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Saturday, 29 August 2020

Foreign Visits with President Dr. APJ Abdul Kalam



मास्को और पीटर्सबर्ग

जयशंकर गुप्त

मेरे लिए तो यह किसी बड़े और सुखद आश्चर्य से कम नहीं था. राष्ट्रपति भवन से सूचित किया गया कि राष्ट्रपति डा. ए पी जे अब्दुल कलाम चार देशों (रूस, स्विट्जरलैंड, आईसलैंड और यूक्रेन) की यात्रा पर निकल रहे हैं. उनके साथ जानेवाली मीडिया टीम में हमारा नाम भी शामिल है. कुछ देर बाद राष्ट्रपति भवन से औपचारिक आमंत्रण भी मिल गया. राष्ट्रपति के रूप में डा. कलाम की यह तीसरी विदेश यात्रा थी जबकि डेढ़ साल के अंतराल के बाद हमारे लिए उनके साथ यह दूसरी विदेश यात्रा होनेवाली थी. छात्र-युवा जीवन से ही मन में जिन देशों और शहरों को देखने की सपने जैसी तमन्ना थी, उसमें रूस और खासतौर से उसका राजधानी शहर मास्को भी था. इसकी खास वजह कभी कम्युनिस्टों, खासतौर से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों का ‘मक्का’ कहे जानेवाले रूस और उसके राजधानी शहर मास्को में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक बदलावों को जानने समझने की ललक भी थी. पत्रकार के बतौर पेरेस्त्रोइका और ग्लासनोश्त के बाद हुए बदलावों, कम्युनिस्ट शासन के पटाक्षेप और रूस में हुए वैश्वीकरण और उदारीकरण के प्रभावों को लेकर मन में तमाम तरह के सवाल और जिज्ञासाएं थीं जो मास्को, पीटर्सबर्ग और यूक्रेन यात्रा के दौरान पूरी हो सकती थीं. यूक्रेन भी कभी कम्युनिस्ट सोवियत संघ का अभिन्न हिस्सा था.

 लेकिन, तकरीबन चौदह दिनों (22 मई 2005 से लेकर 4 जून 2015) की इन चार देशों की यात्राओं के दौरान डा. कलाम की चिंता का विषय भूकम्प और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान की संभावनाओं एवं उससे बचाव के उपायों पर शोध और विचार करना भी था. गौरतलब है कि 26 दिसंबर 2004 को हिंद महासागर में आए भूकंप-सुनामी से उठी ऊंची लहरों ने कई देशों सहित भारत के समुद्रतटीय इलाकों में जान माल की भारी तबाही मचाई थी. इसके अलावा देश की सुरक्षा जरूरतों के साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता के लिए समर्थन जुटाना भी डा. कलाम की इन चार देशों की यात्रा की प्राथमिकताओं में था. सभी जगह छात्रों, प्रोफेसरों और वैज्ञानिकों से मिलना और उनसे सीधा संवाद कायम करना, उनके एजेंडे में वैसे भी प्रमुखता से रहता.

इस यात्रा में शामिल 50 सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल में अनिवासी भारतीय मामलों के तत्कालीन राज्यमंत्री जगदीश टाइटलर, सांसद द्वय-मिलिंद देवड़ा एवं एन पी दुर्गा के साथ ही संबद्ध विषयों से जुड़े वैज्ञानिक, सरकार के आलाअफसर, राष्ट्रपति के सचिव पी एम नायर, प्रेस सचिव एस एम खान, सुरक्षा अधिकारी तथा मीडियाकर्मी के रूप में हम, यूएनआई के नीरज वाजपेयी, पीटीआई समीर कौल और छायाकार शिरीष शेट्टी, आईएनएस के शिबी अलेक्स चेंडी, आकाशवाणी की अल्पना पंत शर्मा-नीरज पाठक, डीडी न्यूज की मधु नाग और कैमरामैन बी ए नवीन, दैनिक भास्कर के कुमार राकेश, कन्नड़ दैनिक विजय कर्नाटक के विशेश्वर भट्ट, दि हिंदू के के वी प्रसाद, इंडियन एक्सप्रेस की रितु सरीन, मिड डे-इन्किलाब के खालिद अंसारी, दिनमलार के मालिक संपादक आर कृष्णमूर्ति जी, एएनआई के राजेश सिन्हां और एएनआई के फोटोग्राफर अजय शर्मा भी थे. इस बार भी उनके काफिले में उनका कोई अपना रिश्तेदार-नातेदार शामिल नहीं था.

