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Tuesday, 21 September 2021

Hal Filhal : Congress Master Stroke In Punjab !


पंजाब में कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक !


जयशंकर गुप्त

https://youtu.be/2DV4tvcoloo

   
     
इस समय राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन का दौर सा चल रहा है. एक सप्ताह पहले ‘पूरे घर के बदल डालूंगा’ वाली राजनीतिक शैली में भाजपा के आलाकमान ने गुजरात में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी समेत उनकी पूरी मंत्रिपरिषद को बर्खास्त कर पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में 24 सदस्यों की नई मंत्रि परिषद बनवा दी. उसके सप्ताह भर बाद ही विधायकों के भारी विरोध के मद्देनजर कांग्रेस के आलाकमान ने भी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह अपेक्षाकृत युवा, दलित सिख नेता चरणजीत सिंह चन्नी के हाथों में पंजाब की कमान देकर ‘राजनीतिक खेला’ कर दिया है.
    
चरणजीत सिंह चन्नी के साथ राहुल गांधी : पंजाब में पहले
 दलित मुख्यमंत्री का 'मास्टर स्ट्रोक'
    पहली बार किसी दलित को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाए जाने को कांग्रेस या कहें राहुल गांधी का ‘मास्टर स्ट्रोक’ कहा जा रहा है. तीन बार विधायक, एक बार नेता विरोधी दल और हाल तक अमरिंदर सिंह की सरकार में मंत्री रहे चन्नी के नाम और चेहरे को न सिर्फ पंजाब के 32 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाताओं के बीच बल्कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा के चुनावों में भी भुनाया जा सकता है. उनके साथ जाट सिख नेता सुखजिंदर सिंह उर्फ सुक्खी रंधावा और हिंदू नेता ओमप्रकाश सोनी को उपमुख्यमंत्री का भी शपथ ग्रहण करवा कर पंजाब में सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन बिठाने की कोशिश भी की गई है. एक और जाट सिख नवजोत सिंह सिद्धू को पहले ही पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा चुका है. अब पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के लिए भी एक दलित सिख समुदाय से आने वाले मुख्यमंत्री का विरोध मुश्किल होगा. चन्नी को कांग्रेस आलाकमान का वरदहस्त भी प्राप्त है. उनके शपथग्रहण कार्यक्रम में राहुल गांधी खुद भी शामिल हुए.

   चुनावों के मद्देनजर नेतृत्व परिवर्तन !

    
    
भूपेंद्र पटेल के साथ नरेंद्र मोदी : नए मुख्यमंत्री के साथ नई मंत्रिपरिषद
पंजाब 
के साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में भी चार-पांच महीने बाद ही विधानसभा के चुनाव होनेवाले हैं. गुजरात के साथ हिमाचल प्रदेश में भी विधानसभा के चुनाव अगले साल ही नवंबर-दिसंबर में कराए जाएंगे. इन नेतृत्व परिवर्तनों को आगामी विधानसभा चुनावों के साथ जोड़कर भी देखा जा रहा है. 2022 के विधानसभा चुनाव ज्यों-ज्यों करीब आ रहे हैं, राजनीतिक दल चुनावी जीत सुनिश्चित करने की गरज से अपने संगठन और सरकार को चुस्त-दुरुस्त करने और आवश्यक होने पर नेतृत्व में फेरबदल की कवायद में भी जुट गए हैं. भाजपा के आलाकमान ने इन चुनावों के मद्देनजर ही पहले उत्तराखंड में दो-दो मुख्यमंत्री बदल दिए. और अभी एक सप्ताह पहले गुजरात में न सिर्फ अपने मुख्यमंत्री विजय रूपाणी बल्कि उनकी पूरी मंत्रिपरिषद को ही नाकारा और नाकाबिल मान कर उनकी जगह भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया. यहीं नहीं उनके लिए 24 सदस्यों की नई मंत्रिपरिषद भी बनवा दी गई जिसमें रूपाणी मंत्रिपरिषद के एक भी सदस्य को शामिल नहीं किया गया. हालांकि इस नेतृत्व परिवर्तन के समय किसी का जाहिरा विरोध सामने नहीं आया था, मीडिया से बातें करते समय रूपाणी सरकार में उप मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार रहे पाटीदार समाज के कद्दावर नेता नितिन पटेल की आंखों में आंसू छलक आए थे. पार्टी में अंदरूनी विरोध को लेकर ही मंत्रिपरिषद की घोषणा और मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह को एक दिन के लिए टालना पड़ गया था.
आहत मन नितिन पटेल: इस बार भी सिली मायूशी

