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Saturday, 19 September 2020

In Switzerland ( Interlaken) With President Dr, Kalam (राष्ट्रपति डा. कलाम के साथ इंटरलॉकेन, स्विट्जरलैंड में )

डा. कलाम के साथ विदेश भ्रमण (7)


पर्यटकों के स्वर्ग स्विट्जरलैंड में (दूसरी किश्त)


महान वैज्ञानिक आइंस्टीन के घर में


जयशंकर गुप्त

  

28 मई, शनिवार की सुबह डा. कलाम के साथ हम लोग स्विट्जरलैंड के राजधानी शहर बर्न के डाउन टाउन (ओल्ड टाउन) में स्थित उस अपार्टमेंट में भी गए, जहां रहते हुए कभी विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने महान शोध के बाद सापेक्षता (रिलेटिविटी) के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था. इसके लिए ही उन्हें नोबेल पुरस्कार भी मिला था. इस घर को आइंस्टीन के नाम से संग्रहालय बना दिया गया है. उनके दो कमरों के फ्लैट में आइंस्टीन द्वारा इस्तेमाल की जानेवाली वस्तुओं को करीने से सजाकर यथावत रखा गया है. इस संग्रहालय की देखरेख करनेवाली ‘आइंस्टीन सोसाइटी’ ने इस फ्लैट को किराए पर लिया है.
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की गली में  


इस पूरे इलाके को यूनेस्को ने संरक्षित क्षेत्र घोषित किया है. डा. कलाम वहां एक घंटा रहे. घर में संकरी सीढ़ियों पर तेजी से चढ़ते हुए वह पहली मंजिल पर उस कमरे में पहुंचे जिसमें रहकर आइंस्टीन ने अपने प्रसिद्ध ‘सापेक्षता के सिद्धांत’ पर काम किया था. उन्होंने आइंस्टीन से जुड़ी स्मृतियों को यादगार बनाए रखने के लिए पहली मंजिल के कमरों में रखे एक-एक सामान को बड़ी बारीकी से देखा. कमरे में महात्मा गांधी के बारे में आइंस्टीन का प्रसिद्ध उद्धरण भी एक फ्रेम में टंगा था जिसमें उन्होंने कहा था, “आनेवाली पीढ़ियां शायद ही यकीन कर पाएं कि इस धरती पर महात्मा गांधी जैसा हाड़-मांस का कोई पुतला भी रहता था.” डा. कलाम ने उस सूट को बड़े गौर से देखा जिसे महान वैज्ञानिक आइंस्टीन पहनते थे. इस महान वैज्ञानिक की स्मृतियों को सलाम करते हुए डा. कलाम ने विजिटर बुक में लिखा कि उस घर में जाना उनके लिए ‘तीर्थाटन’ जैसा था.


पर्यटकों और बालीवुड की पसंद इंटरलॉकेन में


  28 मई को हमारा अगला पड़ाव स्विट्जरलैंड में खूबसूरत स्विस आल्प्स पहाड़ियों के नीचे बर्नीज हाईलैंड में नयनाभिराम ब्रींज झील में नौकायन करते हुए इंटरलॉकेन में था.
इंटरलॉकेन के लिए खूबसूरत ब्रींज झील में नौकायन 
इंटरलॉकेन को पर्यटकों का स्वर्ग भी कहा जाता है. पूरब में ब्रींज और पश्चिम में थुन झीलों के बीच बसे इंटरलाकेन कस्बे के बीचोबीच आएर नदी बहती है. हॉलीवुड और बॉलीवुड की फिल्मों की शूटिंग के लिए भी यह एक प्रिय और पसंदीदा जगह के रूप में जाना जाता है. यश चोपड़ा जैसे फिल्म निर्माता-निर्देशकों के लिए तो यह एक बेहद पसंसदीदा जगह बताई गई. अमिताभ बच्चन और रेखा अभिनीत ‘सिलसिला’, श्रीदेवी और अनिल कपूर की ‘चांदनी’ से लेकर शाहरुख खान और काजोल की ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे’ जैसी बालीवुड की सफलतम फिल्मों के अधिकतर और खासतौर से रोमांटिक दृश्य यहीं और आसपास शूट किए गए थे. इससे पहले भी यश चोपड़ा की बहुत सारी फिल्मों की शूटिंग यहां हो चुकी थी. शायद यह भी एक कारण था कि यहां और पूरे स्विट्जरलैंड में यश चोपड़ा बहुत लोकप्रिय थे. उन्हें यहां सम्मानित भी किया जा चुका है. इंटरलाकेन में पांच सितारा होटल 'विक्टोरिया जंगंगफ्राऊ' अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के आकर्षण का महत्पूवर्ण केंद्र है. दोपहर का भोजन हम सबने इस होटल में ही किया. कुछ ही दूरी लेकिन काफी ऊंचाई पर विश्व प्रसिद्ध पर्यटन केंद्र जंग फ्राऊ भी है. जहां रेल गाड़ी से जाने की सुविधा भी है.
 
