Sunday, 25 October 2020

In Kiev (Ukraine) with President Dr. Kalam II (राष्ट्रपति डा. कलाम के साथ यूक्रेन की राजधानी कीव में, II )

कलाम के साथ विदेश भ्रमण  (10)


यूक्रेन की राजधानी कीव में (भाग 2)

जयशंकर गुप्त


     यूक्रेन में मणिपुरी प्रणब             सिंघा की कहानी 
     

    होटल रूस के सभागार के एक कोने में कुछ भारतीय मूल के युवा मिले जिनके पास डा. कलाम को देने के लिए कुछ उपहार थे. लेकिन उपहार दे पाना तो दूर वे उनसे मिल भी नहीं पा रहे थे. हमने पता किया तो उनमें से एक, मूल रूप से मणिपुरी लेकिन कीव में ही रच बस गये प्रणब सिंघा ने बताया कि दूतावास के लोग डा. कलाम से मिलने नहीं दे रहे. हमने डा. कलाम के करीबी लोगों से इसकी शिकायत की. 
 बातचीत में प्रणब और उनके साथी काफी रोचक लगे. प्रणब के साथ उनकी रूसी मूल की पत्नी एलिना या कहें एलिओना और एक बंगाली सज्जन भी थे. प्रणब का आग्रह था कि हम तथा हमारे एक दो अन्य मित्र कीव में एक रात का भोजन उनके साथ ले सकें तो उन्हें प्रसन्नता होगी. हमारे और कुमार राकेश के हामी भरने के बाद हम उनके साथ तीन जून की शाम कीव में एक बड़े और मशहूर रेस्तरां में गये. खान-पान बहुत उत्तम दर्जे का था. उस दिन व्रत होने के कारण राकेश को तो फलाहार से ही संतोष करना पड़ा लेकिन हमारे लिए हर तरह के पकवान के विकल्प थे. पहली बार तभी हमने टेबुल के पास ही अंगीठी (ग्रिल) लगी देखी जिसमें सामने रखे जार में पसंद का आहार (सी फुड) सामने ही बनाकर पेश किया जाता था. 

बाएं से प्रणब सिंघा, उनकी पत्नी एलिनोवा, कुमार राकेश
और मैं यानी जयशंकर गुप्त 

     प्रणब के पिता भारतीय वायुसेना में थे. प्रणब ने भी फ्लाईंग कैडेट का प्रशिक्षण लिया था. उनके मन में आकाश में उड़ने और दुनिया को देखने का सपना था. उन्होंने कश्मीर में एक ट्रैवल एजेंसी में काम शुरू किया. उस समय पिता की पोस्टिंग श्रीनगर में ही होने के कारण उनके माता-पिता और उनकी दो बहनें भी वहीं रह रही थीं. 1989-1990 में, कश्मीर में राजनीतिक उथल-पुथल के कारण, प्रणब ने नई दिल्ली आकर अपना करियर अपने तईं शुरू किया. उऩ्होंने अपने ट्रैवल बिजनेस पार्टनर्स के साथ संपर्क बनाए रखा. 1992 में उन्होंने उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान, मास्को और कीव की यात्रा की. नई दिल्ली में स्थित रूसी दूतावास में रूसी भाषा का संक्षिप्त अध्ययन उनके काम आ रहा था. 1993 के अंत में उनके एक दोस्त ने प्रणब को एक ट्रैवल एजेंसी शुरू करने में सहयोग किया लेकिन उस समय पर्यटन उद्योग बहुत आकर्षक नहीं था, विशेष रूप से भारत और सीआईएस देशों के बीच पर्यटकों का आवागमन बहुत कम होता था. कुछ समय बाद प्रणब ‘फ्यूचर एंटरप्राइजेज’ के कॉफी के व्यवसाय के सीआइएस देशों में विस्तार के लिए सलाहकार के रूप में जुड़ गये. अल्मा-अती में रहते हुए उनके संपर्क में आई एशियाई मानसिकतावाली रूसी बालिका एलिओना से उन्होंने शादी कर ली. बाद में वे दोनों कीव आ गये. कीव में रहते हुए प्रणब के हुनर से फ्यूचर एंटर प्राइजेज के कॉफी के व्यवसाय को काफी विस्तार और मुनाफा मिला. उन्होंने कीव में अपना मुख्यालय खोलकर पड़ोसी मोल्दोवा, बुल्गारिया, सर्बिया, हंगरी, स्लोवाकिया और पोलैंड में ब्रांड का विस्तार किया.