    उत्तराखंड, असम और कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन के बाद भाजपा आलाकमान की इच्छा तो उत्तर प्रदेश में भी नेतृत्व परिवर्तन की थी लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आलाकमान के सामने झुकने के बजाय तनकर खड़े हो जाने के कारण यह संभव नहीं हो सका. यहां तक कि आलाकमान की इच्छानुसार वह अपनी मंत्रिपरिषद में फेरबदल को भी राजी नहीं हुए. विवश होकर भाजपा आलाकमान को कहना पड़ा कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव योगी जी के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. भाजपा में अभी हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भी नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें लगाई जा रही हैं. देर-सबेर उत्तर प्रदेश में भी नेतृत्व परिवर्तन के अनुमान भी लगाए जा रहे हैं. इसका कारण चाहे चुनावों से पहले पार्टी और सरकार में ‘ओवरहालिंग’ रहा हो या फिर पश्चिम बंगाल में चुनावी हार और वहां लगातार हो रही दुर्गति के कारण प्रधानमंत्री मोदी की चुनाव जितानेवाली साख में आ रही कमी, भाजपा आलाकमान राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन के जरिए संगठन और सरकार पर भी उनकी मजबूत पकड़ के संकेत देना चाहता है. इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि पार्टी और संघ परिवार में भी गाहे-बगाहे हिंदुत्व के एक अन्य ‘पोस्टर ब्वॉय’ के रूप में उभर रहे या उभारे जा रहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भविष्य में उन्हें राजनीतिक चुनौती मिलने के कयास भी लगते रहते हैं. हालांकि केंद्र से लेकर राज्यों में भी सत्तारूढ़, भाजपा के आलाकमान और संघ के नेतृत्व की मजबूती और अंदरूनी अनुशासन के चलते भी भाजपा शासित राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन बहुत खामोशी और सुगमता के साथ संपन्न हो गया लेकिन कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं हो सका.

कांग्रेस को करनी पड़ी मशक्कत     


    
नवजोत सिंह सिद्धू के साथ चरणजीत सिंह चन्नी:आगे क्या !
    गुजरात में भाजपा का नेतृत्व परिवर्तन जितनी सहजता से संपन्न हो गया, कांग्रेस को पंजाब में इसके लिए भारी मशक्कत करनी पड़ी. पद से हटने या हटाए जाने के बाद से ही खुद को अपमानित महसूस करते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बागी तेवर अपना लिया. वह सोमवार को चरणजीत सिंह चन्नी, रंधावा और उनके करीबी कहे जानेवाले सोनी के शपथग्रण समारोह में भी नहीं आए. अपने उसी फार्म हाउस में बैठे रहे, जहां से उन पर हाल तक अपनी सरकार चलाते रहने के आरोप लगते रहे. उनके त्यागपत्र के बाद पहले तो उनकी सरकार में असंतुष्ट मंत्री रहे सुखजिंदर सिंह रंधावा को कांग्रेस विधायक दल का नेता चुने जाने और उनके साथ दलित महिला अरुणा चौधरी और हिंदू समाज से भारत भूषण ‘आशु’ को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की बात सामने आई लेकिन रंधावा ने जिस प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के साथ मिलकर कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ खुली बगावत की, आखिरी समय में उन्हीं के विरोध की वजह से वह मुख्यमंत्री नहीं बन सके. उनका नाम सामने आने पर सिद्धू ने मुंह फुला लिया था. सिद्धू खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष रहते आलाकमान उन्हें मुख्यमंत्री बनाने को राजी नहीं था और फिर उनके नाम पर अमरिंदर सिंह ने वीटो भी लगा दिया था. सिद्धू को अभी मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता, यह स्पष्ट होने के बाद उन्होंने किसी और जाट सिख नेता के बजाय किसी दलित नेता को मुख्यमंत्री बनाने की बात चलाई जिस पर कांग्रेस आलाकमान भी राजी हो गया. और इस तरह से कांग्रेस विधायक दल में चरणजीत सिंह चन्नी के नाम पर सहमति बनाई गई. इसके साथ ही सुखजिंदर सिंह रंधावा और अमृतसर से लगातार पांचवीं बार विधायक ओमप्रकाश सोनी को उप मुख्यमंत्री बनाए जाने की बात तय हुई.