 एयर इंडिया के विशेष विमान ‘तंजौर’ में उनके पसंदीदा भोजन तैयार करने के लिए खासतौर से दक्षिण भारतीय सब्जियों और करी पत्ते के बंडल जरूर लद रहे थे. टेकऑफ के तुरंत बाद, कलाम मीडिया सेक्शन में चले आए, और बोले, “अपने भोजन और प्रिय पेय पदार्थों का आनंद लें.” यह एक ऐसा वाक्य था जिसे वह दो सप्ताह की लंबी यात्रा के दौरान तकरीबन हर उड़ान में दोहराते थे. वैसे, पिछली यात्रा की तरह ही इस बार भी एयर इंडिया के विशेष विमान ‘तंजौर’ में ‘महाराजा’ का आतिथ्य लाजवाब था. खाने-पीने की हर ख्वाहिश बड़ी विनम्रता के साथ पूरी की जाती थी. खाने-पीने की जो चीज विमान में उपलब्ध नहीं होती थी, उसका इंतजाम अगली उड़ान में अवश्य कर दिया जाता. 

 नई दिल्ली से मास्को तक की उड़ान में डा. कलाम ने मीडिया के लोगों को अपनी यात्रा के मकसद के बारे में समझाते हुए कहा था, “रूसी नेताओं और वैज्ञानिकों से उनकी मुलाकात के केंद्र में सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ‘ब्रह्मोस’ को तीसरी दुनिया के बाजार में उतारना भी होगा. उन्होंने बताया कि वह भारत और रूस के द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित ब्रह्मोस का निर्माण करनेवाले रूसी सैन्य प्रतिष्ठान में भी जाएंगे. इसके अलावा वह विज्ञान, तकनीक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेष रूप से आपसी सहयोग के बारे में बात करेंगे. केवल रूस ही नहीं, स्विट्जरलैंड, आइसलैंड और यूक्रेन से भी वैज्ञानिक सहयोग बढ़ाने पर बल देंगे.

 22 मई, 2005 को हम डा. कलाम के साथ राष्ट्रपति के साथ मास्को में व्नूकोवा हवाई अड्डे पर पहुंचे. रूस के वित्त मंत्री अलेक्सेई कुद्रिन ने पूरे लाव लश्कर के साथ रेड कार्पेट बिछाए हवाई अड्डे पर उनका भव्य स्वागत किया. 

 पूर्वी यूरोप और उत्तर एशिया में स्थित रूस की ख्याति विश्व के सबसे बड़े क्षेत्रफल (17075400 वर्ग किमी) वाले देश के रूप में है. आकार की दृष्टि से यह भारत से पांच गुना से भी बड़ा है. इतना विशाल देश होने के बाद भी रूस की जनसंख्या विश्व में सातवें स्थान पर है. रूस की सीमाएं नार्वे, फ़िनलैंड, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड, बेलारूस, यूक्रेन, जॉर्जिया, अज़रबैजान, कजाकिस्तान, चीन, मंगोलिया और उत्तर कोरिया के साथ लगती हैं.

 प्रथम विश्वयुद्ध और बोल्शेविक क्रांति के बाद सोवियत संघ विश्व का सबसे बड़ा साम्यवादी देश बना. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पूरी दुनिया में सोवियत संघ एक प्रमुख सामरिक और राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरा. अमेरिकी ब्लाक (नाटो) के मुकाबले सोवियत ब्लाक (सीटो) का नेतृत्व यूएसएसआर (युनियन ऑफ  सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स) करने लगा. संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ शीत युद्ध, सामरिक, आर्थिक, राजनैतिक और तकनीकी क्षेत्रों में एक-दूसरे से आगे निकलने की वर्षों तक चली होड़ के कारण यह आर्थिक रूप से कमजोर होता चला गया. लोकतंत्र विहीन साम्यवाद और सर्वहारा की तानाशाही के नाम पर कम्युनिस्टों के एकाधिकारवादी शासन और मानवाधिकारों के दमन के विरुद्ध अस्सी के दशक में जनता के बड़े हिस्से में असंतोष व्यापक होने लगा. इसी के क्रम में रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति मिख़ाइल गोर्बाच्योव के दिमाग में सोवियत संघ के लोकतांत्रिक और उदारवादी कायापलट की एक से एक योजनाएं कुलबुला रही थीं.

