डोकलाम विवाद के साए में चीन की यात्रा
जयशंकर गुप्त
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चीन की ऐतिहासिक दीवार (तस्वीर इंटरनेट से) |
हमारी यात्रा डोकलाम विवाद पर भारतीय पत्रकारों को चीन के दृष्टिकोण से अवगत कराने के मकसद से भी आयोजित की गई लगती थी. हमारे साथ दिल्ली से चीन की राजधानी बीजिंग और इसके बंदरगाह शहर झानझियांग जानेवाले की सूची में टाइम्स ऑफ इंडिया के डिप्लोमेटिक एडिटर रहे वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी, पीटीआई के अनिल के जोसेफ, चंडीगढ़ में दि ट्रिब्यून के वरिष्ठ पत्रकार संदीप दीक्षित के नाम भी थे. इनमें अकेले हम ही किसी हिंदी अखबार के पत्रकार थे. हमने इस यात्रा के आमंत्रण को ज्यादा माथा पच्ची करने के बजाय सहज स्वीकार कर लिया. विश्व की पांच-छह महा शक्तियों में से रूस और अमेरिका के बाद चीन को देखने, समझने और उसकी महान दीवार के दीदार का सपना पूरा होने जा रहा था. निमंत्रण चूंकि चीन की तरफ से ही था, लिहाजा वीसा आदि को लेकर किसी तरह की दिक्कत नहीं हुई.
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बीजिंग के कैपिटल इंटरनेशनल एयरपोर्ट के बाहर वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी के साथ |
हवाई अड्डे पर अपने सामान पाने के लिए हमें एक मेट्रोरेलनुमा शटल ट्रेन ‘कैपिटल एक्सप्रेस’ से निर्धारित जगह, टर्मिनल 2 पर पहुंचना पड़ा. आप्रवासन की औपचारिकताओं आदि से फारिग होने में दिन के एक-डेढ़ बज गए. हवाई अड्डे से बाहर निकलने पर हमारे स्वागत के लिए चीन के आए श्री रोंग मिले जो न सिर्फ हमारे लिए दुभाषिए के बतौर बल्कि मित्रवत गाइड के रूप में भी पूरी यात्रा में हमारे साथ रहे. समय के सदुपयोग को ध्यान में रखते हुए हमारी बीजिंग यात्रा का कार्यक्रम कुछ इस तरह से बना था कि हवाई अड्डे से सीधे हम लोग एक सुविधाजनक, वातानुकूलित मिनी बस में हुएरो जिले के मुतियान्यु सेक्टर में चीन की महान दीवार (ग्रेट वॉल ऑफ चाइना) देखने चले गए.
चीन की ऐतिहासिक और दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक, सबसे लंबी (21 हजार 196 किमी), मिट्टी और पत्थर से बनी किलेनुमा दीवार का निर्माण चीन के विभिन्न शासकों के द्वारा सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक उत्तरी सीमा पर यूरेशिया से आनेवाले घूमंतू, खानाबदोश लुटेरे, हमलावरों से सुरक्षा के साथ ही सीमा निर्धारण, सिल्क रोड से परिवहन और सामान को एक जगह से दूसरी जगह पर पहुंचाने से लेकर कराधान की गरज से करवाया गया. इसे दुनिया में इंसानों के द्वारा बनाई गई सबसे बड़ी संरचना भी कहा जाता है. चीनी भाषा में इस दीवार को ‘वान ली छांग छंग’ कहा जाता है जिसका मतलब होता है ‘चीन की विशाल दीवार’. यूनेस्को ने इसे 1987 में विश्व धरोहर सूची में शामिल किया था. तकरीबन एक करोड़ पयर्टक हर साल इस दीवार को देखने के लिए दुनिया भर से आते हैं.