सुखजिंदर सिंह रंधावा: मुख्यमंत्री बनते-बनते
बन गए उप मुख्यमंत्री
    राजस्थान और छत्तीसगढ़ की तरह ही कांग्रेस आलाकमान पर एक अरसे से पंजाब में भी नेतृत्व परिवर्तन के लिए अंदरूनी दबाव बना हुआ था. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस का आलाकमान अभी तक कोई निर्णय नहीं कर सका है लेकिन पंजाब आसन्न विधानसभा के चुनाव को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान को फैसला करना ही पड़ा. 80 सदस्यों के कांग्रेस विधायक दल में 50-60 विधायकों के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के विरोध में लामबंद हो जाने और 17 सितंबर को नेतृत्व परिवर्तन के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखने के बाद आलाकमान को भी लगने लगा कि विधायकों का विश्वास खोते जा रहे अमरिंदर सिंह की कप्तानी में कांग्रेस की चुनावी नाव पार नहीं लग सकेगी. हालांकि गांधी परिवार और खासतौर से सोनिया गांधी के साथ उनके पति स्व. राजीव गांधी के जमाने से ही कैप्टन अमरिंदर सिंह के पारिवारिक रिश्ते बहुत करीबी रहे हैं. पंजाब में वह कांग्रेस के सबसे बड़े जनाधारवाले कद्दावर लेकिन बुजुर्ग नेता भी हैं. अन्य राज्यों में भाजपा की मोदी लहर के बावजूद अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में ही 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रचंड बहुमत से सत्तारूढ़ हो सकी थी. श्रीमती गांधी के कहने पर उन्होंने मुख्यमंत्री रहते अमृतसर में अरुण जेटली के विरुद्ध लोकसभा का चुनाव लड़कर उन्हें धूल भी चटाई थी. 

कैप्टन के विरोध में अपने ही लामबंद 

    
    लेकिन अगले साल मार्च महीने में उम्र के 80 साल पूरा करनेवाले कांग्रेस के इस कैप्टन के खिलाफ पिछले कई महीनों से उनकी अपनी ही पार्टी के नेता-विधायकों का बड़ा तबका लामबंद हो रहा था. पार्टी के नेता, विधायक और मंत्री भी उनके खिलाफ कांग्रेस के चुनावी वादों को पूरा नहीं करने, ड्रग्स रैकेट के साथ ही बेअदबी मामले में विपक्षी अकाली दल के नेतृत्व के प्रति नरमी बरतने, पार्टी के विधायकों की उपेक्षा, नौकरशाही के भरोसे ‘महाराजा स्टाइल’ में अपने फार्म हाउस से सरकार चलाने के गंभीर आरोप खुलेआम लगा रहे थे. भाजपा से कांग्रेस में आए पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू अपने सहयोगी विधायक, भारतीय हाकी टीम के पूर्व कप्तान परगट सिंह के साथ मिलकर असंतुष्ट विधायकों को लामबंद करने के साथ ही उनके असंतोष को लगातार हवा दे रहे थे. हालांकि गांधी परिवार के साथ उनकी करीबी के कारण उनके विरुद्ध अंदरूनी कलह और पार्टी के विधायकों के विरोध के हर दाव विफल साबित हो रहे थे.

कैप्टन अमरिंदर सिंह: अपमानित !
    लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आलाकमान से अपनी करीबी का लाभ लेकर समय रहते असंतुष्टों के साथ सुलह-सफाई की कोशिश नहीं की. यहां तक कि कई बार बुलाकर समझाने और अपनी कार्यशैली में सुधार करने के कांग्रेस आलाकमान के निर्देशों की भी वह अनदेखी ही करते रहे. वह पंजाब में दो-तीन नौकरशाहों के भरोसे एक स्वतंत्र, स्वेच्छाचारी क्षत्रप की तरह से अपने फार्म हाउस से सरकार चला रहे थे. किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री को पार्टी चलाने के लिए दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय को फंड देना होता है, लेकिन पंजाब से उन्होंने एक धेला भी नहीं दिया. आम जनता तो दूर पार्टी के विधायक भी उनसे मिल नहीं पाते थे. कांग्रेस के नेता बताते हैं कि उनके सुबह सो कर उठने, तैयार होकर किसी से मिलने का समय दोपहर बारह बजे के बाद शुरू होता है. यह बात भाजपा नेता अरुण जेटली ने भी 2014 में अमृतसर से उनके विरुद्ध लोकसभा का चुनाव लड़ते समय एक प्रेस कान्फ्रेंस में कही थी. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसके जवाब में अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, “जेटली गलत बोल रहा है, मैं दिन में एक बजे के बाद ही किसी से मिलता हूं.” पिछले दिनों केंद्र सरकार ने जलियांवाला बाग को नया रंग रूप दिया तो राहुल गांधी ने यह कहकर उसका विरोध किया था कि शहीदों की निशानियों के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए लेकिन कांग्रेसी मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने इस मामले में राहुल गांधी के बयान का समर्थन करने के बजाय केंद्र सरकार के पक्ष में बयान दिया. और भी कई अवसरों पर वह प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के पक्ष में बोलते रहे. वह जब भी दिल्ली आते, प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से अवश्य मिलते थे. हाल के महीनों में राहुल गांधी और प्रियंका वैसे भी उन्हें पसंद नहीं करते थे, जलियांवाला बाग प्रकरण में अमरिंदर के सरकार समर्थक बयान को लेकर उनके प्रति आलाकमान की नाराजगी और बढ़ गई.

