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Thursday, 3 September 2020

Foreign Visits With then President Dr. APJ Abdul Kalam (Moscow and St.Petersburg).

 डा. कलाम के साथ विदेश भ्रमण (5)

मास्को और पीटर्सबर्ग में

 

 मास्को प्रवास के दौरान डा. कलाम ने भारत के हितैषी कहे जानेवाले रूस के प्रधानमंत्री मिखाइल येफिमोविच फ्रादकोव तथा रूसी संसद के निचले सदन ड्युमा के अध्यक्ष बोरिस ग्रीजलोव से भी मुलाकात की. फ्रादकोव ने डा. कलाम के सम्मान में एक दिन रात्रिभोज दिया. एक रात्रिभोज मास्को में रहनेवाले भारतीयों की ओर से डा. कलाम के सम्मान में आयोजित समारोह में वहां भारत के राजदूत कंवल सिब्बल ने भी दिया. रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने 24 मई की शाम डा. कलाम के सम्मान में राजकीय बैंक्वेट भोज का आयोजन किया. 

दिन में कुछ समय हमने तकरीबन डेढ़ मील के क्षेत्रफल में त्रिभुजाकार दीवारों से घिरे क्रेमलिन (किले) के आसपास रेड स्क्वायर पर भी बिताए.
क्रेमलिन के बाहर लेखक
मास्को शहर के मध्य में स्थित रेड स्कवायर पर ही क्रेमलिन की दीवारों से लगा महान कम्युनिस्ट क्रांतिकारी व्लादिमीर इलीइच उल्यानोव ‘लेनिन’ की समाधि (मुसोलियम) है जो सोवियत संघ के विघटन और कम्युनिस्ट शासन के समाप्ति के बावजूद बड़े पैमाने पर देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. इस समाधि में 1917 से 1924 तक सोवियत रूस, और 1922 से 1924 तक सोवियत संघ के भी राष्ट्राध्यक्ष (हेड ऑफ़ गवर्नमेंट) रहे लेनिन की ‘ममी’ रखी गई है. लेनिन का निधन 21 जनवरी 1924 में गोर्की में हुआ था. उनके शव को दफनाने के बजाए उनकी याद को आनेवाली पीढ़ियों के लिए अमिट वनाए रखने की गरज से मास्को लाया गया और लेप 'बॉमिंग' करके तैयार उनकी ‘ममी’ को उनके मुसोलियम में बने कांच के ताबूत में रखा गया. देखने से लगता है कि पैंट, कोट और टाई पहने, फ्रेंच कट दाढ़ी और मूंछधारी लेनिन चिर निद्रा में सो रहे हैं.

 रूस के आधुनिक निर्माता पुतिन !

 सोवियत संघ के जमाने में गुप्तचर सुरक्षा एजेंसी ‘केजीबी’ (कोमिटेट गोसुदरस्टवेनवेय बीजोपासनास्टी यानी राजकीय सुरक्षा समिति) में वरिष्ठ अधिकारी रहे पुतिन को आधुनिक रूस का निर्माता भी कहा जाता है. वह संयुक्त रूस पार्टी के अध्यक्ष और 1999 में रूस के प्रधानमंत्री बने. 2000 में उन्हें रूस का राष्ट्रपति चुना गया. तब से अभी तक वह लगातार रूस के प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति के पद पर बने हुए हैं (रूस के संविधान में संशोधन करवाकर उन्होंने 2036 तक राष्ट्रपति बने रहने का इंतजाम करवा लिया है). हालांकि अब उनके खिलाफ भी असंतोष के स्वर तेज होने लगे हैं.

 बहरहाल, 24 मई, 2005 को डॉ. कलाम ने पुतिन द्वारा आयोजित राजकीय भोज के अवसर पर उन्हें अपनी एक ताजा लघु कविता भेंट की जिसे उन्होंने उसी दिन द्वितीय विश्व युद्ध में शहीद सैनिकों की याद में बने स्मारक पर एक अनाम शहीद की मजार के सामने तस्वीर बना रहे युगल को देखकर लिखी थी. इस कविता में उन्होंने जीवन को उस मिथकीय पक्षी ‘फीनिक्स’ की तरह बताया, जो अपनी ही राख (भस्मियों) से जीवित हो उठती है,

"Life is a phoenix, can rise from ashes

Presents a future at challenging situations

This altar of ashes is fountain of new life

War was thrusted, martyrdom shined

Memories of soldiers ignite beauties of life

Phoenix is a metaphor of life in its action

Ashes remind us to celebrate greatness of those lives."  


