कलाम के साथ विदेश भ्रमण (8)
आधी रात के सूरज वाले देश आइसलैंड में
जयशंकर गुप्त
हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आइसलैंड जैसे अल्पज्ञात लेकिन बहुत ही महत्वपूर्ण देश आइसलैंड को देखने जानने का मौका कभी मिलेगा. साधन और सामर्थ्य को देखते हुए तो अपने तई इस देश की यात्रा कम से कम हमारे जैसे लोगों के लिए तो नामुमकिन ही कही जा सकती थी. लेकिन भारत रत्न, देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डा. एपी जे अब्दुल कलाम के सौजन्य से हमें आइसलैंड जाने, करीब से देखने समझने का अवसर भी मिल गया. स्विट्जरलैंड की यात्रा पूरी होने के बाद राष्ट्रपति डा. कलाम के साथ हमारा अगला पड़ाव उत्तर पश्चिमी यूरोप-उत्तरी अटलांटिक में ग्रीनलैंड, फरो द्वीप समूह और नार्वे के मध्य बसा आइसलैंड ही था, जहां साल के छह महीने अधिकतर समय दिन होता है और बाकी के छह महीने अधिकतर समय रात होती है. नाम ‘आइसलैंड’ से लगता है कि पानी और बर्फ से घिरा कोई बहुत ही ठंडा द्वीप होगा. लेकिन हम जिस आइसलैंड की बात कर रहे हैं, वहां समुद्र भी है और पहाड़ भी. बर्फ के ग्लेशियर हैं, झीलें, जमीन से निकलते गर्म पानी के फव्वारे और जल प्रपात हैं तो धधकते ज्वालामुखी और बुझे हुए ज्वालामुखी के लावा के मैदान भी. तापमान भी अन्य यूरोपीय देशों की तरह ही, सर्दियों में सर्द एवं बर्फीली हवाओं के साथ बहुत ठंडा और गर्मी के दिनों में खुशनुमा.
हमने बहुत सुन रखा था कि आइसलैंड सहित पांच-छह स्कैंडेवियन देशों में एक समय ऐसा भी होता है जब सूर्य वहां डूबता ही नहीं. आधी रात में भी वहां सूर्य अपनी चटख रोशनी के साथ प्रकाशमान रहता है. आधी रात के सूर्य को देखने की हमारी तमन्ना पूरी होने जा रही थी. 29 मई 2005 को आइसलैंड की राजधानी रेक्याविक पहुंचनेवाले डा. कलाम भारत के पहले राष्ट्रपति थे. इससे पहले किसी और भारतीय राष्ट्रपति ने शायद आइसलैंड आने की जरूरत नहीं समझी थी. डा. कलाम की इस यात्रा की पृष्ठभूमि इसी साल, 2005 के फरवरी महीने में आइसलैंड के राष्ट्रपति ओलाफर रेग्नर ग्रिम्सन की भारत की यात्रा के दौरान तैयार हुई थी. ग्रिम्सन ने डा. कलाम को आइसलैंड आने का न्यौता दिया था जिसे उन्होंने सहजभाव से स्वीकार कर लिया था.
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रेक्याविक में डा. कलाम का स्वागत, पीछे खड़े आइसलैंड के राष्ट्रपति ओलाफुर रेग्नर ग्रिम्सन |
29 मई, रविवार को स्विट्जरलैंड के जिनेवा से आइसलैंड के केफ्लाविक स्थित ‘लीफर एरिक्सन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे’ तक का हवाई सफर तकरीबन चार घंटे में पूरा हुआ. रास्ते में विमान में दोपहर के भोजन के बाद डा. कलाम मीडिया के लोगों से मुखातिब हुए. रूस और स्विट्जरलैंड की अपनी यात्राओं के अनुभव और उपलब्ध्यिों पर बातचीत से पहले उन्होंने पत्रकारों का कुशलक्षेम जानने की गरज से पूछा, आप लोगों का ‘खाना-पीना’ कैसा चल रहा है. यह बताने पर कि एयर इंडिया के ‘महाराजा’ का आतिथ्य शानदार है, उन्होंने पूछ लिया, ‘ऐंड ह्वाट एबाउट अदरथिंग्स.’ यह सुन प्रायः सभी हंस पड़े. डा. कलाम ने फिर कहा, ‘मेरा मतलब ‘साफ्ट ड्रिंक्स’ आदि से था.’ डा. कलाम खुद तो खाने-पीने के मामले में विशुद्ध शाकाहारी हैं, लेकिन पत्रकार! उनकी पसंद का थोड़ा इल्म तो उन्हें भी था ही. एक बार स्विट्जरलैंड की संसद में जब दोनों राष्ट्राध्यक्ष (डा. कलाम एवं श्मिड) मेज पर एक साथ बैठे तो वहां ‘ड्रिंक’ सर्व हुआ था. श्मिड ने तो वाईन का प्याला हाथ में लिया लेकिन डा. कलाम ने पानी का गिलास हाथ में लेते हुए कहा कि अपना काम तो इस (पानी) से ही चल जाता है.