इस दीवार का निर्माण किसी एक सम्राट या राजा के द्वारा नहीं बल्कि कई सम्राटों और राजाओं द्वारा कराया गया था. इसकी परिकल्पना चीन के पूर्व सम्राट किन शी हुआंग ने पांचवीं शताब्दी में की थी लेकिन इस पर काम बाद में शुरू हुआ. दीवार का महत्वपूर्ण और बहुचर्चित हिस्सा सोलहवीं शताब्दी में मिंग साम्राज्य के जमाने में पूरा हुआ था. चीन की इस किलेनुमा विशाल दीवार के विभिन्न सेक्टरों पर कुछ खास जगहों पर वॉच टॉवर्स बनाए गए हैं. इस दीवार को 1970 में आम दर्शकों-पयर्टकों के लिए खोला गया था. हमें बताया गया कि यह पूरी एक दीवार नहीं है बल्कि छोटे-छोटे हिस्सों से मिलकर बनी है. इस दीवार की चौड़ाई इतनी है कि पांच घुड़सवार या 10 पैदल सैनिक एक साथ इस पर गश्त कर सकते हैं. दीवार की ऊंचाई एक समान नहीं है, किसी जगह यह 9 फुट ऊंची है तो कहीं पर 35 फुट ऊंची भी है. इस दीवार को उत्तर की दिशा में चीन की रक्षा के लिए बनाया गया था लेकिन यह दीवार अजेय न रह सकी क्योंकि चंगेज खान ने 1211 में इसे पार करके ही चीन पर हमला किया था.
बीजिंग के उत्तर पूर्व में बीजिंग अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से तकरीबन 60 किमी दूर मुतियान्यु स्थित चीन की दीवार के इस खंड तक पहुंचने में हमारी बस को डेढ़ घंटे का समय लगा. हम लोगों ने वहां हरी-भरी पहाड़ियों पर बनी चीन की दीवार पर तकरीबन डेढ़ घंटे का समय वहां गुजारा. ऊपर तक गए. वहां बहुत सारे पर्यटक भी थे. कुछ तो हमारी उड़ान में साथ आए लोग भी लगते थे. हुएरो जिले में स्थित मुतियान्यु खंड की चीन की दीवार चीन और खासतौर से बीजिंग के सर्वाधिक पसंदीदा पर्यटक केंद्रों में से एक है. वहां कुछ दुकानें और रेस्तरां भी थे लेकिन सब कुछ बहुत महंगा था, अमीर पर्यटकों के हिसाब से ! पर्यटकों के लिए चीन की दीवार सुबह के 7.30 बजे खुलती और शाम को ठीक 5.30 बजे बंद हो जाती है. हम लोग वहां पांच बजे तक रहे और वहां से सीधे बीजिंग वांगफुजिंग स्ट्रीट, सिटी सेंटर के करीब पांच सितारा होटल ‘नोवोटेल बीजिंग पीस’ पहुंचे जहां हमारे ठहरने का इंतजाम किया गया गया था. होटल ठीक ठाक था.
चीन की महान दीवार के दीदार
इस दीवार का निर्माण किसी एक सम्राट या राजा के द्वारा नहीं बल्कि कई सम्राटों और राजाओं द्वारा कराया गया था. इसकी परिकल्पना चीन के पूर्व सम्राट किन शी हुआंग ने पांचवीं शताब्दी में की थी लेकिन इस पर काम बाद में शुरू हुआ. दीवार का महत्वपूर्ण और बहुचर्चित हिस्सा सोलहवीं शताब्दी में मिंग साम्राज्य के जमाने में पूरा हुआ था. चीन की इस किलेनुमा विशाल दीवार के विभिन्न सेक्टरों पर कुछ खास जगहों पर वॉच टॉवर्स बनाए गए हैं. इस दीवार को 1970 में आम दर्शकों-पयर्टकों के लिए खोला गया था. हमें बताया गया कि यह पूरी एक दीवार नहीं है बल्कि छोटे-छोटे हिस्सों से मिलकर बनी है. इस दीवार की चौड़ाई इतनी है कि पांच घुड़सवार या 10 पैदल सैनिक एक साथ इस पर गश्त कर सकते हैं. दीवार की ऊंचाई एक समान नहीं है, किसी जगह यह 9 फुट ऊंची है तो कहीं पर 35 फुट ऊंची भी है. इस दीवार को उत्तर की दिशा में चीन की रक्षा के लिए बनाया गया था लेकिन यह दीवार अजेय न रह सकी क्योंकि चंगेज खान ने 1211 में इसे पार करके ही चीन पर हमला किया था.