 पुतिन के राजकीय रात्रिभोज के अवसर पर डा. कलाम का स्वागत, फिल्म ‘श्री 420’ के मशहूर गाने, ‘मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी. सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है, हिन्दुस्तानी.’ और फिल्म ‘अंदाज’ के गाने, ‘जिन्दगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना.’ के साथ हुआ. इस अवसर पर श्री पुतिन को संबोधित अपने अभिभाषण में डा. कलाम ने कहा, “सच्चे और घनिष्ठ मित्रों के बीच आकर सदैव अत्यंत प्रसन्नता होती है. रूस हमारा पुराना और सच्चा मित्र है. परस्पर विश्वास भारत और रूस के बीच संबंधों को आकार प्रदान करता है. हमारे कार्यनीतिक संबंध राजनीतिक सहमति पर आधारित हैं क्योंकि यह संबंध स्थाई हैं और सभ्यता, इतिहास, भूगोल और संस्कृति से जुड़े हुए हैं. हम एक दूसरे की स्थिरता, एकता और अखंडता के प्रति वचनबद्ध हैं. जैसा कि हम भारत और रूस में ऐतिहासिक परिवर्तन देख रहे हैं, दोनों देशों की सरकारें स्थिरता, समृद्धि, शांति और न्याय के लिए जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप इन परिवर्तनों के माध्यम के रूप में कार्य कर रही हैं. विविधता, धर्मनिरपेक्षता और बहुलवाद दोनों देशों की ताकत हैं. हम अपने-अपने देशों के बहुसांस्कृतिक, बहुजातीय और बहुधर्मी गुणों को महत्व व प्रोत्साहन देते हैं. इन साझे आदर्शों से हम एक दूसरे की चिंताओं और आकांक्षाओं को समझ सकते हैं और साझे उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बहुपक्षीय मंचों पर मिलकर काम कर सकते हैं.’’

 उन्होंने कहा कि 21वीं सदी नई चुनौतियां पैदा कर रही है. इस बढ़ते हुए वैश्वीकृत विश्व में शांति व समृद्धि को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता. भारत और रूस की साझेदारी ने अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा में योगदान दिया है. वास्तव में शांति के लिए एक पक्की और स्थाई जिम्मेदारी सुनिश्चित करने का समय आ गया है. हमारे विचारों में उल्लेखनीय समानता और बरसों से जांची-परखी मैत्री से हम राष्ट्रीय उद्यम के सभी क्षेत्रों में सहयोग की ओर बढ़ सकेंगे. हमारी आर्थिक समृद्धि और आपसी हित व्यापार, निवेश, संयुक्त अनुसंधान और विकास में हमारी घनिष्ठ साझेदारी तथा निरंतर एक-दूसरे दूसरे से जुड़ने और वैश्वीकृत विश्व में अवसरों का पूरा लाभ उठाने पर निर्भर करते हैं.
 डा. कलाम ने कहा, “ऊर्जा संसाधनों की खोज भारत की एक उच्च प्राथमिकता है. सखालिन तेल क्षेत्र में भारत का निवेश और कुडनकुलम नाभिकीय विद्युत संयंत्र में रूस का घनिष्ठ सहयोग, दोनों देशों द्वारा इस क्षेत्र को दी गई प्राथमिकता का सूचक है. राष्ट्रपति महोदय, हमें परस्पर हित और दीर्घकालिक सहक्रिया वाले क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने वाले साधनों की लगातार सक्रिय खोजबीन करनी चाहिए. हमारे द्विपक्षीय संबंधों में सूचना और संचार प्रौद्योगिकियां, जैव प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक, बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं अनन्वेषित क्षेत्र हैं. इन क्षेत्रों में हमारे परस्पर हित के अवसरों के लाभ उठाने से विकास के साझा लक्ष्यों को मजबूती मिलेगी. रूस अनेक महान वैज्ञानिक विचारों और प्रौद्योगिक नवप्रवर्तनो की जन्मभूमि रहा है. हम अपने अनुसंधान प्रयासों में एक साझीदार की भूमिका निभाना चाहते हैं. हमारा विश्वास है कि परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और विज्ञान के अन्य अग्रणी क्षेत्रों के शांतिपूर्ण प्रयोग में हमारे सहयोग से प्रकृति के प्रति मानव की जानकारी बहुत समृद्ध हो सकती है और लाखों लोगों के जीवन को सुधारने के लिए प्रौद्योगिकियों में कुशलता प्राप्त हो सकेगी.”

रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ डा. कलाम की गुफ्तगू
रात्रिभोज से पहले 24 मार्च को ही मास्को में डा. कलाम ने ऐतिहासिक किले ‘क्रेमलिन’ में स्थित राष्ट्रपति भवन के ‘ग्रीन हाल’ में राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ द्विपक्षीय बातचीत की. बाद में दोनों राष्ट्राध्यक्षों ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उनकी बातचीत के केंद्र में यूरेशिया और समूचे विश्व में शांति और स्थिरता सुनिश्चत करना था. संयुक्त बयान में कहा गया, “दोनों देश एक ऐसी विश्व व्यवस्था के पक्षधर हैं जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहमत कानूनों, परस्पर सम्मान और हितों की सुरक्षा के सिद्धांत पर आधारित है. छोटे हों अथवा बड़े, सभी मुद्दों का समाधान बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के आपसी बातचीत के जरिए किया जाना चाहिए.

डा. कलाम को मिली प्रोफेसर की उपाधि

  डा. कलाम मास्को विश्वविद्यालय में भी गये. उन्होंने अकादमी ऑफ साइंस में जाकर रूसी वैज्ञानिकों से मुलाकात की. अकादमी ने उन्हें प्रोफेसर की मानद उपाधि प्रदान की. अकादमी के अध्यक्ष ओसिपोव ने उन्हें विलक्षण प्रतिभा का धनी राष्ट्राध्यक्ष बताया. डा. कलाम ने वहां वैज्ञानिकों से भूमंडल के सामने आ रही भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा की चुनौतियों का सामना करने, इसका पूर्वानुमान लगाने और इनसे बचाव के उपाय ढूंढने का आह्वान भी किया. उन्होंने ड्युमा को भी संबोधित किया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता की वकालत मजबूती से करते हुए रूस का सक्रिय समर्थन भी मांगा. उन्होंने वहां बताया कि परमाणु शक्ति संपन्न देशों से घिरे होने की वजह से भारत के भी परमाणु संपन्न राष्ट्र बनने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था. उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत कभी भी महाविनाश के हथियारों का प्रसार नहीं करेगा.

 डा. कलाम भारत में हुई खरीद के लिए बहुचर्चित सुखोई विमान बनानेवाली कंपनी के डिजाइन सेंटर में भी गए. ओरिएंटल स्टडीज के तहत इंडोलॉजी के रूसी छात्रों और शिक्षकों को भी संबोधित करते हुए उन्होंने पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंधों में सुधार को बेहद महत्वपूर्ण करार दिया. इंडोलॉजी के रूसी छात्रों ने डा. कलाम के सम्मान में वीर तुम बड़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो' पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किया. 