आलाकमान का भरोसा भी टूटा

    
    
सोनिया गांधी और राहुल: भारी मन से कहना पड़ा 'सारी अमरिंदर'
इस
बीच बड़बोले और वाचाल छवि के नवजोत सिंह सिद्धू लगातार अपनी ही सरकार के मुख्यमंत्री के विरुद्ध विपक्ष के किसी नेता से भी तीखी और आक्रामक भाषा में आरोप लगाते रहे. उन्हें शांत करने की गरज से कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धू को अध्यक्ष बनाकर प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप दी. लेकिन सिद्धू के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद भी कैप्टन और क्रिकेटर का झगड़ा सुलझ नहीं सका. कई बार एक मंच पर होने के बावजूद दोनों के बीच के रिश्तों की कड़वाहट खुलकर सामने आते रही. अमरिंदर सरकार के खिलाफ सिद्धू की बयानबाजी जारी रही तो अमरिंदर सिंह भी उनके विरुद्ध अपनी भड़ांस निकालते रहे. इस क्रम में सिद्धू अमरिंदर विरोधी विधायकों को एकजुट करते हुए आलाकमान तक यह बात पहुंचाने में कामयाब रहे कि कैप्टन के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस पंजाब का चुनाव नहीं जीत सकती. कई बार की चेतावनियों के बाद भी जब बात नहीं बनी और 50-60 विधायकों ने अमरिंदर के विरोध में सोनिया गांधी को पत्र लिखकर अल्टीमेटम सा दे दिया तो सोनिया गांधी ने उन्हें भारी मन से ‘आइ एम सॉरी अमरिंदर’ कहा और चंडीगढ़ में विधायक दल की बैठक बुलाए जाने की बात बताई.आलाकमान के इस फैसले से आहत और अपमानित महसूस करते हुए अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस विधायक दल की बैठक का बहिष्कार किया और उससे पहले ही राजभवन जाकर राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित को अपना त्यागपत्र थमा दिया. हालांकि विधायक दल की बैठक में कांग्रेस के 80 में से 78 विधायक शामिल हुए. बैठक में अमरिंदर सिंह के कार्यकाल और उनके कामकाज की सराहना का एक प्रस्ताव भी पारित करते हुए भविष्य में भी उनका मार्गदर्शन मिलते रहने की उम्मीद जाहिर की गई.
अमरिंदर सिंह: बागी तेवर !

