बिहार की राजनीति में बवाल !
जयशंकर गुप्त
https://youtu.be/snt96f2eTxY
बिहार की राजनीति और खासतौर से जनता परिवार (अविभाजित जनता पार्टी और जनता दल) के घटक रहे दलों में और इनके नेताओं के परिवार में बवाल सा मचा है. बिहार आंदोलन और जनता परिवार से जुड़े रहे तीन कद्दावर नेताओं-रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के परिवार और पार्टियों की अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गई है. ‘घर को आग लग गई घर के चिराग से’ की कहावत को चरितार्थ करते हुए कुछ महीनों पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और परिवार उनके अपने ‘चिराग’ को लेकर दो हिस्सों में बिखर गया. और अब पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का राजनीतिक कुनबा भी उनके बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को लेकर उसी राह पर चलते दिख रहा है. वहीं, भाजपा के साथ सरकार साझा कर रहे जनता दल (यू) में भी अंदरखाने शीर्ष पर बैठे नेताओं के बीच रस्साकशी और एक-दूसरे को नीचा दिखाने का राजनीतिक खेल खुलकर सामने आने लगा है.
परिवारवाद और व्यक्तिवाद का विद्रूप चेहरा !
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नीतीश कुमार, लालू प्रसाद और रामविलास पासवान: सामने आ रहा है व्यक्तिवाद और परिवारवादी राजनीति का विद्रूप चेहरा |
दरअसल, बिहार के जनता परिवार में जो कुछ हो रहा है, उसे व्यक्तिवादी और परिवारवादी राजनीति का विद्रूप चेहरा भी कहा जा सकता है. जब किसी बड़े नेता के परिवार के कई सदस्य राजनीति में सक्रिय हो जाते हैं तो आगे चलकर ‘उत्तराधिकार’ को लेकर उनके बीच राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हिलोर मारने लगती हैं. उनमें कोई आगे निकल जाता है तो बाकियों को लगता है कि ऐसा उसकी ही कीमत पर हो रहा है. इसके बाद शुरू हो जाता है राजनीतिक साजिशों और एक दूसरे को उठाने, गिराने का राजनीतिक खेल. यह बात स्व. राम विलास पासवान के राजनीतिक कुनबे में भी दिखी जहां उनके लक्ष्मण सरीखे अनुज पशुपति कुमार पारस ने केंद्र सरकार में मंत्री पद पाने के लिए अपने भतीजे चिराग पासवान को हाशिए पर डालने में जरा भी संकोच और लिहाज नहीं किया. उन्होंने पार्टी पर भी एक तरह से कब्जा जमा लिया. सांसद चिराग अब अपने राजनीतिक वर्चस्व और पिता की राजनीतिक विरासत के लिए अपने चाचा पारस और चचेरे भाई, सांसद प्रिंस राज से बिहार के राजनीतिक मैदान में जाकर लड़ रहे हैं.
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चिराग ः पिता की राजनीतिक विरासत की जंग! |
अब यही खेल लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक कुनबे में भी शुरू हो गया है. इसे विडम्बना ही कहेंगे कि एक तरफ जहां लालू प्रसाद बिहार से लेकर दिल्ली में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा को मजबूत चुनौती और शिकस्त देने के लिए विपक्ष को एकजुट करने की कवायद में जुटे हैं, वहीं बिहार में उनके बड़े बेटे और पार्टी के विधायक तेज प्रताप यादव उनके और उनके दूसरे बेटे, विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी राजद के लिए भी मुसीबत का कारण बन रहे हैं. उन्होंने लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के भी भरोसेमंद प्रदेश राजद के अध्यक्ष जगदानंद सिंह और परोक्ष रूप से तेजस्वी के विरुद्ध भी ‘राजनीतिक युद्ध’ सा छेड़ दिया है. तेज प्रताप को लगता है कि बड़ा होने के बावजूद एक साजिश के तहत पार्टी और परिवार में उनका कद छोटा किया जा रहा है. इस बीच उनके कुछ हालिया बयानों को लेकर उनके ऊपर अनुशासनहीनता की तलवार अलग से लटक रही है. उनके लिए सुधर जाने अथवा पार्टी और परिवार से भी बाहर होने का खतरा साफ दिखने लगा है. इस बात के संकेत लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव ने भी देना शुरू कर दिया है. हालांकि राजद के कुछ नताओं को लगता है कि लालू प्रसाद ने शुरू से ही तेजप्रताप को अनुशासित किया होता तो शायद आज यह दिन नहीं देखने पड़ते.