आइजेल्टवॉाल्ड में डा. कलाम के स्वागत में खडे बच्चे
 इंटरलाकेन वाकई बहुत सुंदर और मनोहारी था. वहां पहुंचने से पहले डा. कलाम के साथ हम लोग ऑल्प्स पर्वतमालाओं के नीचे खूबसूरत ब्रींज झील के किनारे बसे गांव ‘आइजेल्टवॉल्ड’ पहुंचे. लगता था कि पूरा गांव डा. कलाम के स्वागत में सड़क पर उतर आया था. हाथों में स्विट्जरलैंड के राष्ट्रध्वज के साथ ही भारतीय राष्ट्रध्वज, तिरंगे को उठाए लोग गाजे-बाजे के साथ दोनों राष्ट्राध्यक्षों के स्वागत में कतारबद्ध खड़े थे. कुछ लोगों के हाथों में प्लेकार्ड्स भी थे. एक प्लेकार्ड पर हिंदी में लिखा था, ‘स्वागत राष्ट्रपति जी’ जबकि एक दूसरे पर लिखा था, ‘विदाई राष्ट्रपति जी’. 

  इंटरलाकेन से महज पांच-छह किमी. दूर आइजेल्टवॉल्ड में भी दुनिया भर और खासतौर से भारतीय पर्यटकों और बालीवुड को आकर्षित करने योग्य सब कुछ है. लेकिन गांव के लोगों की शिकायत है कि अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक और फिल्मकार इंटरलाकेन में ही अटक जाते हैं और वहीं से वापस लौट जाते हैं. आइजेल्टवॉल्ड में डा. कलाम और स्विस राष्ट्रपति श्मिड सड़क पर तकरीबन आधा किमी पैदल चलते और उनके स्वागत में कतारबद्ध खड़े ग्रामीणों-बच्चों से मिलते हुए झील के किनारे पहुंचे. वहां बच्चों ने डा. कलाम के स्वागत में गीत भी गाए. एक बच्ची के मुंह से ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ सुनकर डा. कलाम भी अभिभूत हो गए. यह बच्ची, जासमीन अपने हैदराबादी व्यवसाई माता-पिता और छोटी बहन खुशबू के साथ चार दिन के लिए स्विट्जरलैंड की यात्रा पर आई थी. जब पता चला कि डा. कलाम आइजेल्टवाल्ड में आ रहे हैं तो वह भी अपने परिवार के साथ यहां उनसे मिलने आ गई थी. डा. कलाम ने उससे हाथ मिलाया और उसके नोट बुक में संदेश भी लिखा. डा. कलाम से मिलकर पूरा परिवार धन्य था. 

  जासमीन के पिता जयंत कुमार भंसाली ने बताया कि डा. कलाम से मिलने की उसकी जिद के कारण ही उन्होंने स्विट्जरलैंड में अपना प्रवास चार दिन और बढ़ा लिया. भंसाली ने बताया कि धरती पर स्वर्ग कहे जानेवाला स्विट्जरलैंड और इंटरलॉकेन दुनिया भर के पर्यटकों और खासतौर से भारतीय पर्यटकों का सबसे पसंदीदा पर्यटन केंद्र है. हर साल यहां भारत से भी तकरीबन 70-80 हजार पर्यटक आते हैं. हर जगह भारतीय व्यंजन उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में उन्होंने बताया कि खाने-पीने को लेकर तो कुछ परेशानी जरूर होती है लेकिन जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम हैं, वे लोग मन पसंद व्यंजन तैयार करने के लिए अपने साथ ‘महाराज’ यानी रसोइया भी लेकर चलते हैं. उन्होंने बताया कि छह-सात लोग साथ हों तो होटल में महंगे कमरे लेने के बजाय पांच-छह दिन के लिए किराए पर एपार्टमेंट लेना फायदेमंद होता है. वहां अपने पसंद का भोजन तैयार किया जा सकता है. 

