जिस तरह के राजनीतिक हालात बनते जा रहे हैं या जिस तरह का राजनीतिक परिदृश्य उभर कर सामने आ रहा है उसमें संसद के बजट सत्र के सुचारु रूप से चल पाने की संभावनाएं बहुत कम नजर आ रही हैं. चुनावी वर्ष होने के कारण सत्ता पक्ष की कोशिश लोकलुभावन बजट पेश करने के साथ ही खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा जैसे कुछ ऐसे जन हितैषी विधेयक पारित करवाने की हो सकती है जो न सिर्फ अगले कुछ दिनों-महीनों में होने वाले आठ राज्य विधानसभाओं और उन्हीं के आगे पीछे संभावित लोकसभा के चुनाव में भी उसके लिए लाभकारी साबित हो सकें. जाहिर है कि विपक्ष की कोशिश सरकारी प्रयासों में पलीता लगाने की ही होगी. इसके लिए उसके पास राजनीतिक अस्त्रों की कोई कमी नहीं है. हालांकि अब तक उसके अधिकतर राजनीतिक अस्त्र अन्यान्य कारणों से उस पर ही भारी पड़ते रहे हैं.
संसद का बजट सत्र 21 फरवरी से 10 मई तक चलेगा. 21 फरवरी को संसद के केन्द्रीय कक्ष में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पहले अभिभाषण और फिर राष्ट्रीय जनता दल के लोकसभा सदस्य उमाशंकर सिंह को श्रधांजलि अर्पित करने के बाद कार्यवाही अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दिए जाने की सम्भावना है. 26 फरवरी को रेल और 28 फरवरी को आम बजट पेश किए जाने की परंपरा है. बीच में 22 मार्च से 22 अप्रैल तक मध्यावकाश होगा जिसमें संसदीय समितियां अपना काम करेंगी. मनमोहन सरकार के अंतिम बजट वाले इस सत्र में रेल बजट और आम बजट पेश और पास कराने के साथ ही सरकार की कोशिश खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा विधेयकों के साथ ही लोकपाल विधेयक को राज्यसभा की मंजूरी हासिल करवाने के साथ ही बलात्कार एवं महिला उत्पीड़न विरोधी अध्यादेश को कानूनी जामा पहनाने की भी होगी. कायदे से संसद के चालू सत्र में छह सप्ताह के भीतर ही इस अध्यादेश पर आधारित विधेयक पारित कराना होगा अन्यथा अध्यादेश बेमानी हो जाएगा.
दूसरी तरफ विपक्ष कतई नहीं चाहेगा कि चुनावी साल में सरकार और कांग्रेस सुगमता के साथ अपनी कार्ययोजनाओं पर अमल कर सके. विपक्ष के कुछ बड़े नेताओं के साथ अनौपचारिक बातचीत के संकेत तो यही बताते हैं कि उनकी कोशिश सरकार का बजट पास करवाने से अधिक और किसी मामले में उसे ज्यादा रियायत देने की नहीं होगी. उसके हाथ अति विशिष्ट लोगों के लिए वेस्टलैंड हेलीकाप्टरों की खरीद में दी और ली गई 362 करोड़ रु. की रिश्वत से संबंधित ताजा खुलासों, टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले की जांच कर रही सीबीआई के वकील ए के सिंह की इस घोटाले के एक प्रमुख अभियुक्त यूनिटेक के संजय चंद्रा के साथ टेलीफोनी बातचीत में उजागर हुई मिलीभगत के रूप में दो नए ‘राजनीतिक अस्त्र’ भी लग गए हैं. इसके साथ ही भाजपा और वाम दलों के सांसद राज्यसभा के उप सभापति पी जे कुरियन पर केरल की एक युवती सूर्यनेल्लि द्वारा लगाए गए वर्षों पुराने बलात्कार के आरोप को भी उछाल सकते हैं. भाजपा भगवा आतंकवाद पर गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के विवादित बयान को लेकर उन्हें और सरकार को भी सड़क से लेकर संसद में भी घेरने की बातें कर रही है. मायावती और मुलायम सिंह सीबीआई का इस्तेमाल उन जैसे राजनीतिक विरोधियों को दबाव में लाने के लिए किए जाने के आरोपों पर संसद में गरमी दिखा सकते हैं. सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति में आरक्षण के सवाल पर आमने सामने होकर मायावती और मुलायम एक बार फिर संसद में हंगामा खड़ा कर कुछ समय बरबाद कर सकते हैं. इलाहाबाद के कुंभ मेले में रेलवे स्टेशन पर और मेले में भी भगदड़ में बड़ी संख्या में मारे गए श्रद्धालुओं का मामला तो है ही.
