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Sunday, 2 August 2020

डा. कलाम के साथ विदेश भ्रमण-2 : नील नदियों के संगम वाले शहर खारतूम में

सूडानः नील नदियों का संगम

जयशंकर गुप्त




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0 अक्टूबर, सोमवार को हम लोग दिन में ढ़ाई बजे दुबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे. वहां डा. कलाम को विदा करने के लिए दुबई के शाही राजकुमार एवं रक्षा मंत्री मोहम्मद बिन राशिद अल मखतूम सदल बल मौजूद थे. दुबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से राष्ट्रपति के विशेष विमान से हम लोग जब सूडान की राजधानी खारतूम पहुंचे, स्थानीय समय के मुताबिक वहां शाम के बजे थे. 

दुबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर डा. कलाम को विदा करते हुए शाही राजकुमार एवं रक्षा मंत्री मोहम्मद बिन राशिद अल मखतूम (तस्वीर गल्फ न्यूज).

खारतूम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सूडान के राष्ट्रपति ओमर हसन अल बशीर द्वारा रेड कार्पेट स्वागत (तस्वीर इंटरनेट से).खारतूम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर बिछे रेड कार्पेट पर भारतीय राष्ट्रपति डा. कलाम का स्वागत सूडान के राष्ट्रपति ओमर हसन अल बशीर ने बैंड बाजेपर बजती दोनों देशों की राष्ट्रीय धुनों के बीच गार्ड आफ ऑनर के साथ किया. डा. कलाम की सूडान यात्रा से 28 साल पहले भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति के रूप में फखरुद्दीन अली अहमद 1975 में सूडान आए थे. उसके 28 साल बाद खारतूम पहुंचनेवाले डा. कलाम पहले राष्ट्रपति थे.

    सूडान अफ्रीका और अरब जगत का सबसे बड़ा देश है, इसके अलावा क्षेत्रफल के लिहाज से दुनिया का दसवां सबसे बड़ा देश भी है. इसका क्षेत्रफल इंग्लैंड से 10 गुना बड़ा है. इसके उत्तर में मिस्र, उत्तर पूर्व में लाल सागर, पूरब में इरिट्रिया और इथियोपिया, दक्षिण पूर्व में युगांडा और केन्या, दक्षिण पश्चिम में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और मध्य अफ्रीकी गणराज्य, पश्चिम में चाड और पश्चिमोत्तर में लीबिया स्थित है. सूडान दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल है, जहां आज भी 3000 ईसा पूर्व बसी बस्तियां अपना वजूद बचाए हुए हैं. दुनिया की सबसे लंबी नील नदी, देश को पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में विभाजित करती है. उत्तर से विक्टोरिया झील से आती श्वेत नील और पश्चम में इथोपिया से आती ब्लू नील नदियों के संगम पर स्थित है, सूडान का राजधानी शहर खारतूम. 

 नील नदी के तट पर

    भारत और सूडान के बीच संबंधों का लंबा इतिहास रहा है. दोनों देशों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों की भी लंबी परंपरा है. दोनों देशों ने उपनिवेशवाद के खिलाफ लम्बी लड़ाइयां लड़ी हैं. साथ चल रहीं सांसद सरला महेश्वरी याद करती हैं, “अफ्रीका के साथ हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का गहरा संबंध था. इसलिए भी अफ्रीका के लोगों के साथ हमारी आत्मीयता और भी गहरी है. रात के लिए खारतूम में कोई विशेष आधिकारिक कार्यक्रम नहीं था. लिहाजा हमने और सुरेश प्रभु ने शहर घूमने का कार्यक्रम बनाया. दिमाग में नील नदी को देखने का आकर्षण इतना गहरा था कि मैं अपने को रोक नहीं पा रही थी और इस बात का भी मुझे पूरा डर था कि यूएई में अबू धाबी और दुबई की तरह यहां भी घूमने के लिये समय तो मिलने वाला नहीं है. सुरेश प्रभु भी समान रूप में उत्साही थे, सो, हम दोनों एक ही गाड़ी में निकल पड़े. खारतूम का नजारा अबू धाबी और दुबई से कतई अलग था. छोटे-छोटे पुराने टूटे-फूटे घर, दुबली-पतली सड़कें. सौभाग्य से हमें एक भारतीय मिल गये जो वहां शुगर फैक्ट्री में मैनेजर थे और अब सेवानिवृत्त होकर उनके कंसलटेंट बने हुए थे.