बहरहाल, हम लोग ‘लीफर एरिक्सन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे’ पर वहां के स्थानीय समय के हिसाब से तीन बजे (भारतीय समय के मुताबिक रात के 8.30 बजे) पहुंचे. बहुत छोटा और कम आबादीवाला देश होने के बावजूद आइसलैंड में चार हवाईअड्डे हैं. दूर दराज के इलाकों में आवागमन या तो नौकाओं से या फिर विमानों से ही संभव है. केफ्लाविक स्थित अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को आइसलैंड के लोगों के दावे के अनुसार सबसे पहले अमेरिका की खोज करनेवाले लीफर एरिक्सन का नाम दिया गया है. दूसरा बड़ा घरेलू विमानन का हवाई अड्डा रेक्याविक में है. इसके अलावा दो घरेलू हवाई अड्डे एगिलस्सतोएर तथा अकुरेरि में हैं. आइसलैंड में भारत के साथ सप्ताह में कम से कम एक सीधी उड़ान शुरू करने का विमानन समझौता होनेवाला था, शायद इसीलिए तत्कालीन नागर विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल भी विशेष रूप से रेक्याविक आ गये थे.
जिस समय हम लोग आइसलैंड पहुंचे, बताया गया कि दिन और रात के 24 घंटों में वहां उस समय अधिकतर समय दिन ही रहता है. 10 मई से जुलाई के अंत तक सूर्य वहां आधी रात के बाद ही डूबता और एक दो घंटे बाद ही अपनी पूर्ण ऊष्मा और लालिमा के साथ प्रकट हो जाता है. 22-23 जून को ग्रीष्म संक्रांति के दिन सूर्य डूबता ही नहीं. इसी तरह से दिसंबर के तीसरे सप्ताह में सूर्योदय दिन के 11.30 बजे होता है और चार घंटे बाद दोपहर 3.30 बजे अस्ताचल में डूब जाता है. एक समय, शीत संक्रांति के समय सूर्य के दर्शन होते ही नहीं. चहुंओर बिछी बर्फ की चादरों के बीच अंधेरा छाया रहता है.
प्राचीनतम संसद (अल्थिंगी) !
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थिंगवेल्लिर में लावा चट्टानों के पास इसी जगह बनी थी आइसलैंड की पहली संसद, 'अल्थिंगी' |
अमेरिका की खोज वाइकिंग्स ने की थी !
आबादी भले ही बहुत कम हो, लेकिन एक लाख तीन हजार वर्ग किमी. क्षेत्रफल के साथ आइसलैंड यूरोप में ब्रिटेन के बाद दूसरा और विश्व में अठारहवां सबसे बड़ा द्वीप है. हम अभी तक यही जानते रहे हैं कि अमेरिका की खोज क्रिस्टोफर कोलम्बस ने 1492 में की थी लेकिन आइसलैंड के लोग अपनी दस्तावेजी दंतकथाओं के आधार पर दावा करते हैं कि कोलम्बस के अमेरिका पहुंचने से पांच सौ साल पहले आइसलैंड के वाइकिंग (कबीलाई मछुआरे) वहां पहुंच गए थे. उन्होंने ही अमेरिका की खोज की थी. बताया गया कि 985 ईस्वी में एरिक, द रेड नामक एक व्यक्ति को किसी की हत्या के आरोप में आइसलैंड से निकाल दिया गया. उसने पश्चिम की ओर यात्रा की और ग्रीनलैंड की खोज कर डाली. ‘सागास ऑफ़ आइस्लैंडर्स’ के अनुसार, सन् 970 में पैदा हुए एरिक के पुत्र लीफर एरिक्सन ने 1000 ईस्वी में उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप (कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका) की खोज की थी. उसने इसे विन्लैंड कहा था. यही नहीं वाइकिंग्स धुर दक्षिण की ओर तुर्की, अफ्रीकी कोस्ट एवं कैनरी द्वीप भी गये थे. वे लोग रूस और युक्रेन भी गए थे.