बिहार विधानसभा भंग करने के विवादित फैसले पर डा. कलाम की मुहर

 मास्को प्रवास के दौरान पहली रात को ही डा. कलाम ने बिहार विधान सभा भंग करने के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्ववाली तत्कालीन केंद्र सरकार के विवादित फैसले पर मुहर भी लगायी थी. इसके लिए उनकी बहुत आलोचना भी हुई थी. बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उस अधिसूचना को रद्द कर दिए जाने के बाद उनकी और ज्यादा किरकिरी हुई थी. हालांकि बाद में डा. कलाम के प्रेस सचिव एस एम खान ने बताया था कि उन्होंने अधिसूचना पर बहुत दबाव में अनिच्छापूर्वक हस्ताक्षर किया था. रविवार को मास्को पहुंचने की पहली रात वह सो नहीं सके थे. आधी रात को उनके पास बिहार विधानसभा भंग करने के केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले पर हस्ताक्षर करने और वापस फैक्स करने का प्रस्ताव आ गया था. डा. कलाम ने देर रात अपने सचिव पी एम नायर को होटल केम्पिंस्की के अपने कमरे में बुलाकर मंत्रणा की. मंत्रिमंडल के फैसले के साथ ही बिहार विधानसभा को भंग करने की राज्यपाल बूटा सिंह की सिफारिश मंगाकर देखी थी. बकौल खान, डा. कलाम मंत्रिमंडल की उक्त सिफारिश पर हस्ताक्षर करने को तैयार नहीं थे. हस्ताक्षर करने से पहले उन्होंने इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर अपने विधिक एवं संवैधानिक सलाहकारों से गहन मंत्रणा की थी. उनके सलाहकारों ने बताया था कि अगर डा. कलाम मना कर देंगे और मंत्रिमंडल उसी प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कर दोबारा उनके पास भेजेगा तो उन्हें उस पर हर हाल में हस्ताक्षर करना ही होगा. बकौल खान, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अधिसूचना रद्द कर दिए जाने के बाद डा. कलाम ने अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि उन्हें हस्ताक्षर नहीं करना चाहिए था. उन्होंने उस समय राष्ट्रपति पद छोड़ने का मन भी बना लिया था. इस संबंध में उन्होंने अपने भाई से भी परामर्श किया था. लेकिन यह समझाए जाने पर कि उनके त्यागपत्र से देश में संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है, उन्होंने त्यागपत्र देने का फैसला बदल दिया था. हालांकि पूरी यात्रा के दौरान डा. कलाम ने मीडिया के साथ इस प्रकरण पर कोई चर्चा नहीं की. गौरतलब है कि बिहार के तत्कालीन राज्यपाल सरदार बूटा सिंह ने बिहार विधानसभा को भंग करने की सिफारिश की थी जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल ने मंजूर कर स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति डा. कलाम के पास भेज दिया था.  

 मायकोव्सकाया मेट्रो स्टेशन

मास्को प्रवास के दौरान हम ऐतिहासिक एवं विश्व प्रसिद्ध मायकोव्सकाया मेट्रो स्टेशन पर भी गए. सेंट्रल मास्को के ट्वेर्सकोय जिले में स्थित यह मेट्रो स्टेशन 1935 में बनी मास्को मेट्रो का विस्तार है. द्वितीय विश्व युद्ध से पहले महान रूसी कवि ब्लादिमीर मायकोव्सकी के नाम पर बना यह मेट्रो स्टेशन इंजीनियरिंग एवं स्टालिनवादी स्थापत्य का विलक्षण नमूना है. इसे 11 सितंबर 1938 को चालू किया गया. जमीन की सतह से तकरीबन 33 मीटर नीचे सात तल्लों तक बने इस मेट्रो स्टेशन के प्लेटफार्मों पर जाने के लिए लिफ्ट के साथ ही स्केलेटर यानी स्वचालित सीढ़ियों का पुख्ता इंतजाम था. लोग हाथ में रखी पुस्तक पढ़ते हुए आराम से अपने वांछित प्लेटफार्म की ओर चले जा रहे थे. हर तल पर बने प्लेटफार्म पर अलग-अलग दिशाओं और गंतव्यों की ओर जानेवाली मेट्रो रेल गाड़ियों की सूचना संकेतकों के जरिए बखूबी दी जा रही थी. बताया गया कि द्वितीय विश्व युद्ध के समय नाजी फौजों के युद्धक विमानों से होनेवाली बमबारी से बचने के लिए सबसे नीचे, सातवें तल के प्लेटफार्म को कम्युनिस्टों ने अपनी शरणस्थली के रूप में इस्तेमाल किया था. हमें बताया गया कि जोसेफ स्टालिन ने सात नवंबर 1941 को ऐतिहसिक अक्टूबर क्रांति की वर्षगांठ का समारोह इस मेट्रो स्टेशन के भव्य सेंट्रल हाल में ही किया था. इसी सेंट्रल हाल में स्टालिन ने कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के सम्मेलन को भी संबोधित किया था.  

