डा. कलाम के साथ विदेश भ्रमण (9)
यूक्रेन की राजधानी कीव में
जयशंकर गुप्त
एक जून, बुधवार (2005) को राष्ट्रपति डा. ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ उनकी चार देशों की यात्रा के अंतिम चरण में एयर इंडिया के विशेष विमान ‘तंजौर’ से हम लोग यूक्रेन की खूबसूरत और हरी भरी राजधानी कीव के बोरिस्पिल में स्थित कीव अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे. उस समय वहां स्थानीय समय के अनुसार शाम के पांच बजे थे. मौसम बहुत ही खुशनुमा था. तापमान अधिकतम 16 और न्यूनतम 9 डिग्री सेंटीग्रेड बताया गया. हवाई अड्डे पर जब डा. कलाम का विमान उतरा, सीढ़ी के पास बिछे रेड कार्पेट पर परंपरागत परिधान में सजी यूक्रेन की तीन युवतियां थाली में ‘रोटी और नमक (ब्रेड और साल्ट)’ लिए उनके परंपरागत स्वागत के लिए तैयार खड़ी थीं.
पंरपरा को निभाते हुए डा. कलाम ने ब्रेड से एक टुकड़ा तोड़ा, उसमें नमक लगाया और मुंह में डाल लिया.
‘ब्रेड बास्केट ऑफ यूरोप’ कहे जानेवाले यूक्रेन के सोवियत संघ से पृथक होकर अलग देश बनने के बाद यहां आनेवाले डा. कलाम भारत के पहले राष्ट्रपति थे. इससे पहले 1970 में तत्कालीन राष्ट्रपति वी वी (वाराह वेंकट) गिरि यहां आए थे, तब यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था. इस यात्रा से पहले यूक्रेन से हमारा परिचय 25-26 अप्रैल 1986 को उत्तरी यूक्रेन में प्रिप्यत शहर के पास चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र में हुई भीषण दुर्घटना तक ही सीमित था. तब यूक्रेन सोवियत संघ का ही एक राज्य हुआ करता था. पूर्वी यूरोप में स्थित यूक्रेन की सीमाएं पूर्व और उत्तर पूर्व में रूस, उत्तर में बेलारूस, पश्चिम में पोलैंड, स्लोवाकिया और हंगरी, दक्षिण में रोमानिया, माल्दोवा और काला सागर से मिलती हैं. यूक्रेन में एक तरफ़ तो बेहद उपजाऊ मैदानी इलाके हैं तो दूसरी ओर पूर्व में बड़े उद्योग हैं.
वैसे तो यूक्रेन और रूस के उदय का इतिहास एक जैसा ही है लेकिन यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से का यूरोपीय पड़ोसियों, ख़ासतौर से पोलैंड से ज़्यादा नजदीकी रिश्ता है जबकि पूर्वी इलाकों में रूस से करीबी और साम्यता दिखती है. यूक्रेन का आधुनिक इतिहास नौवीं शताब्दी से शुरू हुआ. बताते है कि नौवीं सदी में 'कीवियाई रूस (Kievan Rus जिसे कुछ लोग कीवियाई रस भी कहते हैं)' के नाम से एक बड़े और शक्तिशाली राज्य की स्थापना हुई थी जो कि पहला बड़ा पूर्वी स्लाव राज्य था. इतिहासकारों का मानना है कि वाइकिंग नेता ओलेग ने इसकी स्थापना की थी जो कि नोवगोरोद के शासक थे. उन्होंने पहले कीव पर कब्ज़ा किया. नाइपर या कहें निपर नदी के किनारे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जगह बसे होने के कारण कीव को ही कीवयाई रूस की राजधानी बनाया गया था. 10वीं सदी में यहां रूरिक वंश की स्थापना हुई और राजकुमार व्लादिमीर महान कीवयाई रूस के स्वर्णिम युग के ध्वजवाहक बने. 988 में उन्होंने ऑर्थोडॉक्स ईसाई धर्म स्वीकार किया और इस तरह कीवयाई रूस के धर्मांतरण की शुरुआत हुई. यहीं से पूर्व में ईसाई धर्म के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ था. 11वीं शताब्दी में कीवियाई रूस का वैभव यारोस्लाव वाइज (बुद्धिमान) के शासन में चरम पर पहुंच गया. इस दौर में कीव पूर्वी यूरोप का अहम राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र बन गया था. लेकिन उसके बाद यहां लगातार राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल, तातार और मंगोलों के आक्रमण के साथ ही इस पर वर्चस्व को लेकर रूस, पोलैंड, लिथुवानिया आदि पड़ोसी देशों के बीच संघर्ष, तबाही और पुननिर्माण की पटकथाएं लिखी जाती रहीं. 19वीं शताब्दी में इसका बड़ा हिस्सा रूसी साम्राज्य का और बाकी का हिस्सा आस्ट्रो-हंगेरियन नियंत्रण में आ गया. बीच के कुछ सालों के राजनीतिक और भौगोलिक उथल-पुथल के बाद जब रूसी साम्राज्य का पतन हुआ तो 1917 में कीव में यूक्रेन की संसद, केंद्रीय रादा परिषद की स्थापना की गई जिसने यूक्रेन की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. इस क्रम में वहां गृह युद्ध छिड़ गया.
