कलाम के साथ विदेश भ्रमण-3
बुल्गारियाः वामपंथ से दक्षिणपंथ की ओर!
जयशंकर गुप्त
राष्ट्रपति के रूप में डा. ए पी जे अब्दुल कलाम साहब की आठ दिनों की इस पहली विदेश यात्रा का अंतिम पड़ाव कई हजार वर्षों के इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को सीने में संजोए बुल्गारिया था. 22 अक्टूबर को सूडान की राजधानी खारतूम में दोपहर के भोजन के बाद हम लोग बुलगारिया की राजधानी सोफिया के लिए रवाना हो गये. स्थानीय समय के अनुसार शाम के 7.10 बजे हम सोफिया अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे. सूडान से बुल्गारिया जाने के रास्ते में डा. कलाम ने विमान में कहा, “सुना है कि बुल्गारिया और इसकी राजधानी सोफिया बहुत खूबसूरत है. सोवियत संघ के जमाने में उसके अभिन्न एवं महत्वपूर्ण सहयोगी देश रहे बुल्गारिया के साथ भारत के रिश्ते हमेशा से बहुत करीबी और प्रगाढ़ रहे हैं. नए संदर्भों में हम इन रिश्तों को और प्रगाढ़ बनाने के इच्छुक हैं.” उन्होंने बताया कि सोवियत संघ के विखंडन के बाद वह बुल्गारिया में हुए बदलावों, औद्योगिक प्रगति और सांस्कृतिक माहौल का जायजा लेना और समझना चाहते हैं.
दक्षिण पूर्व यूरोप में स्थित
बुल्गारिया की सीमाएं उत्तर में रोमानिया से, पश्चिम में सर्बिया और मेसेडोनिया
से, दक्षिण में
यूनान और तुर्की से मिलती हैं. पूर्व में इस देश की सीमाएं काला
सागर निर्धारित करता है. कला और तकनीक के अलावा राजनैतिक
दृष्टि से भी बुल्गारिया का वजूद पांचवीं सदी से नजर आने लगता है.
यूनान और
इस्ताम्बुल के उत्तर में बसा बुल्गारिया मानव बसावट की दृष्टि से बहुत पुराना देश
है. मोंटाना के
पास मिले 6800 साल पुराने एक पट्टिकालेख में चार पंक्तियों में कुछ, 24
चिह्न बने
पाए गए हैं-इसको पढ़
पाना अभी तक संभव नहीं हुआ है, लेकिन इससे ये अनुमान लगाए जाते
हैं कि यहां उस समय मानव रहते होंगे. 1972 में काला सागर के तट पर स्थित
वार्ना में सोने का खजाना मिला था जिसपर राजसी चिह्न बने थे.
इससे भी
अनुमान लगाया जाता है कि बहुत पुराने समय में भी यहां कोई राज्य या सत्ता रही होगी-हांलांकि इस राज्य के जातीय मूल
का पता नहीं चल पाया है.
सामान्यतया थ्रेसियों को
बुल्गारों का पूर्ववर्ती माना गया है. थ्रेस के लोगों ने ट्रॉय की लड़ाई (1200
ईसा पूर्व
के आसपास) में हिस्सा
लिया था. इसके बाद 500
ईसा पूर्व
तक उनका एक साम्राज्य स्थापित हुआ था. सिकंदर ने 332
ईसा पूर्व
में इस पर अधिकार कर लिया और 46 ईस्वी में रोमनों ने.
इसके बाद
एशिया से कई समूहों का यहां आगमन आरंभ हुआ. स्लाव जाति के लोगों ने 581
में
बिजेन्टाइन के रोमन साम्राज्य के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर कर लिया.
पहले
बुल्गारियन साम्राज्य ने न केवल बाल्कन क्षेत्र बल्कि पूरे पूर्वी यूरोप को अनेक
तरह से प्रभावित किया. बिजेन्टाइन आक्रमणों से सन 1018 तक बुल्गार साम्राज्य का अंत हो
गया. बुल्गारियन
साम्राज्य के पतन के बाद इसे ओटोमन शासन के अधीन कर दिया गया.