लेनिनग्राद फिर से बन गया सेंट पीटर्सबर्ग

 25 मई को हम लोग डा. कलाम के साथ रूस की सांस्कृतिक राजधानी कहे जानेवाले ऐतिहासिक शहर सेंट पीटर्सबर्ग पहुंच गए. बाल्टिक सागर पर खूबसूरत नीवा नदी के किनारे बसे रूस के इस दूसरे सबसे बड़े मगर ऐतिहासिक बंदरगाह शहर की स्थापना रूसी साम्राज्य के सम्राट जार पीटर महान ने 1703 में की थी. 1712 से लेकर अगले दो सौ साल तक यह शहर रूसी साम्राज्य की राजधानी रहा. इस शहर का नाम भी कई बार बदला. शुरू में इसे ‘सेंट पीटर्सबर्ग’ का नाम दिया गया जबकि बाद में इसे ‘पेट्रोग्राद’ और बोलशेविक क्रांति के बाद इसका नाम ‘लेनिनग्राद’ रखा गया था, लेकिन पेरेस्त्रोइका और ग्लासनोश्त के बाद इस शहर का नाम फिर से ‘सेंट पीटर्सबर्ग’ रख दिया गया.

 सेंट पीटर्सबर्ग की ख्याति खूबसूरत और चौड़ी सड़कों, भव्य महलों और चर्चों तथा कई जगहों पर चौड़ी नहर की शक्ल में कल कल बहती नीवा नदी के खूबसूरत किनारों के लिए भी है. नीवा नदी इस शहर में घूम घूम कर बहती है. दुनिया भर में विशालतम कहे जानेवाला हर्मिटेज म्युजियम भी यहीं, सेंट पीटर्सबर्ग में है.

विशालकाय हर्मिटेज म्युजियम

  रूस में कला और संस्कृति की राजधानी कहे जानेवाले इस शहर में डा. कलाम ने दुनिया के सबसे विशाल कहे जानेवाले हर्मिटेज फाइन आर्ट्स म्यूजियम में भारतीय वीथी (गैलरी) का अवलोकन किया. म्यूजियम में पैदल चलते समय डा. कलाम की तेज चाल गजब की थी. साथ चल रहे जगदीश टाइटलर तो थक कर रास्ते में एक जगह कुर्सी मंगाकर बैठ गए लेकिन कलाम नहीं रुके. लौटते समय डा. कलाम ने टाइटलर को बैठे देख मुस्कराकर पूछा, ‘क्या यह म्यूजियम आपको आश्चर्यजनक और विलक्षण नहीं लगा!’ झेंप मिटाते हुए टाइटलर बोले, ‘हां, क्यों नहीं. वाकई यह म्युजियम अद्भुत और बेमिसाल है.’