आइसलैंड की भाषा और लिपि नोर्डिक-आइसलैंडिक है जो प्राचीनकाल से चली आ रही है. शायद इसलिए भी यहां के लोगों को अपने प्राचीनतम ग्रंथों और अभिलेखों को पढ़ने-समझने में किसी तरह की कठिनाई नहीं हुई. उनके प्राचीन ग्रंथों-अभिलेखों से पता चलता है कि सर्वप्रथम आयरलैंड के भिक्षु 800 ईस्वी में यहां, आइसलैंड आए थे. नौवीं शताब्दी में, नॉर्स (नार्वे) लोग यहां रहने के लिए आए. आइसलैंड में बसावट 874 ईस्वी में नोर्डिक लोगों के द्वारा ही आरंभ की गई थी. पहला निवासी नॉर्स वाइकिंग (मछुआरा) इंगोल्फर अनर्सन था जिसने रेक्याविक में घर बनाया था. उसीने इस इलाके को आइसलैंड का नाम दिया. नार्वे के एक सेनापति ने, जो आइसलैंड के दक्षिण पश्चिम में रहता था, रेक्याविक कस्बे की स्थापना की थी.
यद्यपि इससे पहले भी कई लोग इस देश में अस्थाई रूप से आए और रुके थे. उसके बाद भी आने वाले कई दशकों और शताब्दियों में अन्य बहुत से लोग आइसलैंड में आए. 1262-1264 में आइसलैंड, नार्वे के साम्राज्य, ओल्ड कोवेनेन्ट के अधीन हुआ और 1380 में जब नार्वे और स्वीडेन डेनमार्क के अधीन हुए तो आइसलैंड भी स्वतः डेनमार्क के राजा के अधीन हो गया. 1918 में डेनमार्क के साथ स्वशासी संप्रभु राज्य का दर्जा मिलने तक यह नार्वे और डेनमार्क द्वारा शासित रहा. डेनमार्क और आइसलैंड के बीच हुई एक संधि के अनुसार आइसलैंड की विदेश नीति का नियमन डेनमार्क के द्वारा किया जाना तय हुआ. 1944 में स्वतंत्र आइसलैंड गणराज्य की स्थापना होने तक दोनों देशों का राजा एक ही था.
जब 9 अप्रैल, 1940 को जर्मनी ने डेनमार्क पर अधिकार कर लिया तो आइसलैंड की संसद, अल्थिंगी ने यह निर्णय लिया कि आइसलैंडवासियों को अपने देश का शासन स्वयं करना चाहिए, लेकिन उन्होंने अभी तक अपनी स्वतंत्रता की घोषणा नहीं की थी. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पहले ब्रिटिश और बाद में अमेरिकी सैनिकों ने आइसलैंड का अधिकरण कर लिया ताकि जर्मन नाजी उस पर हमला न कर सकें. अंततः 17 जून 1944 को बिना किसी तरह के रक्तपात के आइसलैंड एक पूर्ण स्वतंत्र, संप्रभु गणराज्य बना. तब से ही आइसलैंड के लोग 17 जून को अपना राष्ट्रीय दिवस मनाते हैं. द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद आइसलैंड उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का सदस्य बना, लेकिन यूरोपीय संघ का नहीं. 1958 और 1976 के बीच आइसलैंड और ब्रिटेन के बीच ऐतिहासिक और बेसकीमती ‘कोड मछलियों’ को पकड़ने को लेकर तीन बार वार्ता हुई. इसे ‘कोड युद्ध’ कहा गया. मछली उद्योग पर निर्भरता ही एक ऐसा कारण है जो आइसलैंड को यूरोपीय संघ में सम्मिलित होने से रोके हुए है. उन्हें यह चिंता है कि यूरोपीय संघ का सदस्य बनने से देश के ऊपर कई तरह के नियामक लागू होंगे जिसके कारण मछली के कच्चे माल के प्रबंधन और प्रसंस्करण से उनका नियंत्रण समाप्त हो जाएगा.
आइसलैंड के कई पहाड़, ज्वालामुखी, गरम चश्मे (हॉट स्प्रिंग्स), नदियां, छोटी झीलें, झरने, जल प्रपात, हिमनद और गीसिर इसे आकर्षक बनाते हैं. अंग्रेजी का ‘गीजर’ शब्द भी गीसिर नामक एक प्रसिद्ध गीजर से बना बताते हैं जो आइसलैंड के दक्षिणी भाग में स्थित है.