सन् 1185
से 1360
तक दूसरे
बुल्गार साम्राज्य की सत्ता कायम रही. उसके बाद उस्मानी (ओटोमन) तुर्क लोगों ने इस पर अधिकार कर
लिया. सन 1877
में रूस ने
ओटोमन साम्राज्य पर हमला कर उन्हें हरा दिया. इस तरह से 1878
में तीसरे
बुल्गार साम्राज्य का उदय हुआ. 1880 में तुर्कों के खिलाफ चलाए गए
अभियान में 30 हजार तुर्क
बुल्गारिया छोड़कर तुर्की चले गए. इससे दो दशक पहले ग्रीस में भी
ऐसा ही अभियान चला था.
दूसरे विश्व युद्ध के समय बुल्गारिया साम्यवादी राज्य और इस तरह से सोवियत संघ का अभिन्न सहयोगी देश बन गया था. लेकिन 1989 में बदलाव की बयार यहां भी बहनी शुरू हो गई थी. 1989 की शुरुआत में बुल्गारिया में कट्टरपंथियों की जगह नरमपंथी कम्युनिस्टों का शासन हुआ. और फिर 1989-90 में ही ग्लासनोश्त एवं पेरेस्त्रोइका के बाद यहां भी साम्यवादियों का एकाधिकार समाप्त हो गया. और बुल्गारिया 2004 से नाटो तथा 2007 से यूरोपीय यूनियन का सदस्य बन गया. फिर तो सब कुछ बदलने लगा.
भारत-बुल्गेरियाई संबंध पारंपरिक रूप से बहुत घनिष्ठ
और मैत्रीपूर्ण रहे हैं. दोनों देशों
के बीच राजनयिक संबंध 1954 में स्थापित
किए गए थे. समय-समय पर उच्च स्तरीय यात्राओं के आदान-प्रदान ने इन द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत और
व्यापक आधार प्रदान किया है. राष्ट्रपति डॉ.
कलाम से पहले भारत से उपराष्ट्रपति डॉ. एस.
राधाकृष्णन (1954), प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (1967), राष्ट्रपति वीवी गिरि (1976), राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी (1980), प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (1981), राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन (1985), शंकर दयाल शर्मा (1994) और उप राष्ट्रपति
कृष्णकांत (2000) ने बुल्गारिया की उच्च स्तरीय यात्राएं की
थीं. बुल्गारिया की तरफ से उनके
राष्ट्रपति टोडर झिवकोव ने 1976 और 1983 में और पीटर स्टोयोनोव ने 1998 में, प्रधान मंत्री स्टैंको टोडोरोव ने 1974 और 1980 में भारत की यात्राएं की थी.
बहरहाल, बुल्गारिया के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्योर्जी परवानोव के आमंत्रण पर सोफिया आए डा. कलाम ने 23 अक्तूबर की सुबह राष्ट्रपति के कार्यालय में अपने समवर्ती परवानोव के साथ अकेले में तकरीबन एक घंटे तक बातचीत की. इससे पहले सेंट अलेक्जेंडर नेवेस्की चौक पर श्री परवानोव ने राजकीय परेड के साथ डा. कलाम का भव्य स्वागत किया.
राष्ट्रपति कार्यालय में श्री परवानोव और डा. कलाम के बीच अकेले में हुई मुलाकात के दौरान ही दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि और कुछ और द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए. बाद में दोनों राष्ट्राध्यक्षों ने संवाददाताओं से बातचीत में दोनों देशों के बीच कृषि, खाद्य प्रसंस्करण के साथ ही सूचना और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर बल दिया. दोनों ने सभी तरह के आतंकवाद को मानव जाति का सबसे बड़ा और घातक दुश्मन करार देते हुए इस अंतर्राष्ट्रीय बुराई को समूल नष्ट करने की प्रतिबद्धता और एकजुटता का इजहार किया. हालांकि बुल्गारिया के राष्ट्रपति परानोव का कहना था कि आतंकवाद को जड़ से मिटाने के लिए इसके सामाजिक, आर्थिक कारणों को जानने, उनका विश्लेषण करने और उनका समाधान ढूंढने की भी जरूरत है.