सरकार के संकट मोचक विपक्ष के संभावित राजनीतिक हमलों की काट खोजने में जुट गए हैं. मुंबई पर आतंकी हमलों के गुनहगार पाकिस्तानी आतंकी आमिर अजमल कसाब के बाद संसद पर आतंकी हमले के षडंत्रकारी अफजल गुरू को भी सूली पर चढ़ाने के बाद सरकार और कांग्रेस ने भाजपा के हाथ से खासतरह के आतंकवादियों के प्रति नरमी दिखाने से संबंधित आरोपों वाला मजबूत राजनीतिक अस्त्र छीन लिया है. उलटे पिछले दिनों इंदौर में गिरफतार अभियुक्तों के बयान के आधार पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने मालेगांव, हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजमेर शरीफ एवं समझौता एक्सप्रेस में हुए आतंकी बम धमाकों के सिलसिले में कानूनी शिकंजा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की मौजूदा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश की तरफ भी बढ़ाने के साथ संकेत दे दिए हैं कि भगवा आतंकवाद के मामले में सरकार और कांग्रेस भाजपा एवं संघ परिवार के दबाव में आने वाली नहीं है.
पी जे कुरियन के मामले में कांग्रेस के पास अदालती फैसले का कवच है जिसे किसी और ने नहीं राज्यसभा में विपक्ष -भाजपा- के नेता अरुण जेटली ने ही कुरियन के वकील की हैसियत से सर्वोच्च अदालत में उन्हें बेकसूर करार देकर प्रदान किया है. हालांकि इस मामले में नित नए खुलासे सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं.
एक और बोफोर्स!
विपक्ष की कोशिश सरकार में अतिविशिष्ट लोगों के लिए दर्जन भर अपेक्षाकृत महंगे अगुस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टरों की तकरीबन 3546 करोड़ रु. की खरीद में इटली की कंपनी फिनमैकनिका द्वारा पूर्व वायुसेना अध्यक्ष एसपी त्यागी और रक्षा सौदों की दलाली में सक्रिय उनके तीन चचेरे-ममेरे भाइयों के साथ ही कुछ अन्य महत्वपूर्ण लोगों को दी गई 362 करोड़ रु. की रिश्वत के मामले को ठीक उसी तरह से इस्तेमाल करने की लगती है जैसे 1980 के दशक के अंतिम वर्षों में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी को घेरने के लिए स्वीडेन की बोफोर्स तोपों की खरीद में ली गई 64 करोड़ रु. की ‘दलाली’ का इस्तेमाल हुआ था. इस बार भी भाजपा के लोग हेलीकाप्टर खरीद घोटाले में उजागर हो रहे तथ्यों के आलोक में रिश्वत पाने वाली ‘दि फेमिली’ को ‘फर्स्ट फेमिली’ का नाम देकर कांग्रेस और सत्ता शिखर पर बैठे लोगों के नाम घसीटने के प्रयास में लग गए हैं. हालांकि इस मामले में भी कांग्रेस और सरकार के लिए कवच का काम रक्षा मंत्री रह चुके भाजपा के जसवंत सिंह जैसे नेता ही कर रहे हैं जिनके अपने परिवार के लोग भी रक्षा सौदों में सक्रिय रहे हैं. जसवंत सिंह ने इस मामले में त्यागी को भी बेकसूर करार दिया है.दूसरे, इस घोटाले की नींव उस समय पड़ी थी जब केंद्र में भाजपानीत राजग की सरकार थी. सरकार को 18000 फुट ऊंची उड़ान भरने लायक अत्याधुनिक हेलीकाप्टरों की आवश्यकता थी लेकिन इसके लिए जारी टेंडर में केवल एक ही कंपनी का प्रस्ताव आया. और कंपनियों को निविदा में शामिल होने का मौका देने के नाम पर तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र की पहल पर ऊंचाई घटाकर 16000 फुट कर दी गई और इस तरह से फिनमैकनिका को अपने अगुस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टरों को निविदा में शामिल करने और सौदा हथियाने का मौका भी मिल गया.
