कांग्रेस में बवाल
जयशंकर गुप्त
https://youtu.be/EPk4Jo3oOsE
पंजाब में कांग्रेस के कथित ‘मास्टर स्ट्रोक’ को लेकर बवाल है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. एक तरफ पंजाब प्रदेश कांग्रेस के त्यागपत्र दे चुके अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी यानी पंजाब सरकार के बीच हुए समझौते को लेकर असमंजस बना हुआ है. सिद्धू राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को तत्काल बदलने की जिद पकड़े हैं जबकि मुख्यमंत्री चन्नी कह रहे हैं इकबाल प्रीत सिंह सहोता को अभी केवल अंतरिम डीजीपी का प्रभार दिया गया है. नये डीजीपी के लिए दस नाम संघ लोकसेवा आयोग के पास भेज दिए हैं. वहां से क्लीयर होकर तीन नाम आते ही उनमें से किसी एक को नये और पूर्णकालिक डीजीपी के रूप में नियुक्त कर लिया जाएगा. लेकिन सिद्धू अभी भी मुंह फुलाए बैठे हैं. उन्होंने अपना त्यागपत्र वापस नहीं लिया है. कांग्रेस के आलाकमान ने भी लगता है कि उन्हें और भाव नहीं देने का तय कर लिया है. अगर वह अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ सार्वजनिक मंचों से बोलना बंद नहीं करते तो नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति की जा सकती है.
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अमित शाह के साथ अमरिंदर: किसका खेल बिगाड़ेंगे ! |
कांग्रेस का बेहतर सामाजिक समीकरण
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बाएं से रंधावा, चन्नी, सिद्धू और सोनीः बेहतर सामाजिक समीकरण |
लेकिन एक तो नेतृत्व परिवर्तन के तरीके से खुद को अपमानित महसूस करने वाले अमरिंदर सिंह की बगावत और फिर चन्नी सरकार के काम शुरू करते ही उसके कुछ फैसलों को लेकर नाराज सिद्धू के त्यागपत्र का इसमें फच्चर लग गया. प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से सिद्धू के औचक त्यागपत्र ने अगले साल मार्च महीने में उम्र के अस्सी साल पूरा रहे अमरिंदर सिंह को नये सिरे से सक्रिय होने और सिद्धू के साथ ही कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ भी आक्रामक होने का बहाना दे दिया. उन्होंने सिद्धू को अस्थिर दिमाग तथा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को अनुभवहीन करार देते हुए आरोप लगाया कि सिद्धू के दबाव में उन्हें अपमानित कर अपदस्थ किया गया. हालांकि शुरुआती ना नुकुर के बाद ही भाजपा नेताओं के साथ उनकी मेल-मुलाकातों और बयानबाजियों ने साबित किया है कि अमरिंदर सिंह को हटाने का आलाकमान का फैसला कितना सही था ! कांग्रेस आलाकमान लगातार अपने पूर्व कैप्टन की राजनीतिक गतिविधियों पर नजर रखे हुए है.