साथ चल रहीं मार्क्सवादी
कम्युनिस्ट पार्टी की सांसद सरला महेश्वरी बताती हैं, “बुल्गारिया प्रसिद्ध मार्क्सवादी चिंतक और
फासीवाद के विरुद्ध अथक योद्धा ज्योर्जी दिमित्रोव की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है. मैं बहुत उत्सुक थी कि उनके बारे में कुछ जानूं-समझूं. खोजबीन के बाद
मुझे पता चला कि वहां कभी दिमित्रोव का मुसोलियन (समाधिस्थल) था जिसे अब हटा दिया
गया है. मैंने पूछा कि क्या उनके बारे में स्कूलों-कॉलेजों में कुछ पढ़ाया नहीं जाता? जवाब मिला कि पहले पढ़ाया जाता था लेकिन अब नहीं. जवाब देते समय
सोफिया विश्वविद्यालय की एक प्राध्यापिका के चेहरे पर दु:ख की रेखाएं स्पष्ट नजर आ रही थी.’’ सोफिया में डा. कलाम राष्ट्रीय इतिहास संग्रहालय
और आर्ट गैलरी भी देखने गये. राष्ट्रीय इतिहास संग्रहालय 533000 वस्तुओं और सबसे बड़े पुरातात्विक और ऐतिहासिक
संग्रह के साथ बाल्कन के इतिहास के सबसे बड़े संग्रहालयों में से एक है.
23 अक्टूबर की रात को बुल्गारिया
के राष्ट्रपति परवानोव ने डा. कलाम के सम्मान में राजकीय भोज (बैंक्वेट डिनर दिया.
इस अवसर पर डा. कलाम ने अभिभाषण में कहा, “ऐतिहासिक
राजधानी शहर सोफिया में आपके बीच होना मेरे लिए एक सम्मान और खुशी की बात है. प्राचीन देश बुल्गारिया के पास एक लंबा इतिहास और
एक शानदार सांस्कृतिक विरासत है. हम
इसकी साहित्यिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक परंपरा को जानते हैं. इस खूबसूरत शहर के केंद्र में प्रसिद्धि और ज्ञान
के प्रतीक को अपने हाथों में थामे भाग्य की देवी सोफिया की मुकुट (सत्ता का
प्रतीक) धारण किए हुए मूर्ति सही मायने में सभी मानव जाति की आकांक्षाओं का चित्रण
है.”
उन्होंने भारत और बुल्गारिया के साथ
भारत के बहुत पुराने और प्रगाढ़ संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि दोनों देशों में
प्राचीन सभ्यताएं हैं और हमारे इतिहास में कई अन्य समाजों के साथ संपर्क शामिल हैं. हम अपनी संस्कृतियों में अन्य सभ्यताओं के
विभिन्न पहलुओं को आत्मसात करके इसका लाभ उठाने में सफल रहे हैं. इसने विभिन्न धार्मिक, जातीय और भाषाई समूहों से आत्मसात की गई भारत और
बुल्गारिया की बहु-संस्कृति के
विकास को सक्षम बनाया है. यह
हमारी पिछली पीढ़ियों से हमें मिला उपहार है, जिसे हम भविष्य के लिए संरक्षित कर रहे हैं. भारत
और बुल्गारिया का सरकारों और जनता के स्तर पर भी हमेशा से व्यापक संपर्क रहा है. हमारा आपसी सहयोग बहुआयामी है जो राजनीति, व्यापार, अर्थशास्त्र, विज्ञान-प्रौद्योगिकी और संस्कृति के क्षेत्रों
तक फैला हुआ है. यह
संबंध निरंतरता और आपसी समझ पर आधारित है. 1994 में सोफिया और 1998 में नई दिल्ली में राष्ट्रपति के दौरे के आदान-प्रदान ने हमारे संपर्कों को मजबूत और व्यापक
आधार प्रदान किया. मेरी यह यात्रा इसी क्रम में है और मुझे उम्मीद है कि यह हमारे
द्विपक्षीय सहयोग को और अधिक बढ़ाने का काम करेगी. समय आ गया है कि बुल्गारिया और भारत विशिष्ट क्षेत्रों में अपनी मुख्य क्षमताओं की
पहचान करें और समयबद्ध तरीके से संयुक्त डिजाइन, विकास, उत्पादन
और विपणन के लिए महत्व की परियोजनाओं का चयन करें. मुझे खुशी है कि दोनों देशों ने भारत-बुल्गारियाई विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग के
तहत कई वैज्ञानिक अनुसंधान परियोजनाओं की पहचान की है. मैं कह सकता हूं कि इंडो-बुल्गारियाई भागीदारी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है.