जिस तरह से बोफोर्स घोटाले का पर्दाफाश स्वीडिस आडिट रिपोर्ट के जरिए हुआ था, इस बार भी हेलीकाप्टर खरीद में रिश्वतखोरी का पर्दाफाश इटली में फिनमैकनिका के सीईओ गियुसेप्पी ओर्सी एवं कुछ अन्य लोगों की गिरफतारी के बाद हुआ. ताज्जुब की बात तो यह भी है कि ए के एंटनी जैसे ईमानदार रक्षा मंत्री के रहते और रक्षा सौदों में पारदर्शिता की तमाम बातें करते रहने के बावजूद न सिर्फ हम इस तरह के घोटालों को रोक नहीं सके बल्कि रक्षा सौदों में होने वाली गड़बड़ियों-घोटालों को पकड़ पाने में भी पहले की तरह ही नाकाबिल और लाचार रहे. इनका खुलासा भी रिश्वत देने वाले देशों से ही हो रहा है.
दरअसल, भारी भरकम रक्षा सौदों में रिश्वत और दलाली का बोफोर्स मामला पहला नहीं था और ना ही हेलीकाप्टर खरीद में ली गई इस रिश्वत प्रकरण को अंतिम कहा जा सकता है. बहुत पहले की बात नहीं करें तो भी 1980 के बाद के तीन-साढ़े तीन दशकों में दर्जन भर बड़े रक्षा सौदों में रिश्वत और दलाली के प्रकरण सामने आए लेकिन हमारी जांच एजेंसियां और अदालतें भी कुछेक मामलों में ही अभियुक्तों-आरोपियों के विरुद्ध दोष सिद्ध कर सकीं. सच तो यह है कि हमारे शासन-प्रशासन में राजनीतिकों, नौकरशाहों, राजनयिकों और हमारी सेनाओं में भी शिखर पदों पर बैठे लोगों के बेटे-भाई-भतीजे और रिश्तेदारों की एक पूरी जमात ही सरकारी ठेकों और सौदों में बिचौलियों और दलालों की भूमिका में सक्रिय हो गई है. देशी-विदेशी कंपनियां शासन-प्रशासन में उनके रसूख को देखते हुए उनकी ‘सेवाएं‘ लेती रहती हैं. संभव है कि पूर्व वायुसेना प्रमुख त्यागी इस हेलीकाप्टर सौदे में बेकसूर साबित हो जायें लेकिन वायुसेना प्रमुख रहते उनके भाई-भतीजे रक्षा सौदों में सक्रिय रहे. उनके सौजन्य से हेलीकाप्टर कंपनी के अधिकारियों के साथ उनकी भी मुलाकातें होती रहीं और खरीद प्रक्रिया में वेस्टलैंड हेलीकाप्टरों का मामला भी मजबूत होता गया मगर वायु सेना और इससे जुड़े मामलों-उपकरणों के एनसाईक्लोपीडिया कहे जाने वाले त्यागी जी को पता भी नहीं चला कि इस मामले में उनके अपने रिश्तेदारों के जरिए रिश्वत भी ली जा रही है, यह बात कुछ हजम नहीं होती.
जाहिर सी बात है कि इस घोटाले से जुड़े और तथ्य भी आते और सरकार की मुश्किलें बढाते रहेंगे. सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप कर इस मामले में संसद के भीतर और बाहर भी विपक्ष के प्रहारों को मद्धिम करने की कोशिश की है. हम सीबीआई की क्षमता पर सवाल नहीं उठा रहे लेकिन यह वही सीबीआई है जिसने बोफोर्स दलाली मामलों की जांच भी की है लेकिन तकरीबन ढाई दशक बीत जाने और दलाली की रकम से कई गुना अधिक रकम खर्च कर चुकने के बावजूद किसी को गुनहगार साबित नहीं किया जा सका. अलबत्ता इस मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की राजनीतिक बलि जरूर चढ़ गई. इस मामले के ठंडे बस्ते में जाने तक यही माना जाता रहा कि स्वीडिश तोपों की खरीद में गांधी परिवार ने दलाली खाई थी. इस लिहाज से जरूरी है कि हेलीकाप्टर खरीद में रिश्वतखोर लोगों के नाम और चेहरे यथाशीघ्र सामने लाए जाएं, उन्हें उनके किए की सजा मिले ताकि बोफोर्स तोपों की खरीद में दलाली के मामले में जिस तरह राजीव गांधी को राजनीतिक सूली पर चढ़ाया गया था, इस मामले में किसी और को उसी तरह की राजनीतिक सजा नहीं भुगतनी पड़े खासतौर से तब जबकि हेलीकाप्टर खरीद का सौदा कांग्रेस की तरफ से भावी प्रधानमंत्री के बतौर पेश किए जा रहे राहुल गांधी के ननिहाल, इटली से जुड़ा है.
17 फरवरी 2013 के लोकमत समाचार में प्रकाशित