बीजिंग के उत्तर पूर्व में बीजिंग अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से तकरीबन 60 किमी दूर मुतियान्यु स्थित चीन की दीवार के इस खंड तक पहुंचने में हमारी बस को डेढ़ घंटे का समय लगा. हम लोगों ने वहां हरी-भरी पहाड़ियों पर बनी चीन की दीवार पर तकरीबन डेढ़ घंटे का समय वहां गुजारा. ऊपर तक गए. वहां बहुत सारे पर्यटक भी थे. कुछ तो हमारी उड़ान में साथ आए लोग भी लगते थे. हुएरो जिले में स्थित मुतियान्यु खंड की चीन की दीवार चीन और खासतौर से बीजिंग के सर्वाधिक पसंदीदा पर्यटक केंद्रों में से एक है. वहां कुछ दुकानें और रेस्तरां भी थे लेकिन सब कुछ बहुत महंगा था, अमीर पर्यटकों के हिसाब से ! पर्यटकों के लिए चीन की दीवार सुबह के 7.30 बजे खुलती और शाम को ठीक 5.30 बजे बंद हो जाती है. हम लोग वहां पांच बजे तक रहे और वहां से सीधे बीजिंग वांगफुजिंग स्ट्रीट, सिटी सेंटर के करीब पांच सितारा होटल ‘नोवोटेल बीजिंग पीस’ पहुंचे जहां हमारे ठहरने का इंतजाम किया गया गया था. होटल ठीक ठाक था.
सबसे अच्छी बात यह थी कि इस होटल के पास ही पैदल दूरी पर शापिंग माल्स, स्ट्रीट फूड्स और शापिंग स्ट्रीट थी, जिसे शाम के बाद वाहनों की आवाजाही के लिए बंद कर दिया जाता था. थोड़ी दूर और आगे चलने पर, 15-20 मिनट की पैदल दूरी पर ‘निषिद्ध शहर’ (फारबिडेन सिटी), मिंग साम्राज्य का विशाल शाही महल और विश्व प्रसिद्ध ‘तियानमेन चौराहा’ भी है जहां कभी, एक अक्टूबर 1949 को चेयरमैन माओ ने कम्युनिस्टों के नेतृत्व में जनवादी गणराज्य चीन की घोषणा के साथ ही सत्ता संभालने की घोषणा की थी. वहीं पर माओ का भव्य मुसोलियन (समाधिस्थल) भी बना है जो पर्यटकों के अतिरिक्त आकर्षण का केंद्र रहता है. इस तियानमेन चौक की (कु) ख्याति एक कारण से और भी है. जून 1989 के पहले सप्ताह में चीन में लोकतंत्र समर्थक लाखों छात्र-युवाओं ने यहां भारी प्रदर्शन किया था. चीन की तत्कालीन सरकार ने लोकतंत्र समर्थक छात्र-युवाओं पर सेना की गोलियां बरसाकर, उन्हें टैंकों से रौंदवाकर उस आंदोलन का दमन किया था. बताया जाता है कि उस समय तकरीबन तीन हजार लोकतंत्र समर्थक छात्र युवा मारे गए थे हालांकि पश्चिमी मीडिया मृतकों की संख्या दस हजार के करीब बताता है जबकि चीन सरकार के अनुसार मारे गए छात्र-युवाओं की संख्या तीन सौ से अधिक नहीं थी, अलबत्ता हजारों लोग घायल हुए थे. जो भी हो, पूरी दुनिया में इस मामले पर चीन की थू थू हुई थी. इसे पश्चिमी देशों की तरफ से कई तरह के प्रतिबंध भी झेलने पड़े थे.
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बीजिंग शहर के बीच ऐतिहासिक तियानमेन चौक |
चीन का इतिहास- भूगोल
पूर्वी एशिया में स्थित चीनी जनवादी गणराज्य में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की एक दलीय शासन व्यवस्था है. तकरीबन 139 करोड़ की आबादी (2017 में) के साथ चीन को विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश भी कहा जाता है. तकरीबन 96 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ यह रूस, कनाडा और अमेरिका के बाद विश्व का चौथा सबसे बड़ा क्षेत्रफल वाला देश है. इसकी तकरीबन 22117 किमी लंबी सीमाएं 14 देशों-पूर्वी एशिया में विएतनाम, लाओस, और म्यांमार, दक्षिण पूर्व एशिया में भारत, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान और अफगानिस्तान, दक्षिण एशिया में ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान, मध्य एशिया में कज़ाकिस्तान, रूस, मंगोलिया, उत्तर कोरिया से लगती हैं. इसकी समुद्री सीमाएं दक्षिण कोरिया, जापान, विएतनाम तथा फिलीपींस के साथ लगती हैं. चीन के पश्चिम में हिमालय पर्वत श्रृंखला है जो चीन की भारत, भूटान और नेपाल के साथ प्राकृतिक सीमा बनाती है.