नई सहस्राब्दी में, पूरी दुनिया स्वतंत्र और लोकतांत्रिक प्रणालियों
की दिशा में आगे बढ़ रही है. भारत-और
बुल्गारिया इन मूल्यों को साझा करते हैं. पिछले पचास वर्षों और अधिक के अपने स्वयं के
अनुभव में, हमने संसदीय लोकतंत्र को अपने लोगों की
आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए बेहद उपयुक्त पाया है. भारत में, हम अपने आर्थिक सुधारों की दूसरी पीढ़ी के साथ
आगे बढ़ रहे हैं. विज्ञान
और सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, नैनो और जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों
में उल्लेखनीय सफलताओं के साथ भारत की वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में तेजी से
पहचान बढ़ी है. हमने देखा है कि बुल्गारिया ने उदारीकरण की प्रक्रिया
में बड़े कदम उठाए हैं और यह तेजी से एक मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ा है. मुझे यकीन है कि इससे हमारे आर्थिक और वाणिज्यिक
संबंधों को आगे बढ़ाने के अवसर खुलेंगे. दोनों
देशों में शिक्षा से जुड़े उच्च मूल्य और मजबूत मानव पूंजी आधार जिसे हम बनाने में
सफल रहे हैं, निश्चित रूप से पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग को मजबूत करेगा. हमारा
द्विपक्षीय व्यवसाय वर्तमान में बहुत सीमित है. हमें अपने द्विपक्षीय व्यापार को आगामी कुछ
वर्षों में एक अरब डॉलर तक बढ़ाना चाहिए. भारत में, हम मानते हैं कि आर्थिक प्रगति का फल व्यापक रूप
से और विशेष रूप से हमारी आबादी के वंचित तबकों को उपलब्ध
होना चाहिए. दुनिया में गरीबी, बेरोजगारी और बीमारी उन्मूलन के लिए अभी भी बहुत
कुछ किया जाना बाकी है. इस
साझा जिम्मेदारी को वैश्विक समुदाय को समग्रता में निभानी होगी.
इसके साथ ही जैसा कि आप जानते हैं, नई चुनौतियां और खतरे उभरे हैं. वर्तमान में हम जिस गंभीर मुद्दे से जूझ रहे हैं, वह अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद है. आतंकवाद अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को खतरे
में डालने वाला एक प्रमुख कारक बन गया है. ऐसा लगता है कि कोई देश या आबादी इस खतरे से
मुक्त नहीं हैं. इस
खतरे से उत्पन्न खतरों पर भारत और बुल्गारिया दोनों की समान धारणा है. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को ऐसे आतंकवादी कृत्यों
के स्रोतों को अलग-थलग और खत्म करने के लिए ठोस कार्रवाई करनी होगी. किसी भी आधार पर किसी भी आतंकवादी कार्य को उचित
नहीं ठहराया जा सकता है. मुझे
उम्मीद है कि हम संयुक्त रूप से दुनिया से इस बुराई को खत्म
करने के लिए नए सिरे से काम करना जारी रखेंगे. महान बुल्गेरियाई क्रांतिकारी
जॉर्जी रकोवस्की ने लिखा है कि “दुनिया में सबसे पुरानी सभ्यता भारत की थी और
विभिन्न विश्वास और रीति-रिवाज
इससे उत्पन्न हुए थे.” गांधी, टैगोर और नेहरू की रचनाओं का बुल्गारियाई भाषा
में अनुवाद किया गया है जो यहां काफी लोकप्रिय हैं. बुल्गारियाई कवि ह्रिस्तो बोतेव और ह्रिस्तो स्मिरेंस्की
ने भारतीय लेखकों पर प्रभाव डाला है. 19वीं
शताब्दी के दौरान, बुल्गेरियाई
साहित्य ने राष्ट्रीय चेतना और देशभक्ति की भावनाओं को प्रतिबिंबित किया, यही भूमिका हमारे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के
में भी लेखन ने किया था. सांस्कृतिक
क्षेत्र में भी आदान प्रदान जारी है. मुझे पता है कि कई बुल्गेरियाई साहित्य, नृत्य, संगीत
और दर्शन का अध्ययन करने के लिए भारत आते हैं. मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि सोफिया
विश्वविद्यालय का एक अलग इंडोलॉजी विभाग है जो भारत की भाषाओं, इतिहास और दर्शन में पाठ्यक्रम प्रदान करता है.
अपनी ओर से हम सहयोग के कुछ नए क्षेत्रों का
सुझाव दे सकते हैं जिनमें भारत ने अनुभव प्राप्त किया है. इनमें फार्मास्यूटिकल्स, खाद्य प्रसंस्करण, बिजली और निजीकरण के हमारे अनुभव का एक हिस्सा
शामिल हो सकता है. मैं
आशावादी हूं कि आर्थिक और वैज्ञानिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए अधिक से अधिक
भारतीयों और बुल्गारियाई लोगों को एक-दूसरे
के देश में ले जाना होगा और हमारी दोस्ती के बंधन को आगे बढ़ाना होगा.”