उन्होंने पाया कि अमेरिका के नेतृत्ववाले पश्चिमी गुट के साथ हथियारों की होड़ से सोवियत अर्थव्यवस्था बहुत ख़स्ता हो चली है. उन्होंने अपने सुधारों को पेरेस्त्रोइका (पुनर्गठन) और ग्लासनोस्त (पारदर्शिता) का नाम दिया. उन्होंने सोवियत गुट के वार्सा संधि वाले देशों को यह छूट भी दे दी कि वे अपनी नीतियां अब मॉस्को के हस्तक्षेप के बिना स्वयं तय कर सकते हैं. लोकतंत्र के एकबारगी प्रस्फुटन के इस क्रम में ही 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया और इस तरह से सोवियत संघ के घटक देशों में कम्युनिस्ट शासन के अंत की शुरुआत भी हो गई.


राजधानी शहर मास्को की 'सेवेन सिस्टर्स' 


 इन बदलावों का साक्षी रूस का राजधानी शहर मास्को भी रहा है. ऐतिहासिक वोल्गा नदी की कंट्रीब्यूटरी मोस्कवा नदी के तट पर बसा मास्को रूस की राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, वित्तीय एवं शैक्षणिक गतिविधियों का केंद्र माना जाता है. ऐतिहासिक रूप से पुराने सोवियत संघ एवं प्राचीन रूसी साम्राज्य की राजधानी भी रहे मास्को शहर को 1237-38 के आक्रमण के बाद, मंगोलों ने आग के हवाले कर दिया था. बड़े पैमाने पर लोग मारे गये थे. मास्को दुबारा विकसित हुआ और 1327 में व्लादिमीर सुज्दाल रियासत की राजधानी बना. मई, 1703 में बाल्टिक तट पर जार पीटर महान द्वारा सेंट पीटर्सबर्ग के निर्माण के बाद (उससे पहले वह कस्बा-शहर पेट्रोग्राद के नाम से जाना जाता था), 1712 से रूस की राजधानी मास्को से स्थानांतरित होकर सेंट पीटर्सबर्ग चली गई. लेकिन 1917 के रूसी (बोलशेविक) क्रांति के बाद मास्को को सोवियत संघ की राजधानी बनाया गया.
 विश्व प्रसिद्ध स्थापत्य के लिए मशहूर मास्को ‘सेंट बेसिल केथेड्रल’, ‘क्राइस्ट द सेवियर केथेड्रल’ और सेवेन सिस्टर्स जैसी इमारतों के लिए भी प्रसिद्ध है. लंबे समय तक मास्को पर रूढ़िवादी चर्चों का प्रभाव रहा. हालांकि, शहर के समग्र रूप 
में सोवियत काल से भारी परिवर्तन हुए. खासतौर से जोसेफ स्टालिन के शहर के आधुनिकीकरण के बड़े पैमाने पर किये प्रयास के कारण यह परिवर्तन हुआ. स्टालिनवादी अवधि का सबसे प्रसिद्ध योगदान 'सेवेन सिस्टर्स' (सात बहनें) का निर्माण माना जा सकता है. सेवेन सिस्टर्स यानी सात गगनचुम्बी इमारतें हैं, जो क्रेमलिन से समान दूरी पर शहर भर में फैली हुईं हैं. ओस्तान्कियो टॉवर के अलावा ये सात टॉवर मध्य मास्को की सबसे ऊंची इमारतों में से हैं. इन सात टावरों को शहर के सभी ऊंचे स्थानों से देखा जा सकता है. ओस्तान्कियो टॉवर का निर्माण 1967 में पूरा हुआ था, उस समय यह दुनिया की सबसे ऊंची भूमि संरचना थी. आज भी यह बुर्ज खलीफा (दुबई), केंतून टॉवर (ग्वांगझू-चीन) और सी.एन. टॉवर (टोरोंटो) के बाद दुनिया में चौथे स्थान पर है.

