Jaishankar Gupt

Sunday, 9 February 2020

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020


भाजपा के लिए अच्छे नहीं हैं रुझान और संकेत

जयशंकर गुप्त

दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों के लिए मतदान कल संपन्न हो गए। तमाम टीवी चैनलों के द्वारा कराए गये ओपिनियन पोल्स की तरह एक्जिट पोल्स के रुझान भी यही बता रहे हैं कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी लगातार तीसरी बार और भारी बहुमत से दूसरी बार सरकार बनाने जा रहे हैं। हालांकि हमारे लिए ओपिनियन पोल्स और एक्जिट पोल्स की विश्वसनीयता हमेशा से संदिग्ध रही है। उनमें से कुछ के रुझान जब शत प्रतिशत या थोड़ा कम अधिक सच साबित हुए तब भी और जब पूरी तरह से गलत हुए तब भी। हमारे लिए ओपिनियन पोल्स और एक्जिट पोल्स मनोरंजन का साधन अधिक लगते हैं। 
हमने दिसंबर 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय भी तमाम ओपीनियन और एक्जिट पोल्स को खारिज करते हुए सार्वजनिक तौर पर, एक टीवी चैनल पर वरिष्ठ पत्रकारों, संपादकों के साथ चुनावी चर्चा में कहा था कि 'आप' को 30 से कम सीटें नहीं मिलेंगी। तब हमारी बात कोई मानने को तैयार न था। आप के खाते में तब सीटें आई थीं 29। 
2015 के विधानसभा चुनाव में भी शुरू से हमारा मानना रहा कि 'आप' को स्पष्ट बहुमत मिल जाएगा, लेकिन जब अरविंद केजरीवाल के बारे में प्रधानमंत्री मोदी जी और उनकी पार्टी के बड़े हो गए बौने नेताओं के मुंह से 'सुभाषित' झरने लगे, बौखलाहट में भाजपा की चुनावी राजनीति के चाणक्य और खासतौर से लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत के सूत्रधार कहे जानेवाले भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने मतदान से दो दिन पहले अपना रणनीतिक ज्ञान बांटा कि विदेश में जमा कालाधन लाकर प्रत्येक भारतीय के बैंक खाते में 15 लाख रु. जमा करने का वादा चुनावी जुमला भर था और यह भी कि दिल्ली का यह चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के कामकाज पर रेफरेंडम नहीं माना जाना चाहिए, हमने कहना शुरू किया कि 'आप' को 50 से अधिक सीटें मिल सकती हैं,शं पता नहीं सीटों का आंकड़ा कहां जाकर फिट बैठेगा। नतीजे आए तो आप के खाते में 67 सीटें आईं और भाजपा को तीन सीटों तथा कांग्रेस को शून्य पर संतोष करना पड़ा था।
 इस बार के सभी ओपिनियन और एक्जिट पोल्स के रुझान एक बात पर एक राय रहे हैं कि दिल्ली में केजरीवाल फिर प्रचंड बहुमत से सरकार बना रहे हैं और भाजपा की नफरत के आधार पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और चुनाव में साम दाम दंड भेद का इस्तेमाल कर तकरीबन 22 साल बाद दिल्ली में सत्तारूढ़ होने की रणनीति कारगर होते नहीं दिख रही। किसी ने भी भाजपा को 'आप' पर बढ़त अथवा बहुमत के पास पहुंचने के रुझान भी नहीं बताए हैं। ऐसे में कोई करिश्मा, करामात ही अमित शाह से लेकर मनोज तिवारी के 45 से अधिक सीटें जीतने के दावे को सच साबित कर सकते हैं।