प्रकृति की सुरम्य गोद में रिला मोनेस्ट्री
श्रीमती महेश्वरी याद करती हैं, “24 अक्टूबर का दिन बहुत ही यादगार रहा. इस दिन हम लोग प्रसिद्ध रिला मोनेस्ट्री देखने गये. इस मोनेस्ट्री का बहुत गहरा संबंध बुल्गारिया के राष्ट्रीय आंदोलन के साथ रहा है. हेलीकॉप्टर से रिला मोनेस्ट्री का यह रास्ता इतना सुंदर दिखता था कि शब्दों में बयान करना मुश्किल है. रंगों के इतने शेड्स, लाल, भूरी, पीली, हरी, काली, न जाने कितने रंगों की पत्तियों से लदे पेड़ एक अजीब रोमांचक दृश्य पैदाकर रहे थे. मेरी इच्छा हो रही थी कि हमारा हेलीकॉप्टर रुक जाए और हम करीब से जाकर प्रकृति के इस मनोहारी रूप का दर्शन लाभ कर सकें. लेकिन जाहिर है, वहां हेलीकॉप्टर रुक नहीं सकता था.”
जब हेलीकॉप्टर से इस तरह का मनोहारी दृश्य दिख रहा था तो समझा जा सकता है कि हम लोगों ने सड़क मार्ग से क्या अनुभव किया होगा. रास्ते में सड़क के दोनों तरफ जंगली पेड़-पौधे और फूल अपने रंगों से इस तरह की छटा बिखेर रहे थे, मानो समूचे पहाड़ पर किसी ने रंगों के मिश्रण से बेहतरीन पेंटिंग्स की हों. लौटते समय जगह-जगह काफिले को रुकवाकर हम सबने तस्वीरें उतरवाईं.
हरमिट संत इवान रिल्स की स्मृति में नौवीं-दसवीं शताब्दी में बनी इस मोनेस्ट्री में मुख्य पादरी बिशप जॉन के आतिथ्य में डा. कलाम वहां तकरीबन एक घंटे तक रहे और मोनेस्ट्री के इतिहास, भूगोल और इसके स्थापत्य आदि के बारे में जानकारी लेते रहे. शहर से दूर इतनी सुनसान और अलग-थलग जगह में इतनी बड़ी, सुंदर और कलात्मक मोनास्ट्री! बिशप जॉन ने हम सबको पूरी मोनेस्ट्री में घुमाया. वहां स्कूलों से आए बच्चे-बच्चियां भी घूम देख रहे थे.
मोनेस्ट्री के नीचे दोनों तरफ रिल्सका और ड्रुसियावित्सा नदियों की कल-कल बहती धारा बरबस ही ध्यान आकर्षित कर रही थी. पता चला कि बुल्गारिया के दक्षिण पश्चिम में स्थित यह मोनेस्ट्री कभी, 14वीं-15वीं सदी में ओटोमन तुर्क शासकों के जमाने में जल कर राख हो गई थी लेकिन बाद में इसका भव्य जीर्णोद्धार किया गया था. कलाम साहब के थोड़ा परे हटते ही मोनास्ट्री के लोग हम, मीडिया के लोगों को बिशप जॉन के कार्यालय में ले गए. 80-90 साल के इस बिशप से मिलना भी एक सुखद संयोग ही कहा जा सकता है. उनके साथ बैठकर हम लोगों को मठ के प्रसाद के बतौर पेश की गई शराब ‘नीट’ ही गटकनी पड़ी थी.
डा. कलाम ने बिशप जॉन की अनुमति से
मोनेस्ट्री में प्रार्थना की कि दुनिया में सभी धर्मों को एक साथ आकर अच्छाई,
दया और
परोपकार को बढ़ावा देना चाहिए. उन्होंने संत फ्रांसिस की दो
पंक्तियों का उच्चारण कर वहां मौजूद सभी लोगों से उसे दोहराने को कहा.
डा.