    सूडान की राजधानी, खारतूम कोई खास बड़ा शहर नहीं था और भीड़-भाड़ और ट्रैफिक भी नहीं इसलिए आप तीन-चार घंटों में आराम से पूरा शहर घूम सकते हैं. हम लोग उस पुल पर गये जहां से दोनों नदियों के मिलन स्थल (संगम) को देखा जा सकता था. हालांकि यह रात का समय था इसलिए वो नजारा हमें देखने को नहीं मिला. हमारे स्थानीय मित्र पूरे रास्ते हमें यहां का इतिहास और यहां के लोगों की संस्कृति के बारे में बताते रहे. अपने एक अनुभव का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार वे और उनकी पत्नी कहीं से आ रहे थे तो देखा कि सड़क पर सब लोग जमा हैं, खाने-पीने का कार्यक्रम चल रहा है. अचानक कुछ लोग उनकी गाड़ी के सामने खड़े हो गये और मनुहार करने लगे कि उन लोगों को कुछ तो खाकर ही जाना पड़ेगा. उन्होंने बताया कि यहां रिवाज है कि रमजान के महीने में सभी लोग इसी तरह रोजा एक साथ खोलते हैं और जो भी उनके मोहल्ले से या रास्ते से गुजरता है, उसे इसी तरह निमंत्रण देकर अपने साथ खिलाते हैं.”

    20 अक्तूबर की शाम सूडान में भारत के राजदूत अशोक कुमार ने डा. कलाम के सम्मान में हमारे और वहां रह रहे प्रमुख भारतीयों के लिए रात्रिभोज का आयोजन किया था. वहां माइक्रो लैब्स के भारतीय मूल के वाइस प्रेसीडेंट भास्कर चक्रवर्ती मिल गये. उन्होंने डा. कलाम के साथ उनकी पुस्तक ‘इंडिया 2020’ पर चर्चा की थी.

 श्री चक्रवर्ती (सबसे बाएं भूरे रंग के सूट में)  इस मुलाकात को यादगार और ऐतिहसिक मानते हैं. उन्होंने उस मौके की तस्वीर और यहां तक कि भारतीय राजदूत के निवास पर रात्रिभोज का निमंत्रण पत्र भी सहेजकर रखा है.

अगली सुबह, 21 अक्टूबर को सुनहरे अतीत और तमाम तरह की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासतें संजोए खारतूम शहर में हमने उस जगह को भी देखा जहां नीले और सफेद जलवाली दोनों नील नदियों का संगम होता है. इस जगह को ‘अल मोर्गन’ कहते हैं. यहीं से ग्रेट (मुख्य) नील नदी उत्तरावर्ती होकर मिश्र और अंततः भूमध्यसागर की यात्रा करती है. 21 अक्तूबर की अल्लसुबह डा. कलाम के साथ ‘ग्रेट नील नदी’ में नौकायन करते हुए हम सबको वहां सूर्योदय का नयनाभिराम नजारा देखने को मिला.

नील नदी के तट से सूर्योदय से पहले की छटा





ह्वाईट और ब्लू नील नदियों के संगम के पास नौकायन

संगम स्थल पर दोनों नील नदियों की विभाजन रेखा सी साफ नजर आ रही थी. हमारे लिए तो कुछ कुछ हमारे इलाहाबाद (प्रयाग) में संगम की छटा जैसा अनुभव था जहां यमुना और गंगा नदियों का संगम होता है. यमुना नदी का नीला जल, गंगा के सफेद (बरसात में भूरे जल) से मिलने के बाद एककार होकर गंगा पूरब की ओर मिर्जापुर, वाराणसी होते हुए बिहार के रास्ते पश्चिम बंगाल में समुद्र में मिलती है. पश्चिम बंगाल में गंगा का नाम बदलकर भागीरथी और हुगली भी हो जाता है. लेकिन नील नदी की यात्रा ज्यादा लंबी होती है.

    लेकिन सूडान और इसके राजधानी शहर खारतूम में पिछले दो दशकों से राजनीतिक अस्थिरता, उत्तरी और दक्षिणी सूडान के लोगों के बीच सतत जारी रहनेवाले गृह युद्ध, आतंकवाद, भूख और अकाल के साथ ही अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक प्रतिबंधों की मार भी साफ दिख रही थी. यूनाइटेड किंगडम यानी ब्रिटिश साम्राज्य से 1956 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद सूडान को 17 साल तक चले लंबे गृह युद्ध का सामना करना पड़ा, जिसके बाद अरबी और न्यूबियन मूल की बहुतायत आबादीवाले उत्तरी सूडान और ईसाई और एनिमिस्ट निलोट्स बहुल आबादीवाले दक्षिणी सूडान के बीच जातीय, धार्मिक और आर्थिक युद्ध छिड़ गया. इसकी वजह से 1983 में दूसरा गृह युद्ध भी शुरू हुआ. इन लड़ाइयों के बीच कर्नल उमर अल बशीर ने 1989 में रक्तविहीन तख्तापटल कर सत्ता हथिया ली.

