तो मुंबई पर आतंकवादी हमले के गुनहगार आमिर अजमल कसाब की फांसी के तीन महीने के भीतर ही हमारी संसद पर आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद के आतंकी अफजल गुरु को भी शनिवार की सुबह राजधानी दिल्ली के तिहाड़ जेल नंबर तीन में फांसी पर लटका दिया गया. एक बार फिर बाहरी दुनिया और यहां तक कि मीडिया के खबरखोजी दस्तों को भी इसकी भनक तक नहीं लगने दी गई. ठीक वैसे ही जैसे मुंबई पर आतंकी हमले के गुनहगार, पाकिस्तानी नागरिक आमिर अजमल कसाब की फांसी के वक्त बीते 21 नवंबर को हुआ था. बाहरी दुनिया को अफजल गुरु को फांसी पर लटकाए जाने और उसे जेल में ही दफना दिए जाने के बाद ही इसकी सूचना खबरिया चैनलों के जरिए प्रसारित की जा सकी. बीते 21 जनवरी को गृह मंत्रालय ने अफजल गुरु की दया याचिका निरस्त करने की सिफारिश के साथ उसकी फाइल राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास भेजी. उन्होंने तीन फरवरी को दया याचिका निरस्त करते हुए फाइल वापस गृह मंत्रालय के पास भेज दी. इसके बाद फांसी दिए जाने के बाद के फलाफल को लेकर सरकार के बड़े लोगों और गुप्तचर एजेंसियों के आकओं के बीच चला गुप्त मंत्रणाओं का दौर, इस सख्त निर्देश के साथ कि किसी को भी कानोंकान भनक नहीं लगने पाए. गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के उस पर अगले दिन ही हस्ताक्षर कर देने के बाद ही फांसी की तिथि भी मुकर्रर कर दी गई. एक दिन पहले यानी शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को भी सूचना दे दी गई, इस निर्देश के साथ कि राज्य में किसी तरह की गलत प्रतिक्रिया न हो, इसे उन्हें ही देखना है. इससे पहले अफजल गुरु की फांसी की प्रतिक्रिया में कश्मीर घाटी में भारी हिंसा की आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं. कहा तो यह भी जा रहा है कि अफजल गुरु के परिजनों, उसकी बीवी तबस्सुम को भी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा अफजल गुरु को न सिर्फ उसके पति को फांसी दिए जाने के बारे में बल्कि क्षमा प्रदान करने के लिए दायर की गई उसकी दया याचिका तीन फरवरी को निरस्त करने की सूचना भी नहीं दी गई. कई साल जेल काटने के बाद संसद पर आतंकी हमले के आरोपों से बरी कर दिए गए शिक्षक एसआर गिलानी के अनुसार जिस वक्त अफजल गुरु को फांसी पर लटकाया जा रहा था, तबस्सुम श्रीनगर के एक नर्सिंग होम में ड्यूटी पर थी. गिलानी का आरोप है कि उसकी पत्नी और परिवार वालों को उसके अंतिम संस्कार के अधिकार से भी महरूम किया गया. हालांकि गृह मंत्रालय का दावा है कि अफजल गुरु के परिवार वालों को सूचना दे दी गई थी.
मृत्यु दंड के पक्ष और विपक्ष में भी तर्क दिए जा सकते हैं और दिए जाते भी रहे हैं. निजी तौर पर हमारे जैसे लोगों का भी मानना रहा है कि मृत्युदंड किसी समस्या का सकारात्मक समाधान नहीं है. मौत का जवाब मौत नहीं हो सकती, अन्यथा फांसी दिए जाने की इतनी घटनाओं के बाद उस तरह के जघन्य अपराध की घटनाओं में कमी आनी चाहिए थी जिसके लिए किसी को फांसी दी जाती है. ऐसा देखने में तो नहीं मिलता. लेकिन देश की मौजूदा न्याय व्यवस्था में फांसी का प्रावधान है. लिहाजा देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई पर और देश की अस्मिता और संप्रभुता की प्रतीक संसद पर आतंकी हमलों के गुनहगारों को फांसी दिए जाने का स्वागत ही किया जाना चाहिए. इस दृष्टि से देखें तो कसाब के बाद अफजल गुरु को फांसी पर लटका कर दिया गया संदेश बहुत स्पष्ट है, भारत आतंकवाद और आतंकवादियों को कतई बरदाश्त करने की स्थिति में नहीं है. न्यायिक औपचारिकताओं को पूरा करने में देर लग सकती है लेकिन इतना साफ़ है कि इस तरह की घटनाओं में परोक्ष अथवा प्रत्यक्ष रूप से शामिल और उनके सूत्रधारों को उनके किए की सजा मिलेगी. और इस मामले में किसी तरह का रंग-धर्म भेद भी नहीं होगा. कसाब के बाद अफजल गुरु को भी सूली पर लटका कर कांग्रेस के नेतृत्ववाली यूपीए सरकार ने अपने उन ‘राष्ट्रवादी’ किस्म के राजनीतिक विरोधियों का मुंह भी बंद कर देने की कोशिश की है जो आए दिन एक खास तरह के आतंकवादियों के साथ कांग्रेस के बड़े नेताओं के ‘रिश्ते’ घोषित करते और उनके प्रति नरमी बरतने के आरोप लगाते थकते नहीं थे. अब उनकी बोलती बंद सी है. उन्हें लगता है कि उनके हाथ से एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा फिसल गया है. वे लोग अफजल गुरु की फांसी को राष्ट्रीय हित में मानते हुए भी देर से की गई कार्रवाई करार दे रहे हैं.