    लेकिन बढ़ती सफलता के बावजूद, सिंघा का फ्यूचर एंटरप्राइजेज के साथ रिश्ता आगे नहीं चल पाया. उन्होंने अपनी खुद की कंपनी, ‘मंजारो ग्लोबल वेंचर्स’ को लंदन में पंजीकृत करा कर नये सिरे से काम शुरू किया. मंजारो में कई ब्रांड हैं, जिनमें से एक ‘कॉफ़ी कॉफ़ी’ के नाम से कॉफी पेय भी है. उनका यह ब्रांड चल निकला और देखते ही देखते उनके मंजारो ग्रुप के विस्तार के साथ ही उनकी समृद्धि भी बढ़ती गई. इसके चलते उनका आकाश में उड़ने और दुनिया को देखने का सपना भी पूरा होने लगा. उन्होंने बताया कि महीने में एक दो वीकेंड पर वह अपने बिजनेस के विस्तार के लिए या फिर ऐसे भी घूमने के लिए किसी न किसी देश की यात्रा करते रहते हैं.

    इन सारी व्यस्तताओं के बावजूद वह अपने परिवार के साथ पर्याप्त समय बिताते हैं. उनके पास मर्सिडीज और बीएम डब्ल्यू जैसी तीन चार गाड़ियां हैं. उन्होंने कीव के बाहर वुड्स पेत्रोपाव्लिव्सका बोरश्चिवका के उपनगर के उस इलाके में दो आलीशान बंगले बनवाए जहां विदेशी राजनयिकों के निवास-बंगले हैं. एक बंगले में वह अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते हैं जबकि दूसरे में उनकी सास और श्वसुर. प्रणब से उनके संघर्ष, सफलता और समृद्धि की बातें सुनकर सहसा यकीन नहीं हो रहा था. 

    हमने और राकेश ने उनसे कीव का उपनगर, उनका निवास देखने और इस बहाने उनके परिवार से मिलने की इच्छा जाहिर की. वह सहर्ष तैयार हो गए. और बताए समय पर आकर अपने साथ अपने घर ले गये. वाकई जितना बताया था उससे कहीं ज्यादा ही दिख रहा था. दुनिया की बेसकीमती निर्माण सामग्री, संगमरमर, टाइल्स, शीशे आदि का इस्तेमाल और अत्याधुनिक सुविधाएं उनके बंगले की भव्यता से परिचय करवा रही थीं. लौटते समय उन्होंने मंजारो ग्रुप की पहिचान के बतौर एक एक टी शर्ट और कुछ अन्य उपहार भी दिए. इस समय प्रणब कीव में प्रमुख भारतीय व्यवसाइयों में गिने जाने लगे हैं. वह कहते हैं, "मेरे लिए मेरे पास कीव सबसे अच्छी जगह है क्योंकि यहां मेरे पास न केवल यूक्रेनियन बल्कि पूर्व-पैट्स (भारतीय) दोस्त भी हैं. इसके अलावा, मैंने पिछले सात-आठ वर्षों में कीव शहर की वृद्धि और विकास की गति देखी है जो मैंने 20 वर्षों तक भारत में नहीं देखी थी. सच भी है, सन 2002 में जहां यूक्रेन की जीडीपी 40 अरब अमेरिकी डालर थी वह 2004 में 10 फीसदी वृद्ध के साथ 55.2 अरब डालर हो गई. प्रति व्यक्ति आमदनी भी वहां 2002 में 856 अमेरिकी डालर थी जो 2004 में बढ़कर 930 डालर हो गई. उस समय वहां बेरोजगारी की दर 3.8 प्रतिशत थी.

    मारियिंस्की पैलेस में डा. कलाम का स्वागत


    दो जून की सुबह 10 बजे हम लोग वर्खोव्ना राडा (संसद भवन) के बगल में स्थित खूबसूरत मारियिंस्की पैलेस स्थित यूक्रेन के राष्ट्रपति के औपचारिक निवास पहुंचे. राष्ट्रीय महत्व की विभिन्न घटनाओं जैसे कि रिसेप्शन, शिखर सम्मेलन और पुरस्कारों के साथ-साथ दुनिया भर के आधिकारिक प्रतिनिधियों की उच्चस्तरीय बैठकों की मेजबानी यहीं होती है. पता चला कि मारियिंस्की पैलेस 1750-1755 में यूक्रेन की महारानी एलिजाबेथ के अस्थायी निवास के रूप में बनाया गया था. बारोक शैली में महल के प्रोजेक्ट को उनके पसंदीदा वास्तुकार बार्टोलोमो रास्त्रेली द्वारा डिजाइन किया गया था. लेकिन विडंबना यह है कि एलिजाबेथ अपने कीव निवास में जाने में सफल नहीं हुईं.