 सोवियत संघ के जमाने से ही रूस और भारत के संबंध बहुत प्रगाढ़ और सहयोगी रहे हैं. नेहरू-इंदिरा युग में भारत में हुए औद्योगीकरण में भी सोवियत रूस का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के समय सोवियत रूस चट्टान की तरह भारत के साथ खड़ा रहा. अभी भी तमाम मामलों में रूस की भूमिका भारत के घनिष्ठ सहयोगी देश के रूप में ही नजर आती है. डा. कलाम की रूस यात्रा इन संबंधों को और मजबूती प्रदान करने की गरज से भी महत्वपूर्ण कही जा सकती थी.

सोवियत संघ के विखंडन के बाद रूस की यात्रा पर पहुंचनेवाले डा. कलाम भारत के पहले राष्ट्रपति थे. इससे पहले तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने 1988 में तत्कालीन सोवियत संघ की यात्रा की थी. 22 मई को मास्को पहुंचने के साथ ही डा. कलाम को अपने जमाने के मशहूर फिल्म अभिनेता, केंद्रीय मंत्री सुनील दत्त के असामयिक निधन के दुखद समाचार से अवगत होना पड़ा. उसी रात उन्हें केंद्र सरकार के बिहार विधानसभा को भंग करने के अप्रिय और विवादित फैसले पर मुहर भी लगानी पड़ी जिसके लिए बाद में उनकी काफी किरकिरी भी हुई. 

 मास्को में विमान से बाहर निकलने पर अजीब तरह के मौसम से सामना हुआ. नई दिल्ली में हमें बताया गया था कि मास्को में उस समय बहुत ठंड पड़ती है. इस लिहाज से हम सबने गरम कपड़े धारण कर लिए थे. साथ चल रहे एक उत्साही पत्रकार सहयोगी ने तो कुछ ज्यादा ही गरम कपड़े, सूट-बूट के ऊपर ओवरकोट भी पहन लिए थे. लेकिन बाहर का मौसम हमारे दिल्ली के जैसा ही था. तकरीबन पौन घंटे की बस यात्रा के बाद मास्को में ठहरने के लिए निर्धारित जगहहोटल रसियामें पहुंचने तक सभी पत्रकार पसीने से लथपथ थे. मौसम का मिजाज होटल में बने मीडिया रूम में मीडिया को राष्ट्रपति डा. कलाम की रूस यात्रा के कार्यक्रमों, उद्देश्य और उससे जुड़े पहलुओं के बारे में ब्रीफ करते समय मास्को स्थित भारत के राजदूत कंवल सिब्बल के चेहरे पर पसीने की लकीरों के रूप में भी समझा जा सकता था. 

 होटल था कि ‘भूल भुलैया’

 मोस्कवा नदी के तट पर ऐतिहासिक रेड स्क्वायर, क्रेमलिन और सेंट ब्रासिल कैथेड्रल के पास स्थित होटल रसिया भी क्या था-विशालकाय भूल भुलैया. बताया गया कि उस होटल के निर्माण की भी एक ऐतिहासिक कथा है. 1947 में मास्को शहर की स्थापना की आठ सौवीं सालगिरह को यादगार बनाने के लिए शहर के विभिन्न इलाकों में आठ ऐतिहासिक इमारतें बनाने का फैसला हुआ था. सात इमारतें तो 1945-55 तक बनकर तैयार हो गईं लेकिन आठवीं इमारत नहीं बन सकी. कारण, बताया गया कि मोस्कवा नदी के किनारे रेखांकित जमीन पर खड़ी की जानेवाली भव्य अट्टालिका के धंस जाने की आशंका थी. बाद में (1964-67) में उसी जगह विशालकाय होटल रसिया बनाया गया. 1990 में लासबेगास में होटल एक्स कैलिबर के बनने तक यह दुनिया में सबसे बड़ा होटल था, जिसका जिक्र गिनिज बुक्स ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में भी दर्ज किया गया. एक्स कैलिबर के बनने के बाद भी होटल रसिया, 2006 में बंद होने तक, यूरोप का सबसे बड़ा होटल बताया जाता था. 21 मंजिले इस होटल में तीन हजार कमरे, 245 हाफ स्युट्स, पोस्ट आफिस, हेल्थ क्लब, नाइट क्लब, मूवी थिएटर, पुलिस थाना और उसके साथ कुछ बैरकें भी थीं. तकरीबन 2500 लोगों के एक साथ बैठने की क्षमता का स्टेट सेंट्रल कंसर्ट हाल भी था. 25 फरवरी 1977 को इस होटल में लगी भीषण आग में 42 लोगों ने झुलसकर दम तोड़ दिया था जबकि 50 लोग बुरी तरह से जख्मी हो गए थे.