स्विस प्रेसीडेंट श्मिड की पीठ बन गई 'टेबल'


   जासमीन की नोट बुक में संदेश लिखने से पहले डा. कलाम ने इधर उधर देखा. और किसी ने समझा हो पता हीं, लेकिन स्विट्जरलैंड के राष्ट्रपति श्मिड समझ गये. डा. कलाम को किसी तरह की परेशानी नहीं हो, इसके लिए वह वहां पीठ के बल झुक गए. यह एक अनहोनी जैसी बात थी , लेकिन डा. कलाम ने मुस्कराते हुए उनकी पीठ पर नोट बुक रख कर अपना संदेश लिखा. ऐसा होते देख श्मिड भी मुस्कराए बिना नहीं रह सके. जासमीन की नोट बुक पर संदेश लिखते समय एक बुजुर्ग महिला ने डा. कलाम के सामने एक फोटो कार्ड बढ़ाकर उस पर उनसे अपना हस्ताक्षर करने को कहा. डा. कलाम के पूछने पर महिला ने बताया कि तस्वीर उनकी पुत्री और दामाद की है, जो भारत में चंडीगढ़ में रहते हैं.

  आइजेल्टवाल्ड गांव में टहलते समय डा. कलाम की निगाह स्थानीय वाद्यतंत्र ‘आल्पहार्न’ बजा रहे लोगों पर पड़ी.
उन्होंने उनके पास जाकर उनके साथ तस्वीरें खिंचवाई और आल्पहार्न में फूंक मारकर उसे बजाया भी. डा. कलाम ने वहां बच्चों के बीच दिल्ली से लाए उपहार भी बांटे. डा. कलाम के पास स्विट्जरलैंड के राष्ट्रपति श्मिड के लिए भी अलग से एक विशेष उपहार था जिसे वह भारत से अपने साथ लाए थे. उनके कहने पर इसरो के चेयरमैन जी माधवन नायर ने इसरो के उपग्रह, कार्टोसेट-1 से आल्प्स पर्वतमालाओं की थ्री डाइमेंसनल तस्वीरें उतरवाई थीं. ट्रांसमिशन के जरिए आई इन तस्वीरों का एक सेट डा. कलाम ने श्मिड को सौंपा तो वह मुस्कराए और आत्मीय धन्यवाद कहे बिना नहीं रह सके.


ब्रींज झील में नौकायन


  ब्रींज झील में क्रूज पर नौकायन करते समय साथ चल रहे छायाकार दोनों राष्ट्राध्यक्षों की तस्वीरें ले रहे थे. डा. कलाम से नहीं रहा गया. उन्होंने एक कैमरामैन से उसका कैमरा लेकर कहा, ‘जरा मैं भी हाथ आजमां लूं!’
स्विस प्रेसीडेंट श्मिड की तस्वीर उतारते डा. कलाम
उन्होंने स्विस राष्ट्रपति श्मिड की तस्वीरें लीं. नौकायन के दौरान पूरे समय हम पत्रकार एवं कुछ अन्य लोग भी नयनाभिराम झील और बर्फ से ढकी आल्प्स की खूबसूरत पहाड़ियों को देखते-निहारते और प्रकृति प्रदत्त सौंदर्य का लुत्फ उठाते रहे लेकिन डा. कलाम अपने समवर्ती स्विस राष्ट्रपति श्मिड के साथ स्विट्जरलैंड की आपदा प्रबंधन एजेंसी के उप निदेशक टोनी फ्रिश द्वारा आपदा प्रबंधन की नई तकनीक पर दिए जा रहे ‘पावर प्रेजेंटेशन’ में खोए रहे. डा. कलाम ने श्मिड से कहा कि भारत में भी इस तकनीक का लाभ उठाया जा सकता है. श्मिड ने सिर हिलाकर जवाब दिया था, क्यों नहीं.
ब्रींज झील में नौकायन में श्मिड के साथ डा. कलाम

अपनी विशेषज्ञता का लाभ प्रदान करते हुए स्विट्जरलैंड भारत में आपदा प्रबंधन के काम में मदद करेगा. गौरतलब है कि गुजरात में जनवरी 2001 के अंतिम सप्ताह में भयावह भूकंप के समय आपदा प्रबंधन में स्विट्जरलैंड की विशेषज्ञ टीमों ने महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय योगदान किया था. शाम को डा. कलाम राजधानी बर्न में स्थित प्रमुख कैथेड्रल में भी गए.