    राष्ट्रपति भवन के प्रवेशद्वार से थोड़ा ही पहले हाथों में तख्तियां-प्लेकार्ड्स, पोस्टर और बैनर लिए तकरीबन 200 लोगों की भीड़ देखकर अचंभा सा हुआ. लगा शायद हमारे राष्ट्रपति जी के स्वागत-सम्मान में लोग नारे लगा रहे हैं. लेकिन दुभाषिए ने बताया कि प्रदर्शनकारी अपनी सरकार में उच्च पदों पर कथित रूप से व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अपराधीकरण के खिलाफ प्रदर्शन और नारेबाजी कर रहे हैं. वे लोग अपदस्थ प्रधानमंत्री विक्टर यानुकोविच के समर्थक हैं और भारतीय राष्ट्रपति के आगमन पर प्रदर्शन कर प्रचार पाना चाहते हैं.

बारोक शैली में बना मारियिंस्की पैलेस
राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास

    मारियिंस्की पैलेस में डा. कलाम के सेरेमोनियल स्वागत के बाद पहले दोनों राष्ट्रपतियों की मुलाकात और फिर दोनों देशों के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत हुई. दो समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए. यूक्रेन के राष्ट्रपति विक्टर यूशेंको से मुलाकात के बाद डा. कलाम बहुत खुश नजर आ रहे थे. इसका प्रमुख कारण भारत को संयुक्त राष्ट्र सुऱक्षा परिषद की सदस्यता के लिए डा. कलाम के अभियान में यूक्रेन से मिला खुला समर्थन भी था. बाद में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में यूशेंको ने कहा कि सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिए भारत उपयुक्त पात्र है. इस तरह से डा. कलाम की चार देशों की इस यात्रा में जहां तीन देशों-रूस आइसलैंड और यूक्रेन ने संयुक्त राष्ट्र सुऱक्षा परिषद की सदस्यता के लिए भारत का खुला समर्थन किया वहीं स्विट्जरलैंड ने भी अपनी तटस्थता बरकरार रखते हुए भी भारत की दावेदारी को वाजिब माना था. डा. कलाम ने इस अवसर पर भारत और यूक्रेन के बीच अगले पांच वर्षों तक द्विपक्षीय व्यापार पांच अरब अमेरिकी डालर तक पहुंचने की उम्मीद जताई. उन्होंने बताया कि दोनों देशों के बीच एक सौ से 150 सीटों के यात्री विमान बनाने की संयुक्त परियोजना पर सहमति हुई है. इस अवसर पर दोनों राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी में एक समझौते तथा एक सहमति पत्र पर भी हस्ताक्षर हुए. मौसम और अंतरिक्ष अनुसंधान के करार पत्र पर भारत की ओर से भारतीय अनसंधान केंद्र के प्रमुख एन माधवन नायर तथा यूक्रेन की ओर से विदेश मंत्री बोरिस तास्यूक ने हस्ताक्षर किए. दूसरे सहमति पत्र के मसौदे पर भारत के राजदूत एस किपगेन तथा यूक्रेन के तकनीकी नियमन एवं उपभोक्ता नीति विभाग के प्रमुख एम नेगरिक ने दस्तखत किए.

    मारियिंस्की पैलेस से निकलने के बाद डा. कलाम थोड़ी ही दूर स्थित पार्क ऑफ ईटर्नल ग्लोरी, युद्ध स्मारक पर गए और अज्ञात सैनिक की समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए.