लालू के लाल का अपनों के खिलाफ मोर्चा
लालू प्रसाद यादव के चारा घोटाले में पहली बार जेल जाने के बाद जब उनकी पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं, उस समय उनके सभी बच्चे छोटे थे. उनके वयस्क होने के बाद उन्हें भी राजनीति का चस्का लगा या कहें उन्हें भी राजनीति में सक्रिय किया गया. बड़ी बेटी मीसा भारती को लोकसभा के दो चुनाव हारने के बाद 2016 में राज्यसभा में भेजा गया. जबकि 2015 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश कुमार के जद (यू) , कांग्रेस और राजद के गठबंधन ने मिलकर चुनाव लड़ा और सरकार भी बनाई तो उसमें उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री और बड़े बेटे तेजप्रताप यादव को भी स्वास्थ्य मंत्री बनाया. आगे चलकर और खासतौर से दोबारा जेल चले जाने के बाद भी लालू प्रसाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे लेकिन व्यावहारिक तौर पर उन्होंने पार्टी की कमान तेजस्वी यादव को सौंपकर उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया.
2020 के बिहार विधानसभा के चुनाव में तेजस्वी को ही भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया गया. उनके राजनीतिक मार्गदर्शन के लिए पुराने भरोसेमंद, समाजवादी एवं सामाजिक न्याय के प्रति समर्पित नेता जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. हरियाणा के युवा नेता संजय यादव तेजस्वी के साथ राजनीतिक सलाहकार के रूप में जुड़ गए. इस तिकड़ी ने अपेक्षित नतीजे भी दिए. तेजस्वी ने लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के साए से अलग एक नये राजद को खड़ा करने की कोशिश की. लालू प्रसाद की गैर हाजिरी में भी राजद को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में बिहार की सत्ता के करीब पहुंचा कर तेजस्वी ने अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया.
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तेजस्वी यादवः साबित की नेतृत्व क्षमता |
उधर जगदानंद सिंह ने भी पार्टी और पटना में इसके मुख्यालय को व्यवस्थित और अनुशासित करना शुरू किया. प्रदेश मुख्यालय को समाजवादी एवं सामाजिक न्याय के प्रतीक नेताओं की तस्वीरों और पुस्तकों से सजाया गया. वहां अनावश्यक भीड़-भाड़ के बजाए काम से काम रखनेवालों को तरजीह मिलनी शुरू हुई. बड़ा सभागार तथा मीडिया कक्ष भी बना. पदाधिकारियों को समय पर कार्यालय आने और दिए कार्य पूरा करने की जवाबदेही तय होने लगी. जगदानंद खुद भी पटना में रहने पर रोजाना 11 बजे कार्यालय आते और शाम को ही घर जाते. नेताओं-कार्यकर्ताओं के लिए चापलूसी, चाटुकारिता के बजाए पठन पाठन में ध्यान लगाने का निर्देश था. लेकिन इस प्रक्रिया में तेजप्रताप और मीसा भारती पार्टी में खुद को उपेक्षित और पिछड़ते महसूस करने लगे. हालांकि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी ने भी अपनी संतानों के बीच राजनीतिक संतुलन बनाए रखने में कोई कभी कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन वह अपने बड़े बेटे तेजप्रताप की महत्वाकांक्षाओं और उल जलूल हरकतों पर नियंत्रण कर उन्हें अनुशासित नहीं रख सके. वह कभी कृष्ण तो कभी शिव की शक्ल धारण करने लगे तो कभी वृंदावन के चक्कर लगाने लगे. गाहे बगाहे वह खुद को दूसरा लालू भी कहने लगे. इस सबके बीच उनका वैवाहिक जीवन भी विवाद का विषय बना और पत्नी से न सिर्फ तलाक हो गया बल्कि उनके पिता, पूर्व विधायक चंद्रिका राय के साथ लालू प्रसाद का दशकों पुराना पारिवारिक संबंध भी टूट गया.