चीन विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जो अभी भी अस्तित्व में हैं. खुदाई में प्राप्त जीवाश्मों से पता चलता है कि आज से कोई 16 लाख साल पूर्व ही चीन की भूमि पर मानव ने अपने पदचिन्ह छोड़ दिए थे. चीन का लिखित इतिहास भी पांच हजार साल पुराना बताते हैं. ईसा से 221 वर्ष पूर्व छिन राजवंश की स्थापना हुई, जिसने चीन का एकीकरण किया था. यहां विभिन्न प्रकार के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक ग्रन्थ और पुरातन संस्कृति के अवशेष पाए गए हैं. दुनिया के अन्य कई प्राचीन देशों की तरह चीन भी अपने विकास के दौरान आदिम समाज, दास समाज और सामंती समाज के कालों से गुजरा था. इस दौरान चीन कई युद्धों-गृह युद्धों के साथ ही कई सम्राटों और उनके राजवंशों के शासन, आक्रमण, उत्थान और पतन का भी साक्षी बनता रहा. सन् 618 में थांग राजवंश स्थापित हुआ. उसके शासनकाल में चीन पूर्वी एशिया में सर्वाधिक समृद्धशाली देश था. चीन का अंतिम राजवंश छिंग था. 1911 में चीन में कुओमिन्तांग (केएमटी या नेशनलिस्ट पार्टी) के सुन यात सेन के नेतृत्व में हुई क्रांति ने छिंग राजवंश का तख्ता पलट दिया और एक जनवरी, 1912 को चीन गणराज्य के रूप में दुनिया के सामने आया. सुन यात सेन इसके पहले कार्यवाहक राष्ट्राध्यक्ष बने. लेकिन दो-तीन साल बाद उन्हें अपदस्थ कर छिंग साम्राज्य के पूर्व जनरल युवान शिकाई राष्ट्राध्यक्ष बन गए और 1915 में उन्होंने खुद को चीन का सम्राट घोषित कर लिया. लेकिन 1916 में युवान शिकाई की मृत्यु के बाद शुरू हुए अस्थिरता के दौर में चीन राजनीतिक तौर पर बिखर सा गया. 1920 के दशक के अंत में च्यांग काई शेक के नेतृत्व में कुओमिन्तांग एक बार फिर सत्तारूढ़ हुए. उन्होंने चीन गणराज्य को नये सिरे से एकजुट किया और नान्जिंग में अपनी राजधानी बनाई.
कम्युनिस्ट क्रांति
लेकिन कुछ ही वर्षों में चीन के गरीब किसान, मजदूरों के बीच सत्तारुढ़ कुओमिन्तांग पार्टी के ‘कुशासन’ के विरोध में नाराजगी बढ़ने लगी. 1929 में उसके विरूद्ध चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी ‘जन मुक्ति सेना’ (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) ने सशस्त्र संघर्ष छेड़ दिया था. यह संघर्ष बाद के वर्षों में गृह युद्ध के रूप में बदल गया था. उसी कालखंड (1934-35) में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीन में ऐतिहासिक लांग मार्च हुआ था. उसी बीच, 1936 में जापान ने चीन पर आक्रमण कर दिया था. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब 1937 से 1945 के बीच दूसरे चीन-जापान युद्ध के दौरान च्यांग काई शेक और माओ ने एक दूसरे से हाथ मिला लिया था. लेकिन जापान से युद्ध की समाप्ति के बाद चीन में एक बार फिर से गृह युद्ध शुरू हो गया था जिसकी परिणति कुओमिन्तांग की पराजय और चीन में चेयरमैन माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट शासन के रूप में हुई थी. एक अक्टूबर 1949 को माओ ने मशहूर तियानमेन चौक पर बड़े सार्वजनिक समारोह में चीनी जनवादी गणराज्य की स्थापना की घोषणा की थी. धर्म को अफीम की गोली घोषित करनेवाले माओ के नेतृत्व में बाद के वर्षों में सांस्कृतिक क्रांति के दौरान भी वहां बड़े पैमाने पर खून खराबा और नर संहार हुए थे.