कलाम ने
कहा, “हे ईश्वर,
मुझे अपना शांतिदूत बनाओ ताकि जहां नफरत हो, वहां मैं प्यार और दया के बीज बो
सकूं.’’ इससे
प्रभावित बुजुर्ग बिशप जॉन ने डा. कलाम से कहा,
“आप विश्व
शांति के लिए काम करें.” इससे पहले डा.
कलाम ने
वहां कहा कि धर्म नहीं बल्कि धर्मांधता और धार्मिक कठमुल्लापन के चलते दुनिया के
विभिन्न हिस्सों में तमाम तरह के संघर्ष और विवाद हो रहे हैं.
धर्मांधता
और कट्टरपंथ के चलते ही दुनिया भर में हिंदू धर्म, इस्लाम, ईसाइयत, और जुडाइज्म के समर्थकों के बीच
युद्ध और हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं. उन्होंने कहा कि धर्म को अध्यात्म
की ओर बढ़ना चाहिए ताकि दुनिया में शांति कायम हो सके. प्रगति, विकास और संपन्नता के लिए शांति
आवश्यक शर्त है. यह सब
मिलकर ही दुनिया को खूबसूरत और खुशहाल बना सकते हैं.
सरला महेश्वरी याद करती हैं,
“इसी दिन
रात को वहां हिलटन होटल में भारत के राजदूत द्वारा हमारे सम्मान में रात्रिभोज था.
भोजन के
बाद हमें आज ही लौटना था, दिल्ली के लिए. भोजन के दौरान ही राष्ट्रपति जी
ने मुझे कहा कि देखो हमारी यात्रा के बारे में आप मुझे आज ही एक नोट बनाकर दे दो
क्योंकि सुबह मैं प्रधानमंत्री जी से इस बाबत मिलना चाहता हूं ताकि इस यात्रा के
बारे में कुछ ठोस सुझाव हम उनके सामने रख सकें. मैंने पूछा कि क्या आपको आज ही
चाहिए. उन्होंने
कहा कि आप आज ही, सोने से पहले मुझे विमान में दे दें. मैंने स्वीकृति में सिर हिलाया.
रास्ते
में एक छोटा-सा नोट
तैयार करके विमान में थमा दिया, काफी खुश हुए.
मैंने
उनसे कहा कि सर आपकी टीम बहुत अच्छी थी. उन्होंने कहा कि नहीं,
आपका साथ
भी अच्छा था. इस
यात्रा के दौरान वास्तव में भारत के राष्ट्रपति का एक बिल्कुल नया परिचय हुआ. एक
जमीन से उठा हुआ व्यक्ति जो इतनी ऊंचाई पर पहुंचकर भी अपनी जड़ों से विलग नहीं हुआ.
और एक
लक्ष्य को लेकर किस तरह समर्पित भाव से बिना थके उस ओर तेजी से बढ़ने के लिये बेचैन
है.”
अपनी सात-आठ दिनों की इस यात्रा में डा.
कलाम जहां-जहां गए, वहां रह रहे भारतीयों,
बच्चों और
छात्रों से अवश्य मिले. बच्चों और छात्रों के बीच सभी तरह
की औपचारिकताओं को छोड़कर वह एक स्कूल टीचर अथवा प्रोफेसर के रूप में ही मिलते, अपनी बातें सुनाते और फिर बच्चों-छात्रों को प्रश्न पूछने के लिए
आमंत्रित करते. वह प्रायः
सभी सवालों के जवाब भी देते. अगर समय समाप्त हो रहा हो और
प्रश्न बाकी रह रहे हों तो वह बाकायदा अपने राष्ट्रपति भवन के वेबसाइट और ईमेल का
पता देकर कहते कि आप अपने सवाल मेल कर दो, जवाब वह अवश्य भेजेंगे.
एक देश से दूसरे देश जाने के क्रम
में विमान यात्राओं के दौरान वह दिन में एक बार जरूर आकर मीडिया के लोगों से
मुखातिब होते, उनका कुशल
क्षेम जानते और बातें भी करते. एक बार तो वह जब विमान में हम
लोगों के बीच आए तो हम सब प्रायः खा-पीकर सोने की तैयारी में थे.
आकर
उन्होंने पूछा सब ठीक है न! हक्के-बक्के हम लोगों ने उन्हें बिठाया
और कुछ बातें भी की.
अत्यंत सारगर्भित लेख एवं सम्पूर्ण विवरण के साथ l
ReplyDeleteमानो ऐसा लग रहा है जैसे मैंने खुद अभी-अभी यात्रा समाप्त की हो 🥰🙏