 लेकिन स्विट्जरलैंड ने डा. कलाम को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन के मामले में किसी तरह का ठोस आश्वासन नहीं दिया. स्विस राष्ट्रपति श्मिड और डा. कलाम के बीच द्विपक्षीय बातचीत के बाद इस बारे में पूछा गया तो श्मिड ने बड़े ही नपे तुले जवाब में इस मामले में अपने देश की तटस्थ नीति का जिक्र करते हुए कहा कि उनका देश भी मानता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार होना चाहिए. लेकिन इससे पहले इस विस्तार से सम्बंधित कुछ औपचारिकताएं भी तय की जानी चाहिए. श्मिड ने कहा कि सुरक्षा परिषद के विस्तार से सम्बंधित प्रक्रिया और औपचारिकताओं के तय होने से पहले उनके देश के लिए यह सवाल विशेष मायने नहीं रखता कि किस देश को स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए और किसे नहीं.


नोटः आपको पता है कि अमेरिका की खोज सबसे पहले किसने की थी! सहज उत्तर होगा, क्रिस्टोफर कोलंबस ने. लेकिन एक बहुत छोटे, तकरीबन न लाख की आबादी वाले देश आइसलैंड के लोग इसका प्रतिवाद करते हैं. क्यों ! अगली कड़ी यानी पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ दूसरे चरण के विदेश भ्रमण के अगले पड़ाव आइसलैंड की यात्रा के संस्मरण साझा करते हुए इसका भी उत्तर देंगे. आइसलैंड में छह महीने दिन और छह महीने रात होती है ! नाम आइसलैंड है लेकिन वहां धधकते ज्वालामुखी भी दिखते हैं. उनका दावा दुनिया का प्राचीनतम लोकतंत्र होने का भी है. और भी बहुत कुछ आपको देखने-पढ़ने को मिलेगा हमारे ब्लॉग jaishankargupt.blogspot.com पर चल रहे हमारे विदेश यात्राओं के संस्मरण में. जो लोग पीछे की कड़ियां नहीं देख सके हैं और देखना पढ़ना चाहते हैं, इस ब्लॉग पर जाकर देख पढ़ सकते हैं. इस पर आपको हमारे और भी बहुत सारे नये पुराने लेख देखने पढ़ने को मिल सकते हैं.

Saturday, 12 September 2020

In Switzerland with President Dr. Kalam ( राष्ट्रपति डा. कलाम के साथ स्विट्जरलैंड में).

कलाम के साथ विदेश भ्रमण (5)

पर्यटकों के स्वर्ग स्विट्जरलैंड में

जयशंकर गुप्त


सेंट पीटर्सबर्ग से 25 मई को ही हमारी सीधी उड़ान स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर के लिए थी. हमने स्विस घड़ियों, स्विस बैंकों और चाकलेट के लिए मशहूर पर्यटकों के लिए स्वर्ग कहे जानेवाले स्विट्जरलैंड के बारे में पहले से बहुत सुन रखा था. यह भी कि वहां पिछले दो सौ वर्षों में कोई युद्ध नहीं हुआ. यहां तक कि पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में भी स्विट्जरलैंड तटस्थ बना रहा. अब यह सब प्रत्यक्ष रूप से देखने-समझने का अवसर मिल रहा था.

पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी यूरोप के संगम पर स्थित स्विट्जरलैंड, 26 कैंटनों (राज्यों) को मिलाकर बना संघीय गणराज्य है. इन सभी कैंटनों के अपने संविधान, अदालतें, विधायिका और सरकारें होती हैं. सब मिलकर स्विस परिसंघ बनाते हैं जिनकी राष्ट्रीय राजधानी बर्न में है. चारों तरफ से जमीन से घिरे (लैंड लाक्ड) देश (जहां समुद्र नहीं है), स्विटजरलैंड की सीमाएं दक्षिण में इटली, पश्चिम में फ्रांस, उत्तर में जर्मनी और पूर्व में ऑस्ट्रिया और लिकटेंस्टीन से लगती हैं. यह भौगोलिक रूप से स्विस पठार, आल्प्स और जुरा (पहाड़ियों) के बीच विभाजित है. पुराने स्विस कॉन्फेडेरसी की स्थापना मध्ययुगीन काल के अंत में ऑस्ट्रिया और बरगुंडी के खिलाफ सैन्य सफलताओं के बाद की गई थी. रोमन साम्राज्य से स्विट्जरलैंड की स्वतंत्रता की औपचारिक मान्यता 1648 में दी गई थी. 16 वीं शताब्दी के सुधारों के बाद से, स्विट्जरलैंड ने सशस्त्र तटस्थता की एक मजबूत नीति बनाए रखी है. इसने 1815 से लेकर अब तक एक भी अंतर्राष्ट्रीय युद्ध नहीं लड़ा. यह 2002 तक संयुक्त राष्ट्र में शामिल भी नहीं हुआ था. फिर भी, यह अक्सर दुनिया भर में शांति प्रक्रियाओं में मध्यस्थ के रूप में शामिल होता रहा. दुनिया के सबसे पुराने और सबसे प्रसिद्ध मानवीय संगठनों में से एक रेड क्रॉस का जन्म यहीं हुआ. संयुक्त राष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा मुख्यालय भी यहीं जिनेवा में है.