1918 से लेकर 1920 तक यूक्रेन में तकरीबन 16 बार आधिपत्य और सत्ता में बदलाव हुए. अंततः रूस में बोल्शेविक क्रांति के बाद ‘रेड आर्मी’ ने दो-तिहाई यूक्रेन को जीत लिया और 1921 में यूक्रेनियन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक की स्थापना कर दी गई. इस तरह से 1922 में यूक्रेन सोवियत संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक बन गया. यूक्रेन का एक तिहाई बचा हुआ हिस्सा पोलैंड में शामिल हो गया. 1939 में सोवियत संघ ने नाज़ी-सोवियत संधि की शर्तों के तहत पश्चिमी यूक्रेन को भी अपने में विलय कर लिया, जो पहले पोलैंड के पास था. लेकिन दो साल बाद हालात फिर बदले और 1941 में यूक्रेन पर नाज़ियों ने क़ब्ज़ा कर लिया. 1944 तक यहां नाज़ियों का क़ब्जा रहा. यूक्रेन को दूसरे विश्व युद्ध के कारण बहुत नुकसान झेलना पड़ा. 50 लाख से ज़्यादा लोग नाज़ी जर्मनी से लड़ते हुए मारे गए. यहां के 15 लाख यहूदियों में से अधिकतर का नाज़ियों ने नर संहार किया था.
यूक्रेन के राष्ट्रवादियों की सोवियत रूस से भी शिकायत रही कि एक बड़े राज्य के रूप में सोवियत संघ का हिस्सा होने के बाद भी यूक्रेन के साथ सौतेला और उपेक्षा का व्यवहार होता रहा. इसकी प्रगति और विकास के मार्ग अवरुद्ध किए जाते रहे. तकरीबन सभी तरह की कसौटी पर खरा उतरने के बावजूद कीव शहर को लंदन, पेरिस, मास्को जैसे यूरोप के शहरों जैसी ख्याति नहीं मिली. वह दबा सा रहा. खासतौर से स्तालिन युग में यूक्रेन में कृत्रिम, मानव जनित अकाल, ‘होलोदोमोर’ को यहां के लोग चाहकर भी नहीं भूल पाते. राजधानी कीव में अभी भी इसका भव्य स्मारक लोगों को ‘होलोदोमोर’ की याद दिलाते रहता है. बताया गया कि 1932 में स्टालिन के सामूहिकीकरण अभियान के कारण यूक्रेन में इरादतन अकाल जैसे हालात पैदा किए गए जिसमें तकरीबन 70 लाख लोग मारे गये थे और लाखों लोग कनाडा आदि देशों में पलायन के लिए विवश हुए थे. 1944 में स्टालिन ने दो लाख क्रीमियाई तातारों को साइबेरिया और मध्य एशिया के लिए निर्वासित कर दिया. उनके ऊपर नाज़ी जर्मनी के साथ सांठगांठ करने के आरोप लगाए गये थे.
ग्लासनोश्त और पेरेस्त्रोइका के क्रम में मॉस्को में तख़्तापलट के बाद 24 अगस्त 1991 को यूक्रेन के लोगों ने सोवियत संघ से आजाद होने की घोषणा कर दी. सोवियत संघ के पतन और विघटन के बाद सोवियत संघ के अन्य प्रमुख राज्यों के साथ ही दिसंबर 1991 में यूक्रेन भी स्वतंत्र और संप्रभु देश के रूप में सीआइएस (कामनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) का संस्थापक सदस्य बन गया. इसके बाद ही लगभग ढाई लाख क्रीमियाई तातार और उनके वंशज क्रीमिया लौट आए जिन्हें स्टालिन के समय वहां से निर्वासित किया गया था. यूक्रेन में क्रीमिया को स्वायत्त राज्य की मान्यता दिए जाने के अलावा वहां 24 राज्य हैं.
लियोनिद क्रावचुक स्वतंत्र-संप्रभु यूक्रेन के पहले राष्ट्रपति चुने गये. लेकिन 1994 में राष्ट्रपति चुनाव में लियोनिद क्रावचुक को हराकर लियोनिद कुचमा राष्ट्रपति बन गये. उन्होंने पश्चिम और रूस के साथ संतुलन बनाने की नीति अपनाई. 1996 में यूक्रेन ने खुद के लिए राष्ट्रपति-संसदीय प्रणाली पर आधारित नया लोकतांत्रिक संविधान अपनाया. 1996 में ही यूक्रेन ने अपनी नई मुद्रा राइवन्या जारी की. यूक्रेन की नई संसद ‘वर्खोव्ना राडा’ में 450 सदस्य होते हैं. इनमें से 225 सीटों के लिए तो सीधे सदस्यों के सीधे चुनाव होते हैं जबकि बाकी 225 सीटों के लिए मतदान दलगत आधार पर होता है. दो तरह के मतपत्र होते हैं. एक उम्मीदवार के लिए तथा दूसरा मतपत्र राजनीतिक दल के चुनाव के लिए होता है. चार फीसदी से अधिक मत हासिल करनेवाले दलों के बीच उन्हें हासिल मत प्रतिशत के अनुपात में सीटों का बंटवारा होता है जिसे संबद्ध राजनीतिक दल अपने लोगों के बीच बांट लेते हैं. राडा में बहुमत प्राप्त दल अथवा दलों के गठबंधन की सरकार बनती है.
यूक्रेन के संविधान के तहत कोई व्यक्ति पांच वर्ष के दो कार्यकाल से अधिक राष्ट्रपति पद पर नहीं रह सकता. शायद इसीलिए 1994-99 और 1999-2004 तक के दो कार्यकाल पूरा कर चुके लियोनिद कुचमा ने खुद चुनाव नहीं लड़कर अपने करीबी प्रधानमंत्री विक्टर यानुकोविच को उम्मीदवार बनाया जबकि उनके विरुद्ध विक्टर यूशेंको विपक्षी ‘अवर यूक्रेन’ के उम्मीदवार थे. 2004 के आम चुनाव में किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया. लेकिन एन केन प्रकारेण यानुकोविच को अगला राष्ट्रपति घोषित कर दिया गया. विरोधी पार्टियों ने रूस समर्थक कहे जाने वाले राष्ट्रपति कुचमा पर चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली करने का आरोप लगाया. नवंबर-दिसंबर 2004 में विपक्ष के नेता विक्टर युशेंको और उनके समर्थकों ने विक्टर यानुकोविच की जीत को चुनावी भ्रष्टाचार और धांधली का नतीजा बताते हुए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू किए.