  इस होटल के एक कमरे से बाहर निकलकर कहीं जाने और फिर उसी कमरे में लौटने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ती थी. एक बार तो हम और हमारे मित्र कुमार राकेश को इसके लिए लंबी कवायद करनी पड़ी. होटल के अधिकतर कर्मचारी रूसी भाषा ही जानते, समझते और बोलते थे. हम अपने कमरे का लोकेशन भूल गए. सभी कमरे एक ही समान थे. हम जिधर से भी जाते, घूम फिर कर पुरानी जगह चले आते. कर्मचारियों से पूछने पर केहुनी से दायीं अथवा बायीं तरफ जाने का इशारा मिल जाता. काफी परेशान होने के बाद हमने तय किया कि होटल से बाहर निकलकर जिस दिशा के गेट से प्रवेश हुआ था, वहां पहुंचा जाए. सभी चार दिशाओं में एक गेट था. जिस गेट से हमारा प्रवेश हुआ था, उसी गेट से अंदर जाने पर तीसरी मंजिल पर हमारा मीडिया रूम था, वहां से हमें मदद मिल सकती थी. इस क्रम में तकरीबन डेढ़ किमी. का चक्कर लग गया. तब कहीं दुभाषिया लड़की के सहारे हम अपने कमरे तक पहुंच सके. होटल में डांस बार और बेसेमेंट में नाइट क्लब भी था. एक बार तो लिफ्ट में कुछ बार बालाओं या कहें ‘काल गर्ल्स’ से भी सामना हो गया. उनसे बच निकलना ही मुनासिब लगा. हालांकि एक राजनयिक के सहयोग से हम बेसमेंट में स्थित ‘ब्लू एलीफेंट’ के नाम से ‘नाइट क्लब’ में नग्न नृत्य और अन्य तरह की गतिविधियों के गवाह जरूर बने.

 खूबसूरत दुभाषिया लड़कियों से हमारी बातचीत अंग्रेजी में होती थी लेकिन वे लोग हिंदी भी बखूबी जानती, समझती ही नहीं बल्कि बोलती भी थीं. यह बात हममें से किसी को मालूम न थी. खूबसूरत और गहरी मगर नीले पानीवाली साफ-सुथरी मोस्कवा नदी में नौकायन के समय नाच-गाने के क्रम में खाते-पीते समय हममें से कुछ पत्रकार साथियों ने उन लड़कियों के बारे में कुछ मजाकनुमा या वहां के हिसाब से कहें तो कुछ अमर्यादित टिप्पणियां की, जिनके बाद उनमें से एक ने हमसे पूछा, ‘सर, क्या आप लोग हमारे बारे में इस तरह की बातें भी करते हैं.हम तो अवाक रह गए, उसके मुंह से खालिस हिंदी सुनकर बड़ा अजीब लगा. हमने पूछा कि हिंदी कहां से सीखी, पता चला कि वह कई बार भारत आ चुकी थी और आगरा के केंद्रीय हिंदी संस्थान से बाकायदा हिंदी की पढ़ाई भी कर चुकी है. उसके बाद से तो दुभाषिया लड़कियों के साथ बातचीत का हमारा लहजा ही बदल गया. शादी-विवाह के बारे में पूछे जाने पर उनमें से एक ने कहा कि बेरोजगार लड़की से कौन विवाह करेगा. दुभाषिये का काम उन्हें अनुबंध पर मिला था. 