    लेकिन कैप्टन ने अपने राजनीतिक भविष्य का विकल्प खुला होने और कोई भी फैसला अपने साथियों-सहयोगियों से मंत्रणा के बाद ही करने की बात कही. जब उनके उत्तराधिकारी के चुनाव की बात चल रही थी, उन्होंने साफ कर दिया था कि मुख्यमंत्री के रूप में सिद्धू उन्हें कतई कबूल नहीं. उन्होंने सिद्धू को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा का मित्र भी बताते हुए कहा कि उनकी राय में सीमावर्ती राज्य पंजाब में सिद्धू का मुख्यमंत्री बनना देश हित में नहीं होगा. यह कह कर एक तरह से कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू के नाम पर न सिर्फ वीटो सा लगा दिया बल्कि अपने राजनीतिक भविष्य का संकेत भी दे दिया है. उन्होंने परोक्ष रूप से भाजपा की भाषा बोलते हुए राष्ट्रवाद के मुद्दे पर अपने प्रदेश अध्यक्ष और कांग्रेस को भी घेरने की कोशिश की क्योंकि सिद्धू मुख्यमंत्री तो नहीं बने लेकिन प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष तो हैं ही. भाजपा ने इस बात को लेकर कांग्रेस की आलोचना भी की. लेकिन कांग्रेस नेताओं का एक बड़ा तबका और राजनीतिक प्रेक्षक भी सिद्धू के बारे में अमरिंदर सिंह के द्वारा कही गई बातों को जायज नहीं मानते. सिद्धू के विरोध में तमाम बातें कही जा कती हैं लेकिन उन पर इस तरह का आरोप चस्पा नहीं होता. कुछेक कार्यक्रमों में शिरकत और मुलाकातों के आधार पर किसी को पाकिस्तान, उसके प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष का मित्र नहीं कहा जा सकता. वैसे भी सिद्धू और इमरान खान क्रिकेटर रह चुके हैं और इस लिहाज से उनकी पहले से ही मेल-मुलाकात स्वाभाविक है. पंजाब के लिए कांग्रेस के प्रभारी, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा कि इमरान खान के साथ सिद्धू की मित्रता तब से है जब वह भाजपा में थे. और करतारपुर साहिब कारिडोर खोले जाते समय अगर पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष बाजवा और सिद्धू गले मिले तो इसमें गलत क्या था. हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी भी तो उनके घर जाकर पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से गले मिले थे. उनके साथ बिरयानी खाई थी. कांग्रेस के एक और नेता याद दिलाते हैं कि कैप्टन पर भी तो उनके राजनीतिक विरोधी पाकिस्तान की एक प्रभावशाली डिफेंस जर्नलिस्ट अरूसा आलम के साथ वर्षों से गहरे और अंतरंग रिश्ते होने के आरोप लगते रहे हैं. इससे उनकी देशभक्ति पर सवाल तो नहीं किए जा सकते.

चन्नी के सामने चुनौतियां


    देखने वाली बात यह होगी कि पंजाब में पहले दलित मुख्यमंत्री के रूप में सरकार की कमान संभाल चुके चरणजीत सिंह चन्नी के बारे में कैप्टन अमरिंदर सिंह का रुख क्या होता है. आज वह उनके शपथग्रहण समारोह में नहीं आ सके. अभी भी कांग्रेस के एक-डेढ़ दर्जन विधायकों के उनके साथ होने की बात कही जा रही है. हालांकि नेतृत्व परिवर्तन के बाद इनमें से कितने उनके साथ रह जाएंगे, कहना मुश्किल है. लेकिन इससे इतर नये मुख्यमंत्री  चन्नी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अगले चार-पांच महीनों में ही होनेवाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने की होगी. इसके लिए न सिर्फ कैप्टन अमरिंदर सिंह बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और कई खेमों में बंटी कांग्रेस के गुटबाज नेताओं को भी साधना होगा. बड़बोले सिद्धू को नियंत्रित रखना अपनेआप में ही एक बड़ी चुनौती होगी. अभी उन्हें अपनी मंत्रिपरिषद का गठन भी करना होगा. उनके दो उपमुख्यमंत्रियों में से एक सिद्धू के तो दूसरे कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी बताए जाते हैं. चन्नी खुद भी सिद्धू के साथ मिलकर अमरिंदर सिंह के विरुद्ध झंडा उठाए रहते थे. उन्हें संगठन और सरकार में तालमेल बिठाना पड़ेगा. अमरिंदर सिंह की सरकार के रहते कांग्रेस के तकरीबन डेढ़ दर्जन अधूरे वादों को पूरा करने की जिम्मेदारी भी चन्नी सरकार पर होगी. इन अधूरे वादों को लेकर विपक्ष से अधिक कांग्रेस के चन्नी सहित तमाम असंतुष्ट नेता, विधायक अमरिंदर सरकार के विरुद्ध हमलावर रहे हैं. इसके अलावा उनका खुद का दामन भी बेदाग नहीं रहा है. अमरिंदर सरकार में मंत्री रहते कई तरह के आरोपों के साथ उनको लेकर विवाद खड़े होते रहे हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद विपक्ष उन्हें मुद्दा बना सकता है. एक महिला आइएएस अधिकारी को उनके द्वारा अतीत में अश्लील मेसेज भेजने का मामला भी तूल पकड़ सकता है. भाजपा की नेता और महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने इस मुद्दे को अभी से उछालना शुरू कर दिया है. 