कीव में पार्क ऑफ ईटर्नल ग्लोरी (युद्ध स्मारक) में
अज्ञात सैनिक की समाधि
वहां उनका स्वागत कीव के मेयर तथा जनरल कमांडिंग अफसर ने किया. यह स्मारक विश्व युद्ध में एवं यूक्रेन की आजादी के संघर्ष में मारे गए सैनिकों-सेनानियों की याद में बनाया गया है. वहां बने तकरीबन 27 मीटर ऊंचे मीनार के पास शहीद सेनानियों की याद में अखंड ज्योति सतत जलती रहती है. दोपहर का भोजन प्रधानमंत्री यूलिया तिमशेंको के साथ हुआ. उसके बाद राष्ट्रपति डा. कलाम पास ही में स्थित यूक्रेन की संसद, वर्खोव्ना राडा में गये जहां उनका स्वागत राडा के चेयरमैन ब्लादिमीर लीत्विन ने किया. लीत्विन से मुलाकात के बाद डा. कलाम ने राडा को संबोधित किया.
इस बीच हम लोग मारियिंस्की पैलेस से लगे संविधान चौक के सामने 10.7 हेक्टेयर के क्षेत्रफल में बने मारियिंस्की पार्क में गए. पार्क का नामकरण मारियिंस्की पैलेस के नाम पर ही किया गया है. यूक्रेन में गृहयुद्ध के समय इस पार्क को मारे गए सेनानियों के दफ्न करने के लिए सम्मानजनक स्थान के रूप में इस्तेमाल किया गया था. 1918 के जनवरी विद्रोह के प्रतिभागियों की सामूहिक कब्रें भी यहीं बनी थीं. बाद में, 1944 में, सोवियत सेना के जनरल निकोलाई वैटुटिन, जिन्होंने नाजियों से कीव को मुक्त कराया था, पहले से स्थित चर्च की जगह पर दफ्न किए गए. उनकी कब्र पर ग्रेनाइट की एक भव्य मूर्ति स्थापित की गई है.
मारियिंस्की पार्क में निकोलाई वैटुटिन के
स्मारक के पास कुमार राकेश के साथ 

    
    मारियिंस्की पार्क के दर्शनीय स्थलों में एक अद्भुत जल संग्रहालय, एक पुराने पानी के टॉवर में स्थित है. यहां आप जमीन में डूब सकते हैं, महाद्वीपों की ‘यात्रा’ कर सकते हैं. देख सकते हैं कि बर्फ कैसे पिघलती है, गीजर फट जाते हैं. जल संग्रहालय में आप गड़गड़ाहट के साथ बारिश में भी जा सकते हैं और एक विशाल बुलबुले के अंदर हो सकते हैं. कुल मिलाकर कीव आनेवाले पर्यटकों के लिए यह पार्क भी एक प्रमुख आकर्षण केंद्र बताया गया.

    राजकीय रात्रिभोज में डा.     कलाम का उद्बोधन

    शाम को डा. कलाम कीव के अन्य प्रमुख आकर्षण केंद्र पेसचर्स्क कैथेड्रल और लावरा गये. रात को यूक्रेन के राष्ट्रपति विक्टर यूशेंको ने उनके लिए मारियिंस्की पैलेस में राजकीय रात्रि भोज का आयोजन किया था. उसमें मीडिया के सिर्फ चार लोग ही गये थे. रात्रिभोज के अवसर पर डॉ कलाम ने यूक्रेन के राष्ट्रपति यूशेंको को संबोधित अपने अभिभाषण में कहा, "मैं महान सभ्यता की जन्मभूमि और इस क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव रखने वाले प्राचीन शहर कीव में आकर सम्मानित और भाग्यशाली अनुभव कर रहा हूं. महामहिम, मैं लोकतंत्र की सच्ची भावना के अनुरूप राष्ट्रपति पद के सफल व शांतिपूर्ण चुनाव के लिए आपको और यूक्रेन की जनता को बधाई देता हूं. इन चुनावों का आयोजन कर आपने अपने राष्ट्रीय गान की पहली पंक्ति,' यूक्रेन की फीकी हुई न शान और न ही खत्म हुई है आजादी' की पुनः पुष्टि की है.

भारत और यूक्रेन की मैत्री विश्वास और सहयोगपूर्ण पारंपरिक संबंध दशकों पुराने हैं और इन संबंधों पर समय का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. आज हमारे बीच हुए विचार-विमर्श हमारी घनिष्ठ साझेदारी की ताकत का सबूत हैं और यह हमारे मैत्रीपूर्ण संबंधों की भी पुष्टि करते हैं. हमारे राष्ट्रीय विकास और हमारे कारखानों, इस्पात संयंत्रों और जल विद्युत परियोजनाओं जिन्हें हमारे पहले प्रधानमंत्री आधुनिक भारत के मंदिर कहा करते थे के निर्माण में यूक्रेनिया के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के कार्य को हम कृतज्ञता पूर्वक याद करते हैं. मुझे यह उल्लेख करते हुए खुशी हो रही है कि भारत और यूक्रेन के बीच विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा अंतरिक्ष के क्षेत्र में उपयोगी आदान-प्रदान और सहयोग हुआ है. यह आदान-प्रदान हमारे आपसी लाभ के लिए हैं और मुझे विश्वास है कि दोनों देशों के विशेषज्ञ इन संबंधों को मजबूत बनाने और सूक्ष्म जैव विज्ञान, अनुवांशिकी, मूल कोशिका अनुसंधान, सूचना प्रौद्योगिकी, भौतिक विज्ञान जैसे नए और आपसी हित के अन्य क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए मिलकर काम करते रहेंगे.