बहरहाल, डा. कलाम के साथ हम लोग 25 मई की शाम स्विट्जरलैंड के खूबसूरत जिनेवा लेक (झील) पर स्थित जिनेवा शहर पहुंचे. डा. कलाम के आगमन को यादगार बनाने के लिए स्विट्जरलैंड की सरकार ने 26 मई को ‘विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी. जिनेवा में डा. कलाम के साथ हम दुनिया की सबसे बड़ी कण (पार्टिकल्स) भौतिकी प्रयोगशाला कही जानेवाली सर्न (यूरोपीयन काउंसिल फार न्यूक्लीयर रिसर्च) लेबोरेटरी में भी गए.
विश्व प्रसिद्ध सर्न लेबोरेटरी में 

स्विट्जरलैंड और फ्रांस की सीमाओं से लगी इस प्रयोगशाला में दुनिया भर के चुनिंदा वैज्ञानिक शोध कार्यों में लगे हैं. वहां वैज्ञानिकों को डा. कलाम के सम्मान में सिर झुकाते देख मन में अजीब तरह के गर्व का एहसास हुआ था. उनके साथ भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष अनिल काकोदकर भी थे. उन्होंने वहां डा. कलाम की मौजूदगी में ‘लेटर ऑफ इंटेंट’ पर हस्ताक्षर किया. काकोदकर ने बताया कि सर्न में भारत को पर्यवेक्षक देश का दर्जा मिलने का मतलब हमारी परमाणु क्षमताओं को मान्यता मिलने जैसा है. उस समय तक सर्न में पर्यवेक्षक का दर्जा केवल अमेरिका, रूस और जापान को ही मिला था.

इस लेबोरेटरी में डा. कलाम के साथ घूमने के क्रम में हमें सिर पर हैल्मेट लगाए जमीन के अंदर कई मंजिल नीचे लिफ्ट से जाना पड़ा था.
सर्न में डा. कलाम. पीछे हैं अनिल काकोदकर
डा. कलाम ने वहां मैग्नेट असेंबली और परीक्षण हालों का भी अवलोकन किया. ‘ग्लास बाक्स’ में उन्होंने कुछ चुनिंदा वैज्ञानिकों से बातें की. प्रयोगशाला में हम लोग घुसे तो थे स्विट्जरलैंड से लेकिन जब बाहर निकले तो पता चला कि हम फ्रांस में हैं. दरअसल, इस लेबोरेटरी का आधा हिस्सा स्विट्जरलैंड में तथा आधा फ्रांस की सीमा में पड़ता है. वापस मोटर गाड़ियों के काफिले में हम जिनेवा लौटे. सर्न जाने से पहले डा. कलाम ने जिनेवा में रहनेवाले भारतीय उद्योगपतियों और छात्रों को भी संबोधित किया था. जिनेवा की एक खासियत और है. यह है तो स्विट्जरलैंड में लेकिन यहां की अधिकतर आबादी फ्रेंच भाषी है.

जिनेवा लेक पर 'मूर्तिवत भिखारी’ !


शाम को जिनेवा लेक के पास किनारे पर घूमते समय अजीब नजारा देखने को मिला. एक व्यक्ति प्रस्तर प्रतिमा की तरह खड़ा था. कोई स्पंदन नहीं. पता चला कि वह भिखारी था. जैसे ही कोई उसके पास रखे कटोरे में भीख के रूप में कुछ सिक्के अथवा नोट डालता, अपने खास अंदाज में झुक कर वह शुक्रिया अदा करता और फिर पहले की तरह ही मूर्तिवत हो जाता. जिनेवा लेक में हमने एक ऐसे फौव्वारे का दीदार किया जिससे निकलनेवाले पानी की धार 150 मीटर (हमारे कुतुबमीनार की ऊंचाई के डेढ़-दो गुना ऊंचा) की ऊंचाई तक ऊपर जाती थी. शाम के समय इस फौव्वारे में रंगों का मिश्रण इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था.
जिनेवा लेक के किनारे, पीछे है फव्वारा

जिनेवा लेक में नौकायन करते हुए रास्ते में गगन चुंबी अट्टालिकाओं पर नजर पड़ी. पता चला कि वही तथाकथित ‘स्विस बैंक’ हैं जहां कथित तौर पर न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया भर के दौलतमंदों की काली कमाई, काले धन के रूप में जमा है. बताया गया कि अधिकतर मामलों में खातेदार अपने स्विस एकाउंट्स के कोड नंबर आदि डिटेल्स अपने परिवार के निकटस्थ लोगों, यहां तक कि अपनी पत्नी को भी नहीं बताते और असामयिक निधन होने या कहें दुर्घटना का शिकार होकर मरनेवाले खातेदारों के बैंक खातों के बारे में जानकारी के अभाव में वहां जमा रकम बैंक के पास ही जमा रह जाती है. इन बैंकों की समृद्धि का एक बड़ा कारण यह भी बताया गया.