    
हरीश रावत: बयान को लेकर गलतफहमी!
    इस बीच पंजाब के लिए कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत के एक बयान को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है. रावत ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि पंजाब में विधानसभा का अगला चुनाव प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. तो क्या चन्नी केवल चुनाव तक ही मुख्यमंत्री रहेंगे! इसको लेकर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने आपत्ति की है. नेतृत्व परिवर्तन के समय मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए जाखड़ ने ट्वीट कर कहा कि रावत का यह बयान चौंकाने वाला है. मुख्यमंत्री के अधिकार और उनकी राजनीतिक हैसियत को कमजोर करने की कोशिश है. हालांकि इसके तुरंत बाद ही कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आधिकारिक रूप से स्पष्ट किया कि विधानसभा के चुनाव मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के नेतृत्व में लड़े जाएंगे. चुनाव अभियान में पार्टी के अन्य बड़े नेता भी शामिल होंगे. 

कारगर होगा मास्टर स्ट्रोक !

    
    पंजाब की राजनीति में कांग्रेस का यह ‘मास्टर स्ट्रोक’ कितना कारगर होगा, इसका पता विधानसभा के अगले चुनाव में ही चल सकेगा. नया नेतृत्व कांग्रेस की चुनावी नाव को पार लगा सकेगा या इसका हश्र भी वैसा ही होगा जैसा अप्रैल 1996 में पंजाब में ही चुनाव से 10-11 महीने पहले कांग्रेस के हरचरण सिंह बराड़ की जगह राजेंद्र कौर भट्टल को मुख्यमंत्री बनाने के बाद हुआ था. उस चुनाव में कांग्रेस को बुरी पराजय का सामना करना पड़ा था. हालांकि कांग्रेस आलाकमान और उसके रणनीतिकारों का मानना है कि नेतृत्व परिवर्तन से अमरिंदर सिंह और उनकी सरकार के विरुद्ध ‘ऐंटी इनकंबेंसी फैक्टर’ काफी हद तक निष्प्रभावी हो सकेगा. चन्नी सरकार अमरिंदर सरकार के कुछ महत्वपूर्ण अधूरे कार्यों को पूरा करके पंजाब के लोगों का दिल जीत सकती है. चरणजीत सिंह चन्नी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अपनी पहली प्रेस कान्फ्रेंस में केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खुला विरोध, किसान हितों के लिए कुरसी क्या जान भी कुरबान करने, बेअदबी और ड्रग रैकेट के गुनहगारों को उनके किए की कड़ी सजा दिलाने, किसानों के बिजली के बकाया बिल माफ करने, कमजोर तबके के लोगों के लिए बिजली पानी मुफ्त करने जैसी घोषणाएं करके सकारात्मक पहल की है. उनके पास समय कम है और काम अधिक लेकिन वह इस तरह की ठोस शुरुआत के जरिए अपनी और अपनी सरकार की प्राथमिकताओं को सामने रखकर पंजाब के मतदाताओं का दिल जीतने की कोशिश कर सकते हैं. पंजाब में पहली बार किसी दलित नेता को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने न सिर्फ पंजाब में अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी के गठजोड़ की बल्कि किसी दलित को मुख्यमंत्री बनाने के भाजपा के और किसी दलित को उप मुख्यमंत्री बनाने के आम आदमी पार्टी के चुनावी वादे की भी हवा निकाल दी है. कांग्रेस की कोशिश चरणजीत सिंह चन्नी को घुमाकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी अपने परंपरागत जनाधार रहे अनुसूचित जाति के मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की भी हो सकती है. इसके मद्देनजर उत्तर प्रदेश के भाजपाई मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बसपा सुप्रीमो मायावती के वक्तव्यों और ट्वीट में अभी से बेचैनी नजर आने लगी है. भाजपा कांग्रेस के दलित प्रेम को चुनावी बता रही है. लेकिन कांग्रेस ते पहले भी कई दलित नेताओं को कई राज्यों में मुख्यमंत्री बना चुकी है, भाजपा ने अभी तक किसी राज्य में किसी दलित को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया ! जाहिर सी बात है कि पंजाब में कांग्रेस के इस दलित कार्ड या कहें मास्टर स्ट्रोक का जवाब भाजपा और अन्य राजनीतिक दलों के पास भी नहीं दिख रहा है.