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जमीन से निकलता गर्म पानी का फव्वारा, गीसिर या कहें गीजर (तस्वीर इंटरनेट के सौजन्य से) |
आइसलैंड में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आवास एवं सेवानिवृत्ति के बाद नागरिकों का जीवन यापन सरकार की जिम्मेदारी है. वहां चार विश्वविद्यालय हैं. अधिकतर पुरुष और स्त्रियां नौकरी-रोजगार में लगे रहते हैं. अधिकतर पुरुष यदि मछली पकड़ने के रोजगार में हैं तो महिलाएं मछली प्रसंस्करण में लगी होती हैं. देश का पर्यटन काल आधिकारिक रूप से 31 मई से आरंभ होकर 1 सितंबर को समाप्त होता है. जून के आरंभिक महीनों में भी कई क्षेत्र और मार्ग बर्फ से ढके होते हैं. दुनिया भर से अधिकतर पर्यटक जून की समाप्ति और जुलाई के महीनों में आते हैं. अगस्त के महीने में प्रवासी पक्षी भी आते हैं. आइसलैंड का राष्ट्रीय पक्षी ‘पफिंस’ अगस्त के अंत होने तक कम दिखने लगता है. अगस्त पर्यटन के मौसम का आधिकारिक अंतिम महीना होता है. इसके बाद से दिन छोटे होने लगते हैं और लंबी रातों के साथ बर्फबारी का मौसम आरंभ हो जाता है. पर्यटन के दो-तीन महीनों के दौरान ही आइसलैंड में लगभग 10 लाख पर्यटक आते हैं.
आइसलैंड की शासन व्यवस्था में सर्वोपरि, संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति का चुनाव चार साल के कार्यकाल के लिए होता है. वह औपचारिक राष्ट्राध्यक्ष होता है. वह संसद यानी अल्थिंगी द्वारा पारित किसी भी कानून को रोक सकता है और उसे राष्ट्रीय जनमत संग्रह के लिए रख सकता है. विग्डिस फिन्बोगाडोटिर के रूप में 1980 में विश्व में पहली महिला राष्ट्रपति चुनने का कीर्तिमान आइसलैंड के पास ही है.
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रेक्याविक स्थित आइसलैंड की मौजूदा संसद, अल्थिंगी |
‘अल्थिंगी’ में 63 सदस्य होते हैं, उन्हें भी चार वर्षीय कार्यकाल के लिए ही चुना जाता है. वहां चुनाव उम्मीदवारों के नहीं बल्कि दलों के बीच होता है. दलों को मिले मत प्रतिशत के आधार पर अल्थिंगी के लिए सीटों का बंटवारा होता है. बहुमत प्राप्त दल अथवा दलों के गठबंधन को सरकार बनाने का अवसर मिलता है. सरकार का व्यावहारिक प्रमुख प्रधानमंत्री होता है, जो अपनी मंत्रिपरिषद के साथ अल्थिंगी के प्रति उत्तरदाई होता है. मंत्री पदों और मंत्रालयों का बंटवारा भी दलों को मिले मत प्रतिशत और फिर अल्थिंगी में उनकी सदस्य संख्या के आधार पर ही होती है. मंत्रिपरिषद की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा आम चुनाव के बाद की जाती है. लेकिन, नियुक्ति पर आम तौर पर राजनीतिक दलों के नेताओं में विचार-विमर्श होता है कि कौन से दल मंत्रिपरिषद में सम्मिलित हो सकते हैं और उनके बीच सीटों का बंटवारा कैसे होगा, लेकिन इस शर्त पर कि उस मंत्रिपरिषद को अल्थिंगी में बहुमत प्राप्त होगा. जब दलों के नेता अपने आप एक निर्धारित अवधि में किसी निष्कर्ष तक पहुंचने में असमर्थ होते हैं तो राष्ट्रपति अपनी शक्ति का प्रयोग करके मंत्रिपरिषद की नियुक्ति स्वयं करता या करती हैं. यद्यपि 1944 में गणतंत्र बनने के बाद से यहां अभी तक ऐसी नौबत नहीं आई है.