आलाकमान को सिद्धू का झटका
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नवजोत सिंह सिद्धूः नाराजगी की राजनीति ! |
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चरणजीत चन्नीःरबरस्टैंप मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे! |
लेकिन सिद्धू की तुनकमिजाजी और बात-बात पर बतंगड़ बनाने की उनकी कार्यशैली को लेकर कांग्रेस का आलाकमान भी नाराज हुआ. आलाकमान ने उनका त्यागपत्र नामंजूर करते हुए कह दिया कि उनकी नाराजगी का मसला पंजाब के लोग आपस में ही मिल बैठकर निपटाएं. इस बीच पंजाब के लिए कांग्प्ररेस के भारी हरीश रावत को उत्तराखंड के विधानसभा के चुनाव में व्यस्त होने के नाम पर पंजाब से दूर कर सह प्रभारी हरीश चौधरी को काम पर लगा दिया गया. चौधरी और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने नवजोत सिंह सिद्धू से मिलकर उनकी नाराजगी दूर करने के लिए ऐसा रास्ता निकालने की कोशिश की जिससे न सिद्धू को झुकना पड़े और न ही सरकार को. संगठन और सरकार में बेहतर समन्वय के लिए प्रभारी हरीश चौधरी, मुख्यमंत्री चन्नी और सिद्धू की एक समिति बनाकर कहा गया कि मह्तवपूर्ण मामलों पर निर्णय यह समिति आम राय से करेंगी. बेअदबी मामले में विवादित भूमिका वाले लोगों को डीजीपी और एडवोकेट जनरल बनाने को लेकर सिद्धू की आपत्तियों के मद्देनजर सरकार ने साफ किया कि इकबाल प्रीत सहोता को एडिशनल चार्ज दिया गया है. नये डीजीपी के लिए 10 नाम संघ लोकसेवा आयोग को भेज दिए गए हैं. वहां से जो तीन नाम फाइनल होंगे, सिद्धू की सहमति से उनमें से किसी एक को डीजीपी बनाया जाएगा. नए एडवोकेट जनरल देओल पर सिद्धू की आपत्ति के मद्देनजर श्रीगुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी से जुड़े मामलों से उन्हें परे रखकर उसकी पैरवी के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता राजविंदर सिंह बैंस को स्पेशल प्रॉसीक्यूटर बनाया गया.
दरअसल, गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का मामला पंजाब में और खासतौर से पंथिक सिख समुदाय की भावनाओं के साथ जुड़ा है. 2015 में बरगाड़ी गांव के गुरुद्वारा साहिब के बाहर भद्दी भाषा वाले पोस्टर लगाए और पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब के साथ बेअदबी क्रुद्ध सिख समाज में व्यापक आक्रोश और विरोध प्रदर्शन देखने को मिले थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में इसकी कीमत अकाली दल और भाजपा गठबंधन सरकार को करारी हार के रूप में चुकानी पड़ी थी. अमरिंदर सरकार में भी इस मामले को लगातार हवा देते रहे सिद्धू उन पर बेअदबी मामले के गुनहगार नेताओं और अफसरों के प्रति नरमी बरतने के आरोप लगाते रहे. इस मामले में बीच के फार्मूले पर बनी सहमति के बाद लगा था कि सिद्धू त्यागपत्र वापस ले लेंगे. लेकिन ऐसा नहीं करके उन्होंने ट्वीट किया कि पद पर रहें अथवा नहीं कांग्रेस में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ वह हमेशा खड़ा रहेंगे. उनके हाव भाव से लगता है कि चन्नी सरकार से उनकी नाराजगी दूर नहीं हुई है. वह सहोता और देओल को तत्काल हटाने की मांग पर अड़े हैं. राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि सिद्धू दिखाने के लिए भले इस मामले को तूल दे रहे हों, उनकी असली कसक सुपर सीएम की तरह काम नहीं कर पाने और अगले चुनाव में उन्हें कांग्रेस के इकलौते चेहरे के रूम में नहीं पेश किया जाना ही है. लेकिन अपनी ताजा हरकतों से सिद्धू कांग्रेस में अलग थलग पड़ते दिख रहे हैं. कांग्रेस आलाकमान ने भी साफ कर दिया है कि अगर वह नहीं मानते हैं तो उनकी जगह प्रदेश कांग्रेस की कमान किसी और को सौंपी जा सकती है. नए अध्यक्ष के रूप में पंजाब कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कुलजीत सिंह माजरा और पूर्व मुख्यमंत्री सरदार बेअंत सिंह के पौत्र, लुधियाना के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू के नाम भी उछलने लगे हैं.