संतरी (नारंगी) रंग के कपड़े, बैनर और टोपियां, रिस्ट बैंड और स्कार्फ के साथ लोग कई दिनों तक कीव की सड़कों पर उतरे और फिर इंडिपेंडेंस स्क्वायर (स्वतंत्रता चौक) पर जमा पांच-सात लाख प्रदर्शनकारियों ने सरकार बदलने में अहम भूमिका निभाई. इसे ऑरेंज रिवोल्यूशन (संतरा क्रांति) का नाम दिया गया. चुनाव में धांधली के तथ्यों और जन बाद के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने बाद में चुनाव के नतीजे रद्द कर दिए. 26 दिसंबर 2004 को दोबारा हुए चुनाव में विक्टर युशेंको बड़ी जीत हासिल करने के बाद राष्ट्रपति बन गए.
इससे पहले, एक दिसंबर को यूक्रेन की संसद राडा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री यानुकोविच के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पर भारी बहुमत की मुहर लगाकर यानुकोविच के साथ ही उनके मंत्रिमंडल को भी बर्खास्त कर दिया था. यूशेंको के करीबी यूलिया तिमशेंको नए प्रधानमंत्री बने.
तकरीबन छह लाख वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैले, तकरीबन 4 करोड़ 71 लाख की आबादी (2005 में) वाले यूरोप के सबसे बड़े देशों में शुमार किए जाने वाले यूक्रेन के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंध काफी करीबी और मधुर रहे हैं. अलग देश के रूप में यूक्रेन को सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में से भारत भी एक था. भारत सरकार ने दिसंबर 1991 में एक संप्रभु देश के रूप में यूक्रेन गणराज्य को मान्यता दी और जनवरी 1992 में ही इसके साथ राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए थे. मई 1992 में राजधानी कीव में भारत का दूतावास खोला गया था. इससे पहले दक्षिणी यूक्रेन में काला सागर से लगे बंदरगाह शहर ओडेसा में भारत का महा वाणिज्य दूतावास काम करता था. यूक्रेन ने भी फरवरी 1993 में एशिया में अपना पहला मिशन नई दिल्ली में ही खोला था. विक्टर यूशेंको के राष्ट्रपति बनने के बाद इन द्विपक्षीय रिश्तों में और प्रगाढ़ता बढ़ी. इनके बुलावे पर ही डा. कलाम कीव यात्रा पर आए थे.
यूक्रेन की राजधानी और सबसे अधिक तकरीबन 27 लाख की आबादी वाला शहर कीव है. उत्तर-मध्य यूक्रेन में नाइपर या कहें, निपर नदी के किनारे स्थित कीव यूरोप के प्राचीनतम शहरों में से एक है जो यूरोप का सातवां सबसे अधिक आबादी वाला शहर भी है. नाइपर नदी इस शहर में घूम घूम कर बहती है. सिटी सेंटर और इंडिपेंडेंस स्क्वायर के पास इसके किनारे से सूर्यास्त का नयनाभिराम दृश्य देखते ही बनता है. पूरे शहर में गजब की हरियाली देखने को मिली. पता चला कि यहां 620 छोटे-बड़े हरे भरे पार्क तथा दो वनस्पति उद्यान भी हैं. कभी ईसाई धर्म के प्रभाव में रहे कीव में 200 से अधिक चर्च हैं. 11वीं सदी में बना सोफिया कैथेड्रल कीव के सबसे प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. इसे कीव के राजकुमार यारोस्लव द वाइज ने बनवाया था. कीव को पूर्वी यूरोप का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक, वैज्ञानिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक केंद्र भी कहा जाता है.
कहा जाता है कि कीव शहर का नामकरण इसके अपने चार दिग्गज संस्थापकों में से एक क्यी के नाम पर हुआ है. पूर्वी यूरोप के सबसे पुराने शहरों में से एक, कीव संभवतः 5वीं शताब्दी की शुरुआत में एक वाणिज्यिक केंद्र के रूप में मौजूद था. स्कैंडिनेविया और कॉन्स्टेंटिनोपल के बीच महान व्यापार मार्ग पर एक स्लाव बस्ती, 9वीं शताब्दी के मध्य में वरांगियों (वाइकिंग्स) द्वारा कब्जा किए जाने तक, कीव खज़ारों का सहायक कस्बा था. वरांगियों के शासन के तहत, इसे प्रथम पूर्वी स्लाविक राज्य कीवियन रस की राजधानी बनाया गया. 1240 में कीव मंगोल आक्रमणों के दौरान पूरी तरह से नष्ट हो गया, शहर ने आने वाले सदियों के लिए अपना महत्व और प्रभाव खो दिया. यह अपने शक्तिशाली पड़ोसियों, पहले लिथुआनिया और फिर पोलैंड और रूस द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों के बाहरी इलाकों में सीमांत महत्व की एक प्रांतीय राजधानी भर बन कर रह गया था.