यह संतोष का विषय है कि हमारा द्विपक्षीय व्यापार 2004 में दोगुना, 700 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है. मुझे विश्वास है कि 2006 तक यह एक बिलियन अमेरिकी डालर तक पहुंच जाएगा. दोनों देशों की रुचि और प्रतिबद्धता को देखते हुए मुझे विश्वास है कि हम इस लक्ष्य को पूरा कर लेंगे. हमें निवेश को बढ़ावा देने और व्यापार बाधाओं को कम करने पर भी ध्यान देने की जरूरत है. अनेक भारतीय कंपनियां यूक्रेन में काम कर रही हैं. इसी प्रकार यूक्रेन के उद्यमी भी भारत में व्यापार व निवेश के अवसर ढूंढ रहे हैं. भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के एक प्रतिस्पर्धी आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है. भारत से औषधि निर्माण या सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएं प्राप्त करना यूक्रेन के व्यापारिक लाभ की बात होगी.

हम एक वैश्विक विश्व में रह रहे हैं और हमारी आपसी निर्भरता दिन प्रतिदिन बढ़ रही है. वैश्वीकरण के गरीबों पर पड़ने वाले प्रभाव से चिंतित ही इस प्रक्रिया के आलोचक हैं. हम विश्व समुदाय के जिम्मेदार सदस्य और लोकतांत्रिक देश हैं. इस रूप में हमारा दायित्व यह सुनिश्चित करना है कि विश्व अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण समान विधि से हो और कमजोर व निर्धनों के अधिकार कुचले न जाएं. भविष्य की ओर हमारा प्रयाण समानता व लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए. उपर्युक्त संदर्भ में विश्व के बहुपक्षीय सामूहिक संगठन में बदलाव की आवश्यकता है. संयुक्त राष्ट्र एक ऐसी महान और संस्था है, जिसे हमारे दोनों देशों का विश्वास व निष्ठा प्राप्त है. लेकिन यह आज के तेजी से बदलते विश्व की वास्तविकताओं को पूरी तरह प्रदर्शित नहीं करती. मेरी सरकार की विदेश नीति की एक प्राथमिकता संयुक्त राष्ट्र और इसकी सुरक्षा परिषद का विस्तृत लोकतंत्रीकरण करना है.

मैं भारतीय संस्कृति और कला के प्रति यूक्रेन वासियों द्वारा व्यक्त सम्मान प्रशंसा और विस्तृत जानकारी से अभिभूत हूं. हमारे दोनों महान राष्ट्रों के बीच सांस्कृतिक संबंध हमारे द्विपक्षीय संबंधों और दोनों देशों की जनता के बीच मैत्री की बुनियाद मजबूत बनाने में सहायक होंगे. भारतीय आध्यात्मिक व सांस्कृतिक परंपराओं के बारे में जागरूकता यूक्रेन की पीढ़ी की सोच का भी विस्तार करती है. इस संदर्भ में इवान फ्रेंको के बुद्ध स्त्रोत में भारतीय आध्यात्मिक विचार की सर्वोत्कृष्टता और शक्ति की क्षणिकता का भावपूर्ण चित्रण किया गया है.

"हे बुद्ध, आपका अभिनंदन,

आप हैं हमारे जीवन का प्रकाश,
इस घोर संघर्ष में
आप हैं चमत्कार और शांति का सागर,
आप हैं तेजस्वी, शांत और मौन
आपने छोड़ा
सिंहासन का लोभ,
प्रेम व नफरत की ताकत को."