दिल्ली के चुनावी नतीजे 11 फरवरी को सामने आएंगे। संभव है कि वास्तविक नतीजे एक्जिट पोल्स के रुझानों को गलत साबित कर दें। मतदान से दो तीन दिन पहले कच्ची, झुग्गी बस्तियों में भाजपा नेताओं, सांसदों की 'सक्रियता' और हिन्दू-मुसलमान के बीच सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की रणनीति भाजपा को सत्तारूढ़ बनाने या सत्ता के मुहाने तक पहुंचाने में कारगर साबित हो जाए। और यह भी संभव है कि दिल्ली में 'आप' की एक बार फिर राजनीतिक सुनामी ही देखने को मिले। हर हाल में भाजपा और कांग्रेस को भी आत्म चिंतन, मंथन कर अपनी चुनावी रणनीति पर पुनर्विचार करने का समय आ गया लगता है। कांग्रेस के लिए अभी भी अपने बूते दिल्ली में सत्ता बहुत दूर हो गई लगती है। इस बार तो लगता है कि कांग्रेस के उम्मीदवार भले ही मैदान में डटे रहे हों, अधिकतर सीटों पर भाजपा विरोधी मतों का विभाजन रोकने की अलिखित या अघोषित रणनीति के तहत कांग्रेस ढीली पड़ी ही दिखी।
इस बार फिर शुरू से ही लग रहा था कि केजरीवाल के 'काम बोलता है' के मुकाबले मोदी, शाह जी की शिगूफे-जुमलेबाजी टिकनेवाली नहीं है। केजरीवाल के आम जन को दिखने और आकर्षित करने वाले कामों की काट करने, उन्हें काम और विकास के मामले में घेरने और अपने ( केंद्र सरकार, दिल्ली पुलिस, डीडीए, भाजपा के वर्चस्ववाले तीनों नगर निगमों, नई दिल्ली नगरपालिका और सात सांसदों) के कामों, उपलब्धियों को जनता के सामने तुलनात्मक ढंग से रखने के बजाय भाजपा नेतृत्व और उसके रणनीतिकारों ने चुनाव को हिन्दू-मुसलमान के बीच नफरत की दीवार को चौड़ी कर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करवाने पर जोर दिया। सीएए और एनआरसी के विरोध में शाहीनबाग और देश के विभिन्न हिस्सों में भारतीय संविधान, गांधी और अंबेडकर की तस्वीरों, तिरंगे और राष्ट्रगान के साथ शांतिपूर्ण और अहिंसक धरना-प्रदर्शन कर रहे लोगों की बात सुनने, उनकी समस्या, आशंकाओं का समाधान करने अथवा समाधान का आश्वासन देने के बजाय सरकार और भाजपा ने उनके दमन-उत्पीड़न के साथ ही उन्हें 'देश द्रोही', गद्दार साबित कर उनके विरुद्ध चुनाव लड़ने की रणनीति अपनाई। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के साथ ही उनके तमाम नेताओं, मंत्रियों, सांसदों और मुख्यमंत्रियों ने इसी रणनीति के तहत सांप्रदायिकता के जहर बुझे नारे और भाषणों को अपने चुनाव अभियान का आधार बनाया। एक आधी, अधूरी दिल्ली सरकार पर काबिज होने के लिए साम-दाम, दंड-भेद की रणनीति पर अमल करते हुए भाजपा और  बचे खुचे 'राजग' की पूरी राजनीतिक ताकत दिल्ली में झोंक दी, खुद को चुनावी रणनीति का आधुनिक 'चाणक्य' के रूप में प्रचारित करनेवाले गृहमंत्री अमित शाह स्वयं गली-गली घूमते हुए वोट मांगते और पर्चे बांटते नजर आए। बड़े नेताओं, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों ने गली-मोहल्लों मे चुनावी रैलियां, सभाएं और रोड शो किए। प्रधानमंत्री मोदी ने भी दो चुनावी रैलियों को संबोधित किया। मतदान के दो-तीन दिन पहले आलाकमान ने अपने सांसदों से अपनी चुनावी रातें, गरीबों की कच्ची, झुग्गी बस्तियों में गुजारने का फरमान जारी किया। 
हमेशा अपने जहरीले बयानों के कारण विवादित सुर्खियों में रहनेवाले एक केंद्रीय मंत्री भारी नकदी के साथ दूर दराज के रिठाला पहुंच गये। आप समर्थकों ने उन्हें एक जौहरी की दुकान में कैमरे में कैद कर उन पर पैसे बांटने के आरोप लगाए। कायदे से चुनाव प्रचार बंद हो जाने के बाद किसी बाहरी व्यक्ति को, चाहे वह केंद्रीय मंत्री ही क्यों न हो, किसी चुनाव क्षेत्र में घूमने की इजाजत नहीं होती। लेकिन मंत्री जी मतदान की पूर्व संध्या पर रिठाला के बुद्ध विहार पहुंच गये। उन्होंने वहां एक जौहरी की दुकान से अंगूठी खरीदने की बात की है। बिल भी पेश किया है। गोया, बेगूसराय, पटना अथवा दिल्ली के कनाट प्लेस, चांदनी चौक, करोलबाग या फिर और महत्वपूर्ण इलाकों में बड़े नामी गिरामी जौहरियों की दुकान पर उनकी पसंदीदा अंगूठी नहीं मिल सकती थी। उन्होंने बिल का नकद भुगतान कर प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया को भी अंगूठा ही दिखाया।