 राजकपूर और ‘गणेश जी’

 मास्को में कभी, सोवियत संघ के जमाने में स्व. राजकपूर का बड़ा जलवा था. लोगमेरा जूता है जापानी’...., ‘आवारा हूंजैसे उनके फिल्मी गानों को गुनगुनाते मिल जाते थे. सोवियत संघ के विघटन के बाद उनके सिर से लाल टोपी तो गायब हो गई लेकिन मोस्कवा नदी में क्रूजर पर घूमते समय रूसी छात्र-युवाओं के द्वारा भारतीय मीडियाकर्मियों के समक्ष पेश किए गए सांस्कृतिक कार्यक्रम में ठेठ रूसी अंदाज में सुनने को मिला, ‘सिर पर लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी.बताया गया कि रूस में और खासतौर से मास्को में पहले से कम मगर बालीवुड और हिंदी फिल्मों का आकर्षण अभी भी है. लोगों में शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन और मिथुन चक्रवर्ती अभी भी खासे लोकप्रिय हैं. बताया गया कि चैनल 2 पर खासतौर से रविवार के दिन रूसी भाषा में रूपांतरित हिंदी फिल्में दिखाई जाती हैं. मास्को शहर में घूमते समय हमें लेनिनिस्की प्रास्पेक्ट हाइवे पर एक बैनर में टंगे अपने प्रिय देवता गणेश जी के दर्शन हो गए. उनकी तस्वीर के साथ रूसी भाषा में कुछ लिखा था. दुभाषिए से पूछने पर पता चला कि गणेश जीबकारा कैसिनोका प्रचार कर रहे हैं. यह बताने की जरूरत नहीं कि वह कैसिना यानी जुए का अड्डा किसी भारतीय का ही था. पता चला कि मास्को में उस समय चार-पांच हजार भारतीय रह रहे थे. 

 मास्को में सोवियत संघ के विघटन के बाद आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण के निशान साफ नजर आ रहे थे. रूसी लिपि में लिखे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भव्य और आकर्षक विज्ञापन आंखें चुंधिया दे रहे थे. मैकडॉनल्ड्स, केएफसी, एलजी, नेसकैफे, पेप्सी और कोका कोला की दुकानों-रेस्तराओं में रूसी छात्र-युवाओं की खासी भीड़ नजर आ रही थी. एक बदलाव और नजर आ रहा था. सोवियत संघ और कम्युनिस्ट सत्ता के दौरान रूस में चर्चों की हालत बहुत खस्ता थी. कई चर्च बंद हो गए थे तो कई के इस्तेमाल बदल गए थे. ऐतिहासिक किले क्रेमलिन के सामने 17वीं सदी में बने ‘क्राइस्ट द सेवियर केथेड्रल चर्च’ को 1960 में स्टालिन ने ध्वस्त कर वहां स्वीमिंग पुल बनवा दिया था. लेकिन पेरेस्त्रोइका के बाद, 1993 में इस चर्च का जीर्णोद्धार कराया गया. इसी तरह से शहर के अन्य प्रमुख चर्च रंग रोगन से चमकने लगे थे जहां न सिर्फ पर्यटक बल्कि श्रद्धालुओं की आमद भी बढ़ रही थी.

इस तरह के तीन बड़े चर्च क्रेमलिन में ही हैं. वैसे, क्रेमलिन में घूमने के लिए पर्यटकों अथवा श्रद्धालुओं से 30 डालर वसूल किए जा रहे थे. वोदका अभी भी मास्को में सबसे प्रिय शराब बताई गई. लेकिन वह अब अनिवार्य नहीं रह गई थी. मनपसंद के ब्रांडवाली सभी तरह की शराब अब वहां आसानी से उपलब्ध थी.

नोटः अगले सप्ताह क्रेमलिन में आधुनिक रूस के निर्माता कहे जानेवाले रूसी परिसंघ के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ डा. कलाम की द्विपक्षीय बातचीत, पुतिन द्वारा डा. कलाम के सम्मान में दिए गए राजकीय भोज के अवसर पर डा. कलाम का भाषण, रूस और भारत के संयुक्त उपक्रम में बननेवाली सुपरसोनिक मिसाइल 'ब्रह्मोस' की निर्माता कंपनी में डा. कलाम के स्वागत के साथ ही 25 मार्च को उनकी सेंट पीटर्सबर्ग की यात्रा से जुड़े रोचक संस्मरण.
इसके साथ ही बिहार विधानसभा भंग करने के यूपीए सरकार के विवादित फैसले पर डा. कलाम ने मुहर क्यों लगाई थी ! इसकी भी तफसील से चर्चा.