तकरीबन 75 किमी. लंबी खूबसूरत जिनेवा लेक विलनेवा तक जाती है. इसका कुछ हिस्सा फ्रांस में भी पड़ता है. झील के साथ चल रही चार लेन की सड़क पर सरपट भागती गाड़ियां हवा से बातें करती हैं. सड़क के किनारे पाईन फार्म, अंगूर के बाग, खेत और शहरी गांव हैं. गांव सड़क से गुजरनेवालों के लिए ढके से रहते हैं. वाईन यहां चाकलेट और स्विस घड़ियों की तरह ही मुख्य कमाऊ व्यवसाय है. लुसाने के पास हम कुवी (कुल्ली) गांव गए वहां वाईन फार्म के साथ ही जमीन के अंदर बहुत पुराने लंबे सेलर भी देखे, जहां वाईन का भंडारण और संरक्षण भी किया जाता था.
वहां कई-कई दशक पुरानी वाईन भी देखने को मिली. बाहर निकल कर ‘वाइन टेस्टिंग’ में शामिल होकर हमने ‘स्विस वाइन’ के विभिन्न प्रकारों का लुत्फ उठाया.

26 मई को हम लोग स्विट्जरलैंड के तकरीबन तीन लाख की आबादीवाले फ्रेंच भाषी लुसाने शहर में थे. इस दिन को स्विट्जरलैंड की सरकार ने डा. कलाम की यात्रा को यादगार मनाने के लिए ‘विज्ञान दिवस’ घोषित किया था तो डा. कलाम ने भी इस पूरे दिन को विज्ञान और वैज्ञानिकों के नाम ही समर्पित किया.

विश्व प्रसिद्ध ओलंपिक म्युजियम


लुसाने के बारे में बताया गया कि वहीं से उस खास स्याही (रोशनाई) की आपूर्ति भारत में होती है जिससे हमारे करेंसी नोटों (रुपयों) की छपाई होती है. इसी शहर में विश्व प्रसिद्ध ओलंपिक म्युजियम में घूमना हमारे लिए किसी बड़े आश्चर्य से कम नहीं था.
ओलंपिक म्युजियम के सामने

ओलंपिक खेलों के इतिहास और इसकी विरासत को सहेजने के लिए इस तरह के म्युजियम के निर्माण की परिकल्पना 1915 में यहां बेरन पियरे दि कबर्टिन के द्वारा इंटरनेशनल ओलंपिक समिति का मुख्यालय लाने के साथ ही तैयार हुई थी. 1982 में अस्थाई ओलंपिक म्युजियम को आम लोगों के लिए खोला गया था. लेकिन यह नाकाफी लगा तो 9 दिसंबर, 1988 को मौजूदा ओलंपिक म्युजियम के निर्माण की शुरुआत हुई. तकरीबन पांच साल में तैयार हुए इस भव्य और आकर्षक म्युजियम को 23 जून 1991 में आम लोगों के लिए खोला गया. म्युजियम के अधिकारियों ने बताया कि अब तक तकरीबन 22 लाख पर्यटक-दर्शक म्युजियम में आकर इसमें पहले ओलंपिक से लेकर उस समय तक के ग्रीष्म एवं शीत ओलंपिक खेलों से जुड़े सभी तरह के विवरण, विजेता खिलाड़ियों की जीवंत तस्वीरें, खेलों में इस्तेमाल हुए उपकरण, ड्रेसेज, पदक, सिक्के, डाक टिकट, खेल-प्रतिस्पर्धाओं की जीवंत तस्वीरें, वीडियो, आडियो-वीडियो कमेंट्री आदि का अवलोकन कर चुके हैं. दुनिया भर से औसतन दो लाख दर्शक इस म्युजियम में हर साल आते हैं. इनमें से एक तिहाई स्कूली बच्चे होते हैं.