    दो जून की रात को यूक्रेन के राष्ट्रपति यूशेंको के रात्रिभोज से इतर हमारा भोजन कीव में भारतीय व्यंजनों के लिए मशहूर ‘हिमालय रेस्टूरेंट’ में था. यह रेस्तरां भोपाल के मूल निवासी परेशकांत त्रिपाठी ने 1997 में यहां खोला था. धीरे धीरे यह रेस्तरां न सिर्फ कीव में रहनेवाले भारतीयों, यहां आनेवाले भारतीय, एशियाई मूल के लोगों बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी खाने-पीने की पसंदीदा जगह बन गई. जिस समय हम लोग रेस्तरां में पहुंचे, वहां काफी भीड़ थी. थोड़ा इंतजार करने की बात कहकर त्रिपाठी जी ने बताया कि भारत से कोई बहुत बड़ा ग्रुप आया है. उनके नाम से अधिकतर टेबुल्स बुक हैं. यह बताने पर कि हम लोग भी उसी ग्रुप का हिस्सा हैं, उन्होंने आदरपूर्वक हमारे बैठने की जगह बनाई. पता चला कि डा. कलाम के विशेष विमान के चालक एवं अन्य कर्मी, एयर होस्टेस तथा यात्रादल में शामिल अन्य लोग भी, जो राष्ट्रपति भवन के रात्रिभोज में नहीं गए थे, वहां डिनर के लिए आए थे. त्रिपाठी जी के सानिध्य में शाम अच्छी बीती. उन्होंने यूक्रेन, कीव और वहां रहनेवाले भारतीयों के बारे में काफी जानकारियां दी.

कीव के एक मार्केट एरिया में हमारे बाएं
दिनमलार के मालिक-संपादक
आर. कृष्णमूर्ति और दाएं कुमार राकेश

        मिसाइल फैक्ट्री में 

    ‘भारतीय मिसाइलमैन’


    तीन जून की सुबह डा. कलाम नेशनल तारस शेवचेंको यूनिवर्सिटी में गए. वहां उन्होंने प्राध्यापकों एवं छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि यूक्रेन और भारत पारंपरिक ज्ञान और सभ्यता के मामले में काफी मजबूत हैं और इनके आधार पर समृद्ध समाज का निर्माण संभव है. उन्होंने कहा कि समृद्ध समाज अपनी मजबूत सभ्यता के बलबूते विश्व शांति की दिशा में काम कर सकता है. शेवचेंको विश्वविद्यालय से निकलकर डा. कलाम राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी गए. उन्होंने वहां कार्यरत भारत और यूक्रेन के वैज्ञानिकों से कहा कि दोनों देशों के वैज्ञानिकों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हासिल उपलब्धियों से संबंधित चुनिंदा विषयों के क्षेत्र में गहरा अध्ययन करना चाहिए.

    दोपहर का हम सबका भोजन यूक्रेन सरकार के स्पेशल एयरक्राफ्ट आइ एल-62 में हुआ, जिसमें सवार होकर हम लोग डा. कलाम के साथ कीव से 500 किमी दूर निप्रोपेत्रोस सिटी गये. वहां उनका स्वागत वहां के गवर्नर और मेयर ने बहुत गर्मजोशी के साथ किया. हम लोग युझनोय स्थित अंतरिक्ष रॉकेट एवं विश्व प्रसिद्ध मिसाइलों का निर्माण करनेवाली फैक्टरी में गये. इस फैक्ट्री या कहें युझनोय स्टेट डिजाइन ब्यूरो में तकरीबन पांच हजार वैज्ञानिक, शोधकर्ता और कर्मचारी काम कर रहे थे. वहां उस समय बैलेस्टिक मिसाइल, राकेट इंजन, इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, अंतरिक्ष यान, कक्षीय प्रेक्षपण यान और उपग्रह के उत्पादन कार्य हो रहे थे. युझनोय स्टेट डिजाइन ब्यूरो के वैज्ञानिक और शोधकर्ता डा. कलाम को भारत के राष्ट्रपति के साथ ही ‘मिसाइलमैन’ के रूप में भी देख रहे थे. हमारे साथ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष जी माधवन नायर भी थे. वैज्ञानिकों ने डा. कलाम को अपने नये प्रयोगों और परियोजनाओं के बारे में भी जानकारी दी. डा. कलाम ने वहां वैज्ञानिकों एवं अधिकारियों के साथ बैठक भी की. एक दिन पहले भारत और यूक्रेन ने बाह्य अंतरिक्ष के क्षेत्र में आपसी सहयोग के एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किया था. इस समझौते के तहत इसरो और यूक्रेन की नेशनल स्पेस एजेंसी अगले दस वर्षों तक एक दूसरे के साथ सहयोग करेंगे. युझनोय से कीव लौटते समय शाम हो चली थी. 3 जून की शाम डा. कलाम यूक्रेन के प्राचीनतम नेशनल ऑपेरा हाउस में सांस्कृतिक संध्या देखने गये. 