मुखर हुए कांग्रेस के असंतुष्ट
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कपिल सिब्बलः फैसलों पर सवाल |
दरअसल, कांग्रेस में शिखर नेतृत्व के स्तर पर उहापोह और असमंजस की स्थिति ने भी असंतुष्ट स्वरों को अवसर दिया है. सोनिया गांधी की उम्र और खराब स्वास्थ्य के मद्देनजर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के खुलकर सामने नहीं आने और यह साफ नहीं करने के कारण भी कांग्रेस का संकट बढ़ रहा है कि वह पूर्णकालिक अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस की कमान संभालेंगे कि नहीं. उनकी मौजूदा सक्रियता और आक्रामक तेवर भविष्य में भी जारी रहेंगे कि नहीं. कांग्रेस खेमे से लगातार इस तरह की सूचनाएं छनकर आ रही हैं कि राहुल गांधी अपने मन मिजाज की ‘लेफ्ट आफ दि सेंटर’ कांग्रेस बनाने की कवायद में लगे हैं. पिछले सप्ताह पूर्व कम्युनिस्ट युवा नेता कन्हैया कुमार और दलित युवा नेता, गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी को कांग्रेस में शामिल करवाकर उन्होंने इसी तरह के संकेत देने की कोशिश की है. लेकिन अपने मन मिजाज की कांग्रेस बनाने की उनकी गति बहुत धीमी है. गुजरात में भी अगले साल ही विधानसभा के चुनाव होने हैं. वहां अभी तक कांग्रेस का पूर्णकालिक अध्यक्ष तक नहीं है. इस तरह की शिकायतें अन्य कई राज्यों में भी हैं जहां संगठनात्मक पद लंबे अरसे से खाली पड़े हैं. राजस्थान, छत्तीसगढ़, मेघालय आदि राज्यों में भी नेतृत्व को लेकर अंदरूनी बवाल मचा है.
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सोनिया और राहुल गांधी: अपनों से चुनौती ! |
जाहिर सी बात है कि कांग्रेस की इस अंदरूनी कलह से कल तक पंजाब में अपने अस्तित्व रक्षा की चिंता में लगी भाजपा के नेता अभी मजे लेने की स्थिति में आ गए हैं. वे कह रहे हैं कि भाजपा ने उत्तराखंड, कर्नाटक और गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन सुगमता से कर लिया लेकिन पंजाब में नेतृत्व परिवर्तन के बाद कांग्रेस में उथल-पुथल शुरू हो गई है. भाजपा नेतृत्व की निगाह पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पर भी लगी हुई है. हालांकि कांग्रेस से नाता तोड़ने की घोषणाएं करते रहनेवाले अमरिंदर सिंह ने अभी तक व्यवहार में ऐसा कुछ नहीं किया है. कांग्रेस आलाकमान को लगता है कि नवजोत सिंह सिद्धू को काबू में कर लिए जाने के बाद अमरिंदर के तेवर ढीले पड़ जाएंगे. कांग्रेस की अंदरूनी कलह के बीच कांग्रेस और एनसीपी के साथ महाराष्ट्र में महा विकास आघाड़ी की साझा सरकार का नेतृत्व कर रही शिवसेना ने कांग्रेस की अंदरूनी उथल पुथल पर तंज कसते हुए कहा है कि कांग्रेसियों ने ही कांग्रेस को डुबोने की सुपारी ले ली है. राहुल गांधी कांग्रेस के किले की मरम्मत कर किले की सीलन और गड्ढों को भरना चाहते हैं लेकिन पुराने लोग उन्हें ऐसा नहीं करने दे रहे हैं. शिवसेना के मुखपत्र सामना में ‘कांग्रेस का टॉनिक’ शीर्षक के तहत संपादकीय के अनुसार, लगता है कि राहुल गांधी को रोकने के लिए कांग्रेस के कुछ लोगों ने भाजपा से हाथ मिला लिया है.
ममता बनर्जी की चुनौती
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ममता बनर्जीः निगाहें दिल्ली की ओर! |
नोट : तस्वीरें इंटरनेट के सौजन्य से