यकीनन, 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर आतंकी हमले के दौरान मौके पर पकडे़ गए पाकिस्तानी आतंकी कसाब को चार साल के भीतर ही फांसी दे दी गई जबकि अफजल गुरु को सूली पर लटकाने में 11 साल से कुछ अधिक का समय लग गया. लेकिन इसके पहले हर तरह की कानूनी और न्यायिक औपचारिकताएं पूरी करनी जरूरी थीं. संसद पर आतंकी हमला 13 दिसंबर 2001 को उस समय हुआ था जब दोनों सदनों की कार्यवाही 40 मिनट के लिए स्थगित की गई थी. अधिकतर मंत्री, नेता और सांसदों के साथ ही संसद की कार्यवाही को नियमित रूप से कवर करने वाले मीडिया के लोग संसद भवन में ही थे. हमले में शामिल पांच आतंकी मौके पर ही मार गिराए गए थे. कुल नौ लोग इस हमले के शिकार हुए थे. हमले के मुख्य साजिशकर्ता के रूप में पहिचान स्पष्ट हो जाने के बाद दो दिन के भीतर ही पेशे से डाक्टर, जम्मू-कश्मीर में उत्तरी सोपोर जिले के निवासी अफजल गुरु को कैद कर लिया गया था. विशेष अदालत से साल भर बाद ही उसे मृत्युदंड सुनाया गया था, उसके साल भर बाद दिल्ली उच्न्यायालय ने और तीन साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी फांसी की सजा पर अपनी मुहर लगा थी. लेकिन इस देश में कानून और पुख्ता न्याय की व्यवस्था है. अफजल गुरु की पत्नी ने तत्कालीन राष्ट्रपति डा. ए पी जे अब्दुल कलाम के पास अपने पति को क्षमा दान के लिए दया याचिका दी थी. उन्होंने फाइल गृह मंत्रालय के पास भेज दी थी. गृह मंत्रालय ने उस पर दिल्ली सर्कार की राय मांगी, उस पर कोई फैसला हो पाता तब तक डा. कलाम की जगह प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति बन गईं. उनके पास भी अफजल गुरु की दया याचिका अरसे तक लंबित रही. गृह मंत्रालय ने 10 अगस्त 2011 को उसे फांसी दिए जाने की सिफारिश के साथ उसकी फाइल राष्ट्रपति भवन वापस भेज दी. राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब मुखर्जी ने जिस तरह से कसाब के मामले में तत्काल फैसला किया उसी गति से उन्होंने पिछले 16 नवंबर को अफजल की दया याचिका पुनर्विचार के लिए एक बार फिर गृह मंत्रालय के पास भेज दी ताकि किसी को किसी तरह की नुक्ताचीनी का मौका नहीं मिल सके. कसाब की फांसी के बाद देश के किसी भी हिस्से में किसी तरह की अवांछित प्रतिक्रिया नहीं होने से उत्साहित गृह मंत्री शिंदे ने कहा कि जल्दी ही अफजल गुरु का फैसला भी हो जाएगा. 21 जनवरी को उन्होंने अफजल गुरु की दया याचिका निरस्त करने की सिफारिश के साथ फाइल राष्ट्रपति भवन भिजवा दी और फिर राष्ट्रपति मुखर्जी को फैसला करने में देर नहीं लगी.
इसे महज संयोग ही कहेंगे अथवा कुछ और कि आमिर अजमल कसाब को संसद का पिछला शीतकालीन सत्र शुरू होने के ठीक एक दिन पहले फांसी दी गई और अब अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के कुछ ही दिन बाद 21 फरवरी से संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला है. बजट सत्र के शुरुआती दिनों में सरकार और खासतौर से गृह मंत्री शिंदे के खिलाफ मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और उसे पर्दे के पीछे से संचालित करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर चलाने से संबंधित विवादित बयान को लेकर आक्रामक तेवर अपनाने वाले विपक्ष के मंसूबों पर कुछ हद तक पानी फेरा जा सकेगा. और फिर इस साल कुछ ही दिनों-महीनों के भीतर नौ राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं. संभावना तो लोकसभा के चुनाव भी इसी साल कराए जाने की व्यक्त की जा रही हैं. ऐसे में कांग्रेस यकीनन कसाब और अफजल गुरु की फांसी को राजनीतिक रूप से भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. यही नहीं उसे मालेगांव और हैदराबाद की मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोटों के सिलसिले में गिरफ्तार प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित, असीमानंद एवं इस तरह के कई अन्य आरोपियों के संघ परिवार और उससे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष से जुड़े हिंदू संगठनों और नेताओं की पृष्ठभूमि के मद्देनजर आतंकवादियों की कतार में खड़ा कर पाने और उनके खिलाफ आक्रामक होने का मौका मिल सकेगा. जहां तक इस तरह की आतंकवादी घटनाओं के लिए जिम्मेदार अथवा गुनहगार लोगों के लिए मृत्यु दंड का सवाल है, सरकार एक बार फिर पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों के मामले में सरकार एक बार फिर कसौटी पर होगी.
10 फरवरी 2013 को लोकमत समाचार में प्रकाशित
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