    स्वदेश वापसी


    4 जून की सुबह नई दिल्ली प्रस्थान के लिए बोरिस्पिल हवाई अड्डे के लिए रवाना होने से पहले डा. कलाम ने कीव में रह रहे भारतीय छात्र-छात्राओं से मुलाकात की. उनसे भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए अपने मिशन 2020 के बारे में बातें की और उनके सवालों के जवाब दिए. सुबह 11 बजे हम लोग बोरिस्पिल हवाई अड्डे पर पहुंच गये. 11-45 बजे डा. कलाम के विशेष विमान तंजौर से हम सबने 13-14 दिनों के विदेश प्रवास की खुशनुमा यादों के साथ नई दिल्ली के लिए उड़ान भरी. तकरीबन 8.30 घंटे की उड़ान के बाद स्थानीय समय के मुताबिक रात के 8-15 बजे राष्ट्रपति डा. कलाम का विशेष विमान तंजौर नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के वीवीआईपी एरिया में उतरा. रास्ते में डा. कलाम ने मीडिया के लोगों की खोज खबर और खैरियत जानने के बाद संवाददाताओं से बातें की. अपनी चार देशों की यात्राओं की उपलब्धियों के बारे में बातें की. खुद पत्रकार की भूमिका में आकर उन्होंने पत्रकारों से भी सवाल किए.

    
कीव से नई दिल्ली की विमान यात्रा में डा. कलाम से गुफ्तगू
    डॉ. कलाम ने भारत को ज्ञान-विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उभर रही महाशक्ति करार देते हुए कहा कि हाल के वर्षों में देश ने जो आर्थिक उपलब्धियां हासिल की हैं, वैश्विक स्तर पर उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा कि इस बार उनकी यात्रा का मकसद भारत की मार्केटिंग करना भी था. अब हम सिर्फ दुनिया के देशों से निवेश आमंत्रित नहीं कर रहे बल्कि खुद उन देशों में निवेश के प्रस्ताव भी कर रहे हैं. उनकी यात्रा का मकसद द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के साथ ही विज्ञान, सूचना प्रौद्योगिकी, नैनो प्रौद्योगिकी, औषधि उद्योग, अंतरिक्ष विज्ञान उपग्रह आदि के मामले में भारतीय निवेश के लिए बाजार और संयुक्त उपक्रमों के लिए संभावनाएं तलाशना भी था. भूकंप की भविष्यवाणी, आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में इन चारों देशों में हो रहे अनुसंधान कार्यों को जानने के अलावा उनकी यात्रा का वैज्ञानिक उद्देश्य पार्टिकल फिजिक्स, नैनो तकनीक, अंतरिक्ष विज्ञान आदि के क्षेत्र में चल रहे प्रयोग- अनुसंधान का जायजा लेना भी था. उन्होंने अपनी यात्रा को संतोषजनक से भी अधिक सफल करार दिया और बताया कि यात्रा की उपलब्धियों के बारे में वह प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों से भी बातें करेंगे ताकि उन पर अमल के लिए ठोस कार्य योजनाएं बन सकें. उन्होंने साथ चल रहे सांसदों से भी संबद्ध देशों की यात्रा के दौरान निजी अनुभवों पर आधारित संक्षिप्त रिपोर्ट तैयार करने को कहा. हर विदेशी दौरे के बाद डा. कलाम विदेश में होने वाली सभी द्विपक्षीय चर्चाओं, उपलब्धियों और संभावनाओं पर सरकार को सुझाव भेजते थे, जिसमें उनकी इच्छा सूची भी शामिल रहती थी. कुछ पर अमल भी होता था लेकिन कुछ को कभी भी लागू नहीं किया गया. इसका उन्हें अफसोस भी रहता था.


    राष्ट्रपति कलाम की इस विदेश यात्रा का एक बड़ा मकसद संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के विस्तार, उसमें किए जाने वाले सुधारों और उसे और अधिक पारदर्शी बनाने और खास तौर से विस्तारित सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी के लिए समर्थन जुटाना भी था. इसमें भी काफी हद तक वह कामयाब रहे. रूस, यूक्रेन और आइसलैंड ने जहां भारतीय दावेदारी का समर्थन किया वहीं स्विट्जरलैंड ने इस मामले में अपनी तटस्थ स्थिति बरकरार रखते हुए भी यह माना की स्थाई सदस्यता के लिए भारत का दावा गलत नहीं है लेकिन समर्थन देने से पहले वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में होने वाले सुधारों की रूपरेखा, विभिन्न प्रस्ताव देख समझ लेना चाहता है. लेकिन आइसलैंड तो समर्थन से भी कुछ आगे बढ़कर सुरक्षा परिषद के विस्तार के लिए 4 देशों (भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान) के प्रस्ताव का सह प्रायोजक बनने को भी तैयार हो गया.