19वीं शताब्दी के अंत में रूसी साम्राज्य की औद्योगिक क्रांति के दौरान कीव शहर नये सिरे से समृद्ध हुआ. 1918 में, यूक्रेनी पीपुल्स रिपब्लिक ने सोवियत रूस से स्वतंत्रता की घोषणा के बाद, कीव को अपनी राजधानी बनाया. लेकिन 1921 के बाद से कीव यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य का हिस्सा और फिर 1934 में राजधानी बन गया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस शहर का बड़ा हिस्सा एक बार फिर लगभग पूरी तरह से तबाह हो गया था. सितंबर 1941 में कीव पर जर्मन नाजियों का आधिपत्य हो गया था. लेकिन दो साल बाद 1943 में कीव फिर से यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य का हिस्सा बना और सोवियत संघ के तीसरे सबसे बड़े शहर के रूप में उभर कर सामने आया.
1991 में सोवियत संघ के पतन और विघटन बाद कीव स्वतंत्र और संप्रभु यूक्रेन गणराज्य की राजधानी बन गया. देश में बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्था और चुनावी लोकतंत्र कायम होने के बाद कीव यूक्रेन का सबसे बड़ा और सबसे समृद्ध शहर बनते गया. सोवियत संघ के पतन के बाद इसका आयुध-आधारित औद्योगिक उत्पादन गिर गया, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था, लेकिन आर्थिक सुधारों, पश्चिमी निवेश के बढ़ने, सेवा और वित्त जैसे अर्थव्यवस्था के नए क्षेत्रों ने वेतन और निवेश में कीव के विकास को न केवल सुविधाजनक बनाया, शहरी बुनियादी ढांचा के विकास और आवास के लिए भी निरंतर धन उपलब्ध कराया. इस तरह से कीव पश्चिम के सबसे समर्थक क्षेत्र के रूप में उभरा. हालांकि यहां अभी भी रूसी समर्थक भी बहुतायत हैं. आश्चर्य की बात नहीं कि यूरोपीय संघ के साथ एकीकरण की वकालत करने वाली पार्टियां चुनावों के दौरान हावी रहती हैं. लेकिन रूस समर्थक नेता भी सत्ता पलटते रहते हैं. कीव की तकरीबन 27 लाख (2005 में) में रूसी लोगों की संख्या 13 फीसदी है लेकिन आबादी के 52 फीसदी लोगों के घर परिवार में रूसी भाषा बोलने, लिखने का चलन है. 24 फीसदी घर परिवारों में यूक्रेनी भाषा का चलन है.
बहरहाल, हमारे ठहरने का इंतजाम कीव शहर के बीचो बीच होटल रूस या कहें रस में किया गया था. यहां से पैदल 5-7 मिनट की दूरी पर क्रेश्चात्यिक स्ट्रीट पर मुख्य शापिंग सेंटर, ओलंपिक स्टेडियम, खूबसूरत शेवचेंको पार्क और क्रेश्चेत्यिक मेट्रो स्टेशन भी है. कीव में पर्यटकों का एक प्रमुख आकर्षण केंद्र रेप्लिका गोल्डेन गेट यहां से 2 किमी की दूरी पर बताया गया. होटल में पहुंचने के साथ ही पता चला कि यूक्रेन में भारत के तत्कालीन राजदूत शेखोलिन किपगेन ने इसी होटल में कीव में रह रहे भारतीयों की ओर से डा. कलाम के स्वागत-सम्मान में रात्रिभोज का आयोजन इसी होटल में किया है.
रात के 8.20 मिनट पर डा. कलाम होटल के एलीट हॉल में पहुंचे तो भारतीय नर्तकी के परिधान में सजी-धजी एक यूक्रेनी छात्रा ने भारतीय परंपरागत ढंग से माथे पर टीका लगाकर उनका अभिनंदन किया. कार्यक्रम में काफी लोग आए थे. लेकिन स्वागत-सभागार में लगे भारतीय तिरंगे में चक्र गायब था. उसकी जगह लिखा था, ‘वार्म वेलकम टू प्रेसीडेंट कलाम.’ स्वागत तो ठीक था लेकिन तिरंगे से चक्र गायब होना तो एक तरह से राष्ट्र ध्वज का अपमान ही कहा जा सकता है! इसके बारे में पूछे जाने पर काफी हद तक सुरा के प्रभाव में आ चुके राजदूत किपगेन का जवाब अजीबोगरीब था. उन्होंने कहा, “क्या बताऊं किसने किया. मैं तो इस महीने के अंत में सेवानिवृत्त हो रहा हूं. मणिपुर लौटकर राजनीति करूंगा.” स्वागत समारोह में आए बहुत सारे भारतीयों और भारतीय परिधानों में सजी-धजी उनकी खूबसूरत यूक्रेनी पत्नियों से मुलाकात हुई.
कीव में उस समय तकरीबन 3000 अनिवासी भारतीय रह रहे थे. इसमें मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनेवाले तकरीबन छात्र-छात्राएं शामिल थे. डा. कलाम के स्वागत समारोह में आए अनिवासी भारतीयों में कई ऐसे उद्यमी भी थे जो यहां पहले कभी, अस्सी के दशक में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने आए थे. उनकी पढ़ाई- लिखाई समाप्त होने के समय ही ग्लासनोश्त और पेरेस्त्रोइका और उसी के क्रम में सोवियत संघ का पतन-विघटन और यूक्रेन जैसे सोवियत संघ का हिस्सा रहे राज्यों-देशों का स्वतंत्र-संप्रभु गणराज्य के रूप में उदय भी हुआ. इसके साथ ही यहां शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के क्रम में यूरोप, अमेरिका जैसे देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों की आमद और निवेश में वृद्धि भी शुरू हुई. बहुराष्ट्रीय कंपनियों को यहां ऐसे लोगों की आवश्यकता थी जो अंग्रेजी के साथ ही स्थानीय माहौल और भाषा को भी बेहतर समझते हों. उनकी इस कसौटी पर यहां रह रहे भारतीय छात्र-युवा पूरी तरह से फिट बैठते थे. वे स्थानीय परिवेश और भाषा-रूसी और यूक्रेनी से बखूबी परिचित थे. इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों में उन्हें बेहतर रोजगार मिल गये. इसके साथ ही इनमें से बहुत से लोगों ने छात्र जीवन में मित्र बन गई रूसी-यूक्रेनी छात्राओं के साथ विवाह भी कर लिया. यह उनके लिए अतिरिक्त योग्यता साबित हुई. बाद में इन में से कुछ लोगों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों की एजेंसी और भागीदारी भी लेनी शुरू कर दी.