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चेयरमैन माओत्सेतुंग सांस्कृतिक क्रांति के 'अग्रदूत' |
राजधानी बीजिंग
चीन की राजधानी बीजिंग आज एक वैश्विक शहर और संस्कृति, कूटनीति-राजनय, राजनीति, व्यापार और अर्थशास्त्र, शिक्षा, भाषा और विज्ञान-प्रौद्योगिकी के लिए दुनिया के अग्रणी केंद्रों में से एक कहा जाता है. सही मायने में तकरीबन दो करोड़ की आबादी के साथ मेगासिटी कहा जानेवाला बीजिंग, शंघाई के बाद शहरी आबादी के हिसाब से चीन का और संभवतः पूरी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. आज यहां चीन की सबसे बड़ी राज्य के स्वामित्ववाली कंपनियों के मुख्यालय हैं और दुनिया में फॉर्च्यून ग्लोबल 500 कंपनियों की सबसे बड़ी संख्या के साथ-साथ दुनिया के चार सबसे बड़े वित्तीय संस्थान भी यहीं हैं. बीजिंग को ‘दुनिया की अरबपति राजधानी’ भी कहा जाता है, जहां सबसे अधिक अरबपति रहते हैं.
आधुनिक और पारंपरिक वास्तुकला दोनों को मिलाकर, बीजिंग दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है, जिसमें तीन सहस्त्राब्दियों का एक समृद्ध इतिहास संरक्षित है. चीन की चार महान प्राचीन राजधानियों (शी आन, लुओयांग और नानजिंग और बीजिंग) में से अंतिम के रूप में बीजिंग पिछली आठ शताब्दियों से देश का राजनीतिक केंद्र रहा है. पुरानी भीतरी और बाहरी शहर की दीवारों के अलावा, तीन तरफ अंतर्देशीय शहर के आसपास के पहाड़ों के साथ , बीजिंग को रणनीतिक रूप से राजधानी शहर, तत्कालीन सम्राट के निवास के रूप में बनाया गया था. यह शहर अपने भव्य महलों, मंदिरों, पार्कों, उद्यानों, मकबरों, दीवारों और दरवाजों के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां यूनेस्को द्वारा संरक्षित सात विश्व धरोहर स्थल हैं- निषिद्ध शहर, स्वर्ग का मंदिर, समर पैलेस, मिंग टॉम्ब, झोउकौडियन और चीन की महान दीवार के कुछ हिस्से और ग्रैंड कैनाल- जहां बड़ी मात्रा में देश विदेश के पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है. बीजिंग में कुल 91 विश्वविद्यालय हैं जिनमें से कई लगातार एशिया प्रशांत और दुनिया में सर्वश्रेष्ठ कहे जाते हैं. इस शहर ने हालिया अतीत में ओलंपिक खेलों के साथ ही कई अन्य अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं की मेजबानी की है.
भारत-चीन संबंध !
चीन के साथ भारत के संबंध ऐतिहासिक रूप से भी काफी मधुर रहे हैं. अतीत में भी दोनों के बीच आवाजाही, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रदान होता रहा है. सिल्क रूट के जरिए दोनों देशों के बीच व्यापारिक गतिविधियां होती रही हैं. चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार भारत से ही हुआ था. 1949 में नये चीन जनवादी गणराज्य की स्थापना के तुरंत बाद भारत ने चीन के साथ राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किए. इस तरह भारत, चीन जनवादी गणराज्य को मान्यता देने वाला पहला गैर कम्युनिस्ट देश कहा जा सकता है. वर्ष 1954 के जून माह में चीन, भारत व म्यांमार द्वारा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धान्त यानी पंचशील प्रवर्तित किये गये. पंचशील चीन व भारत द्वारा दुनिया की शांति व सुरक्षा में किया गया एक महत्वपूर्ण योगदान था, जो आज तक दोनों देशों की जनता की जबान पर है. देशों के संबंधों को लेकर स्थापित इन सिद्धांतों की मुख्य विषयवस्तु है- एक-दूसरे की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखंडता का सम्मान किया जाये, एक-दूसरे पर आक्रमण न किया जाए, एक-दूसरे के अंदरूनी मामलों में दखल न दी जाए और समानता व आपसी लाभ के आधार पर शांतिपूर्ण सहअस्तित्व बरकारार रखा जाए. उस समय दोनों देशों के बीच ‘हिंदी-चीनी, भाई- भाई’ का नारा बहुत प्रचलित हुआ था.
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चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाओ एन लाई के साथ भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, उप राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू |
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अहमदाबाद में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 'झूला राजनय' |