महाभारत के पात्र !
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तेजस्वी को ताज पहनाते तेजप्रतापः 'कृष्ण' की भूमिका ! |
तेज प्रताप सार्वजनिक तौर पर खुद को कृष्ण और छोटे भाई तेजस्वी यादव को अर्जुन बताते हुए यह कहते नहीं थकते कि तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाना ही उनका राजनीतिक मकसद है. लेकिन अपने आचरण से वह लगातार तेजस्वी और राजद को कमजोर ही करते रहे. पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भी टिकट से वंचित अपने करीबी लोगों को बागी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़वाकर उन्होंने कई चुनाव क्षेत्रों में राजद की हार में योगदान ही किया. अपनी उल जलूल हरकतों और विवादित बयानबाजियों के कारण पहले भी सुर्खियों में रहे तेज प्रताप ने हाल के दिनों में राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार संजय यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. संजय यादव को प्रवासी सलाहकार कह कर वह उन पर परवार में फूट डालने के आरोप लगा रहे हैं तो राजद की स्थापना के समय से ही लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और इधर तेजस्वी यादव के भी भरोसेमंद रहे जगदानंद सिंह को वह हिटलर और नागपुरी राजनीति का ‘स्लीपर सेल’ तक करार दे रहे हैं. यहां तक कि किसी को शिशुपाल तो किसी को दुर्योधन करार देकर वह उनके ‘वध’ की बात भी करने लगे हैं. यह बात और है कि राजद और लालू प्रसाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पराकाष्ठा का परिचय देते हुए 2015 के विधानसभा चुनाव में जगदानंद सिंह ने राजद का टिकट नहीं मिलने पर भाजपा का उम्मीदवार बन गए अपने पुत्र सुधाकर सिंह की हार सुनिश्चित करवाई थी.
इससे पहले भी तेज प्रताप तेज प्रताप लालू प्रसाद यादव के दो और वरिष्ठ और भरोसेमंद नेताओं-पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह और पूर्व सांसद, शिवानंद तिवारी के विरुद्ध भी इस तरह की अपमानजनक टिप्पणियां करते रहे हैं. रघुवंश प्रसाद सिंह को तो उन्होंने पार्टी रूपी समुद्र में एक लोटा जल भर कहकर अपमानित किया था. अब तेज प्रताप अपने आलाकमान से जगदानंद के खिलाफ कार्रवाई की मांग पर अड़े हैं और कह रहे हैं कि ऐसा होने तक वह राजद के किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे. इसके लिए उन्होंने तेजस्वी से बात करने की कोशिश की लेकिन उनका आरोप है कि संजय यादव के हस्तक्षेप से बातचीत बीच में ही छोड़कर तेजस्वी अपने कमरे में चले गए. अब तेजप्रताप अपने पिता लालू प्रसाद से मिलने दिल्ली में हैं. संयोगवश तेजस्वी यादव भी दिल्ली में ही हैं. दोनों भाई रक्षाबंधन के पर्व पर बहनों से राखी बंधवाने दिल्ली आए हैं.
