुखातिब होकर कहा, “आज आपके पास पेट्रोल है, गैस है, सोना और डालर भी है. लेकिन इसके भरोसे आप कब तक रहेंगे. यह नवीकरणीय (रिन्यूवेबल) नहीं है. यह एक दिन खत्म हो जाएगा. तब क्या होगा.” उन्होंने ऊपर आसमान की ओर दिखाते हुए कहा, “हमें सूर्य के प्रकाश और उसकी ऊर्जा के उपयोग के बारे में सोचना होगा जिसे कहते हैं कि यह दस अरब वर्षों तक सुरक्षित रहेगी. हालांकि यह भी अक्षुण्ण नहीं है. इसका भी आधा समय बीत चुका है.” फिर अक्षुण्ण और रिन्यूवेबल क्या है, पूछते हुए उन्होंने खुद ही जवाब दिया था, ‘ज्ञान. आपको ज्ञान की खोज और विकास की तरफ देखना होगा.’ उन्होंने बताया कि भारत ने 2020 तक विकसित राष्ट्र बनने के लिए विजन 2020 बनाया है. आप (अरब के शेखों) के पास दौलत है और हमारे (भारत) पास ज्ञान और विजन. दोनों मिलकर, एक दूसरे से सहयोग कर एक नया और खुशहाल जहां (विश्व) बना सकते हैं. उनके इतना भर कहते ही पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. कई मिनट तक तालियां बजती ही रहीं. उस समय मुझे लगा कि प्रेसीडेंट डा. कलाम के मायने क्या हैं.

    वहां से हम लोग ‘नालेज विलेज’ गये, छात्रों से मुलाकात की. सूचना तकनीक के क्षेत्र में क्या-क्या हो रहा है, किस तरह दोनों देशों के बीच इस तकनीक को लेकर आपसी सहयोग बढ़ाया जा सकता है, यही उनकी चिंता के केंद्र में रहा. यहां पर उन्होंने ‘साइबर यूनिवर्सिटी’ की अपनी परिकल्पना भी रखी. दुबई में एक अन्य एकेडेमिक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि जिस तरह से कंप्यूटर का विकास हो रहा है, वर्ष 2009 तक कंप्यूटर मानव मस्तिष्क से आगे निकल जाएगा. लेकिन तब भी एक फर्क रहेगा. कंप्यूटर श्रृजन नहीं कर सकता जबकि मनुष्य श्रृजन कर सकता है. उन्होंने कहा कि शांति और विकास को अलग-अलग नहीं कर सकते. दोनों को साथ-साथ चलना होगा.

    डा. कलाम ने कंप्यूटर स्लाइडों और लेजर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के जरिए छात्रों को ज्ञान और विकास के बारे में समझाया. शिक्षक की भूमिका में उन्होंने छात्रों एवं वहां बैठे लोगों से खुद को जोड़ते हुए कहा, ‘जो मैं कहूंगा उसे आप सब दोहराएंगे?’ सबके हामी भरने पर उन्होंने कहा, ‘‘ड्रीम, ड्रीम, ड्रीम. ट्रांस्फार्म योर ड्रीम इनटू थाट्स एवं ट्रांस्फार्म योर थाट्स इनटू ऐक्शन.” यानी सपने देखिए. सपने को विचार में और विचार को क्रियान्वयन में बदलिए. उन्होंने छात्रों से कहा कि वे खुद से सवाल पूछें कि वे अपने देश और समाज के लिए ऐसा क्या कर सकते हैं जिसके लिए उन्हें भविष्य में याद किया जाएगा. सवाल-जवाब के क्रम में एक सवाल के जवाब में उन्होंने अपने स्कूली जीवन को याद करते हुए बताया कि कैसे उनके गुरु ने स्कूल से बाहर समुद्र किनारे पक्षियों की उड़ान के बारे में ज्ञान दिया था. इस ज्ञान को आधार बनाकर अपनी शिक्षा के क्रम से लेकर ‘राकेट और मिसाइल मैन’ बनने तक की सफलता के बारे में समझाते हुए उन्होंने बताया, ‘उस ज्ञान की बदौलत ही मैं इस (राष्ट्रपति) रूप में उड़ते हुए आपके बीच आ सका हूं.’ दुबई में हमने एक और ब्रीफ केस खरीद लिया लेकिन बाद में वह भी छोटा ही साबित होने लगा. फिर हमारे एक पत्रकार मित्र का कटाक्ष सुनने को मिला, " कभी बड़ा भी सोचो." अब उन्हें हम यह कैसे बताते कि बड़ा रखने और सोचने की अपनी कभी हैसियत ही नहीं रही.

नोटः यात्रा के इस क्रम में अब अगले पड़ाव, सूडान के बारे में चर्चा होगी. अगले सप्ताह किसी और दिन!