इनसे इतर वहां एक बिहारी (अभी झारखंडी) बाबू मिले संजय राजहंस. संजय पहले दिल्ली में रहते थे, पायनियर अखबार के साथ पत्रकारिता करते थे. इसके साथ ही शास्त्रीय संगीत में भी उनकी गहरी रूचि थी. नब्बे के दशक के अंत में वह श्रीराम भारतीय कला केंद्र में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ले रहे थे. तभी उनकी मुलाकात वहां भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान प्रदान योजना के तहत भरत नाट्यम नृत्य सीखने आई यूक्रेन की खूबसूरत छात्रा गन्ना स्मिरनोवा से हुई जो आगे चलकर दोस्ती और फिर दोनों के परिणय सूत्र में बंध जाने के रूप में बदल गई.
दोनों ने कीव में लौटकर नृत्य अकादमी, ‘नक्षत्र’ की शुरुआत की. संजय कुछ देशी-विदेशी उपक्रमों के लिए सलाहकार की भूमिका में आ गये.दोनों मिलकर कीव में भारतीय नृत्य संगीत समारोहों का आयोजन भी करते हैं.
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कीव हवाई अड्डे पर डा. कलाम का परंपरागत स्वागत |
‘ब्रेड बास्केट ऑफ यूरोप’ कहे जानेवाले यूक्रेन के सोवियत संघ से पृथक होकर अलग देश बनने के बाद यहां आनेवाले डा. कलाम भारत के पहले राष्ट्रपति थे. इससे पहले 1970 में तत्कालीन राष्ट्रपति वी वी (वाराह वेंकट) गिरि यहां आए थे, तब यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था. इस यात्रा से पहले यूक्रेन से हमारा परिचय 25-26 अप्रैल 1986 को उत्तरी यूक्रेन में प्रिप्यत शहर के पास चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र में हुई भीषण दुर्घटना तक ही सीमित था. तब यूक्रेन सोवियत संघ का ही एक राज्य हुआ करता था. पूर्वी यूरोप में स्थित यूक्रेन की सीमाएं पूर्व और उत्तर पूर्व में रूस, उत्तर में बेलारूस, पश्चिम में पोलैंड, स्लोवाकिया और हंगरी, दक्षिण में रोमानिया, माल्दोवा और काला सागर से मिलती हैं. यूक्रेन में एक तरफ़ तो बेहद उपजाऊ मैदानी इलाके हैं तो दूसरी ओर पूर्व में बड़े उद्योग हैं.
वैसे तो यूक्रेन और रूस के उदय का इतिहास एक जैसा ही है लेकिन यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से का यूरोपीय पड़ोसियों, ख़ासतौर से पोलैंड से ज़्यादा नजदीकी रिश्ता है जबकि पूर्वी इलाकों में रूस से करीबी और साम्यता दिखती है. यूक्रेन का आधुनिक इतिहास नौवीं शताब्दी से शुरू हुआ. बताते है कि नौवीं सदी में 'कीवियाई रूस (Kievan Rus जिसे कुछ लोग कीवियाई रस भी कहते हैं)' के नाम से एक बड़े और शक्तिशाली राज्य की स्थापना हुई थी जो कि पहला बड़ा पूर्वी स्लाव राज्य था. इतिहासकारों का मानना है कि वाइकिंग नेता ओलेग ने इसकी स्थापना की थी जो कि नोवगोरोद के शासक थे. उन्होंने पहले कीव पर कब्ज़ा किया. नाइपर या कहें निपर नदी के किनारे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जगह बसे होने के कारण कीव को ही कीवयाई रूस की राजधानी बनाया गया था. 10वीं सदी में यहां रूरिक वंश की स्थापना हुई और राजकुमार व्लादिमीर महान कीवयाई रूस के स्वर्णिम युग के ध्वजवाहक बने. 988 में उन्होंने ऑर्थोडॉक्स ईसाई धर्म स्वीकार किया और इस तरह कीवयाई रूस के धर्मांतरण की शुरुआत हुई. यहीं से पूर्व में ईसाई धर्म के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ था. 11वीं शताब्दी में कीवियाई रूस का वैभव यारोस्लाव वाइज (बुद्धिमान) के शासन में चरम पर पहुंच गया. इस दौर में कीव पूर्वी यूरोप का अहम राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र बन गया था. लेकिन उसके बाद यहां लगातार राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल, तातार और मंगोलों के आक्रमण के साथ ही इस पर वर्चस्व को लेकर रूस, पोलैंड, लिथुवानिया आदि पड़ोसी देशों के बीच संघर्ष, तबाही और पुननिर्माण की पटकथाएं लिखी जाती रहीं. 19वीं शताब्दी में इसका बड़ा हिस्सा रूसी साम्राज्य का और बाकी का हिस्सा आस्ट्रो-हंगेरियन नियंत्रण में आ गया. बीच के कुछ सालों के राजनीतिक और भौगोलिक उथल-पुथल के बाद जब रूसी साम्राज्य का पतन हुआ तो 1917 में कीव में यूक्रेन की संसद, केंद्रीय रादा परिषद की स्थापना की गई जिसने यूक्रेन की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. इस क्रम में वहां गृह युद्ध छिड़ गया.