यह नई पीढ़ी में खेल कूद और खासतौर से ओलंपिक स्पर्धाओं के प्रति बढ़ रहे आकर्षण और लगाव का द्योतक है. म्युजियम में एक बड़े ओलंपिक पार्क के साथ ही इसके बीच में ओलंपिक अध्ययन केंद्र, आडियो-वीडियो लाइब्रेरी, पांच बैठक कक्ष, एक ऑडिटोरियम, रेस्तरां, और एक दुकान भी है जहां से आप ओलंपिक खेलों से जुड़े प्रतीकों, प्रतिकृतियों, आडियो और वीडियो तथा स्मृति चिह्न आदि खरीद सकते हैं. म्युजियम में पसंदीदा ओलंपिक खेलों और प्रतिस्पर्धाओं को आप भुगतान पर लाइव देख सकते हैं. फ्रेंच, अंग्रेजी, जर्मन, स्पेनिश, इटैलियन, रूसी, जापानी एवं चाइनीज भाषा में रेकार्डेड कमेंट्री की व्यवस्था भी है. बताया गया कि इस म्युजियम में पहले ओलंपिक की टार्च के साथ ही अब तक की ओलंपिक प्रतिस्पर्धाओं में प्रयुक्त ओलंपिक टार्च, मशहूर महिला ओलंपियन जीन-क्लॉड किल्ली के स्की और बूट्स तथा कार्ल लुइस के जूते भी सहेज कर रखे गए हैं. बताया गया कि म्युजियम की फोटो लाइब्रेरी में 517000 डाक्युमेंट रखे गए हैं जबकि इसकी वीडियो लाइब्रेरी और फिल्म अभिलेखागार में 21 हजार 500 घंटों की फुटेज मौजूद है. कुल मिलाकर ओलंपिक स्पर्धाओं के बारे में शोध करनेवालों के लिए यहां सब कुछ मौजूद है.

वैज्ञानिकों के बीच डा. कलाम


लुसाने में डा. कलाम फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (एफआईटी) में गये जहां एक सौ से अधिक भारतीय छात्र अध्ययन-अनुसंधान कार्यों में लगे थे. वहां भी वैज्ञानिकों ने उनका जबरदस्त स्वागत किया.
लुसाने स्थित एफआइटी में डा. कलाम. पीछे खड़े राबर्ट ऐमर
एफआईटी के निदेशक राबर्ट ऐमर ने उनका स्वागत करते हुए कहा कि एक वैज्ञानिक के रूप में डा. कलाम का योगदान विलक्षण है. पूरी दुनिया की विज्ञान बिरादरी के लिए यह गौरव की बात है कि डा. कलाम के रूप में एक वैज्ञानिक राष्ट्राध्यक्ष हमारे बीच हैं. उनके मुंह से यह बातें सुनकर गर्व से हमारा सीना चौड़ा और सिर ऊंचा हो गया. हमें एहसास हुआ कि राष्ट्रपति के रूप में डा. कलाम के होने के मायने क्या हैं. डा. कलाम ने महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की स्मृति को सलाम किया और महात्मा गांधी तथा विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में उनके द्वारा कही गई बातों को उद्धृत करते हुए कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के रचनात्मक इस्तेमाल के क्षेत्र में दोनों देशों को साझा प्रयास करने चाहिए.

डा. कलाम ने कहा, 'परमाणु ऊर्जा से हम बिजली और बम दोनों बना सकते हैं. एक से प्रकाश मिलेगा और दूसरे से विनाश होगा'. उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी हानिकारक नहीं है, बशर्ते उसका इस्तेमाल करनेवाले ओर उनके इरादे गलत न हों. उन्होंने कहा, 'परमाणु प्रौद्योगिकी से हम ऊर्जा तैयार कर सकते हैं, उन्नत किस्म के बीज पैदा कर सकते हैं. रेडिएशन से घातक बीमारियों का इलाज भी संभव है. लेकिन यह भी सच है कि इससे विनाशकारी बम भी बनाए जा सकते हैं.' उन्होंने विश्व वैज्ञानिक समुदाय से परमाणु प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल विनाश के लिए नहीं बल्कि रचनात्मक कार्यों के लिए करने का आह्वान किया.