बहरहाल, केफ्लाविक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर डा. कलाम के भव्य स्वागत के बाद हम लोग तकरीबन 50 किमी दूर आइसलैंड की राजधानी रेक्याविक पहुंचे. पूरे रास्ते में जीव जंतु, पेड़ पौधों के निशान नहीं. धधकते- बुझे ज्वालामुखी की चट्टानें, लावा के ढेर भर नजर आ रहे थे. लेकिन रेक्याविक पहुंचने के बाद हमारा स्वागत एक बहुत ही खूबसूरत, साफ-सुथरे और व्यवस्थित शहर ने किया. हमारे ठहरने की व्यवस्था होटल रेडिसन ब्ल्यू सागा में थी. 29 मई को आधिकारिक तौर पर कोई कार्यक्रम नहीं था. शाम को हम अगल-बगल टहलते रहे. एक दुकान पर भी गये और उसकी सहृदय मालकिन से मिले. आइसलैंड के लंबे, तगड़े, नीली आंकों और सफेद-भूरे और पीले बालोंवाले स्त्री-पुरुष बहुत मिलनसार, मित्रवत, पढ़े-लिखे, सोफिस्टिकेटेड, ईमानदार और आधुनिक होते हैं. उक्त महिला में भी यह सारी खूबियां थीं. भाषा यहां आइसलैंडिक, नोर्डिक है लेकिन अंग्रेजी में काम चल जाता है. खासतौर से युवा तो फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं. दुकान में सामान बहुत महंगे थे. लेकिन उस महिला से हमें आइसलैंड और रेक्याविक के बारे में बहुत सारी जानकारियां मिलीं. देर शाम हम समुद्र किनारे घूमने चले गये. रात के 10-11 बजे भी सूर्य सिर पर चमक रहा था. उसके बाद ही हमने लिखा था, ‘आधी रात का सूरज.’ बहुत ही सुंदर और नयनाभिराम दृश्य था, कल्पना से परे. होटल लौटे तो सवाल था कि रात के उजाले में सो कैसे सकेंगे. इसका इंतजाम भी हो गया. खिड़कियों पर लगे काले पर्दों को खोलकर रात के अंधेरे का एहसास कराया गया.
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रेक्याविक में समुद्र किनारे |
30 मई की सुबह जल्दी ही जगना पड़ा था. रेक्याविक में होटल नोर्डिका में आइसलैंडिक-भारतीय व्यापार परिषद के द्वारा 'सिनर्जी ऐंड स्ट्रेंथ्स आफ ईस्ट ऐंड वेस्ट' पर आयोजित कार्यशाला में शामिल होना था. कार्यशाला में डा. कलाम का स्वागत करते हुए आइसलैंड के राष्ट्रपति ग्रिम्सन ने अपने देश को एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण प्रयोगशाला करार देते हुए कहा कि राष्ट्रपति डाक्टर कलाम का एक महान वैज्ञानिक के रूप में भी इस प्रयोगशाला में स्वागत है. उन्होंने कहा, "कलाम जैसे महान वैज्ञानिक के लिए हम जितनी भी प्रयोगशालाएं उपलब्ध करा पाएं, कम होंगी. लेकिन क्या करें, हमारा देश बहुत छोटा है." हाजिर जवाब डॉ. कलाम भी कहां चूकनेवाले थे, उन्होंने अपने भाषण में कहा, "हीरा छोटा होता है लेकिन उसका महत्व सभी जानते हैं." उन्होंने विज्ञान की भाषा का भी पुट जोड़ा और कहा, “नैनो प्रौद्योगिकी का प्रभाव अत्यंत व्यापक है. हमारे यहां छोटे को जितना स्नेह-सम्मान दिया जाता है, उतना किसी और को नहीं.’’ पूरा माहौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.
क्रमशः
नोटः आइसलैंड की यात्रा से जुड़े रोचक एवं ज्ञानवर्धक संस्मरणों की अगली कड़ी में बताएंगे कि कैसे यहां के लोगों के आधा-तिहाई बच्चे होते हैं. कैसी है आइसलैंड के राष्ट्रपति की सुरक्षा व्यवस्था. राजधानी रेक्याविक में किसने किया डा. कलाम के लिए इडली-बड़ा, सांभर का इंतजाम और कैसा है आइसलैंड का 'ब्ल्यू लगून'. इसके अलावा भी और बहुत कुछ हमारे इस ब्लाग में आपको देखने-पढ़ने को मिलेगा.
अत्यंत ही शानदार और विभिन्न अनसुने तथ्यों से परिपूर्ण यात्रा वृतांत
ReplyDeleteयात्रा वृतान्त बहुत ही ज्ञानवर्धक व समीचीन है,कलेवर बढ़िया है।रिपोर्ताज़ शैली में कुछ अद्यतन डालकर रोचक पुस्तकाकार रूप देने पर अद्वितीय होगा।
ReplyDeleteVery interesting
ReplyDeleteबहुत रोचक यात्रावृत्त है यह।पर्याप्त रोचक सामग्री है।मुझे दुख है कि इतनी अच्छी और बहुमूल्य सामग्री पर किसीने दृष्टिपात तक नहीं किया।खैर, आज न कल इसका मूल्य समझने वाले लोग जरूर पैदा होंगे।
ReplyDeleteअविस्मरणीय, ज्ञानवर्धक
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