बहरहाल, ओपिनियन और एक्जिट पोल्स के रुझानों से ऐसा नहीं लगता कि दिल्ली में भाजपा की चुनावी रणनीति कारगर हुई। हालांकि उसके नेतृत्व और रणनीतिकारों को हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावी नतीजों और उसके बाद के चुनावी परिदृश्य से सबक लेना चाहिए था क्योंकि इन राज्यों में सावरकर को भारत रत्न देने, जम्मू कश्मीर से संविधान की धारा 370 को हटाने, राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले, और फिर सीएए और एनआरसी जैसे भावनात्मक मुद्दों को भुनाने का अपेक्षित राजनीतिक लाभ भाजपा को नहीं मिला। दिल्ली में एक्जिट पोल्स के रुझान भी यही बता रहे हैं कि जन सरोकारों, महंगाई, बेरोजगारी, महिलाओं के साथ जुल्म ज्यादती, भ्रष्टाचार, लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने के बजाय आप अगर हिन्दुत्व, हिन्दू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान के भावनात्मक मुद्दों को उछालकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीतिक रणनीति में ही उलझे रहे तो आनेवाले दिनों में आपके लिए संकेत अच्छे नहीं कहे जा सकते। इसी साल आपको बिहार विधानसभा और फिर आगे पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु विधानसभाओं के चुनावों का सामना भी करना पड़ेगा!
ReplyForward
Posted by Jaishankar Gupta at 19:20 No comments:
Email ThisBlogThis!Share to XShare to FacebookShare to Pinterest
Labels: AAM AADMI PARTY, Amit Shah, Arvind Kejriwal, BJP, Congress, Delhi Assembly Election 2020, Narendra Modi
Newer Posts Older Posts Home
Subscribe to: Posts (Atom)

Followers

Blog Archive

  • ►  2021 (15)
    • ►  October (1)
    • ►  September (4)
    • ►  August (4)
    • ►  July (3)
    • ►  February (1)
    • ►  January (2)
  • ▼  2020 (26)
    • ►  December (5)
    • ►  November (3)
    • ►  October (3)
    • ►  September (5)
    • ►  August (5)
    • ►  July (4)
    • ▼  February (1)
      • दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020
  • ►  2019 (4)
    • ►  May (2)
    • ►  February (1)
    • ►  January (1)
  • ►  2018 (5)
    • ►  December (1)
    • ►  November (2)
    • ►  June (2)
  • ►  2017 (8)
    • ►  September (2)
    • ►  August (1)
    • ►  July (2)
    • ►  May (3)
  • ►  2015 (3)
    • ►  June (1)
    • ►  January (2)
  • ►  2014 (1)
    • ►  June (1)
  • ►  2013 (22)
    • ►  June (3)
    • ►  May (5)
    • ►  April (4)
    • ►  March (2)
    • ►  February (4)
    • ►  January (4)
  • ►  2012 (3)
    • ►  December (3)

About Me

My photo
Jaishankar Gupta
View my complete profile
Ethereal theme. Powered by Blogger.