    प्राकृतिक संसाधन के रूप में पेट्रोलियम और कच्चे तेल से भरे-पूरे सूडान गणराज्य की राजधानी खारतूम शहर में घूमते समय पिछड़ेपन का भूगोल और दहशत का माहौल साफ नजर आया. देर रात को एक सुनसान सी सड़क पर टहलते समय स्थानीय सुरक्षा बलों के जवानों ने रोक लिया. उनकी भाषा अपने पल्ले तो पड़ नहीं रही थी, पूछताछ के क्रम में हमने अपना पासपोर्ट दिखा दिया. फिर उनके सार्जेंट ने मुस्कराते हुए अंग्रेजी में कहा कि आप खुशकिस्मत हैं कि आपके साथ कुछ नहीं हुआ. लेकिन इस तरह से आप लोगों का अकेले सुनसान जगहों पर घूमना ठीक नहीं. कभी भी, कहीं कुछ भी घटित हो सकता है. बाद में पता चला कि राहजनी और छिनताई वहां आम बात है. सही मायने में खारतूम भारत के किसी छोटे शहर जैसा ही लगा. ऑटो रिक्शा, खटारा बसें और टैक्सियां, सब भारत की तरह ही. बताया गया कि सूडान में तकरीबन 2500 भारतीय परिवार दशकों से रह रहे हैं. वे लोग यहां के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के साथ पूरी तरह से रच बस गए हैं. इनमें से अधिकतर व्यवसाई हैं.

नेशनल असेंबली में संबोधन

     21 अक्टूबर की सुबह ही हम लोग ‘फ्रेंडशिप हाल’ में पहुंचे, जहां राष्ट्रपति ओमर हसन अहमद अल बशीर तथा उनके मंत्रिमंडल के साथियों के साथ डा. कलाम की प्रतिनिधि स्तर की बातचीत हुई. सूडान के राष्ट्रपति अल बशीर डा. कलाम की इस यात्रा से बहुत खुश थे और चाहते थे कि कलाम साहब हमारे प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी से बात करें ताकि दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग की दिशा में कामों को और तेजी से आगे बढ़ाया जा सके. सूडानी ऊर्जा मंत्री ने राष्ट्रपति जी से कहा कि वे चाहते हैं कि यहां भारत 714 कि.मी. लम्बी तेल की पाइप लाइन बनाये तथा सूडान के बंदरगाह पर तेल शोधन संयंत्र को और आधुनिक बनाये. इस द्विपक्षीय बातचीत के अलावा डा. कलाम ने सूडान की संसद (नेशनल एसेंबली) को भी संबोधित किया. हम लोग भी उनके साथ सूडान की नेशनल एसेंबली में गये, जहां डा. कलाम का सारगर्भित दार्शनिक भाषण हुआ. उन्होंने धर्म और अध्यात्म के साथ ही आतंकवाद जैसे मुद्दों पर भी अपने बेबाक विचार रखे. सूडान के राजनेता, सांसद डा. कलाम की सादगी और साफगोई से बेहद प्रभावित हुए. डा. कलाम ने कहा कि गृह युद्ध, अराजकता, अशांति और राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहे सूडान को अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को भी झेलते रहना पड़ा है. लेकिन अब सूडान में भी राजनीतिक स्थिरता बनते दिख रही है. शांति प्रक्रिया अंतिम चरण में है. उन्होंने बताया कि सूडान में भी दौलत और प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है. लेकिन सुनियोजित ढंग से इनका दोहन और देश की प्रगति और विकास में इनका इस्तेमाल नहीं हो सका है. सूडान के लोग मदद के लिए हमारी ओर देख रहे हैं. सूडान में तेल और प्राकृतिक गैस के अकूत भंडार हैं. द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग बढ़ने की स्थिति में भारत अपनी तेल और प्राकृतिक गैस की जरूरतों का बड़ा हिस्सा सूडान से भी पूरा कर सकता है. भारत के ओएनजीसी (विदेश लि.) ने वहां तेल और गैस की खोज और उत्पादन, विपणन और निर्यात में साझीदारी शुरू की है. सूडान की सबसे बड़ी और प्राकृतिक गैस परियोजना को संचालित करनेवाली ग्रेटर नील पेट्रोलियम ऑपरेटिंग कंपनी में 75 करोड़ अमेरिकी डालर के निवेश की हिस्सा पूंजी के साथ ओएनजीसी ने एक चौथाई हिस्सेदारी खरीद ली है. डा. कलाम ने इस तरह के निवेश और सहयोग को और बढ़ाने पर जोर दिया. उन्होंने नेशनल एसेंबली में सूडान के राजनेताओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारत और सूडान में तमाम तरह की समानताएं हैं. दोनों देशों को और बहुत पहले एक दूसरे के करीब आना चाहिए था. उन्होंने वर्ष 2020 तक भारत को विकसित देश बनाने के अपने ‘विजन 2020’ को समझाते हुए कहा कि यह विजन सूडान और अन्य विकासशील देशों के आर्थिक विकास में भी बहुत सहायक हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘‘आपके पास प्राकृतिक संसाधन हैं और हमारे पास विजन (दृष्टिकोण) और अपार मानव शक्ति. इनके आपसी समन्वय और सहयोग से हम दोनों देश फायदा उठा सकते हैं.” अबू धाबी और दुबई की तरह खारतूम में भी डा. कलाम का जोर इस बात पर था कि विकास के लिए शांति एक आवश्यक शर्त है. साथ चल रहे केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने बाद में बताया कि दोनों देशों ने आतंकवाद को कैंसर करार देते हुए इसके खिलाफ संघर्ष में परस्पर सहयोग पर सहमति जताई.

 दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय बातचीत में भी यह बात उभर कर आई कि जब तक दुनिया के सभी देश आतंकवाद की बीमारी के खिलाफ संघर्ष में एकजुट नहीं होंगे तब तक इसका समूल सफाया कर पाना नामुमकिन होगा. रात को सूडान के राष्ट्रपति द्वारा रात्रिभोज था, जिसका हम सबने बहुत आनन्द उठाया. सूडानी नृत्य और गीत के अलावा हमें हिंदी गीत भी यहां सुनने को मिले.

    सूडान यात्रा के दौरान तीन समझौतों पर हस्ताक्षर भी किए गए. सूडान और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगातार बढ़ रहा है. 2002-03 के दौरान यह 129 मिलियन अमेरिकी डॉलर (भारतीय निर्यात 105 मिलियन और भारतीय आयात तकरीबन 24 मिलियन अमेरिकी डालर डालर) का था. इस वर्ष सूडान के हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में ओएनजीसी विदेश लिमिटेड द्वारा 750 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश दोनों देशों के बीच आर्थिक और वाणिज्यिक सहयोग में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. सूडान भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम के तहत विशेष प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के प्रमुख लाभार्थियों में से एक है. द्विपक्षीय सहयोग भी फार्मास्यूटिकल्स, सूचना प्रौद्योगिकी, मानव संसाधन विकास और शैक्षणिक और संस्कृति एक्सचेंज जैसे क्षेत्रों तक फैला हुआ है.    

22 अक्तूबर की सुबह 9.30 बजे डा. कलाम ने खारतूम विश्वविद्यालय के शिक्षाविदों और छात्रों के साथ भी लंबी बातचीत की. उन्होंने और भारतीय विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त चुके सूडान के पूर्व छात्रों से भी मुलाकात की. इस समय, 2003 में भी सूडान के 2,500 छात्र भारत में पढ़ रहे हैं. खारतूम विश्वविद्यालय के शिक्षाविदों और छात्रों को संबोधित करते हुए डा. कलाम ने शिक्षा और राष्ट्रीय विकास, प्रौद्योगिकी का विकास, सामाजिक समृद्धि के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका, भारत-सूडान के बीच आपसी सहयोग के बिंदुओं, छात्र-युवाओं के समक्ष वैश्विक चुनौतियों, 21वीं सदी में वैश्विक विकास की चुनौतियों आदि गूढ़ विषयों पर चर्चा की. उन्होंने विकास के लिए देश-समाज में स्थिरता को जरूरी बताया. इस अवसर पर उन्होंने सूडान के शिक्षकों और छात्रों के जरिए पूरी दिनया के लिए भी एक काव्य संदेश भी दिया.

    खारतूम विश्वविद्यालय से फारिग होकर दोपहर का भोजन हम लोगों ने हड़बड़ी में पूरा किया क्योंकि विश्वविद्यालय में तय समय से ज्यादा समय बीत गया और हम लोगों को बुल्गारिया की राजधानी सोफिया के लिए निकलना था. जाना तो राष्ट्रपति के विशेष विमान से ही था, इसलिए समय की कोई बात नहीं थी. लेकिन डा. कलाम इस मामले में समय के बहुत पाबंद थे कि जहां जाना है, समय पर ही पहुंचें.

 नोटः अगली कड़ी बुल्गारिया में तीन दिनों के प्रवास पर