लुसाने स्थित फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी में अध्ययन, अनुसंधान और विभिन्न प्रयोगशालाओं, खासतौर से विकलांग बच्चों की बीमारी (ऑटिज्म) से निजात पाने तथा कनवर्जेंस ऑफ टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अनुसंधान कर रही प्रयोगशालाओं को देखने के बाद डा. कलाम के मुंह से बरबस ही निकल पड़ा, ‘जल्दी ही कुछ अच्छा होने वाला है.’ उनका आशय शायद मानसिक रूप से विकलांग बच्चों की विकलांगता दूर करने तथा कनवर्जेंस आफ टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में किसी नई खोज के सामने आने को लेकर था. लुसाने में अध्ययन और अनुसंधान में लगे दुनिया भर के छात्रों और फैकल्टी मेंबरों के बीच डा. कलाम ने कंप्यूटर के क्षेत्र में हो रहे नित नए अनुसंधानों का जिक्र करते हुए कहा, 'वर्ष 2021 तक दुनिया में ऐसे सुपर कंप्यूटर आ जाएंगे जिनकी क्षमता मानव मस्तिष्क से हजार गुना ज्यादा होगी.' लेकिन, इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘मानव मस्तिष्क की तरह कंप्यूटर कभी रचनात्मक नहीं हो सकता.’ उन्होंने मानव क्लोनिंग बनाए जाने के विचार से असहमति जताते हुए कहा कि यह प्रकृति के विरुद्ध है.

26 मई की शाम हम लोग स्विट्जरलैंड में आबादी के हिसाब से सबसे बड़े शहर ज्यूरिख में स्थित फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी भी गये. वहां भी डा. कलाम का अभूतपूर्व स्वागत हुआ. इन दोनों विश्व प्रसिद्ध प्रौद्योगिकी संस्थानों का महत्व इस बात से भी समझ सकते हैं कि अब तक विज्ञान के क्षेत्र में सर्वाधिक नोबल पुरस्कार इन्हीं दोनों संस्थानों के वैज्ञानिकों को मिले हैं.

राजधानी शहर बर्न में डा. कलाम का स्वागत


ज्यूरिख से 27 मई को हम लोग राजधानी शहर बर्न गये. डा. कलाम के स्वागत के लिए पूरी दुनिया में शांति और व्यवस्था के प्रतीक स्विट्जरलैंड के राष्ट्रपति सैम्युएल श्मिड तथा उनकी पत्नी ऐरेना श्मिड भी वहां मौजूद थे. दोनों देशों की राष्ट्रीय धुनें बजने के बाद कलाम का स्वागत 26 फौव्वारों के साथ किया गया. ये फौव्वारे स्विट्जरलैंड परिसंघ में शामिल 26 कैंटनों (राज्यों) की तरफ से थे. डा. कलाम ने वहां स्विट्जरलैंड परिसंघ की संघीय परिषद को संबोधित किया. राष्ट्रपति भवन में डा. कलाम के सम्मान में राष्ट्रपति श्मिड द्वारा आयोजित राजकीय रात्रिभोज (बैंक्वेट डिनर) के अवसर पर डा. कलाम ने दोनों देशों के बीच मित्रतापूर्ण संबंधों की तुलना विशाल हिमालय और आल्प्स पर्वतमालाओं से करते हुए कहा कि दोनों देश जब एक-दूसरे से दोस्ती का हाथ मिलाते हैं तो लगता है कि दोनों विशाल और प्राचीन पर्वत श्रृंखलाएं एक दूसरे से मिल रही हैं. उन्होंने कहा कि आजाद होने के बाद भारत के साथ दोस्ती के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करनेवाला पहला देश स्विट्जरलैंड ही था. डा. कलाम ने सापेक्षता (रिलेटिविटी) के सिद्धांत का प्रतिपादन करनेवाले महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के शताब्दी वर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि ‘अन्नालेन डेर फिजिक्स’ में उनके युगांतरकारी लेख ने भौतिकी का रूप ही बदल दिया था.
उन्होंने कहा, ‘’जब मैं आइंस्टीन के बारे में सोचता हूं तो मुझे महात्मा गाधी के बारे में उनकी वह टिप्पणी याद आती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि आनेवाली पीढ़ियां शायद ही यकीन कर पाएं कि इस धरती पर महात्मा गांधी जैसा हाड़-मांस का कोई पुतला भी रहता था.”

क्रमशः


अगली कड़ी में स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में स्थित उस फ्लैट में डा. कलाम की यात्रा जहां रहते हुए कभी महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने सापेक्षता (रिलेटिवटी) का सिद्धांत प्रतिपादित किया था जिसके लिए उन्हें नोबल पुरस्कार भी मिला था. इसके साथ ही डा. कलाम और स्विट्जरलैंड के राष्ट्रपति सैम्युएल श्मिड के साथ पर्यटकों का स्वर्ग और बालीवुड की पसंद कहे जानेवाले इंटरलाकेन और ब्रींज झील की सैर से जुड़े रोचक संस्मरण.