1918 से लेकर 1920 तक यूक्रेन में तकरीबन 16 बार आधिपत्य और सत्ता में बदलाव हुए. अंततः रूस में बोल्शेविक क्रांति के बाद ‘रेड आर्मी’ ने दो-तिहाई यूक्रेन को जीत लिया और 1921 में यूक्रेनियन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक की स्थापना कर दी गई. इस तरह से 1922 में यूक्रेन सोवियत संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक बन गया. यूक्रेन का एक तिहाई बचा हुआ हिस्सा पोलैंड में शामिल हो गया. 1939 में सोवियत संघ ने नाज़ी-सोवियत संधि की शर्तों के तहत पश्चिमी यूक्रेन को भी अपने में विलय कर लिया, जो पहले पोलैंड के पास था. लेकिन दो साल बाद हालात फिर बदले और 1941 में यूक्रेन पर नाज़ियों ने क़ब्ज़ा कर लिया. 1944 तक यहां नाज़ियों का क़ब्जा रहा. यूक्रेन को दूसरे विश्व युद्ध के कारण बहुत नुकसान झेलना पड़ा. 50 लाख से ज़्यादा लोग नाज़ी जर्मनी से लड़ते हुए मारे गए. यहां के 15 लाख यहूदियों में से अधिकतर का नाज़ियों ने नर संहार किया था.
यूक्रेन के राष्ट्रवादियों की सोवियत रूस से भी शिकायत रही कि एक बड़े राज्य के रूप में सोवियत संघ का हिस्सा होने के बाद भी यूक्रेन के साथ सौतेला और उपेक्षा का व्यवहार होता रहा. इसकी प्रगति और विकास के मार्ग अवरुद्ध किए जाते रहे. तकरीबन सभी तरह की कसौटी पर खरा उतरने के बावजूद कीव शहर को लंदन, पेरिस, मास्को जैसे यूरोप के शहरों जैसी ख्याति नहीं मिली. वह दबा सा रहा. खासतौर से स्तालिन युग में यूक्रेन में कृत्रिम, मानव जनित अकाल, ‘होलोदोमोर’ को यहां के लोग चाहकर भी नहीं भूल पाते. राजधानी कीव में अभी भी इसका भव्य स्मारक लोगों को ‘होलोदोमोर’ की याद दिलाते रहता है. बताया गया कि 1932 में स्टालिन के सामूहिकीकरण अभियान के कारण यूक्रेन में इरादतन अकाल जैसे हालात पैदा किए गए जिसमें तकरीबन 70 लाख लोग मारे गये थे और लाखों लोग कनाडा आदि देशों में पलायन के लिए विवश हुए थे. 1944 में स्टालिन ने दो लाख क्रीमियाई तातारों को साइबेरिया और मध्य एशिया के लिए निर्वासित कर दिया. उनके ऊपर नाज़ी जर्मनी के साथ सांठगांठ करने के आरोप लगाए गये थे.
ग्लासनोश्त और पेरेस्त्रोइका के क्रम में मॉस्को में तख़्तापलट के बाद 24 अगस्त 1991 को यूक्रेन के लोगों ने सोवियत संघ से आजाद होने की घोषणा कर दी. सोवियत संघ के पतन और विघटन के बाद सोवियत संघ के अन्य प्रमुख राज्यों के साथ ही दिसंबर 1991 में यूक्रेन भी स्वतंत्र और संप्रभु देश के रूप में सीआइएस (कामनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) का संस्थापक सदस्य बन गया. इसके बाद ही लगभग ढाई लाख क्रीमियाई तातार और उनके वंशज क्रीमिया लौट आए जिन्हें स्टालिन के समय वहां से निर्वासित किया गया था. यूक्रेन में क्रीमिया को स्वायत्त राज्य की मान्यता दिए जाने के अलावा वहां 24 राज्य हैं.
लियोनिद क्रावचुक स्वतंत्र-संप्रभु यूक्रेन के पहले राष्ट्रपति चुने गये. लेकिन 1994 में राष्ट्रपति चुनाव में लियोनिद क्रावचुक को हराकर लियोनिद कुचमा राष्ट्रपति बन गये. उन्होंने पश्चिम और रूस के साथ संतुलन बनाने की नीति अपनाई. 1996 में यूक्रेन ने खुद के लिए राष्ट्रपति-संसदीय प्रणाली पर आधारित नया लोकतांत्रिक संविधान अपनाया. 1996 में ही यूक्रेन ने अपनी नई मुद्रा राइवन्या जारी की. यूक्रेन की नई संसद ‘वर्खोव्ना राडा’ में 450 सदस्य होते हैं. इनमें से 225 सीटों के लिए तो सीधे सदस्यों के सीधे चुनाव होते हैं जबकि बाकी 225 सीटों के लिए मतदान दलगत आधार पर होता है. दो तरह के मतपत्र होते हैं. एक उम्मीदवार के लिए तथा दूसरा मतपत्र राजनीतिक दल के चुनाव के लिए होता है. चार फीसदी से अधिक मत हासिल करनेवाले दलों के बीच उन्हें हासिल मत प्रतिशत के अनुपात में सीटों का बंटवारा होता है जिसे संबद्ध राजनीतिक दल अपने लोगों के बीच बांट लेते हैं. राडा में बहुमत प्राप्त दल अथवा दलों के गठबंधन की सरकार बनती है.