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जगदानंद सिंह लालू प्रसाद और तेजस्वी के भरोसेमंद लेकिन तेज प्रताप के लिए 'हिटलर' और 'शिशुपाल' ! |
जगदानंद सिंह के खिलाफ तेजप्रताप की ताजा खुन्नस अपने खासुलखास आकाश यादव की जगह गगन यादव को प्रदेश छात्र राजद का अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर है. विवाद की शुरुआत 8 अगस्त को छात्र राजद के सम्मेलन में हुई. इस सम्मेलन के लिए लगे पोस्टरों-बैनरों और होर्डिंग्स में तेजस्वी यादव की तस्वीर गायब थी. यही नहीं तेज प्रताप ने इस सम्मेलन में जगदानंद सिंह की तुलना हिटलर से कर दी. इससे क्षुब्ध और क्रुद्ध जगदानंद ने राजद कार्यालय जाना ही छोड़ दिया. यहां तक कि 15 अगस्त को वह पार्टी मुख्यालय में झंडा फहराने भी नहीं गए. काफी मान मनौवल और लालू प्रसाद तथा तेजस्वी यादव के साथ बातचीत के बाद वह कार्यालय पहुंचे और और सबसे पहले तकनीकी आधार पर तेज प्रताप के करीबी आकाश यादव की जगह गगन यादव को प्रदेश छात्र राजद का अध्यक्ष बनाया. इससे भड़के तेज प्रताप ने जगदानंद सिंह पर नियम और पार्टी के संविधान की अवहेलना का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि ऐसा करने से पहले उन्हें उनसे बात करनी चाहिए थी क्योंकि छात्र राजद के संरक्षक की हैसियत से उन्होंने ही आकाश को छात्र राजद का अध्यक्ष बनाया था. लेकिन जगदानंद सिंह ने साफ किया कि पार्टी में छात्र राजद के संरक्षक का कोई पद ही नहीं है तो कैसे कोई किसी को प्रदेश छात्र राजद का अध्यक्ष नियुक्त कर सकता है. प्रदेश राजद के आमुख संगठनों के पदाधिकारियों की नियुक्ति प्रदेश अध्यक्ष ही करता है. और उन्होंने अध्यक्ष की हैसियत से किसी को इस पद पर नियुक्त ही नहीं किया था तो किसी को हटाने की बात कहां से आती है. उन्होंने तो प्रदेश छात्र राजद अध्यक्ष के रिक्त पद पर गगन यादव को नियुक्त किया है.
जगदानंद के खिलाफ तेज प्रताप की खुन्नस पुरानी है. उन्हें लगता है कि वह उनका राजनीतिक कद छोटा करने में लगे रहने के साथ ही उनकी उपेक्षा करते हैं. उन्हें उस तरह का भाव नहीं देते जैसा वह तेजस्वी को देते हैं. मसलन, जब वह यानी तेज प्रताप पार्टी मुख्यालय में आते हैं तो प्रदेश अध्यक्ष उनका उस तरह से स्वागत नहीं करते जैसा वह तेजस्वी का करते हैं. वह उनसे फोन पर बात भी नहीं करते और न ही सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनकी बातों पर वह ताली ही बजाते हैं. जगदानंद का कहना है कि तेजस्वी यादव संवैधानिक पद पर, नेता विपक्ष हैं और तेजप्रताप केवल विधायक. हम तो प्रोटोकॉल का अनुसरण करते हैं.
इस बीच उनके हालिया बयानों ने तेजप्रताप के सिर पर अनुशासनहीनता के आरोप में कार्रवाई की तलवार लटका दी है. वह यह समझने में भूल कर बैठे कि जगदानंद सिंह जो भी कर या कह रहे हैं, उसके लिए उन्हें लालू प्रसाद और तेजस्वी से हरी झंडी मिली हुई है. शायद इसलिए भी लालू प्रसाद और तेजस्वी उनके विरुद्ध कुछ नहीं बोल रहे बल्कि संकेतों के जरिए तेजप्रताप को संयमित और अनुशासित रहने की सलाह दे रहे हैं. तेजस्वी यादव ने कहा भी है कि तेजप्रताप उनके बड़े भाई हैं लेकिन हमारे माता पिता ने हमें अनुशासित रहने और बड़ों का सम्मान करने की सीख दी है. तेजस्वी ने यह भी कहा है कि जगदानंद जी बड़े बुजुर्ग और सम्मानित नेता के साथ ही प्रदेश राजद के अध्यक्ष भी हैं, उन्हें प्रदेश संगठन में सभी फैसले लेने का अधिकार है. ऐसे मे अगर उन्होंने छात्र राजद के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर कोई नियुक्ति की है तो यह उनका अधिकार है. कहा तो यह भी जा रहा है कि अगर तेजप्रताप अपनी सीमा और अनुशासन में नहीं रहे और इसी तरह के उल जलूल और अपमानजनक बयान देते रहे तो उनके विरुद्ध कार्रवाई भी हो सकती है. लेकिन इसका राजनीतिक नफा-नुसान किसे होगा! राजद के विरोधी मौके का लाभ लेने की ताक में हैं. भाजपा और जद (यू) के नेताओं ने अपने बयानों के जरिए अभी से इसका मजा लेना शुरू कर दिया है. राजद के एक नेता ने गुमनामी की शर्त पर कहा है कि इन दिनों तेज प्रताप जो कुछ कर और बोल रहे हैं, उनकी पीठ पर लालू प्रसाद के किसी राजनीतिक विरोधी का हाथ लगता है.यह बात राजद नेतृत्व और लालू प्रसाद को भी तो पता होगी ही! इस बात का आकलन भी हो रहा होगा कि तेजप्रताप के विरुद्ध कार्रवाई होने और नहीं होने का राजद और परिवार की राजनीतिक सेहत पर क्या असर पड़ेगा!