    पत्रकार की भूमिका में डा. कलाम


    
आमतौर
पर तो राष्ट्राध्यक्षों, नेताओं से पत्रकार ही सवाल पूछते रहते हैं लेकिन इस बार राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने चार देशों की अपनी 13-14 दिवसीय यात्रा से लौटते समय साथ गए पत्रकारों से ही पूछ लिया कि दौरे में उन्होंने क्या सीखा ! जवाब में एक पत्रकार ने कहा कि उन्हें नैनो तकनीक का सिद्धांत समझ में आ गया नैनो तकनीक किसी मीटर के एक अरबवें या उससे भी कम की माप के बारे में अध्ययन से संबंधित है. इस पर डॉ. कलाम ने कहा आपको 60 प्रतिशत अंक मिलते हैं. उन्होंने अन्य पत्रकारों से भी यही प्रश्न पूछा. बाद में उन्होंने एक-एक पत्रकार से अलग से भी बातें की, उनके साथ तस्वीरें भी खिंचवाई.


राष्ट्रपति भवन में बच्चों के साथ डा. कलाम से मिलने की तैयारी
    हमने बातचीत में उनका ध्यान इस बात की ओर आकर्षित किया कि विदेश प्रवास से लौटने के बाद राष्ट्रपति महोदय साथ गये सभी लोगों को उनकी पत्नी-पति के साथ राष्ट्रपति भवन में ‘ऐट होम’ चाय पार्टी पर बुलाते हैं. लेकिन उसमें बच्चों को लाने की मनाही होती है. बच्चों को हमें घर में या फिर इंडिया गेट पर छोड़ कर आना पड़ता है. इसका बच्चे बहुत बुरा मानते हैं. यह सुनकर उन्होंने बगल में खड़े प्रोटोकोल अधिकारी की तरफ देखा. उन्होंने कहा कि यह प्रोटोकोल के मुताबिक नहीं है. लेकिन, हमने कहा कि बच्चों के मामले में तो डा. कलाम ‘ऐंटी प्रोटोकोल’ हैं. डा. कलाम ने हामी भरने के अंदाज में मुस्करा दिया. नई दिल्ली लौटने के 
बाद अचानक जब राष्ट्रपति भवन से ‘ऐट होम पार्टी’ का निमंत्रण मिला तो साथ में बच्चों को भी ले आने को कहा गया था. हमारी और मेरी समझ से डा. कलाम के साथ इस विदेश यात्रा पर गए सभी लोगों के लिए और खासतौर से हमारे बच्चों के लिए यह बहुत बड़ी खुशखबर थी. हम ऐट होम पार्टी में बच्चों के साथ गए. 
पुत्री सुमेधा से मुखातिब डा. कलाम 
   डा. कलाम ने एक एक से मिलकर बातें की. स्नैक्स खिलाया. बच्चों से पूछा भविष्य में क्या बनना चाहते हो! जवाब सुनकर वह कहते, इसके लिए खूब पढ़ना और खूब परिश्रम करना होगा. उनके निर्देश पर राष्ट्रपति भवन के छायाकारों ने डा. कलाम के साथ हमारी और बच्चों की तस्वीरें भी उतारीं और उन्हें उपलब्ध भी करवाई. बच्चों के लिए तो यह उनकी जिंदगी का सबसे सुखद, शानदार और यादगार पल थे. 

    बहरहाल, विमान में लौटते समय डॉक्टर कलाम से एक संवाददाता ने पूछ लिया कि राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल का बड़ा हिस्सा पूरा हो चुका है. उसके यानी सेवानिवृत्ति के बाद वह क्या करेंगे! उन्होंने कहा कि पद और कार्यकाल उनके लिए उनके मिशन से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है. राष्ट्रपति नहीं रहेंगे तो प्रोफेसर रहेंगे. इस रूप में वे अपने मिशन 2020 के लिए काम करते रहेंगे. यह महज संयोग भर नहीं था कि 27 जुलाई 2015 को मेघालय की राजधानी शिलांग में भारतीय प्रबंधन संस्थान में डा. कलाम ने आखिरी सांस एक प्रोफेसर के रूप में ही ली. ‘रहने योग्य ग्रह’ जैसे गूढ़ विषय पर व्याख्यान देते समय दिल का दौरा पड़ने के कारण मौके पर ही उनका इंतकाल हो गया था.



2 comments:

  1. आपका ब्लॉग पढ़ कर बहुत कुछ सिखने को मिलता हैं सर। धन्यवाद।

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