ऑरेंज रिवोल्यूशन (संतरा क्रांति)
यूक्रेन के संविधान के तहत कोई व्यक्ति पांच वर्ष के दो कार्यकाल से अधिक राष्ट्रपति पद पर नहीं रह सकता. शायद इसीलिए 1994-99 और 1999-2004 तक के दो कार्यकाल पूरा कर चुके लियोनिद कुचमा ने खुद चुनाव नहीं लड़कर अपने करीबी प्रधानमंत्री विक्टर यानुकोविच को उम्मीदवार बनाया जबकि उनके विरुद्ध विक्टर यूशेंको विपक्षी ‘अवर यूक्रेन’ के उम्मीदवार थे. 2004 के आम चुनाव में किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया. लेकिन एन केन प्रकारेण यानुकोविच को अगला राष्ट्रपति घोषित कर दिया गया. विरोधी पार्टियों ने रूस समर्थक कहे जाने वाले राष्ट्रपति कुचमा पर चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली करने का आरोप लगाया. नवंबर-दिसंबर 2004 में विपक्ष के नेता विक्टर युशेंको और उनके समर्थकों ने विक्टर यानुकोविच की जीत को चुनावी भ्रष्टाचार और धांधली का नतीजा बताते हुए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू किए.
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इंडिपेंडेंस स्क्वायर पर जमा प्रदर्शनकारी, 'ऑरेंज रिवोल्यूशन' |
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विजेता की मुद्रा में राष्ट्रपति विक्टर यूशेंको |
भारत और यूक्रेन
तकरीबन छह लाख वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैले, तकरीबन 4 करोड़ 71 लाख की आबादी (2005 में) वाले यूरोप के सबसे बड़े देशों में शुमार किए जाने वाले यूक्रेन के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंध काफी करीबी और मधुर रहे हैं. अलग देश के रूप में यूक्रेन को सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में से भारत भी एक था. भारत सरकार ने दिसंबर 1991 में एक संप्रभु देश के रूप में यूक्रेन गणराज्य को मान्यता दी और जनवरी 1992 में ही इसके साथ राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए थे. मई 1992 में राजधानी कीव में भारत का दूतावास खोला गया था. इससे पहले दक्षिणी यूक्रेन में काला सागर से लगे बंदरगाह शहर ओडेसा में भारत का महा वाणिज्य दूतावास काम करता था. यूक्रेन ने भी फरवरी 1993 में एशिया में अपना पहला मिशन नई दिल्ली में ही खोला था. विक्टर यूशेंको के राष्ट्रपति बनने के बाद इन द्विपक्षीय रिश्तों में और प्रगाढ़ता बढ़ी. इनके बुलावे पर ही डा. कलाम कीव यात्रा पर आए थे.
राजधानी कीव
यूक्रेन की राजधानी और सबसे अधिक तकरीबन 27 लाख की आबादी वाला शहर कीव है. उत्तर-मध्य यूक्रेन में नाइपर या कहें, निपर नदी के किनारे स्थित कीव यूरोप के प्राचीनतम शहरों में से एक है जो यूरोप का सातवां सबसे अधिक आबादी वाला शहर भी है. नाइपर नदी इस शहर में घूम घूम कर बहती है. सिटी सेंटर और इंडिपेंडेंस स्क्वायर के पास इसके किनारे से सूर्यास्त का नयनाभिराम दृश्य देखते ही बनता है. पूरे शहर में गजब की हरियाली देखने को मिली. पता चला कि यहां 620 छोटे-बड़े हरे भरे पार्क तथा दो वनस्पति उद्यान भी हैं. कभी ईसाई धर्म के प्रभाव में रहे कीव में 200 से अधिक चर्च हैं. 11वीं सदी में बना सोफिया कैथेड्रल कीव के सबसे प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. इसे कीव के राजकुमार यारोस्लव द वाइज ने बनवाया था. कीव को पूर्वी यूरोप का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक, वैज्ञानिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक केंद्र भी कहा जाता है.
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नाइपर नदी के साथ कीव का मनोरम दृश्य |
कहा जाता है कि कीव शहर का नामकरण इसके अपने चार दिग्गज संस्थापकों में से एक क्यी के नाम पर हुआ है. पूर्वी यूरोप के सबसे पुराने शहरों में से एक, कीव संभवतः 5वीं शताब्दी की शुरुआत में एक वाणिज्यिक केंद्र के रूप में मौजूद था. स्कैंडिनेविया और कॉन्स्टेंटिनोपल के बीच महान व्यापार मार्ग पर एक स्लाव बस्ती, 9वीं शताब्दी के मध्य में वरांगियों (वाइकिंग्स) द्वारा कब्जा किए जाने तक, कीव खज़ारों का सहायक कस्बा था. वरांगियों के शासन के तहत, इसे प्रथम पूर्वी स्लाविक राज्य कीवियन रस की राजधानी बनाया गया. 1240 में कीव मंगोल आक्रमणों के दौरान पूरी तरह से नष्ट हो गया, शहर ने आने वाले सदियों के लिए अपना महत्व और प्रभाव खो दिया. यह अपने शक्तिशाली पड़ोसियों, पहले लिथुआनिया और फिर पोलैंड और रूस द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों के बाहरी इलाकों में सीमांत महत्व की एक प्रांतीय राजधानी भर बन कर रह गया था.
19वीं शताब्दी के अंत में रूसी साम्राज्य की औद्योगिक क्रांति के दौरान कीव शहर नये सिरे से समृद्ध हुआ. 1918 में, यूक्रेनी पीपुल्स रिपब्लिक ने सोवियत रूस से स्वतंत्रता की घोषणा के बाद, कीव को अपनी राजधानी बनाया. लेकिन 1921 के बाद से कीव यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य का हिस्सा और फिर 1934 में राजधानी बन गया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस शहर का बड़ा हिस्सा एक बार फिर लगभग पूरी तरह से तबाह हो गया था. सितंबर 1941 में कीव पर जर्मन नाजियों का आधिपत्य हो गया था. लेकिन दो साल बाद 1943 में कीव फिर से यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य का हिस्सा बना और सोवियत संघ के तीसरे सबसे बड़े शहर के रूप में उभर कर सामने आया.