जनता दल (यू) में भी रस्साकशी !
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नीतीश कुमारः ये सब क्या हो रहा है, समय पर बोलेंगे
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दूसरी तरफ, बिहार में भाजपा के साथ साझा सरकार का नेतृत्व करते हुए भी खुद को असहज महसूस कर रहे जनता दल यू की अंदरूनी कलह भी खुल कर आने लगी है. कुछ समय पहले जद (यू) में वापसी करनेवाले उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री मटीरियल बता रहे हैं तो उनके समर्थक अपने पोस्टर, बैनर और होर्डिंगों में उपेंद्र कुशवाहा को भावी मुख्यमंत्री बताने लगे हैं.नीतीश कुमार के खासुल खास रहे आरसीपी सिंह के केंद्र में मंत्री बन जाने के बाद नाराजगी बढ़ी तो उनकी जगह एक और खासुल खास रहे सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया. इसके बाद स्वागत समारोहों के जरिए जनता दल (यू) की गुटबाजी और नेताओं के अंदरूनी मतभेद और खुलकर सामने आने लगे हैं. पूर्व नौकरशाह आरसीपी के करीबी लोग चाहते थे कि वह केंद्र में मंत्री के साथ ही राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने रहें. आरसीपी ने अपने स्वागत समारोहों में कहा भी है कि केंद्र में मंत्री बन जाने के बावजूद पार्टी संगठन में उनकी भूमिका और सक्रियता बनी रहेगी. वहीं आरसीपी सिंह के विरोधियों का कहना है कि मंत्री बनने के बाद से उनका भाजपा के प्रति झुकाव कुछ ज्यादा ही दिख रहा है. जातीय जनगणना पर पार्टी के अधिकृत रुख से अलग वह भाजपा की भाषा बोल रहे हैं. राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते खुद मंत्री बन जाने के मामले पर वह कह रहे हैं कि ऐसा उन्होंने नेता, नीतीश कुमार के कहने पर ही किया.अभी तक नीतीश कुमार इससे इनकार करते रहे हैं. लेकिन अपने स्वागत समारोहों के क्रम में कई दिन बिहार-पटना में रहने के बावजूद वह नीतीश कुमार से मिलने का समय नहीं निकाल सके, इस तरह की चर्चाएं जोर पकड़ने के बाद वह वह शनिवार, 21 अगस्त को मुख्यमंत्री निवास पर जाकर नीतीश कुमार से मिले. दो घंटे साथ रहे, बातें बहुत ज्यादा नहीं हुई. पार्टी की तरफ से कहा जा रहा है कि सब कुछ ठीक-ठाक है. नीतीश कुमार अभी खामोश हैं. कहा जा रहा है कि इन सब पर 29 अगस्त को जद यू की राष्ट्रीय परिषद में कुछ बोल सकते हैं.
नोटः तस्वीरें इंटरनेट से