हर्मिटेज म्युजियम के बाहर तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर के साथ मीडिया कर्मी; बाएं से विशेश्वर भट्ट, राजेश सिन्हां, शिबी अलेक्स चंडी, रितु सरीन, हम और कुमार राकेश
'स्टेट हर्मिटेज फाइन आर्ट्स म्यूजियम' के बारे में बताया गया कि इसमें विंटर पैलेस, स्माल हर्मिटेज, दि ओल्ड हर्मिटेज और दि न्यू हर्मिटेज के नाम से चार बड़े भवन हैं. विंटर पैलेस अक्टूबर 1917 में बोल्शेविक क्रांति के होने तक रूसी सम्राटों के राजमहल के रूप में इस्तेमाल होता था. विंटर पैलेस 1754 में बना जबकि स्माल हर्मिटेज 1767, ओल्ड हर्मिटेज 1784 और न्यू हर्मिटेज 1852 में बना. हर्मिटेज म्युजियम की शुरुआत 1767 में तत्कालीन सम्राट जार के निजी कलेक्शन के 3000 आइटम्स एवं 225 तस्वीरों के साथ, ‘म्यूजियम फार एंपररके रूप में की गई. आज यहां तकरीबन 35 लाख आइटम रखे गए हैं. बताया गया कि इस म्युजियम में रखी गई तस्वीरों, कलाकृतियों एवं अन्य ऐतिहासिक धरोहरों को देखने के लिए कोई अपनी सामान्य चाल से चलते हुए अगर एक प्रदर्शनी के पास एक मिनट के लिए भी रुके तो पूरा म्युजियम देखने के लिए उसकी पूरी जिंदगी भी उसके लिए नाकाफी लगेगी. इसमें दुनिया भर से प्रायः सभी देशों और कलाकारों की सामग्री देखने को मिलेगी.
भारतीय वीथिका में मुगल मिनिएचर पेंटिंग्स
, बौद्ध स्कल्पचर्स, मथुरा एवं गंधारा स्कल्पचर्स के सैंपल्स, कुषाण काल, गुप्त काल, प्रतिहार एवं मुगल काल की सामग्री भी समाहित है. म्युजियम के निदेशक डा.मिखाइल पिओत्रोव्सकी ने बताया कि इस म्युजियम को दो बार भीषण विभीषिकाओं का सामना करना पड़ा था. 1837 में भीषण आग और फिर विश्व युद्ध के समय नाजियों की बम बारी को भी यह म्युजियम झेल चुका है. आग के समय म्युजियम में रखी गई सामग्रियों को सुरक्षित हटाकर स्क्वायर पैलेस में रखा गया था जबकि नाजियों की बमबारी के समय म्युजियम में रखी सामग्रियों को अन्य पड़ोसी शहरों में पहुंचा दिया गया था.  
  

 सेंट पीटर्सबर्ग में डा. कलाम का स्वागत गवर्नर वेलेंटिना इवानोवा ने किया. वहां डा. कलाम इंस्टीट्यूट आफ लेजर ईक्विपमेंट टेक्नालॉजी, आर्कटिक एवं अंटार्कटिक रिसर्च इंस्टीट्यूट में भी गए. वहां भी उनकी चिंता और जिज्ञासा का विषय भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान और उनसे बचाव के एहतियाती उपायों को लेकर ही था. उन्होंने वहां वैज्ञानिकों के साथ बातचीत में उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव में ग्लेशियरों के पिघलने, बर्फ की भारी चट्टानों के खिसकने-धसकने और ओजोन की परत की स्थिति आदि के बारे में दोनों देशों के अनुसंधान केंद्रों द्वारा उपलब्ध सूचनाओं के आदान-प्रदान पर जोर दिया. संस्थान के निदेशक इवान फ्रोलोव ने डा. कलाम को मौसम के बदलावों, समुद्री विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे अनुसंधान, उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव पर हो रहे प्राकृतिक घटनाक्रमों और बदलावों के अनुसंधान आदि के बारे में पावर प्रेजेंटेशन के जरिए अवगत कराया. वैज्ञानिकों के सारगर्भित प्रेजेंटेशन अपने तो पल्ले नहीं पड़ रहे थे. हम और कई अन्य पत्रकार साथी भी झपकियां लेते रहे जबकि डा. कलाम लगातार एक कुशाग्र विद्यार्थी के रूप में सुनते और नोट्स भी लेते जा रहे थे. उन्होंने अंटार्कटिका में शोध के मामलों में भारत एवं रूस के परस्पर सहयोग की संभावनाओं पर भी विचार किया. 


नोटः अगले सप्ताह डा. कलाम के साथ विदेश भ्रमण के दूसरे चरण में चार दिनों की स्विट्जरलैंड यात्रा पर विशेष एवं रोचक संस्मरण. वहां ऐसा क्या हुआ कि राष्ट्रपति डा. कलाम को लेकर हमारा सिर गर्व से ऊंचा हो गया.