1991 में सोवियत संघ के पतन और विघटन बाद कीव स्वतंत्र और संप्रभु यूक्रेन गणराज्य की राजधानी बन गया. देश में बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्था और चुनावी लोकतंत्र कायम होने के बाद कीव यूक्रेन का सबसे बड़ा और सबसे समृद्ध शहर बनते गया. सोवियत संघ के पतन के बाद इसका आयुध-आधारित औद्योगिक उत्पादन गिर गया, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था, लेकिन आर्थिक सुधारों, पश्चिमी निवेश के बढ़ने, सेवा और वित्त जैसे अर्थव्यवस्था के नए क्षेत्रों ने वेतन और निवेश में कीव के विकास को न केवल सुविधाजनक बनाया, शहरी बुनियादी ढांचा के विकास और आवास के लिए भी निरंतर धन उपलब्ध कराया. इस तरह से कीव पश्चिम के सबसे समर्थक क्षेत्र के रूप में उभरा. हालांकि यहां अभी भी रूसी समर्थक भी बहुतायत हैं. आश्चर्य की बात नहीं कि यूरोपीय संघ के साथ एकीकरण की वकालत करने वाली पार्टियां चुनावों के दौरान हावी रहती हैं. लेकिन रूस समर्थक नेता भी सत्ता पलटते रहते हैं. कीव की तकरीबन 27 लाख (2005 में) में रूसी लोगों की संख्या 13 फीसदी है लेकिन आबादी के 52 फीसदी लोगों के घर परिवार में रूसी भाषा बोलने, लिखने का चलन है. 24 फीसदी घर परिवारों में यूक्रेनी भाषा का चलन है.
स्वागत समारोह में तिरंगे से चक्र गायब !
बहरहाल, हमारे ठहरने का इंतजाम कीव शहर के बीचो बीच होटल रूस या कहें रस में किया गया था. यहां से पैदल 5-7 मिनट की दूरी पर क्रेश्चात्यिक स्ट्रीट पर मुख्य शापिंग सेंटर, ओलंपिक स्टेडियम, खूबसूरत शेवचेंको पार्क और क्रेश्चेत्यिक मेट्रो स्टेशन भी है. कीव में पर्यटकों का एक प्रमुख आकर्षण केंद्र रेप्लिका गोल्डेन गेट यहां से 2 किमी की दूरी पर बताया गया. होटल में पहुंचने के साथ ही पता चला कि यूक्रेन में भारत के तत्कालीन राजदूत शेखोलिन किपगेन ने इसी होटल में कीव में रह रहे भारतीयों की ओर से डा. कलाम के स्वागत-सम्मान में रात्रिभोज का आयोजन इसी होटल में किया है.
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होटल रूस या कहें रस में भारतीय नर्तकी की पोशाक में डा. कलाम का परंपरागत स्वागत करती यूक्रेनी छात्रा |
कीव में अनिवासी भारतीय
कीव में उस समय तकरीबन 3000 अनिवासी भारतीय रह रहे थे. इसमें मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनेवाले तकरीबन छात्र-छात्राएं शामिल थे. डा. कलाम के स्वागत समारोह में आए अनिवासी भारतीयों में कई ऐसे उद्यमी भी थे जो यहां पहले कभी, अस्सी के दशक में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने आए थे. उनकी पढ़ाई- लिखाई समाप्त होने के समय ही ग्लासनोश्त और पेरेस्त्रोइका और उसी के क्रम में सोवियत संघ का पतन-विघटन और यूक्रेन जैसे सोवियत संघ का हिस्सा रहे राज्यों-देशों का स्वतंत्र-संप्रभु गणराज्य के रूप में उदय भी हुआ. इसके साथ ही यहां शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के क्रम में यूरोप, अमेरिका जैसे देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों की आमद और निवेश में वृद्धि भी शुरू हुई. बहुराष्ट्रीय कंपनियों को यहां ऐसे लोगों की आवश्यकता थी जो अंग्रेजी के साथ ही स्थानीय माहौल और भाषा को भी बेहतर समझते हों. उनकी इस कसौटी पर यहां रह रहे भारतीय छात्र-युवा पूरी तरह से फिट बैठते थे. वे स्थानीय परिवेश और भाषा-रूसी और यूक्रेनी से बखूबी परिचित थे. इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों में उन्हें बेहतर रोजगार मिल गये. इसके साथ ही इनमें से बहुत से लोगों ने छात्र जीवन में मित्र बन गई रूसी-यूक्रेनी छात्राओं के साथ विवाह भी कर लिया. यह उनके लिए अतिरिक्त योग्यता साबित हुई. बाद में इन में से कुछ लोगों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों की एजेंसी और भागीदारी भी लेनी शुरू कर दी.
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संजय राजहंस |
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भरत नाट्यम की मोहक मुद्रा में गन्ना स्मिरनोवा |
होटल रूस के सभागार के एक कोने में कुछ भारतीय मूल के युवा मिले जिनके पास डा. कलाम को देने के लिए कुछ उपहार थे. लेकिन उपहार दे पाना तो दूर वे उनसे मिल भी नहीं पा रहे थे. हमने पता किया तो उनमें से एक, मूल रूप से मणिपुरी लेकिन कीव में ही रच बस गये प्रणब सिंघा ने बताया कि दूतावास के लोग डा. कलाम से मिलने नहीं दे रहे. हमने डा. कलाम के करीबी लोगों से इसकी शिकायत की.
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